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जो बोया वही काटना है …. – प्रीति सक्सेना

“शीला दी.. कोई और दुखियारी आई है आज”   “कौन है कमला” ?

” देखा तो नहीं पर बहुत रो रही है देखिए, वो आ गई ” पलटकर ज्यों ही देखा.. सामने उनकी बहू मीता थी.. मीता उन्हें देखकर चौंक गई,  नजरें मिलीं और झुक गई, जहां बरसों पहले सास को पहुंचाया था.. आज वहीं खुद खड़ी है!! कुछ पल सन्नाटा छाया रहा आखिर शीला जी ने जैसे ही मीता के कंधे पर दिलासा का हाथ रखा, वो भरभराकर रो उठी, शीला जी ने उसका कंधा थपथपाया और बिना कुछ कहे धीरे धीरे अपने कमरे की ओर चली गईं।

       मीता रोते हुए उन्हें जाते हुए देखती रही.. कहती भी क्या? एक सहायिका ने उसे उसके कमरे तक पहुंचा दिया। चारों तरफ देखा.. छोटा सा कमरा जिसमें दो पलंग पड़े हुए थे बिल्कुल साधारण… आखिर वृद्धाश्रम था कोई होटल तो नहीं।

    रुका हुआ आंसुओ का सैलाब दोबारा बह निकला, आख़िर करनी का फल आज़ मिल ही गया, कहते हैं न.. हमें अपने कर्मो का हिसाब इसी जन्म में चुकाना पड़ता है, सच साबित हो गया!!

      याद आया, ब्याह के बाद सासू मां ने पलकों पर बैठाया था पर सुनी सुनाई बातों और पति पर एकाधिकार की भावना के तहत सास को हमेशा प्रतिद्वंदी के रुप में देखा… जिस मां ने अकेले, वैधव्य को झेलते हुए अपने लाल को दुनिया जहां के सुख देकर पाला, उसकी हर ख्वाइश को पूरा करने की कोशिश की…. इंजीनियर बनाया, उसकी पसन्द से बहू को खुशी खुशी ब्याह के लाई… पर जैसे ही बेटा हुआ… सास उसे आंख की किरकिरी लगने लगी, सास की बोली हर बात ज़हर सी लगने लगी , नतीजा….. हर बात पर पलटवार, बहस तीखी बातें और ऐसा करके उसके दिल को बड़ी तसल्ली मिलती, मन ही मन  उन्हें घर से जीवन से ,बाहर निकालने के कुचक्र  रचने लगी।

    पति को भड़काने का एक भी प्रयास छोड़ती नहीं….. ताज़्जुब तो इस बात का..जो बेटा मां का मुख देखकर उठता सोता…. उसे भी मां में कमियां दिखने लगी, खुद बेटे का बाप बन गया और अपनी मां  की भावनाओं और उनके प्रेम त्याग और संघर्ष को एक झटके में भुला बैठा?



    आज सारा अतीत किसी फिल्म की रील की तरह मीता की आंखों के सामने से निकलती जा रही थी, कितनी बुरी हो गई थी वो ….. आखिर वो पति की मां ही तो थी, कितना ध्यान रखती थीं उसका गर्भावस्था के दौरान, उसकी पसन्द का चीज़ें बनाकर खिलाती थीं… रोहित के जन्म के समय भी कितना ध्यान रखा पर मैं उनके स्नेह को उनकी कमजोरी समझ हावी होती चली गई… उफ्फ सिर फटने को है… काश ये समझ मुझमें पहले आ जाती, पर अब पछताने से फायदा क्या, तीर तरकश से निकल चुका है अब पछतावे के सिवा कुछ नहीं!!

      कहते हैं इतिहास जरूर अपने को दोहराता है… जो किया है, वो जरूर सामने आना ही है,आज गुजरा ” वक्त ”  मेरे सामने आ ही गया और अट्टहास लगा रहा है , मैं शर्मिंदा हूं, सासू मां से छमा मांगना चाहती हूं, क्या वो मुझे माफ कर पाएंगी?

       रोहित ने अपने पापा के जाने के बाद किस बेदर्दी से मुझे धिक्कारा, मुझे बेइज्जत किया, विदेश जाने का कहकर मुझे यहां पटक गया, और चला गया,  कभी वापस न आने के लिए,मुड़कर मेरी तरफ़ देखा तक नहीं। और बहू…. उसके लिए मेरी कोई अहमियत नहीं, मेरी कोई इज्जत नहीं!

किससे शिकवा करूं और कैसी शिकायत करूं?आख़िर, अपनी करनी का फल ही तो भुगत रही हूं मैं।

    क़िस्मत ने मुझे एक मौका दिया है अपने पापों का प्रायश्चित करने का, मां से माफ़ी मांगने का, ये मौका मुझे गंवाना नहीं है, पैर पकड़कर माफ़ी मांग लूंगी उनसे, मेरे तानों से परेशान होकर मां बिना किसी को बताए चली गईं , बेटे ने पुलिस की सहायता लेनी चाही उसमें भी मैंने दांव पेंच खेलकर अपने मन की कर ली, एक गुनाह और दुख के साए में जी भी नहीं पाए पति और चले गए मुझे छोड़कर,



   शायद मैं इसी लायक थी तभी मुझे ये सज़ा मिली, काश मैं गुजरे ” वक्त” को वापस ला पाती तो सब कुछ ठीक कर देती काश…..

 

      मां के कमरे के सामने हूं, हिम्मत नहीं है अन्दर जाने की, धीरे से दरवाज़ा ठेलकर अन्दर आ गई हूं, मां पीठ करके बैठी हैं माला हाथ में है, मैं पीछे खड़ी अपने गुनाहों की माफ़ी मांग रही हूं, मां कुछ बोल नहीं रहीं, सामने आकर पैर पकड़ लिए, मां की माला सामने आकर गिरी, झटके से देखा उनकी आंखें खुली हैं अपलक मुझको ही देख रही हैं, चीत्कार कर उठी हूं, कितनी अभागन हूं, माफ़ी भी न मिल सकी मुझे। मेरा गुनाह अक्षम्य है तभी तो मां मुझे माफ किए बगैर

इस दुनिया से चली गई।

” वक्त ” ने अपना खेल,खेल दिया, 

मेरे पास सिवा अफसोस करने के अलावा कुछ नहीं है। 

आज समझ पाई, रिश्तों को और उनकी गरिमा को… मुझ जैसी गलती न करना कोई, वरना जीवन भर का पछतावा ही रह जाएगा, हाथ कुछ नहीं आने वाला, अपनी ही नज़र में गिरते चले जाओगे……. इसलिए 

रिश्तों की गरिमा को समझें, बड़ों को सम्मान दें, उनका दिया आशीष हमारे लिए बहुत अनमोल है!!

#वक्त 

प्रीति सक्सेना

इंदौर

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