काश वक्त रहते हम अपनी भूल सुधार लेते..! – निधि शर्मा
- Betiyan Team
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- on Feb 01, 2023
“मम्मी जी मुझे माफ कर दीजिए काश कि मैं उस वक्त ये नहीं सोचती कि फिर आपने गॉसिप करने के लिए फोन किया था और मैं आपके फोन कॉल को महत्व न देकर अपने काम में लगी रही। मुझे बहुत अफसोस और खुद पर गुस्सा आ रहा है कि क्यों मैंने आप से बात नहीं की, काश कि मैं बीते वक्त में जाकर अपनी भूल सुधार पाती..!” अपनी सास के फोटो पर फूलों की माला चढ़ाते हुए गुंजा बोल रही थी।
वहीं पास में बैठी गुंजा की बुआ सास बोलीं “बहू इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं शेर आया शेर आया वाली कहानी तो हम सबने बचपन में सुनी है। मुझे भी भाभी दिन में 5 बार आप फोन करती थीं कई बार में और बहू फुर्सत में नहीं होते हुए भी भागकर उनका फोन को उठाते तो वो कहती, बस ऐसे ही गप्पे लड़ाने के लिए फोन की हूं..! उनसे मैं कहती भी थी कि ऐसा न हो कि किसी दिन आपको जरूरत हो और आपके फोन को लोग महत्व ना दें और देखो वैसा ही हो गया होनी को कौन टाल सकता है।”
गुंजा की सास कल्पना जी को फोन पर बातें करने का बहुत शौक था। गुंजा सास-ससुर के साथ ना रहकर उसी शहर में करीब 20-25 किलोमीटर दूर अपने अस्पताल के करीब रहती थी क्योंकि गुंजा एक डॉक्टर थी। उसे फुर्सत कम मिलती थी घर से आने जाने में काफी वक्त लग जाता जिसके कारण सास-ससुर ने कहा कि “तुम अस्पताल के करीब 1 घर ले लो और हफ्ते में एक दिन हमारे साथ रहा करो।” और गुंजा वैसा ही करती थी।
3 दिन पहले की घटना है गुंजा अपनी बेटी रिया(7) के लिए नाश्ता बना रही थी तभी कल्पना जी का फोन आया गुंजा ने फोन को स्पीकर पर रखकर रसोई में उनसे बात करने लगी “मम्मी जी प्रणाम कहिए क्या बात है।”
वो बोलीं “बहू क्या कर रही हो.?” वो बोली “बस आपकी पोती का नाश्ता तैयार कर रही हूं फिर इसे बस स्टॉप पर छोड़कर हॉस्पिटल के लिए निकलूंगी, आप बताइए किस लिए फोन किया था?” कल्पना जी बोलीं “कुछ नहीं बस आज नींद जल्दी खुल गई तो सोचा तुमसे बात कर लेती हूं।”
ये आज की घटना नहीं थी हर रोज यही होता था कल्पना जी ना किसी के घर आती जाती थीं, ना किसी को घर बुलाती थीं! ले देकर बस उनकी ननद थी जिनका आना जाना होता था, जब भी उन्हें मन नहीं लगता तो वो किसी न किसी को फोन लगाकर बातें करती और अपना वक्त बिताती थीं। पर गुंजा एक कामकाजी महिला थी उनकी इस आदत के कारण उसे बड़ी दिक्कत हो जाती थी।
गुंजा बोली “मम्मी जी आपको मेरे रोज के कामकाज के बारे में पता है कि सुबह मेरे पास फुर्सत नहीं होती है फिर भी मैं आपका फोन इसलिए ले लेती हूं कि शायद आपको कुछ दिक्कत होगी। आपको कितनी बार कहीं हूं कि अगर आपको मुझसे बात करनी हो तो शाम के 7:00 बजे के बाद कीजिए और जब इमरजेंसी हो तभी मुझे सुबह और दोपहर में कीजिए। ये वक्त मुझे घर के लिए निकालना होता है, उसके बाद मुझे अस्पताल से फुर्सत नहीं मिलती है फिर भी आप नहीं समझती ठीक है अब मैं फोन रखती हूं।” इतना कहकर उसने फोन रख दिया।
गुंजा के फोन रखने के बाद कल्पना जी इधर उधर घूमने लगीं फिर अपने पति किशोर बाबू के पास जाकर बोलीं “बहू डॉक्टर क्या बन गई है उसके तो पैर जमीन पर ही नहीं पड़ रहे हैं..!”
किशोर बाबू बोले “इतनी अच्छी बहू मिली है फिर भी तुम शिकायत कर रही हो! कौन सी ऐसी डॉक्टर बहू होगी जो अपनी सास के आने पर खुद खाना बनाकर उसे परोसती होगी, सच कहते हैं लोग बहू कितना भी कर ले कोई सास खुश नहीं होती।”
कल्पना जी बुदबुदाते हुए बोलीं “हां हां आप तो ऐसा कहोगे ही। काश कि मैंने वो शर्मा जी की लड़की से अपने बेटे रवि की शादी की होती कम से कम मेरे पास तो रहती है। बताओ इतने बड़े घर में मेरा मन नहीं लगता और फोन करो तो बहू बात नहीं करती अब करूं तो क्या करूं…?”
किशोर बाबू हंसकर बोले “तुम अपने पड़ोसियों से मेलजोल क्यों नहीं बनाती हो..! ये तुम्हारी आदत अच्छी नहीं है तुम्हें मन नहीं लगता है तो लोगों को फोन कर कर के परेशान करती हो, किसी रोज अगर तुम्हें जरूरत होगी तो लोग तुम्हारा फोन नहीं उठाएंगे अपनी आदत सुधार लो वरना ऐसा ना हो कि बाद में बस अफसोस रह जाए।” इतना कहकर वो घर से बाहर टहलने के लिए निकल गए।
लोग कहते हैं बच्चे और बूढ़े एक जैसे होते हैं जो मन में ठान लेते हैं वही करते हैं और कुछ ऐसा ही कल्पना जी भी करती थीं। हर किसी के समझाने के बाद भी फोन करने की आदत वो छोड़ती नहीं थी, दूसरे लोग तो उनका फोन देखकर ही एक किनारे रख लेते थे पति और बच्चे करते भी तो क्या करते हैं कभी बात करते कभी टाल देते।
एक रोज किशोर बाबू कल्पना जी की दवाई और घर का सामान लेने बाजार गए थे। गलती से दवाई का पर्चा वो घर में ही छोड़ गए, जब दवाई की दुकान से वो कल्पना जी को फोन कर रहे थे तो उनका फोन बार-बार व्यस्त आ रहा था और कल्पना जी थीं कि अपनी बातों को छोड़कर किशोर बाबू का फोन उठाना जरूरी नहीं समझी आखिरकार किशोर बाबू को खाली हाथ वापस आना पड़ा।
जब किशोर बाबू घर आए तो कल्पना जी बोलीं “आपको पता है गांव में आपके घर के पीछे जो बंसीलाल था उसकी काली बकरी ने एक साथ चार सफेद बच्चे जन्म दिए।”
किशोर बाबू बोले ये खबर तो अखबार में छपवानी चाहिए थी..” कल्पना जी आश्चर्य से उन्हें देखने लगीं किशोर बाबू गुस्से में बोले “तुम्हारे फोन की आदत किसी दिन बहुत बड़ा नुकसान करवाएगी। मैं कब से तुम्हें फोन कर रहा था पर तुमने मुझसे बात करना जरूरी नहीं समझा अब रहो बिना दवाई के..।” और वो पैर पटक ते हुए चले गए।
रात में कल्पना जी ने सारी बात रवि को बताई रवि ने गुंजा को बताया। गुंजा अगले दिन अपने किसी स्टाफ को भेजकर कल्पना जी की सारी दवाई भेज भाई और अपनी सास को फोन के लिए आगाह किया।
समय ऐसे ही बीत रहा था हर कोई कल्पना जी की आदत से परेशान था और हर कोई बस यही कहता था कि काश कि वो अपनी आदत बदल लें वरना किसी दिन कुछ अनहोनी ना हो जाए…!
एक सुबह किशोर बाबू सुबह की सैर के लिए घर के बाहर गए थे कल्पना जी बिस्तर पर बैठे-बैठे अपने फोन में कुछ देख रही थीं। जैसे ही वो उठने लगीं अचानक से उनके सीने में बहुत तेज दर्द हुआ कल्पना जी ने सबसे पहले गुंजा को फोन लगाया गुंजा जो कामवाली की सहायता से रसोई में अपनी बेटी और पति के लिए काम कर रही थी। उसने कल्पना जी का फोन देखकर कहा “अगर इस वक्त मम्मी जी से बात करूंगी तो रिया का स्कूल और इनका ऑफिस सब छूट जाएगा बाद में बात करती हूं।” इतना कहकर उसने फोन को किनारे रख दिया।
फिर कल्पना जी ने किशोर बाबू को फोन किया बार-बार फोन की घंटी बज रही थी किशोर बाबू के मित्र बोले “किशोर बाबू भाभी जी को आपकी याद आ रही हैं।” किशोर बाबू बोले “अरे इसके फोन पर बात करने की बीमारी ने हर किसी को परेशान कर रखा है।” और उन्होंने फोन उठाया और बोले “लगता है तुम्हें आज कोई नहीं मिला इसलिए मुझे परेशान कर रही हो।”
फोन की दूसरी तरफ से कुछ आवाज नहीं आ रही थी किशोर बाबू बार-बार कल्पना जी का नाम पुकार रहे थे! जब उधर से कुछ आवाज नहीं आई तो किशोर बाबू बोले “लगता है कुछ गड़बड़ है वरना वो फोन पर तो कभी छुप नहीं रहती।” इतना कहकर किशोर बाबू घर की तरह लपके…”
किशोर बाबू जब घर के पास आए तो घर के बाहर कुछ लोग खड़े थे। वो जल्दी से घर के अंदर गए उनके पड़ोसी ने बोला “हमें कुछ गिरने की आवाज आई थी जब अंदर आए तो देखा आंटी जी बेड के नीचे गिरी थीं और इनके हाथ में फोन था..!” किशोर बाबू पड़ोसियों की सहायता से कल्पना जी को जल्दी अस्पताल ले गए और बेटे बहू को खबर भिजवाई।
जब वो उन्हें लेकर अस्पताल पहुंचे डॉक्टरों ने उनकी जांच करनी शुरू की और थोड़ी देर बाद गुंजा भी वहां पहुंची। कुछ देर में डॉक्टरों की टीम बाहर आई और गुंजा को बोले “सॉरी डॉक्टर गुंजा हम उन्हें बचा नहीं पाए हार्ड अटैक था।”
ये खबर सुनकर हर कोई दुखी हो गया किशोर बाबू ने सारी बात बेटे बहू को बताई। गुंजा रोते हुए बोली “काश कि मैंने मम्मी जी का फोन उठा लिया होता आज पहली बार मैंने उनका फोन नहीं उठाया, आखिर ये भूल मुझसे क्यों हुई..!” रवि बोला “गुंजा तुम खुद दोष क्यों दे रही हो तुमने ये जानबूझकर नहीं किया। काश की मम्मी अपनी आदत बदल लेतीं तो आज हमें ये दिन नहीं देखना पड़ता..। “
जाने वाली तो चली गई पर हर किसी के लिए एक सबक दे गईं कि अगर बचपन में हमें कुछ सिखाया जाता है तो वो बस बचपन के लिए नहीं बल्कि 55 के बाद भी ताउम्र इस बात को हमें अमल करना चाहिए।
गुंजा को आज भी अफसोस आता है जब भी उनकी याद आती है तो बस वो यही कहती है काश वो बीते वक्त में जाकर अपनी भूल सुधार पाती ..! जो गलती उसने की ही नहीं थी फिर भी उसे अपनी सास के लिए बुरा लग रहा था।
दोस्तों मानते हैं एक उम्र हो जाने के बाद इंसान का वक्त नहीं कटता है तो वो अपने लिए अपनों से कुछ वक्त चाहता है। पर बार-बार एक ही चीज करने से सामने वाला हमारी बात को महत्व देना कम कर देता है, हमें अपने बड़ों के लिए दिन भर में एक बार वक्त निकालना चाहिए। अगर सामने वाले को आप ये बता दें कि इस वक्त आप फ्री रहते हैं तो ये परेशानी कभी किसी के जीवन में ना आए।
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#वक्त
निधि शर्मा