कन्यादान – अनुपमा

सुबह सुबह घर मैं इतनी चहल पहल देख कर मैं बाहर निकला तो देखा दीदी की कामवाली अपने बच्चों को लेकर आई थी आज , मैं कुछ ऑफिस के काम से कानपुर आया था तो दीदी के यहां ही रुक गया था ।

उसकी चार लड़कियां ,देखने मैं तो बमुश्किल साल साल भर का ही फर्क दिख रहा था छोरियों मैं ,और अभी भी वो पेट से थी । 

ये लोग भी न बस बच्चे पैदा करवा लो इनसे और कुछ नही कर सकते ,मैं मन ही मन खुद से ही कहने लगा ।

मैने सुना वो दीदी को बता रही थी की बड़ी परेशान है वो अपने पति से , कुछ काम भी नही करता और दारू भी पीता है ऊपर से मारता पीटता अलग है ।

दीदी उससे कह रही थी की चार चार लड़की है तेरी मैं कुछ करना भी चाहु तो नही कर सकती ,एक होती तो मैं रख लेती उसे पढ़ा देती , मैने जब ये सुना तो सोचा की सुमन और मैं अकेले ही तो है कोई संतान भी नही है हमारी क्यों न मैं दीदी से कहूं की दीदी अगर आप राजी हो तो एक बच्ची को मैं रख सकता हु सुमन की मदद भी हो जायेगी ।

जब दीदी ने अपनी काम वाली से कहा तो दीदी के भरोसा दिलाने पर वो राजी हो गई ,ज्यादा दूर भी नही रहते थी हम कानपुर से ,वो जब जी चाहे मिलने आ सकती थी अपनी बेटी से मिलने और उसके हर महीने का पैसा दीदी उसे दे दिया करेगी ।

सबकुछ तय होते ही मैं उसकी बड़ी बेटी गुड़िया को लेकर पुखराया आ गया , जल्दी ही वो घर मैं रम गई और सुमन के साथ भी हिलमिल गई । हालातों ने उसे कम उम्र मैं ही समझदार बना दिया था उसने बहुत जिम्मेदारी से घर के काम संभाल लिए और सुमन और मेरा बहुत ख्याल रखती थी बिलकुल बेटी के जैसे ।

दो महीने बाद मैने उसका पास के ही एक स्कूल मैं एडमिशन भी करवा दिया , अब वो पढ़ती भी थी और घर मैं सुमन का हाथ भी बटाया करती थी , उसको घर मैं हर चीज का पता होता की कहां क्या रखा है ,हमारे घर मैं गुड़िया के आ जाने से कभी कुछ खोता नही था अब , क्योंकि जब भी वो कुछ इधर उधर समान देखती उसे तुरंत जगह पर रखती थी , समय यूं ही बीतता गया और मैं और भी दो बेटियों का बाप बन चुका था ।

गुड़िया ने अब स्नातक कर लिया था और मेरी बच्चियां भी बड़ी हो गई थी , तीनों बहनों की तरह ही रहती थी , गुड़िया बिलकुल घर के बेटी और बड़ी बहन की तरह ही उनका भी ख्याल रखती थी ।

आप सबको जान कर खुशी होगी की आज गुड़िया हमारे घर से जाने वाली है , अपनी एक नई जिंदगी की शुरुआत करने वाली है ,हां जब हमने उसे बेटी की तरह पाला पोसा इतना बड़ा किया तो हमारा ये फर्ज भी बनता था की हम उसकी शादी भी करे , अपने साथ ही पढ़ने वाले सहपाठी से उसकी शादी हो रही है , उसके आने से ही हमें सर्वप्रथम मां बाप बनने का सुख मिला था , उसने हमेशा एक बेटी की तरह ही हमें प्यार और सम्मान दिया तो हमारा भी फर्ज था की हम अपनी बेटी को विदा करे और उसे आशीर्वाद दें । भगवान का शुक्र है की उन्होंने हमें गुड़िया का कन्यादान करने का सौभाग्य प्रदान किया ।

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!