‘ ओह … माँ, आप भी ना !
न जाने किस जमाने की बातें कर रही हैं ?
कहाँ मैं इतनी पढ़ी-लिखी ,होशियार, सीनियर बैंक प्रबंधक और कहाँ वह साधारण बी .ए पास प्राइवेट स्कूल का टीचर ‘सुशांत’ कहीं से भी कोई बराबरी दिखती है हम दोनों में ?
वो तो आपके कहने में आकर मैंने उसके साथ शादी के लिए हाँ कर दी थी।
वरना कहाँ वो और कहाँ मैं ?
और अब आप उससे बच्चे पैदा करने को कह रही हैं।
कभी नहीं!
‘ अब मैं , इस बावत तो सोच भी नहीं सकती। थोड़ा सोचो तो जब मैं बैंक चली जाऊंगी तो मेरे पीछे से उस बच्चे की देखभाल कौन करेगा ? ‘
‘ वही निखट्टू ना !
हुंह … अव्वल तो कुछ करेगा नहीं और अगर कहीं उसने बच्चे की देखभाल के नाम पर गाँव से अपनी माँ को बुला लिया तो ?
सारा मामला ही उल्टा-सीधा हो कर रह जाएगा।
अब आप मुझसे नाती-पोते की आस रखना छोड़ ही दीजिए।
फिर मुझे तो सुशांत के कार्बनकॉपी की बात सोच कर ही उलझन होती है ‘
सुमन की माँ आराधना उसकी इन बातों से अप्रतिभ हो गईं …।
‘ इन बातों के मतलब ?
तुम और सुशांत सार्वजनिक रूप से पति-पत्नी रहते हुए भी एक दूसरे के साथ … नहीं होते ?
‘ हाँ ऐसा ही कुछ है …’
जबाव में सुमन को सहमती में सिर हिलाते देख कर वे फूट पड़ी।
‘ बस करो सुमन, चुप करो … यह खुद के उपर इतना अभिमान भी ठीक नहीं ‘
‘ आपका मतलब क्या है माँ ?
कह तो दिया एक बार कि कितनी दफा जो उपर से दिखता है वैसा होता नहीं है। ‘
आराधना ने अपने कानों पर हाथ रख लिए …
‘ उफ्फ … सुमन ऐसा नहीं बोलते हैं। इतना अहंकार तुम्हें पतन के गर्त में ले जाएगा।
यों तो सुमन बचपन से ही अहंकारी है। अपने पिता के अत्यधिक लाड़-प्यार से वह थोड़ी जिद्दी और शोख हो गयी है। उस पर से सुशांत के साथ हुए बेमेल विवाह ने उसे और भी रूखा बना दिया है।
लेकिन आराधना ने उसे हमेशा ही सही राह दिखाने की कोशिश की है।
सुमन और सुशांत की माँ के बीच में न जाने ऐसा कौन सा साँप और नेवले सा बैर है ?
शादी के बाद से ही जो यह बैर चढ़ा तो बस चढ़ता ही चला गया है।
सुमन को अपनी उच्च शिक्षा और नौकरी का बहुत गुमान है।
मध्यमवर्गीय परिवार के लड़के सुशांत का रिश्ता जब उसके लिए आया था।
उसने तो ना ही कर दी थी। लेकिन वो कहते हैं ना जोड़ियां आसमान से बनकर आती है।
बहरहाल …
दिवाली आने वाली है। इस अवसर पर सुशांत की माँ के आने की खबर क्या आई, मानो क़यामत आ गई।
सुमन का मूड बिगड़ा हुआ है। जिसे समझ कर वह चुपचाप कंप्यूटर में सिर धंसा कर बैठा हुआ था।
सुशांत की माँ को आने से वह मना तो नहीं कर सकती है।
इस समय सुशांत सुमन की ओर कातर निगाहों देख रहा है, मानों कहना चाह रहा हो…
‘ प्लीज , जब मुझे झेल रही हो तो मेरी माँ को भी झेल लेना , कुछ दिनो की ही बात है। मेरे लिए ऐडजस्ट कर लो ‘
मजबूर हो कर सुमन ने एक हफ्ते की छुट्टी ले ली है।
अगले दिन सुबह ही ,
घर के सामने गाड़ी आ कर रुकी। सुमन ने दरवाजा खोला और बेमन से एक कार्पोरेट वाली मुस्कान परोस दी।
फिर झुक कर पैर छुए तो सासुमाँ ने —
‘ दूधो नहाओ पूतो फलों वाले ‘ वाले आशीर्वचन दे डाले ।
जिसे सुन कर सुमन और सुशांत ने सिर पकड़ लिए…
सुमन भला कब चुप रहने वाली है। पति की तरफ इशारा करती हुई उसने जबरदस्त शाट लगा दिया,
‘माँजी, ये क्या ?
एक आपका ये लाड़ला सुशांत ही काफी है ‘
सासुमाँ भी कहाँ जुवाँ घर में छोड़ कर आई हैं…
‘हाँ बेटा एक तुम्हारे ही नौकरी के ये सब चोंचले हैं।
जैसे पूरी दुनिया में और तो कोई नौकरी ही नहीं कर रहा है ‘
सुमन निरुत्तर हो गई।
सुशांत भौचक्का सा कभी अपनी माँ की ओर देख रहा है तो कभी सुमन की बातें सुन रहा है।
इस तरह से आजकल उनके यहाँ दिन होता है और रातें कटती है। ना तो सुमन के अहंकार में कमी आती है और ना ही सासुमाँ दबने को तैयार हैं।
हर वक्त युद्ध की संभावना बनी रहती है।
एक तरफ सुमन को ऑफिस नहीं जा पाने की फ्रस्ट्रेशन अलग से थी। उसपर सुशांत की अनुपस्थिति में सासुमाँ बच्चे नहीं होने देने का सारा ठीकरा उसके माथे ही फोड़ती हुई एक से एक कसीदे पढ़तीं।
मानों सुमन के सब्र का इम्तिहान ले रही हों।
वैसे वे बात तो सही ही करती हैं। शादी के बाद से सुमन ने अब तक सुशांत को अपने पास फटकने नहीं दिया है।
वह सुशांत की शक्ल से ही परहेज किया करती है।
इसलिए सासुमाँ की बातें उसे अन्दर तक चुभ जाती है।
वह दिल थाम कर रह जाती। अथाह गुस्सा आने पर भी कुछ बोल नहीं पाती है।
उसकी अब तक की सारी हेंकरी सासुमाँ की दबंगता के आगे फुस्स हो कर रह जाती।
उधर सुशांत अपनी माँ के रहते हुए उसकी कोई हेल्प नहीं कर पाता है।
वह सारे दिन किचेन में लगी रहती है।
उसे रह-रह कर अपनी माँ की याद आ जाती है। वो कहती हैं,
‘ यह तेरे मिथ्या अहंकार के फलस्वरूप ही सुशांत तेरे सामने दबा हुआ और चुप-चुप सा रहता है।
नहीं तो अगर वह ‘सम्पूर्ण पुरुष’ जबरदस्ती पर उतर जाता तब तुम क्या करती ? ‘
लेकिन बेटा , उसके सब्र और उसकी सच्चाई के इम्तेहान मत लो ‘
‘ ये सब आपकी फालतू की बातें हैं माँ ‘
ऐसा बोल कर वह अपनी माँ आराधना को सदा ही चुप कराती आई है।
खैर दिन बीतने के लिए होते हैं बीत रहे हैं …
आखिरकार कुछ दिनों बाद सासुमाँ अपने गाँव लौट गईं।
तो सुमन बिस्तर पर गिर गई।
उसकी तबीयत कुछ नासाज लग रही थी। दिन भर बिना कुछ खाए-पीए ही सोने से कमजोरी सी महसूस हो रही थी।
फिर भी वो उठ कर बाथरूम में नहाने चली गई।
यह सोच कर कि शायद फ्रेश होने पर अच्छा लगेगा।
जब बहुत देर तक वह बाथरूम से नहीं निकली तब सुशांत ने दरवाजा बजाया,
‘सुमन’
सुशांत को कोई जबाव नहीं मिला।
‘सुमन, मुझे सुन रही हो ? जब उसे किसी तरह की हलचल नहीं सुनाई दी तो उसने धक्का दिया जिससे कुंडी टूट गई…
सुशांत ने देखा सुमन नीचे जमीन पर बेहोश पड़ी है।
सुशांत ने सुमन को गोद में उठा कर पलंग पर लिटा दिया और उसके तलवे को रगड़ने लगा।
फिर वह उसके पास बैठ कर कमजोरी और ठंड के मारे उसके नीले पड़ गये होठों को स्पर्श कर उसे गोल कर के सुमन के शरीर को गर्मी पहुँचाने के लिए अपनी साँस दे कर उसमें फूंकने लगा है। ऐसा लगातार करते रहने से काफी देर बाद उसे सुमन के शरीर में कुछ हलचल दिखी।
सुशांत बच्चे की तरह खुश हो गया है।
उसके दोनों गालो को सहलाते हुए उसने उसकी आंखोंं, गले सबको उन्मत चुंबन से भर कर आलिंगन में कस कर बाँध लिया।
सुमन की बेहोशी टूट चली है। वह भी कसमसाती हुई उसके सीने से चिपक कर शर्माती हुई बोली ,
‘अब हमें माँ जी के आशीर्वाद को फलने -फूलने देना ही चाहिए !
है ना सुशांत ?
सुशांत कुछ बोलने की स्थिति में है ही कहाँ ?
उन दोनों ने खुद को सिर से पाँव तक कंबल से ढ़क लिया है।
एक ही धक्के से सुमन के अहंकार की बांधी हुई सारी दीवार ढ़ह गई है।
सुबह सुहानी भोर में सुमन दोनों के लिए बनाई हुई चाय को प्याले में ढा़लते हुए सोच रही है।
माँ सच कहती थी,
‘अहंकार को खत्म कर के ही तुम सम्पूर्ण हो पाओगी।
आज वह खुद कितनी उत्फुल्ल और उत्साहित हो कर सोच रही है…
‘ औरत तो उस बैंक की तरह है जहाँ उसका पूरा परिवार अपना सारा गुस्सा , सारी चिंताए और अवसाद जमा करता है और वह पूरी उम्र उसे सीमेंट की तरह जोड़ती जाती है ‘ ।
#अहंकार
सीमा वर्मा /नोएडा