खौफ़ – मधु झा

शालिनी आफ़िस से आकर सीधे बेडरूम में जाकर लेट गयी और झुमरी मासी से काॅफी लाने को कहा।

काॅफी का नाम सुनते ही झुमरी समझ गयी कि आज फ़िर से शालिनी बहुत स्ट्रेस

में है,, वरना बाक़ी दिन वो आफ़िस से आने पर फ्रेश होकर ड्राइंग रूम में सोफे पर बैठकर चाय पीती है,, उसके साथ झुमरी भी चाय लेकर नीचे बैठ जाती और दोनों गप्पें मारते हुए चाय पीते हैं,, उस समय लगता ही नहीं कि दोनों में क्या रिश्ता है या उम्र में कितना फ़र्क है, वे उस वक्त सिर्फ़ एक दोस्त की तरह दिखती हैं,,। शालिनी अपने आफ़िस की हल्की-फुल्की बातें शेयर करती और झुमरी दिनभर घर से लेकर आस-पड़ोस तक का सारा किस्सा सुना डालती। 

तो क्या आज फ़िर से वही सब,,,,। झुमरी काॅफी बनाते हुए सोचने लगी।

इतने महीने गुजरने के बाद भी शालिनी उस हादसे से उबर नहीं पायी है,,। “कब तक,,? आख़िर कब उस बात को लेकर परेशान रहोगी बिटिया,,??” 

ये कहते हुए काॅफी का कप हाथ में लिये झुमरी बेडरूम में घुसी।शालिनी के पास आकर बैठ गयी और उसके सर पर हाथ फेरते हुए फ़िर कहने लगी–“कोशिश तो करो। कोशिश करने से ही तो सब ठीक होगा न,,।” “माना तुमसे गलती हो गयी थी। मगर गलती भी तो इंसान से ही होती है। हर इंसान अपने जीवन में कभी न कभी कुछ न कुछ गलती करता ही है,,

तभी तो वो इंसान है वरना भगवान ही न हो जाये।

यूँ एक गलती के कारण सारा जीवन नष्ट करना भी समझदारी तो नहीं। कब तक खुद को कोसती रहोगी । अपनी गलती मान लेना भी प्रायश्चित से कम नहीं होता। यहाँ लोग गलती पर गलती करते हैं फ़िर भी खुद को सही ही मानते हैं और तुम अपने आप को इतना कष्ट दे रही हो। हर इंसान गलत करके कुछ न कुछ सीखता ही है,,आगे की ज़िन्दगी में तजुर्बे हासिल करता है। भूल जाओ उन बातों को,,मिट्टी डालो अब उन बातों पर और आगे बढ़ो,।”

सच ही तो कह रही थी झुमरी,, जो हो गया सो हो गया,। अनपढ़ झुमरी कितनी सही और समझदारी भरी बातें कर रही थी।




शालिनी भी समझ रही थी इस बात को मगर उसके दिल से ये बात जा ही नही रही थी। याद है उसे वो समय जब शेखर ने फोन पर उसे धमकियाँ दी थी,,। उसके तो हाथ-पांव फूल गये थे।

शेखर से शालिनी की जान-पहचान सोशल मीडिया के जरिये ही हुई थी। धीरे-धीरे ये जान-पहचान दोस्ती में बदल गयी थी। घंटों दोनों में बातचीत होती थी।चाहे सामाजिक, राजनीतिक या घरेलु हो,, हर विषय पर। दोनों बहुत अच्छे दोस्त बन चुके थे। शेखर दूसरे शहर में रहता था,,। इसलिए सिर्फ़ फोन पर ही बात होती थी।आख़िर एक दिन शेखर शालिनी को मिलने का आग्रह कर उससे मिलने उसके शहर आया। दोनों एक रेस्टोरेंट में मिले,,।शेखर ने अपने मोबाइल से फोटोज भी लिये,,। फ़िर दुबारा मिलने का कहकर चला गया। शालिनी को वो एक डिसेंट सा पर्सन लगा। वो बहुत खुश थी शेखर से मिलकर। एक दिन शेखर का फोन आया कि उसकी माँ बहुत बीमार है जिसके इलाज के लिए बहुत सारे पैसों की जरूरत है कहकर शालिनी से मदद माँगी। शालिनी ने तुरंत शेखर को पैसे ट्रांसफर कर दिये।

मगर कुछ दिनों बाद ही शेखर का रुख बदलता सा महसूस होने लगा। पहले तो  माँ की बीमारी की व्यस्तता का बहाना करता रहा। फ़िर बात न कर पाने के अलग-अलग बहाने बनाता रहा। शालिनी इसके लिए जब गुस्सा होती तो तुरंत माफ़ी भी माँगने लगता था। शुरु-शुरु में तो शालिनी माफ़ करती गयी मगर शेखर की आदत में कोई सुधार न होकर ये और बढ़ती ही गयी। अब बात-बात पर तल्ख लहजा और अपशब्दों का भी प्रयोग करने लगा था। इस बीच काफ़ी महीने बीत गये थे और शेखर पैसे की कोई बात ही नही करता था,,पहले तो शालिनी संकोचवश कुछ नहीं कह पाती ,मगर अब जब भी पैसों की बात करती तो टालने लगा था।

उसकी कमाई से ही माता-पिता और छोटे भाई के पढाई का खर्चा भी चलता है। सो पैसे तो वापस चाहिए ही, उसने तो सिर्फ़ मदद के तौर पर उधार दिये थे। मगर अब पैसे की बात करने पर दोनो के साथ की फोटो सबको दिखाने की बात करता था। शालिनी डर गयी और उसके बाद कुछ नहीं बोल पायी,,उसे डर था कि सबको पता चल जाने पर उसकी और माता-पिता की इज्ज़त खराब हो जायेगी।

शालिनी बेहद सीधी-सिम्पल और छोटे शहर में पली-बढ़ी लड़की थी। उसने तो सच्चे मन से दोस्ती की थी,,उसके मन में कोई छल-कपट नहीं था। मगर शालिनी से ये गलती तो हो चुकी थी कि बिना आश्वस्त हुए और सिर्फ़ पहली मुलाक़ात में इतना खुलना नहीं चाहिए, मगर वो ठहरी साफ मन की , कुछ गलत उसने सोचा भी नहीं था क्योंकि फोन पर तो बहुत दिनों से बात हो रही थी।

आख़िर शालिनी ने मन ही मन शेखर से बात न करने और उससे दूरी बनाने का इरादा बना लिया। उसने फोन उठाना बंद कर दिया तो अब वो मैसेज करके तंग करने लगा।

जब शालिनी फोन उठाती तो उसकी बातें सबको बताने की धमकी देने लगा।

शालिनी धीरे-धीरे दहशत और तनाव के मारे डिप्रेशन में जाने लगी। जब उसके माता-पिता को उसके व्यवहार में परिवर्तन महसूस होने लगा तो उसने इसका कारण जानना चाहा,, मगर शालिनी उनको दुखी और परेशान नहीं करना चाहती थी, सो कुछ न कुछ आफ़िस के काम का बहाना करके टाल जाती थी मगर कब तक बात छुपी रहती घरवालों से,,एक दिन उन्हें पता चल गया।




उन्होंने शालिनी को समझाया-बुझाया , मगर तब तक शालिनी डिप्रेशन के चरम तक चली गयी थी। उसके पिता अपने साथ घर ले गये,,। शेखर के विरुद्ध शिक़ायत भी दर्ज करवाई और डाक्टर से भी दिखाया तथा उसके मन से ये डर निकालने में सहायता की,, अब काफ़ी हद तक ठीक भी हो चुकी ,, मगर आज भी इस तरह की चर्चा या खबर भी पढ़ती तो सब कुछ सामने नजर आ जाता और वो परेशान हो जाती थी। वो तो अब किसी से दोस्ती करने से भी डरने लगी थी। 

उसके आफ़िस में उसका सीनियर सुधाकर उसे मन ही मन चाहने लगा था मगर शालिनी तो किसी से बात तक नहीं करती,, अपने आप में ही सिमटी रहती और आफ़िस से सीधा घर आती। उस दिन भी सुधाकर ने उसके केबिन में आकर बड़ी हिम्मत करके दोस्ती का हाथ बढ़ाया था। इतना होना था कि शालिनी नर्वस हो गयी थी और किसी तरह आफ़िस खत्म होने के बाद घर पहुँची थी।

सुधाकर समझ नहीं पाया। उससे पूछता रहा मगर सीमित शब्दों में उत्तर देकर उसने बात को टाल दिया।

इस तरह परेशान देखकर सुधाकर ने शालिनी की परेशानी के बारे पता करने की सोची,, आख़िर एक दिन शालिनी की अनुपस्थिति में उसके घर जाकर पूछताछ की तो झुमरी को सुधाकर बहुत सुलझा हुआ इंसान लगा और उसने सब बता दिया। फिर तो सुधाकर ने ठान ली शालिनी की मदद करने तथा उसके मन से ये खौफ़ निकालने की। धीरे-धीरे शालिनी से बातचीत करता रहा और अपने विश्वास में ले लिया,, और फ़िर उसके माता-पिता से मिलकर शादी का प्रस्ताव रखा। वे लोग सहर्ष तैयार हो गये। शालिनी भी खुश थी ,,उस खौफ़ से छुटकारा मिलने के साथ ही एक नया जीवन मिल गया था।

#मासिक_अप्रैल 

मधु झा,,

स्वरचित,,

29-4-2023

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