जुगनू – मौसमी चन्द्रा

रात का घनघोर अँधेरा!दोनों तरफ के पेड़ आदमकद भूत दिख रहे थे।

रेलगाड़ी अपनी रफ्तार में थी।बोगी में सन्नाटा!सब गहरी नींद में पर जुगनू की आँखों से नींद गायब थी।

उसने मोबाइल निकालकर समय देखा..2बजकर 17मिनट!

छः घण्टे और!फिर वो सामने होगा अपनी दीदा के!

कभी सुना था,बड़ी बहन माँ समान होती है पर जुगनू खुद को बहुत ख़ुशनसीब मानता है क्योंकि वो ऐसा शख्स है जिसने इस कथ्य को जीया!

मिलने की तड़प में ये छः घण्टे भारी पड़ रहे थे।उसने मोबाइल की गैलरी खोली।

नौ साल पुरानी एक तस्वीर।उसके जन्मदिन की!

 दीदा प्यार से उसके माथे पर टीका लगा रही थी।जुगनू का चेहरा खुशी से दमक रहा था!

“आ रहा हूँ दीदा!तुम्हारे हाथ के हलुए का स्वाद अब तक जीभ पर है।मीठा-मीठा सा!जीभ फिराता हूँ तो लगता है मानो अभी-अभी लिया हो भर चम्मच!

बनाने के लिए तैयार रहना दीदा!”

जुगनू बुदबुदाया!

कितने साल बीत गए…2011 का जुलाई का महीना,..और..ये..2021..आं.. अ..दस्स साल्ल!

इतने साल यादों में ही रहा मेरा नाथनगर!कहाँ नासिक कहाँ नाथनगर!प्लस टू के बाद घर से क्या निकला ;अपनों से बिछड़ ही गया।सब छूट गए, बाबा,अम्मा और मेरी दीदा!

नौकरी लगी तो बाबा  और अम्मा को तो बड़ी मुश्किल से मनाकर ले गया अपने पास, पर दीदा!वो कैसे जाती!दो बच्चों, घर-पति और बुजुर्ग सास!जिम्मेदारियां पहले, बाद में भाई-बहन का प्यार!

नासिक में ही साथ काम करने वाली नीलांजना के साथ भविष्य के सपने देख डाले जुगनू ने,सीधे शादी पर मिला था दीदा से,वो भी केवल चार दिनों के लिए!

लौटते ही साल भर का फॉरेन टूर!

फिर अयान का जन्म,पति-पत्नी दोनों की नौकरी की व्यस्तता, घर..कॅरियर..गृहस्थी..ये सब में ऐसा उलझा, जा ही नहीं पाया।यादों में ही रह गया नाथनगर और उसकी दीदा।

कितना दूर हो गया।हर जन्मदिन पर दीदा के नाम की रोली को तलाशता रहा उसका माथा!पर वो सूना ही रहा!गड्ढे से पड़ गए थे माथे पर! छटपटा कर रह गया इन आठ सालों में!

पुरानी तस्वीरों से संतोष कर लेता और कैलेंडर पर छुट्टियों की तारीखें देखता पर …मेट्रो सिटीज इंसान को साबुत निगलना जानती है।शहर की चौंधियाती रौशनी में इंसान के भीतर का अंधेरा कोई नहीं देखता।यंत्रचालित सा जीवन चलता रहता है और संवेदनाएं मृतप्राय!

 लेकिन इस बार उसने ठान लिया था चाहे कुछ भी हो जाए,वो जाएगा ही!अपने भांजों से भी मिलेगा।गर्मी की छुट्टियां शुरू हो गयी तो वे शैतान घर में ही रहेंगे।खूब मस्ती चलेगी।पहले की तरह गाना बजाना,उछलकूद और शाम को चीकू भैया के गरमागरम जलेबियां!कैसे पीछे पड़े रहते थे वे दोनों शैतान!रोज बिना जलेबियों के मानते नहीं थे।खाली पॉकेट वाला जुगनू! वो तो शुक्र है दीदा का जो चुपके से दस-बीस पकड़ा देती।



कितना याद रखे जुगनू..और क्या-क्या!बचपन की स्मृतियों में माँ के लाड़ के साथ-साथ दीदा का स्नेह और प्यार भरी चपत भी शामिल है।स्कूल के लिए तैयार करना,उसके पसन्द का नाश्ता,उसका होमवर्क सब दीदा ही तो करती थी।बस उसका सख्त रूप तब होता जब वो स्कूल जाने में आनाकानी करता।पूरी मास्टरनी बन जाती।जुगनू की एक न चलती।

दस साल का अंतर था उम्र में लेकिन पूरी माँ थी जुगनू की दीदा।माँ की मार पर दीदा की डांट भारी थी।

उसके स्नेह की छांव में बड़ा हुआ।कभी उसके बिना एक दिन भी नहीं रहने वाले जुगनू को क्या पता था कि एक दिन उसके और दीदा के बीच मीलों की दूरियां आ जायेगी।

सारी दूरियां पाटकर मैं आ रहा हूँ दीदा!सोचते-सोचते कब नींद का झोंका आया और उसे अपने अंक में ले लिया जुगनू को पता  न चला।

“उठो जुगनू स्टेशन आ रहा।”

नीलांजना के उठाने पर जुगनू की नींद खुली।

“पहले क्यों नही उठाया? कौन सा स्टेशन आ गया?”

जुगनू चौंककर मींचती आँखों से खिड़की के बाहर देखने लगा।

“परेशान मत हो 10 मिनट हैं आने में।तब तक तुम सामान अरेंज करो भी,मैं भी अयान को फ्रेश करती हूं,थक गया है बेचारा।”

“थकेगा नहीं! तीन दिनों का सफर!फ्लाइट से कब के पहुँच गए होते पर तुम्हारा एवियोफोबिया!उड़ान का डर!क्या कर सकते हैं ऐसे में!”

नीलांजना की आग्नेय दृष्टि न झेलनी पड़े इसीलिए ये बोलकर जुगनू जल्दी से बाथरूम की तरफ निकल लिया।

उतरते ही जीजू का फोन आया-



 “कहां पहुँचे सालेसाब?”

“आ गया जीजू!पर आप परेशान मत हो ,हमलोग कैब ले लेंगे!”-जुगनू ने कहा।

“ठीक है,नए घर का लोकेशन सेंड कर दिया है, दिक्कत होगी तो फोन कर लेना।”

“अरे आप परेशान न हो जीजू,मेरा ही शहर है,आता हूँ फिर घुमाता हूँ आपको”!जुगनू हँसकर बोला।

“हूँ.. “की आवाज़ के साथ फोन डिस्कनेक्ट हो गया था!

पैंतालीस मिनट  लगे घर पहुंचने में।रास्ते भर जुगनु यादों में बसा अपना नाथनगर ढूंढता रहा,पर आधुनिकरण की होड़ ने उन्हें धुंधला कर दिया।खुले खेत,छोटे पोखर,सड़क किनारे लगे ऊंचे पेड़ सबको शहरीकरण के दानव ने हड़प लिया था।

 दीदा ने किराए के मकान को छोड़कर दो कमरों का खूबसूरत फ्लैट ले लिया था।घर में घुसते ही दोनों भांजों ने उसके चरण छुए।जुगनू तृप्त हो गया।

“अरे बस करो बस करो!इतना लम्बा-लम्बा हो गया दोनों,झुकेगा तो कमर दुखेगी!”

-बोलते हुए जुगनू की आँखें भर आयी जिसे उसने अपने होठों को जबरदस्ती फैलाकर रोक लिया।

तभी सामने से आती दिखी उसकी दीदा!जुगनू के पैर जम गए।जबरदस्ती रोके आँसुओं ने मुस्कुराहट की बांध को तोड़ दिया।गले मिलकर रो पड़ा जुगनू!बच्चों की तरह!

“ये लो जुगनू मामा तो लड़की की तरह रोने लगे”

-बड़े भांजे के बोलते ही सब हंसने लगे।

“करेगा रे बदमाशी!कितना याद आता था सबका, रोना तो आएगा ही।” जुगनू आँसू पोंछते हुए बोला।

आठ साल पहले की दीदा और अबकी!उम्र के निशान दीदा के चेहरे पर दिख रहे थे।लेकिन वो जुगनू की दीदा थी।दुनिया की सबसे अच्छी बहन!

मिलना-मिलाना हो गया,फिर वो लोग नहा-धोकर खाने के टेबल पर आए!

पूरा टेबल सजा था,खाने की तरह तरह की चीज़ों से!पर जुगनू की नजरें कुछ तलाश रही थी।



हलवा!नहीं था।कोई बात नहीं इतनी चीजें बनानी थी थक गई होगी दीदा!

खा-पीकर सब बिस्तर पर पसर गए।बातों का सिलसिला शुरू!कुछ जानी-सुनी जो फोन पर भी हो चुकी थी,कुछ नया ताज़ा!दीदा अपने दोनों बच्चों अमन-आकाश की हर उपलब्धियों का विस्तार से वर्णन करने में लगी थी।

“जानते हो, पिछले सेमेस्टर अमन टॉप आया था!इसके जितने साथी थे सब इससे पीछे।वो कुणाल याद है तुम्हें.. जो इसके साथ स्कूल से था,वो तो फेल हो गया।उसके पापा मिले थे मुझसे कहने लगे ,अमन को आपने बहुत अच्छे संस्कार दिए हैं और ये आकाश तो पूछो मत,इसका नाम तो मोस्ट एक्टिव स्टूडेंट में लिखा हुआ है।”

जुगनू स्नेह से कभी अपने भांजों को देखता,कभी दीदा को।

“हाँ दीदा,तुम्हारी और जीजू की परवरिश का ही फल है सब।वैसे तुम्हारा भतीजा भी अपने भाइयों पर ही गया है, खूब मन लगता है इसे भी पढ़ने में और पता है डांस भी करता..”

अभी जुगनू अपने बेटे अयान की बात पूरी करता की दीदा बोल पड़ी –

“हाँ तुम पोस्ट करते थे फेसबुक पर तो देखी है अयान की  वीडियो…पर पढ़ाई ज्यादा जरूरी है, उसपर ध्यान दो”।

 खैर दिन इधर-उधर की बातों में कट गया।

शाम को जुगनू को बाल बनाते देख नीलांजना ने पूछा-

“निकल रहे हो क्या कही?”

“हां नीलू कई साल हो गए चीकू भैया की जलेबियां उड़ाए आज स्वाद लूं जरा।तुम्हारे लिए लेता आऊंगा।”

जुगनू के चेहरे पर जलेबी की मिठास साफ दिख रही थी।

नीलांजना हंसती हुई बोली-

“जाओ खुद दमभर खा लेना।इतने साल सुनती रही तुम्हारी जलेबियों के किस्से!”

जुगनू ने उसके गाल थपथपाए और कमरे से निकल गया।

बाहर कोई दिखा नहीं।

दीदा रसोई में थी।

“दोनों लम्पट नहीं दिख रहा।कहाँ गया दीदा?”

“उठ गए तुम! उसके दोस्त आये हैं तो निकला है कहीं। जब भी आता है मंडली जमती है।जानते हो न 101 दोस्त हैं इसके।जमावड़ा लगता है रोज शाम!”

“ओ…ओ”

 जुगनू अकेला ही निकल गया।

पर सड़कें, रास्ते सब अनजाने थे।इनमें से कौन सा रास्ता चीकू भैया की दुकान की तरफ जाएगा उसे पता नहीं था।



कुछ देर टहलकर वो वापस आ गया।

रात के खाने पर सब इकट्ठा हुए।कई तरह की चीजें थी।पर हलवा..!शायद दीदा काम की अधिकता में भूल गयी होगी।

“अरे तुम दोनों कहाँ चला गया था?मैं ढूंढ रहा था।”

जुगनू ने पूछा।

“मामा वो शेखर और चंदन आ गये था,मेरे दोस्त!वैसे कुछ काम था क्या आपको?”

अमन ने कौर उठाते हुए पूछा।

“काम नहीं, चीकू भैया के दुकान जाता जरा,सालों हो गए उनकी जलेबियां खाये!दुकान..तो है न उनकी?”

“चीकू.. भैया..! ओ..ओ वो पुराने घर के पास वाली दुकान!

अमन ने सोचते हुए कहा-“पता नहीं..होगी शायद,वे तो अब मोमोज,स्प्रिंग रोल ये सब बनाने लगे थे, आजकल ज्यादा यहीं सब खोजते हैं लोग,जलेबियां बनाते हैं कि नहीं ये भी नहीं पता!अब उधर कम जाना होता है मामा…अरे वाह मम्मी!दाल-कचौड़ी!मेरी फेवरेट!वाह! आज तो खाने का आनंद आ जायेगा!”

अमन कचौरियों पर टूट पड़ा।

सब हँसने लगे।

सोने का समय आया।

2 Bhk फ्लैट कहने को 1100 sq ft पर सोने की जगह ले दे कर वहीं।आकाश-अमन अपने कमरे में चले गए।तय हुआ जुगनू जीजू के साथ जमीन पर लगे बिस्तर पर सोएगा और नीलांजना बेड पर दीदा के साथ।पर नन्हे अयान को बिना पापा के नींद नहीं आती।तो जुगनू, नीलांजना और अयान का बिस्तर हॉल के जमीन पर लग गया।

“देख न जुगनू!मैं ही आ जाती हॉल में,पर अब नहीं सो पाती जमीन पर।कमर पकड़ लेती है मेरी।”

दीदा के कहते ही जुगनू बोल पड़ा-

“तो क्या हो गया दीदा!यहां कोई दिक्कत थोड़े न हो रही!हमलोग ठीक है आप सो जाओ जाकर।”

2 से 3 दिन बीतते-बीतते जुगनू का मन उचाट सा होने लगा।

सब कुछ होकर भी कुछ मिसिंग सा लग रहा था।लगता जैसे कोई सिरा छूट गया है।जिस हक जिस अधिकार से वो पहले रहता था दीदा के पास वो…उसे ऐसा क्यों लग रहा था जैसे की वो कोई मेहमान हो!उसे याद है कैसे वो बेधड़क जीजू के कपड़े जूते पहन लिया करता था।इस बार पैकिंग करने समय टोका भी था नीलांजना ने –

“जुगनू!इतने कम कपड़े क्यों रख रहे तुम?”

“वहां क्या करूंगा ज्यादा कपडों का!पहले तो सिर्फ जीजू के पहनता था अब तो दोनों बच्चे भी इतने बड़े हो गए उनके भी पहन सकता हूँ।तुम अपने कपड़े अच्छे से रख लो।मेरी चिंता मत करो”!

जुगनू हँसकर बोला।

पर आज जब उसने नहाकर जैसे ही अलमारी खोली दीदा ने टोक दिया-

“कल वाली ही टी-शर्ट पहन लो न!साफ ही तो हैं!”

“वो…!वो तो.. धो दिया नीलांजना ने दीदा!”

जुगनू झेंपकर बोला।

“तो ऐसा करो..वो जो टी-शर्ट तुम लाये थे अमन के लिए,वहीं पहन लो न।उसे ऐसे भी बड़े नखरे हैं कपड़ों में।ये ब्रांड वो ब्रांड!निकाल दूँ वहीं?”



“नहीं दीदा…मैं..बैग से निकाल लेता हूँ दूसरा कुछ।”

 बोलते हुए कुछ टूट गया जुगनू के भीतर!उसने अपना सूटकेस खोला और कपड़े तलाशने लगा।आँखें डबडबा गयी।दरकने की आवाज़ तो नहीं आयी पर दरका तो था कुछ!

रिश्ते तल्ख़ हो चुके थे बची थी तो केवल औपचारिकताएं!

जुगनू ने मीलों की दूरी तो नाप ली पर  रिश्तों के बीच आयी इन दूरियों को कैसे नापे! 

उसे लग रहा था मानो वो एक रेगिस्तान में खड़ा है जहां  उगे हो खामोशी के नागफनी जिन्होंने उसके रिश्तों को धूल बना दिया था और तार-तार कर दिया था भावनाओं के हर घागे को।

रात को जब सब सो रहे थे।जुगनू वापसी की टिकट बुक करने में लगा था।

“दीदा!हमलोग आज रात निकल रहे हैं।टिकट बुक कर ली है!”

सुबह नाश्ते पर जुगनू ने जैसे ही ये बताया सब चौंक गए।

“अरे!आज की!पर क्यों?तुमने तो 1 हफ्ते बाद कि टिकट ली थी न?”

परांठे देती दीदा के हाथ रुक गए।

“हां.. पर जरूरी काम आ गया है।।बॉस ने छुट्टी कैंसल कर दी तो जाना पड़ेगा।”

बोलते हुए जुगनू की नजरें नीची थी।दीदा एकटक उसके चेहरे पर आए भाव पढ़ रही थी।

“ओह!फिर कब आएंगे इधर?”

अमन के पूछने पर जुगनू ने हौले से कहा-“पता नहीं.. और परांठे का टुकड़ा मुंह में डाल लिया।कौर कुछ ज्यादा ही बड़ा लग रहा था।निगलने में आँखों में पानी भर आया।किसी तरह  गटककर उसने नाश्ता खत्म किया और छत पर आ गया।

थोड़ी देर हुए होंगे की तभी नथुनों में चिर-परिचित महक आयी।

“अरे ये तो..”

पलटा तो देखा दीदा हाथ में हलुवे की प्लेट लेकर खड़ी थी।

कोर नम थे।

मतलब तुम अब इतने बड़े हो गए की अपनी दीदा से

मन की बात भी नहीं बोल सकते?एक बार भी कह नहीं सकते थे की दीदा चलो बनाओ हलुआ!मुझे खाना है।याद करो मेरे डाँटने के बाद भी कैसे जबरदस्ती अपने जीजू के कपड़े पहन लेते थे तो अब क्या हुआ?कहाँ गया वो हक?तुम्हारी दीदा की भी उम्र हो गयी है याद नहीं रहती… भूल जाती हूँ ,तो बोलो न वैसे..जैसे पहले बोलते थे, जिद करते थे।मेरी बात दिल पर लोगे?इतने बड़े हो गए?आज अगर नीलांजना मुझे नहीं बताती की क्या चल रहा तुम्हारे भीतर तो तुम तो चले जाते बोझ लेकर और सोचो मेरा क्या होता जब मुझे ये सब पता चलता।माफ कर दे जुगनू अगर मेरी बात दिल पर लगी हो तो”

कहकर सुबक पड़ी दीदा।

जुगनू ने आगे बढ़कर अपनी दीदा को गले लगा लिया।आँसुओं में  गलतफहमियां धुल रही थी…हलुए की मीठी महक ने रिश्ते को फिर से मीठा कर दिया!

मौसमी चन्द्रा

मौलिक रचना

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