सुनीता काफी खुलें विचारों वाली लड़की थी,अमीर लड़कों से दोस्ती करना,पार्टियां करना रात भर घर से गायब रहना यह सब उसकी दिनचर्या में शामिल था।उसे रोकने टोकने वाला कोई नहीं था, उसके हर काम में उसकी मां कामिनी उसका सहयोग करती थी, उसके पिता सत्य प्रकाश का अपनी पत्नी कामिनी व बेटी सुनीता पर कोई कन्ट्रोल नहीं था,वह अपनी पत्नी और बेटी से भयभीत रहते थे, वह थे तो पुरुष लेकिन वक्त और हालात ने उन्हें कापुरूष बनकर जीने के लिए मजबूर कर दिया था।
सत्य प्रकाश सरकारी विभाग में प्रतिष्ठित पद पर कार्यरत थे,आफिस में उनका बड़ा मान सम्मान था,मगर अपने घर पर वह दशकों से अपनी पत्नी कामिनी के व्यवहार से दुखी रहते थे,उनकी इकलौती संतान उनकी बेटी सुनीता भी अपनी मां के ही नक्से कदम पर चलती थी,वह बस कहने के लिए वह सुनीता के पिता थे,
उनकी बेटी उनकी हर बात को अनसुना करती थी,वह तो बस अपनी मां कामिनी को ही सर्वोपरि मानती थी, सत्य प्रकाश जी के जीवन में घुटन बढ़ती जा रही थी,वह अपनी बेटी सुनीता के भविष्य को लेकर हरदम चिन्तित रहते थे, जिसके कदम भटकते जा रहें थे।
दोपहर के बारह बज रहे थे, सत्य प्रकाश जी अपने आफिस में गहरी चिंता में बैठे कुछ सोच रहे थे,उसी समय आफिस के पियून ने आकर उन्हें विभाग के उच्च अधिकारी प्रखर शर्मा जी के आने की सूचना दी,जो सत्य प्रकाश जी के उच्च अधिकारी एवं मित्र थे।
“कहों सत्य प्रकाश कैसे हो भाई?” प्रखर शर्मा जी सत्य प्रकाश जी से हाथ मिलाकर बैठते हुए बोले।”ठीक है सर”। सत्य प्रकाश जी धीरे से बोले।”अरे सत्य प्रकाश तुम मेरा नाम भूल गए क्या?सर नहीं मैं तुम्हारा मित्र हूं, क्या यह भी बताना पड़ेगा?”प्रखर जी सत्य प्रकाश को हैरानी से देखते हुए बोले।
“माफ करना मित्र,मैं काफी परेशान रहता हूं,इसलिए सब कुछ भूलता जा रहा हूं “। सत्य प्रकाश उदास होते हुए बोले।”क्या हुआ तुम्हारी बेटी भाभी!घर पर सब ठीक है,या अन्य कोई परेशानी हो तो मुझे बताओं?”प्रखर शर्मा जी सत्य प्रकाश जी से सहानभूति प्रकट करते हुए बोले।
पियून मेज पर चाय नाश्ता रखकर जा चुका था, कुछ देर खामोश रहने के बाद सत्य प्रकाश जी ने अपनी सारी समस्या अपने मित्र प्रखर शर्मा को विस्तार पूर्वक बताईं, और चिंता के गहरे सागर में डूब गए, प्रखर शर्मा जी सत्य प्रकाश की आप बीती सुनकर गंभीर होने लगें,जिसकी समस्या काफी जटिल थी,वह कुछ देर तक सोचते रहे फिर बोले।
“सत्य प्रकाश! तुम्हें खुद को बदलना होगा,कुछ कठोर निर्णय लेने पड़ेंगे, वरना बहुत देर हो जायेगी”। प्रखर शर्मा जी गंभीर होते हुए बोले।” बोलो प्रखर! मैं अपनी बेटी को सही रास्ते पर लाने के लिए हर कठिन व कठोर निर्णय लेने के लिए तैयार हूं”।
सत्य प्रकाश प्रखर शर्मा की ओर उम्मीद भरी निगाहों से देखते हुए बोले। सत्य प्रकाश को हौसला देते हुए प्रखर शर्मा काफी देर तक कुछ समझाते रहे, और सत्य प्रकाश को सब कुछ ठीक हो जाने का भरोसा दिलाते हुए अपने बनाए हुए प्लान पर अमल करने के लिए सत्य प्रकाश को प्रोत्साहित करते हुए कुछ देर बाद आफिस से बाहर निकल गए।
दस दिन बीत चुके थे,शाम के सात बज रहे थे, सत्य प्रकाश घर आकर चुपचाप गुमसुम बैठे थे।”अरे क्या हुआ,काहे का शोक मना रहे हैं?”कामिनी सत्य प्रकाश को चिन्तित बैठा हुआ देखकर बोली। सत्य प्रकाश जी चुपचाप बैठे रहे उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।
“काहे मुंह लटकाएं बैठे हो कुछ बोलेंगे?” कामिनी झल्लाते हुए बोली। “क्या बताऊं कामिनी! मेरे खिलाफ विभागीय जांच चल रही है, मुझे निलंबित कर दिया गया है”। कहकर सत्य प्रकाश जी ने सिर झुका लिया।”क्या कहा आपने, आपको निलंबित कर दिया गया है,कही दिमाग तो नहीं खराब हो गया आपका,आप जैसा डरपोक आदमी भला क्या करेगा?
“कामिनी मुस्कुराते हुए बोली।” मैं ठीक कह रहा हूं, कुछ गड़बड़ी हुई है, जिसमें मेरा भी नाम आया है, मुझे कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है?”सत्य प्रकाश जी चिन्तित होते हुए बोले।”जो आदमी एक मच्छर तक नहीं मार सकता,वह भला गड़बड़ क्या करेगा,वह तो मैं ही हूं जो इतनी हिम्मत करके दशकों से झेल रही हूं?
“कामिनी मुंह बनाते हुए बोली।”अब चाहे तुम कुछ भी कहो कामिनी! मुझे भला बुरा कहों चिल्लाओ,जो हों गया है वह अब बदल नहीं सकता”। कहकर सत्य प्रकाश जी ख़ामोश हो गये।
कामिनी सत्य प्रकाश जी को अनाप-शनाप कहकर जोर -जोर से चिल्ला रही थी।”क्या हुआ मम्मी!काहे आसमान सिर पर उठा रखा है?”सुनीता कामिनी की आवाज सुनकर कमरे में आते हुए बोली।”क्या बताऊं इस आदमी ने तो मुझे कही का नही छोड़ा है?”
कामिनी गुस्से से तमतमाते हुए बोली।”अरे क्या हुआ है मम्मी! सुनीता हैरान होते हुए बोली।”पूछों अपने सत्यवादी बाप से, जिन्हें नौकरी से निलंबित कर दिया गया है “। कामिनी सत्य प्रकाश जी की ओर इशारा करते हुए बोली।”पापा! क्या मम्मी!सही कह रही है?”सुनीता सत्य प्रकाश जी सवाल करते हुए बोली।
सत्य प्रकाश जी ने बिना कुछ बोले सिर हिला दिया।”पापा! मुझे तो नहीं लगता कि आप कही कुछ गड़बड़ी कर सकते हैं?”सुनीता सिर हिलाते हुए बोली।
“लेकिन गड़बड़ तो हों चुकी है बेटी “। सत्य प्रकाश जी उदास होते हुए बोले। सुनीता कुछ देर तक सत्य प्रकाश जी को देखती रही फिर दोनों मां बेटी सत्य प्रकाश जी को देखकर बड़बड़ाते हुए कमरे से बाहर निकल गई।
सुबह के दस बज रहे थे,डोर बेल कि आवाज सुनकर कामिनी ने दरवाजा खोला बाहर पांच छह लोग खड़े हुए थे।”सत्य प्रकाश जी! हैं घर पर?”उनमें से एक व्यक्ति बोला।”हा कहिए क्या काम है?”सत्य प्रकाश जी बाहर आते हुए बोले।
उन लोगों ने सत्य प्रकाश जी को अपना परिचय दिया और घर के सभी लोगों को बाहर आने के लिए कहा।”कौन है यह लोग हमें बाहर जाने के लिए क्यूं कह रहे हैं?” सुनीता और कामिनी एक साथ बोली।
“यह जांच अधिकारी हैं, चलों बाहर चलों इन्हें अपना काम करने दो”। सत्य प्रकाश सुनीता और कामिनी को समझाते हुए बोले। कामिनी और सुनीता सत्य प्रकाश जी को घूरते हुए उनके साथ घर के बाहर निकल गई।
कुछ देर तक वे लोग घर की छानबीन करने के बाद घर के जेवर, सत्य प्रकाश जी के बैंक खातों की पासबुक कैश सब जब्त करके अपने साथ ले जाते हुए सत्य प्रकाश जी से बोले।” सत्य प्रकाश जी जब तक जांच पूरी नहीं होगी तब तक आप अपने खाते से कोई लेना-देन नहीं कर सकते,और यह जेवर व कैश भी हमारे पास जमा रहेगा,आप जांच पूरी होने तक कही भी हमें जानकारी दिए बिना नहीं जा सकते “। कहकर वह लोग जेवर बैंक पास बुक जो भी कैश था उसे अपने साथ लेकर वहां से चले गए।
एक हफ्ते का समय बीत चुका था, कामिनी सत्य प्रकाश जी को दिन रात कोसने लगी। सुनीता हजारों रुपए खर्च करती थी, सत्य प्रकाश जी के बैंक खाते कैश जेवर सब कुछ जांच टीम अपने साथ ले गयी थी,जिसकी वजह से सुनीता परेशान रहने लगी, उसके सभी यार दोस्तों ने भी अपने हाथ खींच लिए थे,
दोनों मां बेटी को अनगिनत समस्याओं ने घेर लिया था,कयी लोगों का पैसा उन्हें देना था, जिसे देने का कोई जरिया उसके पास नहीं था।”यहां घर पर मत बैठो,जाओ कही से भी हमें पचास हजार रुपए लाकर दो”।
कामिनी सत्य प्रकाश जी को कोसते हुए बोली।”मैं कहां से अभी पैसे लाकर दूंगा,अभी तो मैं कही जा भी नहीं सकता?”सत्य प्रकाश जी अपनी मजबूरी बताते हुए बोले।”कही देश से बाहर जाने को नहीं कह रही हूं, जाकर किसी से भी लाकर पैसे दीजिए, तुम्हारी बेटी को काफी पैसे देने हैं,वह कौन देगा,किसे दे दिया आपने अपने आफिस में गोलमाल करके, हमें भी तो पता चले”।
कामिनी सत्य प्रकाश जी को घूरते हुए दांत पीसते हुए बोली।”कामिनी! तुम समझ क्यूं नहीं रही हो, मैं किससे पैसे लाकर दू,इस समय कोई नहीं देगा “। सत्य प्रकाश जी परेशान होते हुए बोले।
“मैं यह सब नहीं जानती,आप जाइए और बिना पैसे के घर पर मत आइयेगा, नहीं तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा “। सत्य प्रकाश जी बाहर का रास्ता दिखाते हुए कामिनी वहां से चली गई। सत्य प्रकाश जी कुछ देर तक शांत खड़े रहें फिर चुपचाप घर से बाहर निकल गये।
दो दिन बीत चुके थे, सत्य प्रकाश जी घर वापस नहीं आए,वे अपना मोबाइल भी घर पर ही छोड़ गए थे,कामिनी और सुनीता को सत्य प्रकाश जी से ज्यादा पैसे न मिलने की चिंता थी,उन लोगों ने उन्हें ढूंढने का भी प्रयास नहीं किया।
सत्य प्रकाश जी के फोन पर काल आ रही थी, दूसरी तरफ से उनके आफिस से कोई बोल रहा था, कामिनी ने सत्य प्रकाश जी के घर पर होने की गलग सूचना देकर फोन काट दिया।समय के साथ ही कामिनी और सुनीता को सत्य प्रकाश जी के साथ कुछ गलत होने का भय सताने लगा था।
उन्हें इस बात का डर सता रहा था कि अगर कुछ गलत हुआ तो उसमें कामिनी का बच पाना मुश्किल हो जाता यही सोचकर सत्य प्रकाश के गुम होने की रिपोर्ट भी दर्ज नहीं कराई दोनों मां बेटी ने, और सत्य प्रकाश जी के फोन को बंद कर दिया।
एक महीने बीत चुके थे, कामिनी और सुनीता को पैसों की तंगी ने आईना दिखा दिया था, उनके पास लोग बकाया पैसा मांगने आने लगे।हर आदमी नाते रिश्तेदार सभी लोगों ने उनसे दूरियां बना ली थी।
खाने पीने की तंगी से जूझ रही कामिनी और सुनीता को सत्य प्रकाश जी की कमी का एहसास हो रहा था,जो कि एक सभ्य सुशील और मृदुभाषी उत्तम पुरुष थे, जिनके न रहने से कुछ दिनों में ही उन्हें जिंदगी की सच्चाई का एहसास हो रहा था।
सुबह के दस बज रहे थे, सत्य प्रकाश जी के आफिस से उन्हें कोई बुलाने के लिए आया था, कामिनी और सुनीता ने उसे झूठ बोलकर कुछ घंटों बाद सत्य प्रकाश जी को आफिस में आ जाने के लिए कह दिया था।
दोनों मां बेटी परेशान थी कि सत्य प्रकाश जी तो थे नहीं उनके आफिस जाएगा कौन? मां बेटी आपस में सलाह मशवरा करने के बाद सत्य प्रकाश जी के आफिस की ओर निकल पड़ी।
कामिनी और सुनीता को सामने देखकर प्रखर शर्मा जी बोले।”भाभी जी नमस्ते, सत्य प्रकाश कहा है?”नमस्ते का जवाब सिर हिलाकर देने के बाद कामिनी कुछ देर तक शांत रहकर बोली।”भाई साहब उनकी तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए वह नहीं आ सके”।
कामिनी लड़खड़ाती जुबान से बोली।”भाभी! खुशखबरी है, सत्य प्रकाश जी पर लगे सारे दोष गलत है,वे तो एक सच्चे ईमानदार उच्च आदर्शों वाले पुरुष है,हमे बड़ा दुख है जो उन्हें परेशान होना पड़ा?”प्रखर शर्मा जी मुस्कुराते हुए बोले।”लेकिन भाई साहब वह अभी तो आ नहीं सकते”। कामिनी हड़बड़ाते हुए बोली।
“कोई बात नहीं,उनका कैश पास बुक,जेवर सब हम उन्हें घर पर ही आकर दे देंगे?”प्रखर शर्मा शांत लहजे से बोले।”यह आप हमें ही दें दीजिए”। सुनीता बीच में बोल पड़ी।”नही बेटी!यह सब आपके पापा के सिवा और किसी को नहीं दिया जा सकता, हमें उनकी रिसीविंग भी चाहिए?” प्रखर शर्मा जी सुनीता की ओर देखते हुए बोले।
कामिनी की आंखें नम होने लगीं उसे अपने किए पर पछतावा हो रहा था,वह एक बुत की तरह शांत बैठी थी।”भाभी जी!आप बहुत परेशान लग रही है, सत्य प्रकाश मेरा पुराना मित्र हैं,यदि अन्य कोई बात हो तो छुपाइये नहीं, मुझे खुलकर बताइये “।
प्रखर शर्मा जी कामिनी की ओर देखते हुए बोले।उनकी बात सुनकर कामिनी फूट-फूट कर रोने लगी। उसने सारी बातें प्रखर शर्मा जी को बताई और एक गुनहगार की तरह हाथ जोड़कर उनके सामने खड़ी हो गई।
सुनीता चूपचाप बैठी अपने पापा को याद करते हुए आंसू बहा रही थी।”चुप हो जाइए भाभी जी! सत्य प्रकाश जी को कुछ नहीं हुआ है,वह सही सलामत है,आज आपकी आंखों से पश्चाताप के आंसू बह रहे हैं, उसने आपके सारे गुनाहों को धो डाला है”। प्रखर शर्मा जी कामिनी और सुनीता को शांत कराते हुए बोले।
“भाई साहब कहा है सुनीता के पापा! मुझे उनके पास ले चलिए, मैंने बहुत गलत व्यवहार किया है, अपने पति परमेश्वर से,जिस पुरुष का मुझे आदर करना चाहिए, मैंने उसे कापुरूष बनकर जीने के लिए मजबूर कर दिया था।
कहकर कामिनी रोने लगी।”बस भाभी जी!रोइए नहीं, सामने केबिन में आप लोगो का कोई इंतजार कर रहा है?”प्रखर शर्मा जी कामिनी से सामने की ओर इशारा करते हुए बोले। केबिन के अंदर प्रवेश करते ही कामिनी और सुनीता के चेहरे पर खुशियां छलकने लगी। सामने सत्य प्रकाश जी बैठे हुए थे।
“मुझे माफ़ कर दीजिए और कभी भी हमें छोड़कर कही मत जाइएगा”। कहते हुए कामिनी सत्य प्रकाश जी के पैरों में लिपट गई। “अरे उठों कामिनी! मैं तुमसे नाराज़ ही कब था, मुझे तो तुम्हारी आंखों पर से झूठ और दिखावें के पर्दे को हटाना था,पुरूष होने के सारे कर्तव्य तो मैं हमेशा निभाता आया,मगर तुम शायद नारी का कर्तव्य भूलती जा रही थी,
जिससे मेरी बेटी का जीवन बुरी तरह प्रभावित हो रहा था”। सत्य प्रकाश कामिनी को उठाते हुए बोले। मुझे माफ़ कर दो पापा! कहकर सुनीता सत्य प्रकाश जी से लिपट गई। “चलों देर आए दुरुस्त आए, अंत भला तो सब भला “प्रखर शर्मा जी केबिन में आते हुए बोले।
उसी समय पियून को देखकर कामिनी चौंक पड़ी।”अरे यह तो जांच करने वाले अधिकारी हैं?”कामिनी पियून की ओर हैरानी से देखते हुए बोली।”इन्होंने अपनी भूमिका अदा कि है अपने साहब जी के घर की खुशियों को वापस लाने के लिए “।
प्रखर शर्मा जी मुस्कुराते हुए बोले।”तो क्या यह सच नाटक था?”सुनीता हैरान होते हुए बोली।”तो क्या सारे नाटक करने की कला तुम औरतें ही अदा करोगी पुरूष भी नाटक करने में आप लोगो से कमजोर नहीं है “। कहते हुए सत्य प्रकाश जी जोर-जोर से हंसने लगे। कामिनी और सुनीता भी उनके साथ जोर-जोर से हंसने लगी।
#पुरुष
माता प्रसाद दुबे
मौलिक स्वरचित अप्रकाशित कहानी लखनऊ
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