खामोशी – डॉ किर्ति गोयल 

बात कुछ पुरानी है पर यू लगता है मानो कल की ही बात हो। वही शाम के लगभग 4 बजे विश्वविद्यालय से लौटने का समय था, अचानक देखा कुछ बड़े डील डौल वाले लड़के हाथो में तलवार, हौकी और डंडे लिए हुए एक युवक के पीछे दौड़ते हुए आ रहे थे। पीछा करते हुए वी. सी आफिस के साइड से जाती हुई मुख्य सड़क पर पहुच कर उन सभी ने उस एक युवा पर तलवार, हाकी और डंडो से वार शुरू कर दिया।
देखने वालो की भीड़ बढ़ती जा रही थी, रास्ता बंद था । संध्या समय मेघा की स्थिति ठीक वैसी होती थी जैसे गोधूली के समय गइया की, अपने घर पहुंचने को बेचैन। भीड़ को चीर कर गई तो देखा लहुलुहान एक युवक पर लगातार वो लड़के वार पे वार कर रहे थे और लोगो की भीड़ मूक दर्शक बनी जानो तमाशा देख रही थी। न जाने कहा से उस समय वो साहस आया और मेघा जोर से चिल्लाई – ‘क्या कर रहे हो? मर जाएगा वो, छोड़ो उसे’ कहते हुए उस घायल लड़के की तरफ भागी। पता नही आवाज़ में उस कड़कपन से, या फिर अचानक अपने आसपास की भीड़ को महसूस कर, और हो सकता है अपने खुद को पहचाने जाने के डर से वो लोग मारते मारते रूक गए और पेड़ो और जंगली पौधो से अटे मैदान की तरफ भाग गए।
खून से लथपथ उस युवा को संभाला तो साड़ी का पल्ला उसके फटे सिर पर रखते ही खून से भर गया।

लोग ऐसे देख रहे मानो सिनेमाहाल में पिक्चर देखने आए हो। साथ ही सतर्क भी थे कही ये हमलावर लड़के हमको पहचान कर हम तक पहुच गए तो हम पर भी हमला न कर दे। पर किसी के मन मे इतनी दया न आई कि उस घायल को अस्पताल तक पहुंचाने में मदद ही कर दे। मेघा की सहयोगी और दोस्त अनुराधा और उसके कई बार पुकारने के बाद एक सज्जन की आत्मा जाग्रत हुई और उस घायल युवा को अस्पताल पहुचाया गया।




बहरहाल गंभीर रुप से घायल होने के बावज़ूद  वह युवा उस जानलेवा हमले से बच गया पर हम लोगो के लिए बहुत बड़ा प्रश्न यह है कि-
क्यो हम कुछ गलत होता देख दब्बूपन का लबादा ओढ़ मूक दर्शक बने चुपचाप आगे निकल लेते हैं?
क्यो हमारी संवेदनाए और मनुष्यता समय निकल जाने के बाद सिर्फ फेसबुक और सांत्वना बैठको में दिखाई देती है? जानो सारा कष्ट और पीड़ा हमें ही महसूस हो रही है।
सिर्फ अपनी आदर्श प्रोफाइल पिक्चर बदलने से समाज नही बदलता है, सिर्फ झंडा लहराने भर से और राष्ट्र गान गाने भर से देशभक्त नही होते।
निंदा के शब्द- गलत के विरूद्ध बड़ा चैन देते हैं पर उठ कर उस गलत के विरुद्ध खड़े हो कर उसे रोकने का साहस, आगे बढ़कर किसी की मदद करने का जज़्बा आपको मनुष्य की श्रेणी में रहने का हकदार बनाता हैं।
कोई भी हिमाकत, द्वेष, दुस्साहस, घिसी पिटी व्यवस्था के विरूद्ध आवाज़ उठाना, अपना स्वयं का अलग रास्ता चुनना इतना बड़ा अपराध नही कि उस व्यक्ति से जीवन जीने का अधिकार छीनना ही बस अंतिम निर्णय हो जाए।
गलत करने वाला अगर अपराधी है तो उसे सहने वाला, देखने वाला, देख कर आगे बढ़ जाने वाला उससे बढ़ा अपराधी है।
कोई भी बड़े से बड़ा शिक्षण संस्थान, संस्कारो का, मनुष्यता का ज्ञान कहा देता है?
लोगो की खामोशी, भीड़ का दब्बूपन, उसकी संवेदनहीनता, अट्टहास करते हुए- ललकारती है, साहस को चुनौती देती, आत्मा झझकोड़ती है।
मौत के समान होती है, ये खामोशी।
शुभकामनाएं मनुष्य योनी में पैदा होने के लिए…

डॉ किर्ति गोयल

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