कल और आज – रीता मक्कड़

एक वक़्त था जबकितना सोचती थी  नीरजा हर दम सुधीर के बारे में।

सोचती थी कितना व्यस्त पति है जिसके पास अपनी पत्नी के लिए थोड़ा सा वक़्त ही नही है।अपनी सहेलियों और अड़ोस पड़ोस की औरतों को देखती तो उसको मन ही मन जलन होती कभी पति के साथ मूवी देखने जा रही हैं कभी मॉल जा रही शॉपिंग करने और कभी बाहर खाना खाने जा रही।

मन ही मन सोचती इस बार तो जो नई मूवी लगी है अवश्य देखूंगी पर सुधीर ने तो जैसे कसम खा ली थी थिएटर ना जाने की ।जब भी वो बोलती तो बहाना बना देता कि वो तीन घण्टे एक ही जगह नही बैठ सकता।जब कहती मेरे साथ बाजार चलो मुझे कुछ समान लेना है तो कहता ये लो पैसेखुद ही ले आओ जो लेना है मेरे पास समय नही है।

उसको इन सब बातों से बहुत गुस्सा आता ।

उसे लगता कि सुधीर की ज़िंदगी मे जैसे उसकी कोई अहमियत ही नही है।अपनी सहेलियों के साथ जब भी कहीं बाहर जाती तो उनके पतियों के अवश्य फोन आते  ये पूछने के लिए के ठीक से पहुंच गई कि नही।पर सुधीर तो जैसे घर से जाने के बाद उसको भूल ही जाता था।

उसका दिन काम मे और शाम दोस्तों के साथ गुजरती थी।पति के साथ उसने कभी जो हिल स्टेशन पर बर्फ पर बाहों में बाहें डाल कर घूमने के सपनेदेखे थे वो  तो कहीं दफन ही हो गए थे।


कभी बहुत अकेलापन लगता तो उसका मन करता कि सुधीर से ढेर सारी बातें करे।यही सोच कर किसी काम के बहाने से सुधीर का फोन लगाती कि आते हुए ये ले आना या आज जल्दी आ जाना वगैरह वगैरह।

लेकिन वो कभी चालीस या पचास सैकंड से ज्यादा बात नही करता और बोल देता काम की बात बताओ बाकी घर आकर बात करता हूँ और घर पर आने के बाद भी उसके पास समय कहाँ बचता था कि पत्नी के पास बैठ कर दो बोल प्यार के बोल दे।

अब तो तीस साल की शादी शुदा ज़िन्दगी में उसे इन सभी बातों की आदत सी हो गयी है।जब बच्चे छोटे थे तब तो उनके साथ समय निकल जाता था और धीरे धीरे उसने अपने मन को समझा लिया था ।

अब जब बच्चे बड़े हो गए थे और अपनी अपनी ज़िंदगी में व्यस्त हो गए थे तो लगता था जैसे ज़िन्दगी में बहुत ज्यादा सूनापन आ गया है ।

लेकिन उसने अपने अकेलेपन को ही अपना साथी बना लिया था और शायद इसी अकेलेपन को दूर करने की खातिर ही वो पहले कुछ न कुछ पढ़ने में और फिर लिखने में व्यस्त रहने लगी । मन मे उठती टीस को अपने शब्दों के माध्यम से बाहर निकाल देती।

अब लगता कि वो अकेली नही है शुरू से ही पढ़ना तो उसका शौक था ही अब जब कलम उठा ली है तो जैसे ज़िन्दगी का खालीपन भर गया है।अब सुधीर सुबह जा कर चाहे जितने बजे भी आये या पूरा दिन फोन न करे उसे कोई फर्क नही पड़ता।

लेकिन आज जब सारी दुनिया ही इस लॉक-डाउन के चक्कर मे घरों में बंद है तो सुधीर भी घर पर हैं। दिन भर न्यूज़ चैनल और इंटरनेट देखते देखते जब उकता जाते हैं तो उसके पास आ कर बैठते हैं। बातें करना चाहते हैं।जब वो अकेली बैठ कर अपना फोन देख रही होती है तो उसको आवाजें लगाते हैं । खाने के समय भी बोलते हैं कि एक साथ बना कर ले आए इक्कठे ही खाएंगे।

लेकिन नीरजा को अब जैसे इन सब बातों से कोई फर्क नही पड़ता। उसको तो अब हर काम अकेले करना ही अच्छा लगता है। आज उसेखुद के साथ जीने की आदत जो पड़ गयी है। उसे लगता है पति घर पर रह कर हर बात में कुछ ज्यादा ही दखलंदाजी करते हैं।


उसको अब वो अकेलापन नही मिल रहा जिसमे वो खुद के लिए जीती है । खुद के साथ जीती है। पति के साथ समय बिताने की इच्छा को तो उसने बहुत पहले ही कहीं अतीत की गहराईयों में दफन कर दिया था।

आज तो वो दिन भर में अपने लिए वक़्त ढूंढ रही है।  लेकिन उसको ऐसा लग रहा है जैसे पति के रूप में एक बॉडीगार्ड हर पल उसके साथ है जो उसकी हर बात हर काम पर चौबीसों घण्टे नज़र रखे हुए है।

अब पता नही कब वो अपनी व्यस्त ज़िन्दगी में वापिस लौटेंगे और कब नीरजा को वो अकेलापनऔर एकांत वापिस मिलेगा जिसमे वक़्त बिता कर नीरजा को मन की गहराईयों से खुशी मिलती है।

वक़्त के साथ इंसान की खुशियों के मायने भी कितने बदल जाते हैं न.!!!

स्वरचित एवम मौलिक

रीता मक्कड़

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