सुलभा बहुत ही मासूम, खूबसूरत सीधी सादी लड़की थी। ग्रेज्यूशन करते ही घर में उसकी शादी की बात चलने लगी। इस बीच उसने एम ए प्रथम वर्ष कर लिया। तभी उसकी शादी साहिल संग तय हो गई। साहिल बहुत ही आकर्षक व्यक्तित्व वाला , मल्टी नेशन कम्पनी में इंजीनीयर के पद पर कार्यरत था । सुलभा उसे भी पंसद आ गई। अत: तुरंत मंगनी और शादी हो गई ।हजारों सपने अपनी आँखों में समाये खुशहाल जिंदगी की तमन्ना लिए हुए वह साहिल संग सात फेरे लेकर उसके घर आ गई।
शुरू में तो सब सही चल रहा था समय जैसे पंख लगाकर उड़ रहा था। घूमना-फिरना मौज मस्ती कभी मूवी देख बाहर ही खाना खा आते और एक दूसरे के आगोश में खो जाते।
तभी एक दिन सुबह-सुबह उसे मिचली आ गई और उल्टी हो गई। थोड़ी देर बाद दुबारा उल्टी आई तो उन्होंने सोचा शायद फुड पायजीनींग हो गई सो वे तुरन्त डाक्टर के पास गए। डाक्टर देखने के बाद बोला चिन्ता की कोई बात नहीं है खुश खबरी है आप लोग माता-पिता बनने वाले हो इनका अब थोड़ा ध्यान रखें और इन्हें खुश रखें। वे खुशी-खुशी घर आए।
अब साहिल सुलभा का पूरा ध्यान रखता। समय चक्र तेजी से घूम रहा था। न जाने उनकी खुशी को किसकी नजर लग गई। साहिल का व्यवहार एकदम बदल गया। अब अक्सर वह ऑफिस से देर से आने लगा ,जब आता तो पीकर।
सुलभा उसमें आए परिवर्तन को समझ नहीं पा रही थी। उस समय उसे स्वयं सातवां महिना चल रहा था तो वह कई प्रकार के दर्द का अनुभव कर रही थी। शरीर में आए बदलाव एवं दर्द से वह परेशान रहती ऊपर से यह मुसीबत। उसने साहिल को बहुत समझाने की कोशिश की किन्तु उस पर कोई असर ही नहीं होता। आज शाम जब वह पीकर आया तो वह उससे पीने का कारण पूछने लगी। क्या हुआ है तुम क्यों इतनी पीने लगे हो परेशानी तो बताओ।
इतना सुनते ही वह अप्रत्याशित रूप से भडक उठा। तू होती कौन है यह सब पूबने वाली कहते हुए उसके ऊपर हाथ उठा दिया। सुलभा भौंचक रह गई उसके व्यवहार से आज तक पहले उसने ऐसा कभी नही किया था सुबह वह सुलभा से अपने किये की माफी माँगने लगा।
अब यह रोज का ही नियम हो गया था। सुलभा भयभीत थी कि इस मार पिटाई में बच्चे को कोई नुकसान न हो जाए अतः वह साहिल को बार-बार बच्चे का वास्ता देकर रोकती। किन्तु पीने के बाद वह हैवान बन जाता ।
ऐसे ही समय गुजर रहा था कि समय पर उसने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया । उस समय उसकी सास मंजू जी आई हुई थी सो साहिल थोडा संयमित रहता।
सुलभा सोच रही थी कि शायद बच्ची को देख अब साहिल सुधर जाएँ।
दो माह बाद जैसे ही मंजू जी अपने घर गई साहिल धीरे-धीरे फिर आपने पुराने ढर्रे पर लौटने लगा। सुलभा ही बच्चे के साथ घर के काम करती परेशान हो जाती किन्तु साहिल उसकी कोई मदद नहीं करता उल्टे जरा जरा सी बात पर गाली गलौच कर उस पर हाथ उठा देता। वह सोचती अब मैं कहाँ जाऊँ, माता-पिता तो हैं नहीं भाई-भाभी ने शादी कर अपनी जिम्मेदारी पूरी की, अब फिर में उनके ऊपर भार बनूं जाकर ।
तभी एक दिन जब उसने साहिल को समझाने की कोशिश की तो वह इतना अगबबूला हो गया कि उससे बोला अभी की अभी मेरे घर से निकल जा, तू होती कौन है रोकने वाली।मेरा घर है जो मेरे जी में आयेगा वो करूंगा, वैसे ही रहूँगा। कौन आयेगा मेरे घर यह मेरा फैसला होगा। निकल जा खडी क्यों है।
सुलभा रोते-रोते बोली अभी रात के बारह बज रहे हैं इतनी रात में कहां जाऊंगी इस छोटी सी बच्ची के साथ ।
रात भर रूक जाने दो सुबह को चली जाऊंगी । किन्तु उस पर नशे का भूत सवार था, उसने आव देखा न ताव हाथ पकड कर सुलभा को दरवाजे से बाहर कर दिया उसकी गोद में छः माह की बेटी थी उसकी भी उसे दया नहीं आई झट से दरवाजा बंद कर दिया। कपड़े भी नहीं लेने दिए ।हल्की ठंड थी वह बेटी को अपने सीने में छिपा कर साडी से ढकने का प्रयास कर रही थी। उसने बहुत दरवाजा
खटखटाया किन्तु साहिल ने दरवाजा नहीं खोला। थक कर वह वहीं बैठ गई। इतनी रात में कहां जाए। पैसे भी तो नहीं ले पाई
तभी एक आटो आकर उसके पड़ोस वाले मकान के पास रुका। उसमें से उसके पडोसी गुप्ता जी उतरे, वे किसी रात की गाडी से आए थे। उनकी नजर सुलभा पर पड़ी। वे उसके पास आए और पूछने लगे भाभी जी इतनी ठंड में आप बेटी के साथ बाहर क्यों बैठीं हैं।
सुलभा रोते हुए बोली साहिल ने घर से निकाल दिया है और और दरवाजा भी नहीं खोल रहा मैं इतनी रात में कहाँ जाऊं।
थोडा सोचने के बाद बोले चलीए आप हमारे घर चलीए बच्ची बीमार हो जाएगी। सुलभा शर्म से गढ़ी जा रहीं थी, किन्तु क्या करती चल दी उनके साथ।
मिसेज गुप्ता ने उसे शाल दिया ओढने के लिए ओर बोली आप बैठो मैं अभी चाय बना कर लाती हूं। चाय पीने के बाद उसे थोड़ी राहत मिली । मिसेज गुप्ता ने जब खाने के लिए पूछा तो उसने मना कर दिया जबकि वह सुबह से भूखी थी ।
मिसेज गुप्ता बोली सुलभा संकोच करने की जरूरत नहीं है, मुझे पता है कि तुम भूखी हो, खाओगी नहीं तो बेटी को दूध कैसे पिलाओगी खालो।
गुप्ता जी बोले हमें तो कोई परेशानी नहीं है डर है कि कहीं साहिल हमसे लड़ने न आ जाए ।
वह बोली भाई साहब आप उसकी चिन्ता न करें मैं सुबह जल्दी निकल जाऊँगी, वह इतनी सुबह नहींं उठेंगें। जब आपने इतनी सहायता की हैं तो थोड़ी और कर दीजिए मुझे सौ रुपए दे दें, किराए के पैसे नहीं हैं मेरे पास।
मिसेज गुप्ता ने उसे पांच सौ रुपए देते हुए कहा छोटी बच्ची है साथ में रख लीजिए काम आयेंगे।
सुलभा की आँखे कॢतज्ञता से छला-छला आईं और बोली किसी तरह कोशिश करूंगी मैं आपको लौटाने की।
अरे लौटाने की जरूरत नहीं है आप अब थोडा आराम कर लें थकी हुई हैं।
मिसेज गुप्ता ने अपने बच्चों को अपने कमरे सुला उस कमरे में सुलभा को सुला दिया। सुबह जल्दी ही सुलभा निकल गई।
एक आटो पकड़ बस स्टैंड पहुंची और बस
पकड़ भाई के घर पहुंच गई।
सुलभा को इस हालत में देख भाई बोला क्या हुआ सुलभा तुम ऐसी हालत में।
भाई को देख सुलभा उसके गले लग रो पड़ी।
उसे सांत्वना देते हुए भाई नीति से बोला पहले तुम चाय नाश्ता ले आओ बाद में बात करते हैं
चाय पीने के बाद थोड़ी सहज होने के बाद सारी आपबीती सुनाई।
तुम इतनी परेशानी अकेले झेलती रही मुझे खबर तक नहीं दी ।
भैया मैं आप लोगों को परेशान नहीं करना चाहती थी ।
कैसी परेशानी सुलभा तू मेरी बहन है। भाई आपने तो मेरे लिए पहले ही इतना कुछ किया है और भार आपके ऊपर नही डालना चाहती । मैं यहाँ कुछ दिन ही रहूंगी, भैया आप मेरी कहीं नौकरी लगवा दें उसके बाद में अपने रहने की व्यवस्था कर लूँगी।
ये कैसी बातें कर रही है सुलभा ये घर तेरा भी है जितना मेरा है क्यों चली जाएगी जब तक जी चाहे आराम से रह। भाई ने एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी लगवा दी। अब बेटी की जिम्मेदारी भाभी पर आ गई ।उसे अच्छा नहीं लग रहा था। थोड़े दिनों बाद उसने भाई से कह कर मकान की व्यवस्था करवा ली और वहाँ रहने चली गई। अब उसने अपनी छूटी हुई पढाई पर ध्यान दिया।M.A. पूरा कर बी.एड. किया और सरकारी नौकरी स्कूल व्याख्याता की लग गई।
समय की गति को कौन कब बांध सका है।सुरभी उसकी बेटी पढ़ने में होशियार निकली अच्छी संस्कारित बच्ची थी। ग्रेज्यूयेशन कर प्रतियोगि परीक्षा की तैयारी कर और सफल हो कर IA S में चयन हो गया। ट्रैनिंग पीरियड पूरा होने के बाद आज बेटी बतौर जिलाधीश ज्वाइन करने जा रही थी साथ में सुलभा भी थी। जैसे-जैसे गाड़ी मुरादाबाद के पास पहुंच रही थी पुरानी यादें फन उठा कर उसके मन-मस्तिष्क पर छा रहीं थीं।यहीं से कभी उसने अपनी नई जिंदगी शुरू की थी। पिछली बातों को याद कर उसकी आंखें छलछला आईं। क्या क्या सपने लेकर यहां आई थी और किस परिस्थिति में उसे छोडना पड़ा। बेटी से छुपा कर अपने आँसू पोंछ सहज होने की कोशिश कर रही थी। तभी स्टेशन आ गया। सुरभि नीचे उतरी तो उसे पता लग किन्हीं कारणों से गाड़ी आधा घंटा रूकेगी ,सो उसने अपनी माँ को भी नीचे बुला लिया और स्वयं चाय लेने चली गई। सुलभा जैसे ही नीचे उतरी प्लेटफार्म पर सामने ही एक व्यलि खड़ा था कमजोर सा बढी हुई दाढी, आंखे धंसी हुई किन्तु गौर से देखने पर उसने तुरन्त पहचान साहिल ही था। साहिल ने भी उसे देखा तो पास आकर बोला तुम सुलभा हो ना।
उसके हां बोलने पर उसका हाथ पकड़ने की कोशिश करते हुए बोला तुम कहां चली गईं थीं, मैंने तुमको कितना ढूंढ़ा । तुमने
मुझे इतनी बड़ी सजा क्यों दी।
सुलभा एक झटके से अपना हाथ छुडाते
बोली सजा किसने किसको दी यह तुम अच्छी तरह से जानते हो।अब मेरा तुमसे
कोई सम्बन्ध नहींं है ।
सुलभा ऐसे न कहो, मैंने पूरी जिदंगी तुम्हारे लौटने का इन्तजार किया है। तुम्हारा घर तुम्हारे बिना सूना है अब वह केवल मकान रह गया है लौट चलो सुलभा तुम्हारा घर तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है।
अब बहुत देर हो चुकी है साहिल,मेरा लौटना सम्भव नहीं है तुम्हारा घर तुम्हें मुबारक हो।
इतने में सुरभी चाय लेकर आ गई। मां को अजनबी से बात करते देख ठिठक गई। इतने में गाड़ी ने सीटी दी सुरभी बोली मम्मी जल्दी आ जाओ गाड़ी चलने वाली है।
मम्मी शब्द सुनकर साहिल समझ गया कि यह उसकी ही बै बेटी है।तब तक सुलभा गाड़ी में चढ़ चुकी थी।
वह ठगा सा खड़ा जाती हुई गाड़ी को देख रहा था।
शिव कुमारी शुक्ला
30-1-24
स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित
Nice story madam
Absolutely