‘कैसे स्वीकार करूँ?’ –  विभा गुप्ता

 ” शालू, ये तूने क्या किया? मेरे प्यार में कहाँ कमी रह गई थी जो तूने मेरे साथ इतना बड़ा छल किया।तुझे बेवफ़ा कहूँ तो उसे क्या कहूँ जो दोस्त के रूप में आस्तीन का साँप निकला।धिक्कार है!…।” कहते हुए विकास ने अपने हाथ में ली व्हिस्की की बोतल को उस दीवार पर दे मारा जिसपर वह चिल्ला-चिल्ला कर अपने अंदर के क्रोधाग्नि को शांत करने का प्रयास कर रहा था।

             पंद्रह दिनों पहले तक उसकी जिंदगी कितनी खुशहाल थी।वह अपनी पत्नी शालू ,बेटे विशांत और भाई समान मित्र संदीप के साथ बहुत खुश था।शालू ने कभी शिकायत का मौका नहीं दिया तो उसने भी उसे टूट कर प्यार किया था।संदीप से उसकी मुलाकात कॉलेज़ में हुई थी और जल्दी ही वे दोनों घनिष्ठ मित्र बन गए थें।देखने वाले तो उसे राम-लक्ष्मण की जोड़ी भी कहा करते थें।विकास के विवाह के बाद संदीप ने भी अपनी सहपाठिन मुग्धा से विवाह कर लिया था लेकिन विवाह के एक वर्ष बाद ही एक सड़क दुर्घटना में मुग्धा का देहांत हो जाने के बाद उसने दूसरा विवाह नहीं किया।अपना खालीपन दूर करने के लिए अक्सर ही वह विकास के घर आ जाया करता था।विशांत के जन्म के बाद से तो वह विकास के परिवार का ही हो गया था।जब कभी उसे ऑफ़िस में देर हो जाती तो संदीप ही विशांत को स्कूल ले आया करता था।

            एक दिन संदीप शहर से बाहर गया हुआ था और विकास भी मीटिंग में व्यस्त था तो शालू ही विशांत को लाने स्कूल चली गयी।लौटते वक्त सड़क खाली देख उसने स्कूटी की स्पीड बढ़ा दी और तभी अचानक से एक ट्रक ने आकर उसकी स्कूटी को टक्कर मार दी, शालू खुद को संभाल नहीं पाई और उसने वहीं पर दम तोड़ दिया।ईश्वर की कृपा से पीछे बैठे बारह वर्षीय विशांत की जान बच गई थी, फिर भी उसे पाँच दिनों तक अस्पताल में रहना पड़ा था।


         शालू का दुख विकास के लिए असहनीय था, बेटे को देखता तो फ़फक कर रो पड़ता था।इतनी कम उम्र में ही उससे उसकी माँ की ममता छिन गई थी।दोनों एक-दूसरे को दिलासा देकर अपना-अपना दुःख कम करने की कोशिश कर रहें थें।

            एक दिन तबीयत ठीक न होने के कारण विकास 11 बजे ही घर आ गया।बेटे के स्कूल में रहने के कारण खाली घर काटने लगा तो उसने एलबम से मन बहलाना चाहा।एलबम निकालते वक्त उसकी नज़र शालू की डायरी पर पड़ी।उत्सुकतावश वह डायरी को पढ़ने लगा।हर पन्ने पर शालू ने विकास की प्रशंसा और उसके प्रेम की चर्चा की थी जिसे पढ़कर उसकी आँखों से आँसू बहते जा रहे थे।पढ़ते-पढ़ते उसकी नज़र ‘ विशेष दिन ‘ लिखे शब्द पर पड़ी।शालू ने लिखा था- “आज का दिन मेरे लिए विशेष है क्योंकि आज ही डाॅक्टर ने मेरी प्रेग्नेंसी को कन्फ़र्म किया है।विकास के एक महीने के लिए यूरोप चले जाने के बाद संदीप मेरा बहुत ख्याल रखने लगे थें।उसी दौरान हम कब करीब आ गये,हमें पता ही नहीं चला और एक दिन हम दोनों से वो हो गया जिसे समाज मर्यादा लाँघना कहता है।विशांत हमारे उसी प्यार की निशानी है।विकास को सच बताकर मैं उसे खोना नहीं चाहती और संदीप से अलग भी मैं… ” इसके आगे वह पढ़ न सका।उसके पैर के नीचे से तो जैसे जमीन ही निकली जा रही थी।उसके नाक के नीचे ही उसकी पत्नी उसके दोस्त के साथ मिलकर उसे धोखा दे रही थी और उसे पता भी न चला।दोनों की भोली सूरतों का काला सच जानकर उसके जी में आया कि वह चीखे-चिल्लाए परन्तु किस पर? दगा देने वाली उस पत्नी पर जिसकी अंत्येष्टि पर वह फूट-फूटकर रोया था या उस फ़रेबी दोस्त पर जो उसकी पीठ में छुरा घोंप कर न जाने कहाँ गायब हो गया या फिर उस मासूम पर जो उसका खून न होते हुए भी उसे जान से प्यारा था।बस तभी से वह अपने गम को शराब में डुबोए जा रहा था।बेटा कब स्कूल से आया और खाना खाकर सो भी गया, उसे कुछ पता नहीं।नौकर ने भी उससे दो-तीन बार खाने के लिये पूछा,उसे उठाकर बिस्तर तक ले जाने की कोशिश भी की लेकिन वह तो अपने आपे में ही नहीं था।


 कितने प्यार से उसने अपने और शालू के नाम के प्रथम अक्षर को मिलाकर बेटे का नाम विशांत रखा था।पहली बार उसके मुँह से ‘पापा ‘ सुनकर वह कितना खुश हुआ था।जिसे वह कंधे पर बैठकर पूरे घर में घुमाया करता था और जिसके लिए उसने भविष्य के अनगिनत सपने बुन डाले थे,वो उसका नहीं है, सोचकर उसका हृदय चित्कार उठा, हे भगवान!अब फ़रेब की इस परछाई को मैं कैसे स्वीकार करूँ?

 उसने निश्चय किया कि सुबह होते ही वह विशांत को किसी अनाथालय में छोड़ आएगा और खर्चे के लिए हर महीने पैसे भेज कर उसके अपना पिंड छुड़ा लेगा।तभी आँख मलते हुए विशांत ने आकर उसके गले में बाँहें डालते हुए पूछ लिया, ” पापा,आज आप इतनी जल्दी कैसे उठ गये?” 

विशांत का स्पर्श पाते ही विकास का पूरा नशा उतर गया, शालू-संदीप के फरेब को वह भूल गया और ये भी भूल गया कि उसे पापा कहने वाला उसका अपना खून नहीं है।उस मासूम के नन्हें स्पर्श ने क्षण भर में उसके अंदर की सारी नफ़रत, क्रोध और कड़वाहट को धो दिया।छल तो शालू ने किया था, इसमें विशांत का क्या कसूर है? धोखे का ज़वाब धोखा देकर ही दिया जाए,यह आवश्यक तो नहीं।विशांत के लिए तो मैं ही उसका पिता हूँ, कल भी ,आज भी और हमेशा रहूँगा।   

                   “आपको सरप्राइज़ देना था ना बेटे ” मुस्कुराते हुए उसने जवाब दिया और विशांत को अपने सीने से लगा लिया।

#धोखा 

                  ——— विभा गुप्ता

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