कसक – स्मिता सिंह चौहान

सही में भाईसाहब आपकी दिन रात मेहनत का नतीजा है जो आज आपके दोनो बच्चे इतनी ऊंची पोस्ट पर हैं। विद्या वाकई किस्मत वाली हो जो ऐसा पति और बच्चे मिले है तुम्हें।” रामनाथ जी आज ऐसी तारीफों के गुलदसतो से महक रहे थे। आज अपनी भानजी सारिका की शादी के फंक्शन में लाईमलाइट रामनाथ जी ही बटोर रहे थे। क्यों ना हो लाल बत्ती गाड़ी का अपना रूबाब होता है। विद्या जी (पत्नी) रामनाथ जी की मुस्कुराहट के साथ मुसकुरा देती लेकिन उनकी मुसकान जैसे उनका साथ नहीं दे रही थी, एक कसक छुपी हुई थी।

“चलो ना मामी मेहंदीवाला आ गया है मेहंदी लगवाते है।” सारिका ने विद्या जी का हाथ पकड़ते हुए कहा।

“नहीं, तुम लोग लगा लो। मैं शगुन की लगवा लूंगी बाद में। शादी तुम्हारी है तुम अच्छी सी मेहंदी लगवाना।” कहते हुए पास में पढ़ी कुर्सी पर बैठ गयी।

“क्या हुआ मामी? तबियत तो ठीक है आपकी। आप आज ऐसी डल डल लग रही हो। आप अच्छी नहीं लगती ऐसे….मामा ने कुछ कहा क्या? बताओ अभी क्लास लगाती हूँ उनकी।” कुछ दूर खड़े रामनाथ जी को देखते हुए,” लेकिन आज तो मुझे लग रहा है मामाजी  कुछ ज्यादा ही खुश हैं। फिर आप क्यों उदास हो?” सारिका ने विद्या जी से पूछा। सारिका की नजर में हमेशा विद्या जी एक परफेक्ट हाऊसवाईफ होने के साथ साथ एक खुशमिजाज व्यक्तितव  का प्रतिनिधित्व करने वाली औरत हैं। सारिका उनहे अपना आदर्श मानती है।

“कुछ नहीं, पता नहीं कभी कभी अपने को देखकर खुद ही उदास हो जाती हूँ।” विद्या जी ने एक लम्बी सांस लेते हुए कहा।

“अच्छा छोड़ो ये बताओ अपनी प्यारी भानजी को क्या टिप्स दोगी, इस सफर के लिए।” सारिका ने विद्या जी के मूड को बदलने की कोशिश करते हुए कहा।


“मैं क्या सलाह दू?  मुझे तो खुद नहीं पता गृहस्थी के इतने सालों में मेरा क्या योगदान रहा। अब देखों ना तुमहारे मामा की मेहनत सबको दिखायी दी क्योंकि वो मेहनत स्कूल की फीस में दिखाई पड़ती है,कोचिंग सेन्टर के कोर्स के भुगतान में नजर आती है। लेकिन हम जैसी औरतों का क्या?  जिन्होने अपनी हर ख्वाहिश को घर पति और बच्चो के लिए त्याग दिया। हमारी भागदौड़ जो सुबह बच्चो को तैयार करने से उनकी परवरिश और संस्कार के बीच की चिंताओ का सफर। पति की हर जरूरत के साथ साथ उसके सारे उदगार अपने ऊपर ले लेना यह सोचकर कि आज वो अपने करियर के बारे में सोच रहा है लेकिन जब उसके खवाबों का मुकाम मिल जायेगा तो कही ना कही वह अपनी इस यात्रा में हमारे योगदान को सराहेगा। कभी अपनी तकलीफ यह सोचकर नहीं कही ना पति से ना बच्चो से कि कही उनके जीवन की खवाबों और खवाहिशो पर असर ना पड़े। लेकिन आज यह सोंचती हूँ कि आज मेरे हिस्से में क्या आया कि” आज सबकी जिंदगी जिस मुकाम पर है वहां उनकी मेहनत है लेकिन मेरी सिर्फ किस्मत अच्छी है।

सच में बहुत बुरा लगता है कि अपनी जिंदगी सब पर खर्च करने के बाद हम औरतों को यह सुनना पडता है कि हमारा कोई योगदान नहीं किसी के खवाहिशो को पूरा करने में बल्कि हमारी तो किस्मत अच्छी है कि हमें इतने मेहनती लोग मिले।” कहते हुए विद्या जी का गला रुंध गया। शायद सारिका उनके उस दर्द को महसूस कर पा रही थी जो अनकहा रह जाता है सभी औरतों के अन्दर। सारिका कुछ सोचते हुए विद्या जी का हाथ पकड़ते हुए स्टेज की तरफ ले गयी। हाथ में माइक पकड़कर बोली” अटेनशन प्लीज, आज मैं आपको उस शख्स से मिलवाना चाहूंगी जो अगर मेरे मामाजी के पीछे रीढ की हड्डी बनकर नहीं खड़ी होती तो आज हमारे मामाजी की गृहस्थी का सफर चार पैरों से शुरू होकर लाल बत्ती गाड़ी तक नहीं आ पाता। मेरे मामाजी खुशकिस्मत है कि उनहे हमारी मामीजी जैसी सहनशील विवेक से परिपूर्ण, नैतिकता से परिपूर्ण मामी जी मिली। मैं चाहूँगी कि हम सभी उनके इस बेमिसाल सफर की उपलब्धियो के लिए इन्हे अपनी तालियों से बधाईयां दे।”


विद्या के लिए तालियाँ बज रही थी और उसकी निगाहें रामनाथ जी को ढूंढ रही थी। तभी स्टेज में एक आवाज आयी” शुक्रिया सारिका बिटिया। तुमने आज वो बात कह दी जो मै महसूस हर दिन करता हूँ लेकिन पता नहीं क्यों विद्या से कह नहीं पाता। विद्या जी मैं कभी कह नही सका पता नहीं क्यों? लेकिन विद्या जी अगर आप नहीं होती तो शायद मैं कभी किसी मुकाम तक नहीं पहुंचता। कयोंकि आप मेरी किस्मत है, जबसे आप मिली जिंदगी में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा कयोंकि आप ने वाकई मेरी रीढ की हड्डी बनकर वो सपोर्ट दिया कि मेरे घर को कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी डगमगाने नहीं दिया।

कई बार हम आदमी कह नहीं पाते लेकिन कहना चाहिए क्योंकि कोई भी आदमी तभी सफलता की ऊँचाइयों को छू पाता है, जब उसका परिवार एक सुरक्षित और जिम्मेदार हाथों में होता है। विद्या जी आप नहीं होती तो मैं और मेरे बच्चे कभी यहाँ तक नहीं आ पाते। विद्या जी आंखों में आंसू लिये थोड़ी देर पहले लोगों की बातो पर ना जाने क्या क्या सोचने पर अपनी बेवकूफी पर पछता रही थी।

सारिका अपने मामा, मामी को खुश देखकर ढोल वाले से बोलती है,” ढोलवाले भैया जी जमकर ढोल बजाना आज हमारी मामीजी के पैर नहीं रूकनेवाले।” यह सुनकर सभी हंसने लगे। और रामनाथ जी और विद्या जी ताल से ताल मिलाकर नाचने लगें।

दोस्तों, एक औरत के नजरिए से देखा जाये तो एक औरत की तारीफ समाज, परिवार वाले कितना भी कर ले। लेकिन उसे सिर्फ अपने जीवनसाथी की की गयी तारीफों की दरकार होती है। हां प्रायः ऐसा भी होता है कि पति अपनी पत्नी की तारीफ करने में इसलिए चूक जाते हैं कयोंकि वह यही समझते है कि उसे सब पता है। लेकिन यह बात भी सच है कई बार पता होते हुए भी हमसफ़र से अपनी तारीफ सुनना किसे अच्छा नहीं लगता। आपकी इस बारें में क्या राय है? अवश्य बतायें।

आपकी दोस्त

स्मिता सिंह चौहान

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