जूही – डॉ पारुल अग्रवाल

आज अविनाश आखों के बहुत ही सफल डॉक्टर बन चुका है, देश-विदेश में बहुत ही प्रसिद्ध है। बहुत सारे लोगों को उसने इस खूबसूरत दुनिया दिखाने में सफलता प्राप्त की है। आज वो अपने केबिन में थोड़ा आराम से बैठा ही क्योंकि आज मरीजों की संख्या काफी कम थी। इतने में उसे रिसेप्शन से कुछ आवाजें सुनाई दी। एक माता-पिता और एक बेटे के बीच कुछ विवादित वार्तालाप चल रहा था। 

शायद मां-बाप बेटे को आई डोनेशन का फॉर्म भरने के लिए मना कर रहे थे और बेटा था कि अपनी ही ज़िद पर अड़ा था। माता-पिता का कहना था कि आंखों के दान से अगले जन्म में अंधा ही पैदा होते हैं और बेटा कुछ भी सुनने को तैयार नहीं था।उनकी बातें जब डॉक्टर अविनाश के कानों में पड़ी तो उन्हें अपनी गुजरी हुई जिंदगी की कुछ बातें याद आ गई।

साथ ही याद आ गई जूही जो अपने नाम के अनुसार  सारे वातावरण को खुशनुमा बना देती थी,जिससे उनका ऐसा दिल का रिश्ता बना जो जीवन भर के लिए अनमोल हो गया। बीते हुई जिंदगी के पल एक चलचित्र की भांति डॉक्टर अविनाश की आंखों के सामने आ गए। असल में बात शुरू होती है जब अविनाश अपनी किशोरावस्था और युवावस्था की संधि पर खड़े थे तब उनके पापा की ट्रांसफर वाली नौकरी थी। इस बार उनके पापा का ट्रांसफर कानपुर शहर में हुआ था। 

जिस जगह उन्होंने रहने के लिए घर लिया था, वहां के लोग बहुत मिलनसार थे। हमेशा एक दूसरे की मदद के लिए तैयार रहते थे।पड़ोस में रहने वाली मिश्रा आंटी और अंकल तो और भी अच्छे थे। उनकी बेटी थी जूही जो अविनाश से 2 साल छोटी थी। जूही बहुत ही हंसमुख और अपने नाम की तरह हर जगह खुशबू बिखरने वाली लड़की थी। वो जब भी समय मिलता,अविनाश के घर आ धमकती। 

वो अविनाश की मम्मी से बहुत बात करती साथ साथ उनकी काफी मदद भी कर देती। पर जब भी जूही अविनाश से बात करने की कोशिश करती वो उसके साथ बहुत रूखा व्यवहार करता। जूही को कुछ भी समझ नहीं आता। अब थोड़े दिन के बाद होली आने वाली थी। जूही सुबह से ही अपनी टोली के साथ खूब मस्ती करती हुई घूम रही थी। तभी उसे याद आया कि अविनाश के साथ तो वो होली खेली ही नहीं, मन ही मन उसने सोचा आज तो उस अकडू को ऐसा रंग लगाऊंगी कि उसका सारा रूखापन दूर हो जाएगा। 


ये सोचते हुए वो अविनाश के घर आती है और पीछे से अविनाश के दोनों गालों पर रंग लगा देती है। अविनाश बहुत तेज़ चिल्लाता है और उसको बहुत गुस्सा करते हुए अपने कमरे से निकाल देता है। जूही की आंखों से आसूं बहने लगते हैं। अविनाश के चिल्लाने की आवाज़ सुनकर,उसकी मम्मी भी आ जाती हैं वो जूही की आंखों में आसूं देखकर सारी बात समझ जाती हैं। अब वो जूही को पानी देकर प्यार से अपने पास बैठाती हैं और बताती हैं अविनाश के इस रूखे व्यवहार और होली के रंग से इस तरह चिल्लाने का कारण। 

बचपन में अविनाश जब छोटा था तब वो लोग जिस मोहल्ले में रहते थे, वहां भी सब बहुत प्यार से मिलजुल कर रहते थे। ऐसे में होली वाले त्यौहार के दिन सभी अपनी मस्ती में खेल रहे थे पर पता नहीं कहां से गुंडे से दिखने वाले लड़कों की एक टोली आ गई। जो भी उनके सामने आया वो उसको तंग करने लगे। अविनाश भी उनकी पकड़ में आ गया क्योंकि वो बहुत छोटा था।उन्होंने उसको पेंट के ड्रम में गिरा दिया।

 वो बहुत चिल्ला रहा था पर वे लोग उसका मज़ाक बना रहे थे, हम सब लोग भी दौड़े-दौड़े अविनाश के पास पहुंचे लेकिन तब तक बहुत देर हो गई थी, पेंट अविनाश की आंखों में चला गया था।अविनाश दर्द से तड़फ रहा था, हम अविनाश को लेकर तुरंत डॉक्टर के पास भागे पर एक तो होली की वजह से कोई डॉक्टर नहीं मिला। किसी तरह से बड़ी मुश्किल से एक डॉक्टर मिले जिन्होंने चेक किया और कहा कि शायद बच्चे के आंखों की रोशनी चली गई है पर अभी कुछ नहीं कहा जा सकता।

 उन्होंने उसके दर्द करने की दवाई दी और किसी आखों वाले डॉक्टर के पास जाने को कहा। हम लोग मन ही मन दुआ करते रहे पर आंखों के डॉक्टर ने भी कहा कि अब अविनाश देख नहीं पायेगा। उस दिन से अविनाश के साथ-साथ हम लोगों की भी दुनिया रंगहीन हो गई। अब जूही की अविनाश के रूखे व्यवहार और उसकी आखों में हर समय काला चश्मा लगे होने की वजह समझ आ गई।

 अब जूही अविनाश के पास गई और उससे माफी मांगी। अब अगले दिन से जूही अपने स्कूल और बाकी काम निपटाकर रोज अविनाश से मिलने उसके घर जाती और उसके साथ समय बिताती। अब अविनाश और जूही बहुत अच्छे दोस्त बन गए थे। अविनाश भी बहुत खुश रहने लगा था।

 जूही उसको बहुत नई-नई किताबें पढ़कर बताती। ऐसे में ही सावन का मौसम आया। जूही सावन के मौसम में बहुत तरह-तरह के पौधे लगाती थी। जूही आज जब अविनाश से मिलने गई तब अपने नाम का मतलब जूही का पौधा लेकर गई और अविनाश के बगीचे में उसको लगाते हुए बोली कि ये पौधा तुम्हें मेरी हमेशा याद दिलाता रहेगा। मैं रहूं न रहूं पर ये सावन में बारिश की बूंदों में जरूर महकेगा। 


अविनाश बस मुस्करा कर रह गया क्योंकि वो देख तो नहीं सकता था पर बारिश की बूंदें और जूही के पौधे की महक जरूर अनुभव कर सकता था। अचानक से कई दिनों तक जूही अविनाश से मिलने नहीं जा पाई, जब भी अविनाश अपनी मम्मी से पूछता तो वो कहती कि जूही अपनी नानी के गई है। अविनाश का बिल्कुल मन नहीं लग रहा था, कहीं ना कही उसे जूही की आदत हो गई था।

 एक दिन अविनाश के पापा ने आकर अविनाश को बोला उसके लिए डोनर मिल गया है। एक-दो दिन में उसको डॉक्टर के पास ले जाया जाएगा। अविनाश इस खबर को जूही से बताना चाहता था पर मम्मी ने ये कहकर कि जूही को आकर स्प्राइज देना, उसकी नानी के यहां फोन के सिग्नल भी नहीं आते उसको रोक दिया।खैर अविनाश को हॉस्पिटल में एडमिट किया और उसके आखें लग गई। 

अब वो इस दुनिया को पहले की तरह फिर से देख सकता था। उसे इंतजार था तो बस जूही का, उसके दिल की किसी कोने में वो बस गई थी।जब वो घर आया तो उसने अपनी मम्मी से जूही के बारे में पूछा अब उसकी मम्मी फूट-फूट कर रोने लगी। उन्होंने उसको बताया कि जूही को कैंसर था, उसकी आखिरी स्टेज थी। उसको पता था कि वो ज्यादा दिन तक अब जिंदा नहीं रहेगी इसलिए उसने अपनी आंखें पहले ही अविनाश को डोनेट कर दी थी। अविनाश की तो जैसे दुनिया ही उजड़ गई थी। वो उसकी एकमात्र दोस्त और पहला प्यार थी। अब उसे जूही का अपने नाम का पौधा लगाना और ये कहना की मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगी का मतलब समझ आया। अविनाश दौड़ कर उस पौधे के पास गया, इत्तेफाक से अब भी सावन ही चल रहा था और जूही के पौधे पर कुछ फूल भी खिल आए थे। 

उस पौधे के पास खड़े होकर मन ही मन अविनाश ने कहा कि जूही में तुम्हारे सारे सपने पूरे करूंगा। तुम आंखों की डॉक्टर बनना चाहती थी, जिससे मेरे जैसे लोगों का इलाज़ कर सको। तुम्हारा ये सपना मैं पूरा करूंगा। साथ साथ मैं लोगों को आई डोनेशन के लिए भी प्रेरित करूंगा।

 आज भी अविनाश के घर और हॉस्पिटल में जूही के बहुत सारे पौधे थे। तभी नर्स ने आकर डॉक्टर अविनाश को उनकी ख्यालों की दुनिया से बाहर निकाल दिया। नर्स ने बताया कि उन्हें रिसेप्शन पर खड़े लड़के और उसके माता-पिता के बीच आई डोनेशन के होने वाले विवाद को बताया। डॉक्टर अविनाश चल दिए उन लोगों को समझाने और अपनी जूही की इच्छा पूरी करने। 

सच में दोस्तों कुछ रिश्तें इस कदर दिल से जुड़ जाते हैं कि वो हमारे मन और आत्मा को भी एक दूसरे के साथ बांध देते हैं।।

#दिल_का_रिश्ता

डॉ पारुल अग्रवाल,

नोएडा

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