कागज के फूल नहीं, महकते हुए फूल – सुधा जैन

मिस्टर कपूर अपनी पत्नी और बेटे प्रियांश के साथ महाराष्ट्र के एक शहर में रहते है ।मिस्टर कपूर की इलेक्ट्रॉनिक की दुकान है और शहर में ही छोटा सा  घर है ।शादी होने के बाद उनकी जीवन संगिनी संगीता ने भी उनका हर कदम पर साथ दिया। घर की अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए कुकिंग, गृह सजावट कागज के फूल बनाना इन सब कामों  की क्लास  खोली, और सब को सिखाया ।

उनका बेटा प्रियांश पढ़ाई में  अच्छा है। अपने बेटे को इंजीनियरिंग की पढ़ाई करवाई और एमएनसी कंपनी में उनकी जॉब लग गई ।मम्मी पापा के सपने पूरे होने लगे, तब उन्होंने अपने बेटे के लिए प्यारी सी वनिता को पसंद किया। वनिता भी एमएससी की हुई ,सुलझी समझदार लड़की अपने मन में सपनों को  संजोए ससुराल आ गई।

सास ससुर का खूब प्यार पाने लगी ।प्रियांश टैलेंटेड है, अतः उन्हें स्वीडन की कंपनी से बुलावा आ गया ,और वीजा की तैयारी करके वह  स्वीडन चले गए । तब प्रियांशु के पापा मम्मी और वनिता उनसे वीडियो कॉलिंग करते ,और उन्हें लगता हम कॉल करके देख तो लेते हैं, पर छू नहीं सकते ,स्पर्श को महसूस नहीं कर सकते, मम्मी अपने बनाए गुलाब जामुन को खिला नहीं सकती, जैसे कागज के फूल ।

कुछ समय बाद वनिता का वीजा भी हो गया और वह भी चली गई। मिस्टर कपूर और संगीता दोनों घर में अकेले हो गए। दोनों जब बातें करते तब उन्हें अपने बेटे की प्रगति करना अच्छा लगता है, लेकिन इस बात का एहसास हमेशा होता है कि बच्चों की खैर खबर तो मिल जाती है, पर बच्चों को महसूस नहीं कर पाते ।

वनिता के मम्मी, पापा ,दादा दादी, भाई भी यही महसूस करते और उन्हें बहुत कमी लगती ।मम्मी को लगता है, मेरी बिटिया बहुत दूर चली गई है, जैसे कागज के फूल ।मैं बात तो कर सकती हूं, पर उसके बालों में तेल नहीं डाल सकती ,उसके खाने की फरमाइश को पूरा नहीं कर सकती ,और पापा को भी लगता बिटिया दिख तो जाती है पर पास मिलने का जो एहसास है ,वह नहीं आ पाता, कागज के फूल के समान ।


कुछ दिनों बाद जब  वनिता गर्भवती हुई ,तब प्रियांश के पापा मम्मी स्वीडन गए। अपनी बहू की प्यार से डिलीवरी की और  उनके साथ स्वीडन घूमे ,पेरिस ,इटली और सुंदर सुंदर जगह ।

6 महीने वहां रहकर बहुत सारी सुखद अनुभूतियां लेकर वह वापिस इंडिया आ गए। एक दिन अचानक संगीता की छाती में दर्द हुआ। मिस्टर कपूर अस्पताल ले गए, लेकिन डॉक्टरों ने कहा” इन्हें बचाना मुश्किल है, तब मिस्टर कपूर ने प्रियांश को  वीडियो कॉल करके अपनी मम्मी को दिखाया। मम्मी अपनी खाली आंखों से अपने बहू बेटे और अपनी पोती त्रिषा को देखती रही,

और आंखें मूंद ली। प्रियांश अंतिम समय में अपनी मां को मुखाग्नि देने का अवसर भी नहीं मिला। वह दो-तीन दिन बाद भारत आए। अपने पापा से मिले ।अब पापा अकेले हो गए पापा से कहा, “चलो हमारे साथ पर”” पापा” बोले “अभी नहीं”

अकेलेपन की जिंदगी बहुत कठिन होती है। मिस्टर कपूर को अकेला घर खाने को दौड़ता है। खाना बनाने वाली आई खाना बनाकर रख जाती है, पर सिर्फ खाना खाना जीवन नहीं है, उस खाने को खिलाने वाले मनुहार करने वाले प्यार भरे हाथ चाहिए। जीवन में किसी का साथ चाहिए ,लेकिन सभी को साथ मिलना आसान भी नहीं होता ।

इस बीच वनिता की प्यारी दादी भी दुनिया छोड़ कर चली गई, और वनिता ने उनके दर्शन भी वीडियो कॉल पर ही किए। अभी कोरोना की दूसरी लहर में विनीता के प्यारे पापा को कोरोना हो गया, उसकी सांसे अटक गई ,वह मिलना चाहती थी, अपने पापा से बात करना चाहती थी, पर वही वीडियो पर, पास में रहकर जिस एहसास को पाना चाहती थी,

वह नहीं कर पाई । ईश्वर को धन्यवाद पापा अच्छे हो गए। प्रियांशु और  वनिता ने घर खरीद लिया ,उस की सजावट कर ली और वह वीडियो कॉल पर अपने पापा जी और अपने मायके वालों से बात कर लेती है ।


इन दिनों वनिता का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं है  बच्चों को भी वहां पर अपने जीवन में परेशानी आती है, ठंडा मौसम ,सर्द हवाएं और खान पान इन सब में अपने आप को एडजस्ट करना कठिन होता है ,और उनको खुद को ही पार पाना होता है ।माता-पिता घर बैठे उनके बारे में सोचते रहते हैं, चिंता करते रहते हैं, पर असल में कुछ नहीं कर पाते।बातें तो हो जाती है ,पर पास होने का सुखद एहसास कभी नहीं हो पाता ।

मिस्टर कपूर को कभी-कभी लगता है ,मेरा जीवन व्यर्थ है, घर उन्हें शमशान जैसा लगता है। जीवन जीने में जरा भी रास नहीं आ रहा था ।कभी-कभी तो लगता है, जीवन को खत्म कर लूं, एक बार वैसा सोच ही रहे थे

लेकिन एक अनजानी शक्ति ने उन्हें ऐसा करने से रोका, और उस व्यक्ति ने उन्हें कहा” जीवन  भगवान का दिया हुआ अमूल्य उपहार है ,और हमारे इस जीवन से किसी के जीवन में काम आ सके, यही हमारे जीवन की सार्थकता है”।

मिस्टर कपूर अपने घर से बाजार की ओर जा रहे थे, वह पैदल ही जा रहे थे, तभी रास्ते में एक बालक असावधानीवश गाड़ी के सामने आ गया ,और मिस्टर कपूर ने जल्दी से दौड़कर उस बच्चे को बचाया। मिस्टर कपूर को थोड़ी चोट भी आ गई,

उन्हें अस्पताल ले गए और बच्चे के माता पिता मिस्टर कपूर के प्रति बहुत ही कृतज्ञ हो गए । उन्होंने कहा” आज आप के कारण हमारे बच्चे की जान बच गई “।

उन्होंने ठीक होने के बाद उन्हें घर पर बुलाया ,प्यार से खाना खिलाया और उनके बारे में पूछा। मिस्टर कपूर ने कहा” मुझे मेरे जीवन से सब खुशियां मिली लेकिन इन दिनों मुझे लगता है, मेरी खुशियां कागज का फूल है, जिसे सिर्फ देखा जा सकता है, पर खुशबू नहीं आती”

तब उस बच्चे के माता-पिता ने कहा “आप ऐसा क्यों कह रहे हैं? आपने तो हमारे बच्चे का जीवन बचाया, आप का जीवन हमारे लिए कागज के फूल नहीं, महकते हुए गुलाब के फूल है, जिसकी खुशबू हमारे जीवन में सदैव महकती रहेगी”।

मिस्टर कपूर की आंखों में खुशी के आंसू छलछला पड़े।  उन्हें अपना जीवन कागज के फूल के समान नहीं, गुलाब के फूल के समान लग रहा था।

सुधा जैन

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!