कसक – अनु ‘मित्तलइंदु ‘

बचपन से एक दूसरे को देखते बड़े हुये थे हम दोनों । मेरे घर के सामने ही घर था उसका ।

उसके पिता शहर के नामी वकील थे । और हम लोग उनके घर के सामने की बिल्डिंग में थर्ड फ्लोर पर किराये पर रहते थे ।

मेरे परिवार में मेरी बड़ी बहन अनीता जिसे हम प्यार से नॉटी कहते थे , मेरी माँ और पिता जी पंडित रमाशंकर जोशी जो कि एक प्राइवेट स्कूल में अध्यापक थे , बस हम चार लोग थे । मैं घर में सब से छोटा था ।

हाँ तो मैं बात कर रहा था वकील साहिब की बेटी कुमुद की । मुझसे साल दो साल छोटी थी ।

जब वो स्कूल जाती थी तो अक्सर घर से अकेले ही निकलती थी।  नजरें झुकाये रहती थी । दुपट्टे का एक सिरा अक्सर जमीन को छू रहा होता ।

रास्ते में उसकी एक सहेली रहती थी , वो उसे बुलाने के लिये रुकती फिर दोनों सहेलियां इकट्ठे स्कूल जातीं ।



उसकी चाल बहुत भाती थी मुझे लेकिन अभी वो सड़क के बाईं तरफ़ चल रही होती , तो दो मिनिट के बाद देखो तो सड़क के दाईं तरफ़ नज़र आती ।

एक दिन स्कूल जा रही थी , पीछे थोड़ी ही दूरी पर मैं था , अपने एक दोस्त के साथ । वो अकेली ही थी । अचानक सामने दो तीन कुत्ते आपस में लड़ते लड़ते उसके पास से गुज़रे  तो उसकी चीख निकल गई।

उसका बैग सड़क पर गिर गया , एक कुत्ता कुमुद की तरफ़ लपका , वो चीखती हुई भागी और मुझे कस कर पकड़ लिया वो बहुत डर गई थी आँखों में आँसू थे । मैंने उसका बैग उठाया और उसे दे कर कहा कि घबराओ नहीँ , कुछ नहीँ होगा ।

बड़ी देर में वो कुछ नॉर्मल हुई , मैंने उसे उसके घर पर छोड़ दिया क्यूंकि वो घर जाने की ज़िद कर रही थी । उसकी  मम्मी उसे देख कर घबरा गईं । उन्होंने मेरा शुक्रिया अदा किया । बस उसके बाद जैसे -जैसे हम बड़े हो रहे थे चुपके चुपके एक दूसरे को देखना , रोज़ का ही काम था ।

मैं बाथरूम के झरोखों से चोरी से देखता रहता । उसकी निगाहें मुझे ही ढ़ूँढ रही होतीं मगर जैसे ही उसके सामने आता तो वो सामने से हट जाती जैसे मुझे जानती ही न हो ।

कभी छत पर घूम -घूम कर पढ़ रही होती , कभी छत पर सूखे कपड़े इकठ्ठे करने आती , उसकी एक नज़र मेरी तरफ़ ही होती। तब सब छतों पर ही सोते थे । एक दूसरे को देख कर सोना , एक दूसरे को देख कर उठना अच्छा लगने लगा था ।

जिस दिन नज़र न आती , दिल बहुत बेचैन हो जाता । स्कूल से वो कॉलेज पहुँच चुकी थी लेकिन दिल की बात दिल में ही रह गई। उसे भी पुराने गाने सुनने का शौक़ था और मुझे भी । रात की ख़ामोशी में ट्रान्जिस्टर पर मेहँदी हसन और गुलाम अली की गजलें , मुकेश के नगमें,  हेमंत कुमार और तलत महमूद के दर्द भरे गीत , दूर से आती लता की आवाज़ …सब जैसे हमारे ही दिलों की दास्तां कह रहे हों अजीब सा समां बंध जाता था ।



इतने अँधेरे में भी उसकी सूरत मुझे जाने कैसे दिख जाती थी । इतनी दूर से भी एक दूसरे की धड़कनें सुन पाते थे हम दोनों । उस बेक़रारी में भी अज़ब सा क़रार था , पूरी रात आँखों आँखों में बीत जाती । और दिन बस उसके ख्यालों में खोये बीत जाता था ।

वो कब जाती है कब आती है , उसने खाना खाया कि नहीँ , सब बिन कहे ही पता चल जाता था मुझे । लेकिन उससे बात करने का कोई ज़रिया नहीँ नज़र आता था ।

अक्सर ही वो अपने पापा के ऑफिस में कुर्सी पर बैठी कोई न कोई नॉवेल या मैगजीन पढ़ती नज़र आती । उसका भाई शिखर मुझसे चार साल छोटा था मगर धीरे धीरे उसके भाई से मेरी दोस्ती बढ़ने लगी ।

इस बहाने मुझे कुमुद को नज़र भर के देखना नसीब हो जाता था । मैंने अपनी बहन नॉटी से एक दिन अपने दिल की बात की ।

मैंने उसे कहा कि किसी तरह उससे दोस्ती करो ताकि उससे मुलाक़ात हो सके ।

कुमुद के घर के बाईं तरफ़ एक मंदिर था । नॉटी अक्सर सुबह शाम मंदिर जाया करती थी । एक दिन जब कुमुद खिड़की में खड़ी थी तो नॉटी ने उसे इशारे से नीचे बुलाया ।

कुमुद को भी जैसे इसी बात का इंतज़ार था । नॉटी ने उससे कहा तुम हारमोनियम बहुत अच्छा बजाती हो , मुझे भी सीखना है । मेरे पास हारमोनियम है मगर मुझे बजाना नहीँ आता ।

कुमुद ने कहा ज्यादा तो मुझे भी नहीँ आता मगर मेरे पास हारमोनियम गाइड  है । नॉटी ने कहा कि शाम को आते हुये वो गाईड  लेते आना । उसने पाँच बजे आना था । मुझसे इंतज़ार नहीँ हो पा रहा था । फिर वो अपने घर से निकली , उसने नज़र उठा कर ऊपर देखा , मैं पहले से ही खड़ा था । उसे आते देख कर मैं पहले से ही नीचे सीढ़ियों में खड़ा हो गया ।



वो सीढ़ियाँ चढ़ने लगी तो मुझे देख कर चौंक गई । मैंने उसका हाथ पकड़ लिया वो कांपते हुये बोली छोड़ दो कोई देख लेगा तो घर तक बात पहुँच जायेगी । लेकिन मैं कहाँ मानने वाला था मैंने उसे एक लिफाफा दिया जिसमें मैंने अपने दिल का हाल लिखा था उसने ख़त ले लिया और अपने छोटे से पर्स में छुपा लिया और हाथ छुड़ा कर तेज़ी से ऊपर भाग गई । ऊपर जा कर मेरी बहन से बातें हुईं , उसने harmonium guide दी तो एक पेज थोड़ा फोल्ड किया हुआ था। उसमें एक गाने के सुर लिखे  हुए थे ” हमें तुमसे मुहब्बत है मगर हम कह नहीं सकते”

मैं समझ गया कि उसने मेरे लिये ही इस गाने को फोल्ड किया है।

कुछ देर harmonium पर कोई धुन बजाती रही । लेकिन मैं तो इस इंतज़ार में था कि जब वो वापिस जायेगी तो सीढ़ियों में फिर से उसे छूने का मौका मिले । जैसे ही वो नीचे उतरी मैं भी पीछे पीछे था कि नीचे वाले फ्लोर पर रहने वाले दरवाजा खोल कर किसी को विदा कर रहे थे । उनके सामने बात नहीँ हो सकती थी , वो तेज़ी से चली गई और मैं तड़प कर रह गया ।

उसकी ग्रेजुयेशन  पूरी हो गई थी , आगे की पढ़ाई के लिये वो दूसरे शहर में होस्टेल भेज दी गई। गर्ल्स होस्टेल में बहुत सख्ती थी। ख़त भी सेंसर होते थे । मैं ख़त लिखता था तो लड़की बन कर । एक दिन उसकी वार्डन को शक़ हो गया । बात घरवालों तक पहुंच गई । जैसे तैसे पढ़ाई पूरी की उसने फिर उसकी शादी कर दी गई ।

मुझे आज़ भी याद है वो मंजर । मैं अपने घर की खिड़की में खड़ा था , उसकी डोली जा रही थी।  विदाई के समय उसने फिर एक बार  नज़र उठा कर देखा था और फिर आँखों में आंसू लिये कार में बैठ कर चली गई। उसके बाद से आज़ तक उसे नहीँ देखा ।

साल भर के अंदर मेरी भी शादी हो गई । दो बेटे भी हैँ । बहुत ख़ुश हूँ मगर वो बीते दिनों की कसक नहीँ जाती। उसका चेहरा आँखों के आगे से हटता ही नहीँ ।

अनु ‘मित्तलइंदु ‘

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