खिला खिला मन – लतिका श्रीवास्तव 

.सभी को खाना खिलाने के बाद सुमी अपने लिए भी थाली लगा रही थी….ये उसका रोज का नियम था सबको गरम गरम खाना खिलाने के बाद ही वो खुद खाना खाती थी ….. वर्षों से यही नियम चला आ रहा था …पर आज अचानक उसे अपना मन कुछ बुझा बुझा सा प्रतीत हो रहा था…जाने क्यों उसे ऐसा लग रहा था कोई उसके लिए थाली लगाता….तुमने खाया कि नहीं खाया …..पूछ पूछ कर उसे भी गरम गरम रोटी खिलाता  …..पर…..

सब लोग खाना खा कर अपने अपने कक्षों में जा चुके थे….उसकी बेटी तान्या भी अपने मोबाइल में किसी से बात करने में मशगूल थी….पति सचिन भी अपना मनपसंद टीवी सीरियल देख रहे थे…..यहां तक कि उसकी नई देवरानी श्रेया जिसको आए अभी एक महीना भी नहीं हुआ था उसकी हंसी ठिठोली की आवाजे भी सुमी को डाइनिंग रूम तक सुनाई दे रहीं थीं…..!

कोई वार्तालाप नहीं…. किसीको सुमी से बातें करने का उसकी समस्याएं सुनने का,अच्छी बुरी बाते शेयर करने का मन ही नही होता !!सभी बहुत व्यस्त हैं…..बॉस से बात करना… दोस्तो से बातें करना…..फेसबुक पर ,व्हाट्स एप पर भी घंटो चैट करना….सब जरूरी है…..लेकिन घर में इकठ्ठे बैठकर तसल्ली से दो बातें करना बिलकुल गैर जरूरी हो गया है..!सुमी के पास तो कोई काम ही नहीं है ….! घरेलू काम भी भला कोई काम होते हैं…..सब यही सोचते हैं!

उसने सोचा था खाना खाते खाते श्रेया के साथ कल के त्योहार का मेनू डिस्कस कर लेगी…पर श्रेया से  कहने पर उसका लापरवाह सा जवाब आया था…”अरे दीदी ये सब आपका डिपार्टमेंट है जो भी जैसा भी करना हो कर लीजिए मुझे तो कल ऑफिस में बहुत ज्यादा काम है नए बॉस आने वाले हैं तो सभी तैयारियां मुझे ही करनी है….मैं अपनी थाली लेकर अपने रूम में जा रहीं हूं..कंप्यूटर में कुछ काम भी करती जाऊंगी….और हां दीदी कल तो मुझे सुबह 7 बजे ही जाना पड़ेगा आप प्लीज आलू के परांठे बना देना उसीको टिफिन में भी ले जाऊंगी…..”कहते हुए वो अपनी थाली लेकर तत्काल चली गई थी।




“अरे तो क्या त्योहार केवल मेरे लिए आ रहा है क्या बनना है कैसे करना है ये तो सभी को तय करना चाहिए !!सुमी ने डाइनिंग टेबल पर सबको खाना खिलाते हुए सबकी राय जाननी चाही थी….. तो देवर सुमेर ने भी हंस के…” ओहो भाभी ये सब चकल्लस आप ही सुलझाइए किसी को इतनी फुरसत नहीं है त्योहार व्योहार मनाने की…आप तो घर में रहती हैं आराम से …आपके पास बहुत समय है तो प्लीज आप ही सब मैनेज कर लिया करिए…!

बेटी ने भी तुरंत कहा …अरे मम्मी आप भी क्यों घर में बनाने की मेहनत कर रही हो….बाहर से ऑर्डर कर देते हैं बढ़िया अपनी अपनी पसंद का खायेंगे…!

अब सुमी ने बड़ी आशा से अपने पति सचिन की ओर देखा तो वो मोबाइल में किसी के साथ बिजी थे…शायद उन्होंने अभी तक  किसी की कोई बात ही नहीं सुनी थी।

……. सुमी का दिल दुखी हो गया था…एक ही घर में एक साथ रहते हैं फिर भी सब अलग अलग हैं उसे महसूस हुआ था .. एक अकेलापन …एक विवशता सी उसे शिद्दत से महसूस हो रही थी….जब किसी को कोई उत्साह ही नही है ,समय ही नहीं है तो रहने दो मुझे भी क्या करना है …अरे बात तो करना था…..वो तो सबकी बेसिरपैर की बातों को भी महत्व देते हुए सुनती है और उसकी महत्वपूर्ण बातों को सभी लोग बेसिरपेर की समझते हैं..!

 

……”त्योहार तो बड़े भाग्य से मनाने मिलते हैं बहुत उत्साह से ईश्वर का शुक्रिया अदा करते हुए हर त्योहार मनाना चाहिए …..मां हमेशा कहती थीं…..! सुमी को याद आ गया …..सच बात है ईश्वर ने भरा पूरा घर दिया है …फिर सब स्वस्थ हैं ऐसी कोई गंभीर समस्या भी नहीं है ….सोचते सोचते सुमी का दिल भर आया और खाना भी खत्म  हो गया ।उसने फिर से उत्साह से सामान की लिस्ट बनाई और सचिन को सौंपते हुए ताकीद की …कल सुबह ये सारा सामान लाकर ही आप ऑफिस जाइएगा..”



…..मैं कोई सामान वामान नहीं लाऊंगा बहुत काम है मुझे कल….तुम क्यों नहीं चली जाती बाजार!!!पास में तो है हम सबको नाश्ता कराकर ,हमारे जाने के बाद तुम्हारे पास काम ही क्या रहता है …अपनी पसंद का सारा सामान ले आना ….या फिर शॉप को ऑर्डर कर दो वो पहुंचा जायेंगे….!सचिन ने थोड़ा खीज कर कहा तो सुमी का मन फिर से बुझ गया। आज पता नहीं छोटी छोटी बातें उसके मन पर असर डाल रहीं थीं….!उसने कुछ भी नहीं कहा  चुपचाप  बुझे मन और नम आंखों से सो गई।

सुबह सुमी को अपना सिर भारी भारी लग रहा था कमजोरी सी भी महसूस हो रही थी लेकिन आज त्योहार है सोच कर वो सबसे पहले तुरंत नहाने चली गई..आलू पराठे बनाते बनाते उसका सिर घूमने लगा जोर से चक्कर आ गया….फिर उसे नहीं पता क्या हुआ!!आंख खुली तो चारो तरफ घर के लोग चिंतित दिखाई पड़े डॉक्टर भी दिख गए ….उसने जैसे ही कुछ पूछने की कोशिश की सचिन तुरंत आए और बहुत स्नेह से कहा..कुछ बोलो मत तुम्हें इतना तेज बुखार है और तुमने बताया तक नहीं सुमी…..! श्रेया जो सुमी के पास ही बैठी थी बोलने लगी..”दीदी सॉरी मैंने आपकी तरफ कोई ध्यान ही नहीं दिया आपको काम पर काम बताती गई …बहुत दुखी थी वो।सुमी ने उठने की कोशिश करते हुए कहा अरे नही श्रेया मैं ठीक हूं पराठे बन गए हैं तुम जाओ तुम्हे देर हो रही है…..आज जरूरी है तुम्हारा जाना…..!

नहीं दीदी आज कोई कहीं नहीं जायेगा मैंने भी छुट्टी ले ली है…लेकिन तुम्हारे नए बॉस..!!सुमी ने याद दिलाया…

अरे तो आने दो बाकी लोग हैं सब कर लेंगे …आज हम सब आपके साथ घर पर रह कर त्योहार मनाएंगे…श्रेया ने कहा तभी सुमेर ने हां भाभी और आज सबको मेरे हाथों का खाना भी खाना पड़ेगा ..हंसते हुए कहा तो सुमी का दिल भर आया….लेकिन सामान तो है ही नहीं….सब सामान आपकी लिस्ट के अनुसार आ चुका है सचिन ने हंसते हुए कहा तो सुमी को आत्मीयता से भरा अपना घर अपना साथ अपना त्योहार सब  महकता हुआ महसूस होने लगा  ….आज मन बुझा बुझा नहीं खिला खिला था…..।

 

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