अभी अभी पता चला कि सुनीता ने हॉस्पिटल में अपनी आखिरी सांस ली। खबर सुन कर थोड़ी देर के लिए तो मुझे होश ही नही रहा। सुनीता के लिए बहुत दुख भी हो रहा था और उस से भी ज्यादा उस पर गुस्सा आ रहा था कि उसकी छोटी सी बेवकूफी ने एक हंसते खेलते घर को बर्बाद कर दिया था।
और उस नन्ही जान का क्या कसूर था जिसको दुनिया मे आये अभी मुश्किल से सात महीने ही हुए होंगे। माँ का दूध पीने वाला बच्चा ,जिसने अभी तक माँ बोलना भी नही सीखा।कैसे माँ के बिना उसकी जिंदगी कटेगी और माँ की जगह कौन ले पायेगा उसके लिए उफ्फ….
काश ये सब ना हुआ होता….
काश सुनीता ने उस गलती को करने से पहले अपने बच्चे के बारे में सोच लिया होता।
अभी पंद्रह दिन पहले की बात है। सुनीता का पति घर आने में थोड़ा लेट हो गया। जब सुनीता ने फोन किया तो उसने बोला कि मुझे कुछ दोस्त मिल गए थे तो मैं उनके साथ बैठ गया हूं। आने में देर हो जाएगी।तुम खाना खा कर सो जाना।
लेकिन सुनीता ने आधे घण्टे बाद फिर फोन किया। तो उसने फिर वही कहा कि तुम सो जाओ मैं थोड़ी देर तक आता हूँ। लेकिन सुनीता को बहुत गुस्सा आया हुआ था।तो उसने बोला कि अगर तुम दस मिनट में नही आये तो फिर देख लेना क्या होगा।
इतना कहकर उसने रसोई में जा कर आग लगा ली। पड़ोसियों ने जब धुंआ देखा तो जल्दी से आग बुझाई और उसके पति को इन्फॉर्म किया।लेकिन तब तक सुनीता 90%जल चुकी थी।
पन्द्रह दिन तक सुनीता ICU में रही। बार बार यही कहती रही कि मैं मरना नही चाहती।मैं तो सिर्फ अपने पति को डराना चाहती थी। डॉक्टर मुझे प्लीज बचा लो।मेरा बच्चा कौन देखेगा। लेकिन डॉक्टर उसको बचा नही सके।और आज ये खबर आई ।
जब तक सुनीता अस्पताल में रही सबको एक उम्मीद थी कि शायद ठीक हो कर घर आ जाएगी। तब तक उस बच्चे को जब भी वो रोता ..उनके रिश्तेदारी में ही किसी और माँ ने अपना दूध पिलाया जिसका बच्चा उसके बराबर का ही था।लेकिन जब सुनीता चली गयी तब उसके घरवालों ने बोला कि अब इसको माँ और माँ के दूध के बिना जीने की आदत डालनी ही पड़ेगी।
समाप्त
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छत वाला प्यार
आज भी वो दिन आंखों के सामने एक चलचित्र की भांति घूमते रहते हैं।जब लोगों का प्यार छत्तों पर परवान चढ़ा करता था। तब आज की तरह एक दूसरे से बात करने को फोन तो होते नही थे। कि जो अच्छा लगे जल्दी से उसको संदेश भेज दो या फिर फोन करके अपने दिल की बात बता दो।
तब तो बस आंखों की भाषा ही पढ़ लेते थे और आंखों में बात होने दो की तर्ज पर ही प्रेम में पगे प्रेमी प्यार की पहली सीढ़ी चढ़ लेते थे…
और फिर दिल की बात बताने के लिए या तो खत भेजे जाते वो भी पकड़े जाने का डर बना रहता या फिर कोई और जरिया ढूंढना पड़ता था..
छत पर ही तो देखा था उसने उसको पहली बार। उस लड़की के घर के पिछवाड़े उसका घर था और दोनो घरों की छतों के बीच मे बस एक छोटी सी दीवार ही तो थी।
जब वो छत सेसूखे हुए कपड़े उतारने आया था। फिर नजरों से नजरें मिली। घर का इकलौता बेटा होने के कारण उसे अपनी मम्मी की मदद तो करनी ही पड़ती थी तो बस फिर ये छत से कपड़े उतारने का सिलसिला रोज़ का हो गया। फिर रोज़ रोज नजरें टकराने लगी। और आंखों आंखों में बिना कुछ कहे ही दिल की बात दिल तक पहुंचने लगी।
फिर एक दिन देखा तो उसके हाथ मे एक कैलेंडर था जो उसने फोल्ड करके पकड़ा हुआ था। उस दिन जब नजरें मिली तो उसने वो कैलेंडर अपनी छत से उसकी छत पर फेंक दिया।
और जब लड़की ने कैलेंडर खोल के देखा तो वो सोहणी महीवाल की फोटो छपा कैलेंडर था …
उसके पिछली तरफ उसने लिखा हुआ था….अंग्रेजी में कहते हैं कि…आई लव यू…गुजराती में बोलें तने प्रेम करो छू
बंगाली में कहते हैं कि आमी त्माके भालो बाछी
और पंजाबी में ……..इसके बाद उसने खाली स्थान छोड़ दिया था क्योंकि
शायद वो पंजाबी में प्यार का इजहार उसके मुँह से सुनना चाहता था। क्योंकि वो जानता था कि पंजाबी लड़की, प्यार का इजहार पंजाबी में ही अच्छे से कर पायेगी।
लेकिन उस लड़की ने उस कैलेंडर को अपनी अलमारी में छुपा दिया और उस लड़के को कोई जवाब नही दिया।
आज तक वो खुद ही समझ नही पायी कि वो घर वालों से डर गई थी या फिर उसकी नाक कुछ ज्यादा ही ऊंची थी कि वो उस कच्ची उम्र के प्यार को स्वीकार ही नही कर पाई।
फिर उसकी शादी हो गयी। बेटी से बहु बनी फिर माँ , माँ से सास और फिर दादी नानी भी बन गयी।
लेकिन आज भी वो छत वाला प्यार दिल से निकाल नही पायी।
और जब भी वो सोहणी महीवाल का कैलेंडर याद आता है तो दिल मे कुछ चुभता हुआ महसूस होता है और बरबस ही उसकी आंखें भीग जाती हैं।
मौलिक एवम स्वरचित
रीटा मक्कड़