जीवनदान – Short Hindi Inspirational Story

मेरी कामवाली कांता अपने साथ किसी दूसरी कामवाली विमला को लेकर आई थी क्योंकि वो पूरे एक महीने के लिए गांव जा रही थी अपनी छोटी बेटी की शादी करने। अपनी जगह जिस कामवाली को वो लगाकर जा रही थी उसको कांता ने सारा काम समझा दिया था। विमला कल से आने का बोलकर चली गई।

आज का काम सब जगह कांता ही करने आई थी। मेरे को मिलाकर कुल तीन घर में वो काम करती थी। मेरे घर में काम करते हुए उसे अभी छः महीने ही हुए थे। उसका काम और समय के प्रति पाबंदी ने मेरा दिल जीत लिया था। अब चूंकि वो पूरे एक महीने के लिए बेटी की शादी के लिए जा रही थी तो मेरा भी फर्ज़ बनता था कि उसकी पगार के साथ में बेटी की शादी के शगुन के साथ उसको विदा करूं। 

जब उसका काम खत्म हुआ तब मैंने उसको पगार के साथ बिटिया की शादी के लिए जब शगुन दिया तो उसके चेहरे पर खुशी और कृतज्ञता के मिश्रित से भाव आ गए। असल में उसको मेरे यहां काम करते हुए अधिक समय नहीं हुआ था तो उसको शगुन की खास उम्मीद नहीं थी।

आज रात की ट्रेन से उसको अपनी बेटी के साथ गांव निकलना था। वैसे तो मेरी नौकरी की व्यस्तता की वजह से मेरी उससे ज्यादा बात नहीं हुई थी पर आज थोड़ा समय था तो मैंने उससे पूछा कि उसके काफी रिश्तेदार तो यही रहते हैं,फिर वो गांव में ही बेटी की शादी क्यों कर रही है।

ये सुनकर उसने मुझे जो बताया उससे मेरा सिर उसके सामने नतमस्तक हो गया। उसने बताया कि उसके पति की मृत्यु बहुत जल्दी ही हो गई थी तब उसकी बड़ी बेटी संध्या आठ साल की और छोटी वाली सपना जिसकी अब शादी है वो सिर्फ पांच साल की थी। गांव में उसके ससुराल वालों के काफी खेत और ज़मीन थी पर पति की मृत्यु के बाद उन लोगों ने उसको अपशगुनी करार देकर और केवल बेटी ही पैदा करने का ताना देते हुए घर से निकाल दिया था। उसने उन लोगों के सामने बच्चों का वास्ता देकर बहुत याचना भी की पर उन निष्ठुर लोगों का दिल नहीं पिघला।




ऐसे में उसके पिताजी और माताजी ने आकर उसको और उसकी दोनों बेटियों को संभाला। पिताजी ने घर पर आकर उसके दोनों भाई को भी बोल दिया था कि कांता और उसकी दोनों बेटियां अब यही रहेंगी। पिताजी के साथ ने उसको बहुत हिम्मत दी थी पर वो किसी पर बोझ नहीं बनना चाहती थी।

उसके चाचा के बेटा और बहू भी दिल्ली में रहते थे वहां कपड़ों पर स्त्री तथा गाड़ी की सफाई का काम करके अच्छा कमा लेते थे। उसने भी उन लोगों के पास दिल्ली जाने की सोची जिससे वो भी अपने पैरों पर खड़ी होकर अपनी दोनों बच्चियों को पाल सके।

अपने पिताजी और माताजी को किसी तरह समझाबुझा के वो चल पड़ी अपनी नई दुनिया बनाने। यहां पहले उसने अपने चाचा के बेटे और उसकी पत्नी के साथ काम किया फिर एक घर में उसको खाने का काम मिल गया। दोनों बच्चियों को उसने सरकारी स्कूल में डाल दिया था।

अभी खाने का सिर्फ एक ही काम था उसका गुज़ारा थोड़ा मुश्किल था पर उसने हार नहीं मानी। एक काम के बाद उसको खाना बनाने के,बर्तन सफाई के कई काम मिल गए। दिल्ली जैसे महानगर में इन सभी कामों में उसकी अच्छी कमाई होने लगी। अब उसकी ज़िंदगी की गाड़ी कुछ संभल गई थी।

पति के बिना अकेले दम पर बच्चों को पालना उसके लिए लोहे के चने चबाने जैसा था पर उसकी कोशिशें अब रंग लाने लगी थी। दोनों बच्चियां भी समझदार थी। बड़ी वाली की बारहवीं की पढ़ाई के बाद उसने शादी कर थी। छोटी बेटी पढ़ने में काफ़ी अच्छी थी उसने सोच रखा था कि वो उसको अच्छे से पढ़ाएगी पर कई बार हमारी किस्मत हमारी सोच से दो कदम आगे चलती है। ऐसा ही कुछ कांता के साथ हुआ। 

छोटी बेटी सपना ने दसवीं की परीक्षा बहुत अच्छे नंबर से पास की थी। अब आगे की पढ़ाई के लिए कांता ने उसके ट्यूशन की व्यवस्था भी भलीभांति कर दी थी। कांता ने उसका भविष्य बनाने के लिए दो-तीन काम और पकड़ लिए थे। अब उसका पूरा दिन काम में ही बीत जाता l

उसे लगता था कि एक बार बेटी पढ़ लिखकर कुछ काबिल बन जाए तो उसकी पूरी मेहनत सफल हो जायेगी। पर सपना उस समय उम्र के बहुत नाज़ुक दौर से गुज़र रही थी। पता नहीं कैसे वो गली के ही एक लड़के के झांसे में आ गई। जहां कांता अपनी बेटी के लिए जीतोड़ मेहनत करके पैसा जोड़ रही थी, वहीं वो उस लड़के के बहकावे में आकर घर में रखा सारा रुपया पैसा और जेवर लेकर उसके साथ भाग गई। 




कांता जब घर पहुंची तब सपना घर नहीं पहुंची थी। कांता को लगा शायद आज ट्यूशन में देर हो गई होगी। पर जब काफ़ी समय बीतने पर वो घर नहीं आई तब कांता को चिंता हुई। वो उसे ढूंढते हुए ट्यूशन पहुंची तो पता चला कि आज सपना वहां आई ही नहीं थी। अब तो कांता की हालत खराब,उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था।

पुलिस के पास गई तब उन्होंने उसकी रिपोर्ट लिखने से मना कर दिया और कहा कि थोड़ा इंतजार करे।l क्या पता यहीं कहीं चली गई हो। कांता बदहवास सी वापस आ गई। उसने आस-पास सब जगह पता करने की कोशिश की पर परिणाम शून्य ही रहा। तब उसको साथ में रहने वाली सपना की एक सहेली चंपा ने बताया कि वो आजकल एक लड़के राजू से बहुत बात करती थी।

वो गली में जो किराने की दुकान है वहां काम करता है। उसकी बात सुनकर कांता वहां गई तो पता चला कि राजू तो दो दिन पहले ही हमेशा के लिए अपने गांव जाने की बात बोलकर अपनी पगार लेकर काम छोड़कर चला गया है। अब कांता को राजू पर पूरा शक हो गया,उसने पुलिस को भी पूरी जानकारी दी।

दुकान पर लिखवाए फोन नंबर पर जब पुलिस ने बात की तो पता चला कि राजू ने अपना पता और शहर गलत लिखवाया था। पुलिस ने राजू और सपना को ढूंढने की बहुत कोशिश की पर सब जगह निराशा ही हाथ लगी। कांता की तो जैसे दुनिया ही लूट गई थी। उसने काम पर जाना भी बंद कर दिया था। अब उसकी ज़िंदगी का एक ही लक्ष्य बन गया था कि किसी तरह अपनी बेटी सपना को वापिस लाना।

गांव से उसके पिताजी और अन्य रिश्तेदार भी उसके गम में साथ देने उसके पास आ गए थे। उन लोगों ने कांता की हालत देखते हुए उसको बेटी को भूल जाने के लिए कहा। कई ने ये भी कहा कि लड़की जात होकर घर से भाग गई, ऐसी लड़की के लिए घर के दरवाज़े तो वैसे भी बंद हो जाने चाहिए।

कांता को तो जैसे होश ही नहीं था। उसे दुनिया की बातों से कोई मतलब नहीं था। उसे तो बस ये था कि उसकी बच्ची किसी तरह वापिस आ जाए बाकी वो संभाल लेगी। पुलिस और बाकी लोगों की सलाह पर कांता ने मुख्य समाचार पत्र में भी बेटी के लिए संदेश लिखवाया कि वो जहां कहीं भी हो घर वापिस आ जाए।

उसकी मां बस उसको गले लगाना चाहती है। कुछ जमा पूंजी तो कांता की बेटी लेकर भाग गई थी और कुछ बेटी को खोजने में खत्म हो गई थी।कांता को ना अपने खाने पीने का होश था, ना ही किसी और बात का। एक दिन चमत्कार हुआ। उसकी बेटी ने किसी पीसीओ से कांता के मोबाइल पर फोन किया था।

कांता के फोन उठाते ही किसी के रोने की आवाज़ आ रही थी। कांता को लगा हो न हो ये सपना ही है। उसने ये नंबर पुलिस को दिखाया। पुलिस ने किसी तरह अपने सभी सूत्रों के द्वारा उस पीसीओ की जगह पता लगाया। उस इलाके की पूरी घेराबंदी कर सपना को खोज ही लिया। सपना बहुत ही कमज़ोर लग रही थी ऐसा लग रहा था कि उसने बहुत दिन से ठीक से खाना भी नहीं खाया।

राजू तो उसका सारा रुपया और गहने लेकर एक हफ्ते बाद ही वहां से गायब हो गया था। सपना किसी तरह मंदिर में शरण लिए थी। सपना को जैसे ही पुलिस ने कांता के सुपुर्द किया वो बहुत जोर से रोने लगी और अपने किए की माफ़ी मांगने लगी। कांता ने उसको गले लगा लिया और सिर्फ इतना कहा बेटा कई बार इस उम्र में कदम बहक जाते हैं।वो उसे लेकर अपने घर आ गई।अगर किसी रिश्तेदार और पड़ोसी ने सपना के बारे में कुछ कहने को कोशिश भी की तो वो पूरा समय ढाल की तरह उसके साथ रही। 




इस घटना के बाद बेटी काफ़ी संभल गई। उसने दोबारा अपनी पढ़ाई शुरू की। आज स्नातक करके एक कॉल सेंटर में काम कर रही है, लड़का भी उसके साथ काम करता है। कांता ने कहा कि उस दिन की माफ़ी ने बेटी को सही और गलत का बोध ज़िंदगी भर के लिए करवा दिया था। अगर एक मां होकर वो उसका साथ नहीं देती तो अपनी बेटी से हमेशा के लिए हाथ धो बैठती।

बेटी की शादी भी वो गांव से इसलिए कर रही है क्योंकि यहां पर रहने वाले रिश्तेदार और कुछ पड़ोसी व्यर्थ का व्यवधान पैदा कर सकते हैं। वो ये सब बता ही रही थी कि इतने में उसकी बेटी का फोन आ गया। वो सोसाइटी के बाहर उसका इंतजार कर रही थी।

आज कांता की सोच और समझ ने मुझे आईना दिखा दिया था साथ-साथ बहुत कुछ सोचने को भी मजबूर कर दिया था। कई बार हम लोग पढ़ लिख कर आधुनिक होने का आडंबर करते हैं और हमेशा दुनिया क्या कहेगी इसी में फंसकर रह जाते हैं पर कांता में समाज की परवाह किए बिना अकेले अपने बलबूते पर अपनी बेटी को पुनः जीवनदान दे दिया था।

दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी। अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। ये सत्य घटना पर आधारित है बस थोड़ी नाटकीयता देने के लिए आमूलचूल परिवर्तन किए गए हैं।कांता मेरे यहां अब काम नहीं करती पर आज भी उसकी याद आते ही मैं उसकी ममता और समझदारी के आगे नतमस्तक हो जाती हूं।

#माफी 

डॉ. पारुल अग्रवाल,

नोएडा

(v)

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