जीने की राह – अर्चना कोहली “अर्चि”

हर किसी की ज़िंदगी में कुछ पल अवश्य ऐसे आते हैं जब वह आत्मविश्वास की राह पर चलकर एक विशेष मुकाम हासिल कर लेते हैं।

यह कहानी भी है- श्यामा नाम की एक ऐसी लड़की की, जिसने अपने हौसले और आत्मविश्वास के बल पर इच्छित मुकाम हासिल कर लिया।

श्यामा को आज जब समाजसेवा के कार्यों के लिए राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कार मिला तो पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा। पूरी मीडिया भी उसकी एक तसवीर लेने के लिए उतावली हो रही थी। रोहित भी वहीं पर था। पुरस्कार समारोह की समाप्ति पर श्यामा से बात करने के लिए वह भीड़ को चीरता हुआ आगे बढ़ा, लेकिन रोहित को अनदेखा करके श्यामा किसी आवश्यक कार्य का बहाना बनाकर समारोह स्थल से निकल पड़ी।

रोहित के बार-बार पुकारने पर भी श्यामा नहीं रुकी। उसके कानों में रोहित के तीन साल पहले कहे गए शब्द हथौड़े की तरह उसका अंतर्मन घायल कर रहे थे, तुझे आता ही क्या है! न कोई गुण है, न शक्ल। तेरी जैसी काली-कलूटी से भला कौन शादी करता, वो तो मैंने तुझ पर अहसान किया, नहीं तो अभी तक माँ-पिता के घर में ही पड़ी होती। माँ-पिता ने कुछ भी तो नहीं सिखाया।

बस वही एक पल था, जिसने उसको रोहित को छोड़ आत्मसम्मान के साथ अकेले जीने की राह दिखा दी। लड़की बड़े से बड़ा लांछन सह सकती है, लेकिन अपनी परवरिश के बारे में एक भी अपशब्द नहीं सुन सकती।

तभी कार झटके से रुकी। घर आ गया था।

दरवाज़ा खुलते ही तेज़ी से श्यामा अपने कमरे की और लपकी। कमरा बंद करके वह निस्तेज होकर कटे वृक्ष की तरह बिस्तर पर गिर पड़ी। एक बार फिर श्यामा का अतीत चलचित्र के समान उसकी खुली आँखों के सामने चलायमान हो गया।



श्यामा मध्यवर्गीय परिवार की बहुत ही संस्कारी, स्वाभिमानी और गुणी लड़की थी, लेकिन उसका काला रंग सर्वदा ही उसके गुणों को बादल में छिपे दिनकर की तरह तिरोहित करता रहा।

बचपन से ही काली माता, काली-कलूटी नामों से पुकारी जानेवाली श्यामा बाल्यावस्था में जब भी टेलीविजन पर गोरा होने की कोई क्रीम या साबुन का विज्ञापन देखती तो माँ से उसे लेने की ज़िद करने लगती।

माँ-पिता ने उसे समझाया, सूरत नहीं सीरत पर ध्यान दो। सीरत महत्वपूर्ण है। सुंदरता कभी न कभी ढल जाती है, लेकिन सीरत ही आखिरी साँस तक साथ निभाती है। साथ ही माता-पिता ने किसी भी कीमत पर अपना आत्मसम्मान बचाए रखने की सुंदर शिक्षा भी उसे प्रदान की। उनका हौसला साथ न होता तो कभी का श्यामा टूटकर बिखर चुकी होती। अपना आत्मसम्मान खो चुकी होती।

माँ-पिता की इसी शिक्षा का ही शायद परिणाम था कि बड़े होने पर अचानक सुंदरता के विषय में उसके मापदंड ही बदल गए। कभी सुंदर बनानेवाली क्रीम-साबुन के लिए ज़िद करनेवाली श्यामा सादगीपसंद हो गई। मेकअप के नाम पर ओठो पर हलकी लिपस्टिक, आँखों में काजल और माथे पर बिंदी लगाना ही उसे अधिक पसंद आने लगा।

 

उसे वे भी दिन याद आए, कैसे उसकी रंगत को लेकर रिश्तेदार-पड़ोसी-सहेलियाँ अकसर पीठ पीछे उसका मज़ाक बनाते थे। उसके काले रंग पर कोई न कोई टिप्पणी उछाल देते थे। बिना पूछे रंग साफ़ करने की सलाह दे जाते थे। कोई उसे जौ के आटे का लेप लगाने को कहता तो कोई ब्यूटीपार्लर जाने को कहता। लेकिन सादगीपसंद श्यामा लीपापोती करके असली रंगत को छिपाने के पक्ष में नहीं थी।। उन्हें वह सीरत देखो, सूरत नहीं, कहकर हँसकर टाल देती थी। वैसे भी उसका मानना था,  इन तरीकों से रंगत को छिपाया जा सकता है, बदला नहीं।



फिर उसकी सूई दुबारा से रोहित पर जा अटकी,  जिसने एक बुरे साए की तरह उसकी जिंदगी में प्रवेश किया था। उसको श्यामा से कोई भी प्यार-व्यार नही था। उसका तो श्यामा से केवल अपने फायदे का ही रिश्ता था। इसी कारण श्यामा से  प्रेम का नाटक करके उसे अपना बना लिया। भोली श्यामा और उसके घरवाले उसे समझ ही नहीं पाए।

रोहित की शातिर चाल से श्यामा उसके साथ विवाह बंधन में बंध तो गई, लेकिन अपने पौरुष दंभ में वह सदैव ही उसे किसी न किसी कारण से अपमानित करके उसके आत्मसम्मान को छलनी-छलनी करता रहा। कभी उसके खाने पर नुक्ताचीनी तो कभी पहनावे पर तो कभी उसकी हँसी पर। श्यामा कभी कुछ कहती तो मज़ाक में बात टाल देता। उसकी इच्छाओं का दमन करके अपना अहं संतुष्ट करता रहा।

श्यामा की सहनशक्ति को वह अपनी जीत समझता रहा। लेकिन कहते हैं न, कभी न कभी ज्वालामुखी भी फूटता ही है। मौन भी मुखर बनता है। अभी तक दिए गए संस्कारों के कारण वह चुप थी। लेकिन जब माँ- पिता के संस्कारों पर बात आए तो भला कौन चुप रह सकता है!

माँ-पिता के बारे में गलत बात और काली कलूटी संबोधन ने श्यामा के सोए हुए स्वाभिमान को जगा दिया, और हमेशा के लिए रोहित का घर छोड़कर चल पड़ी वह आत्मसम्मान से जीने की राह पर।

रोहित से अलग होने के बाद भी श्यामा टूटी नहीं, अपितु  स्वाभिमान के साथ बिना कोई समझौता किए, लोगों की बातों की परवाह किए बिना आगे ही आगे बढ़ने लगी। उसने समाज के उत्थान के लिए सराहनीय कार्य किए। इसी का सुंदर परिणाम यह पुरस्कार है। अब उसकी जिंदगी में रोहित जैसे स्वार्थी की यादों के लिए भी कोई जगह नहीं, कोई जगह नहीं, तंद्रा से जागकर वह अपने आप से बोल पड़ी।

#आत्मसम्मान

अर्चना कोहली “अर्चि”

नोएडा (उत्तर प्रदेश)

मौलिक और स्वरचित

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