जो जस करहिं तस फल चाखा – प्रीति आनंद

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“श्रद्धा! कहाँ व्यस्त हो? कब से बोला हुआ है आँगन की धुलाई कर दो, मुझे पूजा करनी है?”

“जी माँजी, प्रतीक का टिफ़िन पैक कर रही थी, उन्हें आज जल्दी निकलना है।”

“तो जल्दी उठना था न? मेरे काम में ही तेरी सारी कामचोरी निकलती है!”

प्रतीक दरवाज़े पर खड़ा टिफ़िन का इंतज़ार कर रहा था। उसने सुना सब पर बोला कुछ नहीं। उसे “जोरू का ग़ुलाम” का तमग़ा न दे दे माँ, इसलिए वह बीच में कुछ बोलता नहीं! वह मानता है कि उसे श्रद्धा का पक्ष लेना चाहिए पर वह या तो डरपोक है या फिर माँ की इतनी ज़्यादा इज़्ज़त करता है कि उनके सामने उसकी बोलती बंद हो जाती है!

पर उसकी भी एक मजबूरी है। बचपन में ही पापा के गुज़र जाने के बाद माँ ने ही उसका पालन-पोषण किया है। इसमें उन्हें अपने रिश्तेदारों की कोई मदद नहीं मिली। इस वजह से वह इतनी पज़ेसिव हो गई हैं कि अपने बेटे का वक्त, उसका प्यार किसी के भी साथ बाँटना नहीं चाहतीं। इसी वजह से वो श्रद्धा के साथ भी बुरा व्यवहार करती हैं। वह भी माँ से कुछ कह कर उन्हें दुःख नहीं देना चाहता।

पर इधर कुछ दिनों से माँ अधिक ही कठोर हो गई हैं। महंगाई का रोना रोकर उन्होंने कामवाली की छुट्टी कर दी थी। गैस ख़त्म होने पर उन्होंने नया सिलेंडर नहीं मँगवाया। लकड़ी के चूल्हे पर खाना पका-पका कर श्रद्धा का बुरा हाल था। उसके चेहरे पर प्रतीक को रोष दिखता था पर अभी तक उसने सासुमाँ के किसी भी आदेश की अवहेलना नहीं की थी। उसके अंदर ही अंदर सुलगता ग़ुस्सा कोई विकराल रूप न ले ले, उससे पहले उसे माँ से बात करनी होगी। अन्यथा घर की स्थिति किसी नर्क से कम न होगी।

“माँ, आप से कुछ बात करनी थी।”

“आ गया अपनी पत्नी की वकालत करने?” शायद उन्हें अपनी ज़्यादतियों का एहसास था।

“नहीं माँ, वकालत नहीं कर रहा, बस आप मेरी बात ध्यान से सुन लेना। श्रद्धा और आप का रिश्ता आपका निजी मामला है। मैंने आप दोनों  के बीच कभी कुछ नहीं बोला है न बोलूँगा। पर आज आप ताकतवर हैं इसलिए आपकी बहु आपके सभी आदेशों का पालन कर रही है….”

“आ गया जोरू का …..”

“बात पूरी नहीं हुई माँ। आप जानती हैं मैं आप दोनों के बीच के किसी भी मामले में बिलकुल हस्तक्षेप नहीं करता हूँ। पर एक दिन आप अशक्त व बीमार हो जाएँगी, रोज़मर्रा के काम भी मुश्किल लगेंगे। ऐसे में अगर श्रद्धा ने आपकी सेवा करने से मना कर दिया तो उस दिन भी मैं हस्तक्षेप नहीं कर पाऊँगा। आज आप जैसा व्यवहार उसके साथ करेंगी, वही निश्चित करेगा कि आपका बुढ़ापा कैसा गुजरेगा। अगर आप अपनी वृद्धावस्था को ख़ुशनुमा रखना चाहती हैं तो शायद आपको इस विषय पर सोचना चाहिए।” कहकर प्रतीक बाहर निकल गया।

अगली सुबह प्रतीक सुखद आश्चर्य से भर गया जब उसने आँगन में  कामवाली को बर्तन धोते देखा! माँ डाइनिंग टेबल पर बैठ कर मटर छील रही थीं। श्रद्धा इस अनहोनी से आश्चर्यचकित थी पर उसका चेहरा खिला-खिला लग रहा था।

स्वरचित

प्रीति आनंद

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