आशीष की पत्नी सुरेखा बड़ी धार्मिक स्वभाव की हैं साल के दोनो नवरात्रि के साथ एकादशी का व्रत हर महीने रखती हैं । एकादशी में पंडित जी को दान करना नहीं भूलती हैं । दोनो उच्च शिक्षित हैं और दोनो ही मल्टीनेशनल कम्पनी में सर्विस करती हैं । अच्छा खासा वेतन हैं
यही कोई 22 लाख का पैकेज सुरेखा का और आशीष 30 लाख का पैकेज हैं । रायपुर जैसे छोटे शहर से पूना जैसे महानगर में आना यहा का कल्चर ही अलग हैं । विवाह के बाद पूना में सुरेखा का पहला नवरात्र हैं । सुरेखा नवरात्र में सिर्फ फलाहार ही लेती हैं । आशीष बार बार मना करता तुम्हारी सभी इच्छाएं तो पूरी हो गई
अच्छा ख़ासा पैकेज हैं और एक अच्छा पति मिल गया कहते हुए अपनी कालर ऊंची की । नवरात्रि के आठ दिन तो अच्छे बीत गये पर नवे दिन कन्या भोज कराना हैं अब इतना बड़ा शहर किसी से कोई जान पहचान नही यहां फ्लैट संस्कृति किसी से कोई मतलब नहीं अब कन्या भोज के लिए कन्या कहा से लाए ।
बड़ी समस्या बन गई बेचारी सुरेखा भूखी प्यासी बैठी थी इतने में पड़ोस के टोमन लाल जो छत्तीसगढ़ के ही थे निकले आशीष ने अपनी समस्या बताई । पडोसी ने कहा नीचे गार्ड से सम्पर्क कर लो वो सब समस्या का समाधान कर देगा गार्ड से सम्पर्क करने पर बाबूजी 101 रू लगेंगे पंडित जी का पता बताने के लिए जैसे ही हमने 101 उसके हाथ में रखा गुटका थूकते हुए कहा ऐसा है
भाई साहब आज के आज तो कन्या भोज के लिए कन्या मिलना मुश्किल है़ क्योंकि इसकी एडवांस बुकिंग करनी पड़ती है़ । फिर भी आप सी विंग के चौथे माले के 168 नं फ्लैट पर चले जाईए वहां पंडित रमाशंकर शास्त्री जी मिलेंगे । मरता क्या ना करता दौड़ें दौड़े 168 नं पहुंचे दरवाजे पर लिखा था
रमाशंकर शास्त्री नोट यहा पितृ पक्ष एकादशी भोज के लिए पंडितों की व्यवस्था की जाती हैं तथा कन्या भोज के लिए कन्याओं की भी व्यवस्था की जाती हैं बेल बजाया तो एक फुल पंडित जी के वेशभूषा में रमाशंकर जी ने दरवाजा खोला और कहां कहिए महाशय क्या सेवा कर सकते हैं ।
आशीष ने कहा गार्ड साहब ने भेजा है़ । भूख के मारे जान निकली पड़ी थी गार्ड को भी साहब कहना पड़ रहा था । वो कन्या भोज के लिए कन्याओं की की आवश्यकता है । हां ठीक है भाई साहब कन्या तो मिल जायेगी पर तुरन्त व्यवस्था नहीं हो पायेगी इसकी एडवांस बुकिंग होती हैं फिर भी अर्जेंट में तीन बजे तक व्यवस्था हो पायेगी ।
मेरी फीस 1100 रू लगेगी और धोती या गमछा अलग से । आशीष भी उसके फीस चार्ज को सुन आश्चर्य चकित था पर मरता क्या नं करता ठीक है पंडितजी कहा लौटने तो पंडित जी ने कहा एडवांस तो देते जाइए महाशय । आशीष ने कहा कितना कह कर 500 का नोट थमा दिया । ठीक हैं हम कन्याओं को लेकर ठीक तीन बजे घर पहुंच जायेंगे कह कर एड्रेस लिखने को कहा ।
ठीक 3 बजे घंटी बजी तो सुरेखा ने दरवाजा खोला पंडित जी बच्चो के साथ उपस्थित थे । बैठिये पंडित जी कह कर सोफे पर बच्चों के साथ बिठाया । सुरेखा ने जल्दी जल्दी व्यवस्था की और कन्याओं को भोजन कराया ।
अंतिम में बच्चों को उपहार के साथ 11 रू देने लगी तो पंडित जी ने टोका क्या बहन जी 11 रू में भला क्या आता हैं कम से कम 101 रू तो दीजिए । पंडित जी के कहने पर बच्चो को 101 रू थमाया । राधे राधे कहते हुए शेष कमीशन की राशि को लेकर विदा हुआ । सुरेखा ने आखिर व्रत तोड़ा । सुरेखा सोच रही थी अजब गजब संस्कृति हैं महानगरों की ।
प्रवीण सिन्हा
रामकुण्ड रायपुर छ. ग.