जीवन – श्रीमती मणि शर्मा

“अरे ! कोई उठाओ उन्हें ,गिर गए हैं, मेधा,ओ मेधा “मम्मी की जोर जोर से चिल्लाने की  आवाज सुनकर मेधा हड़बड़ा कर कमरे  से बाहर भागी।

” क्या हुआ मम्मी? ,मेधा ने मम्मी को

रोते देख पूछा।

“पापा को अक्षय ने धक्का दे दिया है देखो वो गिर गए है। इसी बेटे के लिए हमने कितनी मन्नत माँगी थीं बिटिया” मम्मी ने हिचकियों के साथ दरवाजे की ओर इशारा किया।

मेधा ने देखा दरवाजे के पास पापा गिरे पड़े थे।

“पापा “लगभग भागती हुई मेधा पापा के पास पहुँची। पापा शायद बेहोश हो गए थे।

“रोना छोड़ो मम्मी ,पहले मदद करो” मेधा जोर से बोली।

दोनों ने किसी तरह पापा को उठाकर कमरे में लिटाया। पंखा चलाकर मेधा पापा के हाथ पैर मलने लगी।

“अभी ठीक हो जाएंगे तुम बैठ जाओ”-“पर अचानक  क्या हो गया “?बिलखती हुई मम्मी से उसने पूछा।   सिर पर हाथ रख कुर्सी पर बैठते हुए मम्मी रो रोकर कहने लगीं ” बेटा, पापा ने अक्षय से कहा था जरा समोसे  ले आओ, मेधा उठकर चाय बनाएगी तो सब खाएंगे उसे बहुत पसंद हैं। ” ,अक्षय ने मना कर दिया तो पापा खुद ही जा रहे थे तभी अक्षय पापा को धक्का देकर थैला छीन कर चला गया। बिटिया उसने पापा को उठाया भी नहीं। अब तो यह रोज का तमाशा बन गया है ,तुम्हारे पापा को  कुछ हो गया तो मैं क्या करूँगी? “मम्मी लगातार रोये जा रहीं थीं। जरा सांस वह लेकर मेधा से फिर बोली -“तुम बेकार औलाद के लिए दुखी होती हो बिटिया ,ऎसी औलाद से तो बेऔलाद होना भला है।मैं तो बेटा होते हुए भी बाँझ सी हो गई हूँ। मम्मी की बातों से मेधा धक्क रह  गई। दिन रात अक्षय का नाम जपने वाली मम्मी को आज क्या हो गया था ।

पापा को धीरे धीरे होश आ रहा था।आँख खोल कर मेधा को सामने देखा तो पापा फूटफूट कर रोने लगे।

“अब नहीं सहा जाता बेटा। क्या यही सब देखने के लिए इंसान बच्चे पैदा करता है ?मैंने  जी जान से मेहनत कर तुम दोनों को पालपोस कर किसी लायक बनाया तो क्या  इसलिए कि बुढापे में हमारी इस तरह दुर्गति होगी ?

पापा के आँसू अविरल बह रहे थे।



मेधा निशब्द थी। वह समझ नहीं पा रही थी कि अपने बच्चों के लिए जीवन समर्पित करने वाले माता पिता को बुढा़पे में दुख क्यों झेलना पड़ता है ?क्या बच्चे कभी बूढ़े नहीं होंगे? जीवन का यह कैसा रूप है ?दोनों का इस तरह विलाप करना मेधा के ह्रदय चीरे जा रहा  था। उसकी समझ से परे था कि आखिर  पापा मम्मी का कितना ख्याल रखने वाले अक्षय को न जाने शादी के बाद क्या हो गया था । पता  नहीं किसकी बुरी नजर घर को  लग गई थी। हर समय हँसी ठहाकों से गूँजने वाले घर में आए दिन किसी न किसी बात पर झगड़ा होता  ही रहता था।

“पापा !आप परेशान मत हों जरा देर आराम कर लें। मैं अभी चाय बना कर लाती हूँ। “मेधा प्यार से पापा के सिर को सहला कर रसोई में आ गई। पर वह हैरान थी कि इतने शोर शराबे के बाद  भी सपना बाहर क्यों नहीं आई थी। चाय का पानी गैस पर रख मेधा अतीत में चली गई।  अक्षय उससे दो साल छोटा था। उम्र में ज्यादा अंतर न होने के कारण दोनों में खूब पटती थी । पापा तो बेटा बेटी में फर्क नहीं करते थे पर मम्मी अक्षय को जरा ज्यादा लाड़ करती। “मेरा बेटा,मेरे बुढ़ापे का सहारा “कहते कहते उनका मुँह न थकता।  मेधा की पढ़ाई पूरी होने के बाद कॉलेज में नौकरी लग गई थी। पर अमित से शादी के बाद उसे नौकरी छोड़नी पड़ी थी क्योंकि अमित चाहते थे कि वह घर सम्हाले। मेधा को भी नौकरी करने का बहुत शौक नहीं था ।

  शादी  को दस साल हो चुके थे पर मेधा को कोई बच्चा नहीं हुआ। अमित ने बहुत जगह दिखाया पर कुछ परिणाम नहीं निकला।मेधा को इस बात का बहुत अफसोस होता पर अमित हमेशा उसे दिलासा देते कि” शायद ईश्वर को यही मंजूर है। ” मेधा की  सास ने भी कभी उसे बच्चा न होने उलाहना नहीं दिया। फिर भी उसका मन हमेशा बच्चों के लिए तरसता रहता।  मायके आकर अक्षय के दोनों बच्चों पर वह जी भर कर प्यार लुटाती। हर्ष और अंश भी बुआ बुआ कहते नहीं अघाते थे।  पर मेधा महसूस करती कि सपना को उसका आना अच्छा नहीं लगता था। अक्षय में भी मेधा कुछ परायापन सा महसूस कर रही थी ।

अपनी शादी से पहले तो अक्षय मेधा के घर खूब आता था। अमित के साथ  भी मजाक करता रहता पर सपना से शादी के बाद धीरे धीरे उसका आना काफी कम हो गया था।  मेधा ने महसूस किया कि सपना के आने के बाद  अक्षय सबके साथ असहज सा होने लगा था। बात बात पर मेधा की सलाह लेने वाला अक्षय उसके सामने पड़ने से भी कतराने लगा था। अब उसे सपना के  अलावा  कुछ सूझता ही नहीं था।  मम्मी पापा से भी हर समय  किसी न किसी बात पर  लड़ता रहता। मम्मी कभी अपने मन की बात मेधा से कहतीं  तो वह समझाती “अभी नई नई शादी है समय के साथ सब ठीक हो जाएगा।” पर आज तो अक्षय ने सारी सीमाएँ लाँघ दीं थी।

“बुआ क्या बना रही हो “अंश की आवाज से वह अतीत से बाहर आई।

“बाबा के लिए चाय बना रही हूँ” मेधा ने रूखेपन से कहा। अंश की आवाज सुन कर मेधा के मन में आज पहली बार उस पर हमेशा की तरह प्यार नहीं उमड़ा था।

   चाय का पानी खौल रहा था।   चाय तैयार करते हुए मेधा को आज पहली बार अपने बच्चे न होने का कोई  अफसोस नहीं हो रहा था। दो- दो बच्चे होकर भी उसके मम्मी पापा बुढ़ापे में रो रहे थे तो ऎसे बच्चे होने  का क्या फायदा?   बेटा अच्छे से रख नहीं रहा था, बेटी के पास रह नहीं सकते थे। सचमुच इससे तो वह बाँझ ही भली थी।  फिर भी उसने एक निर्णय ले ही लिया था। चाय लेकर कमरे में पहुँच कर मेधा पापा से बोली “बात यहाँ तक जा चुकी है मुझे पता नहीं था पापा ,आपने बेटा बेटी में कभी अंतर नहीं किया ,अब आप अपने दूसरे बेटे यानि कि मेरे साथ रहेंगे।” पापा बिना कुछ बोले बोझिल आँखों से मेधा को देखने लगे। पापा की आँखों में आँसुओं के साथ तैरते प्रश्न को पढ़कर मेधा फिर बोली,”हो सकता है पापा,कि अमित और उनकी मम्मी को यह अच्छा न लगे पर मैं उन्हें मना लूँगी। “मेधा ने देखा कि पापा की आंखें फिर भर आईं थीं पर शायद इस बार  खुशी के आँसुओं से ,  मम्मी भी सिर झुकाकर  खड़ीं थी। मेधा शायद उनके मन में घुमड़ते तूफान को समझ पा रही थी। अक्षय के भीतर आये बदलाव ने उन्हें हिला कर रख दिया था।उनका  बेटे के प्रति अटूट विश्वास चरमरा गया था। मम्मी के मन की कश्मकश को कम करने के लिए मेधा ने उनका हाथ पकड़ कर कहा,”मम्मी! कुछ दिन के लिए ही चलो मेरे साथ, यदि अच्छा न लगे तो वापस आ जाना”।

“क्यों दी तुम क्यों ले जाओगी दी।” “यहाँ क्या  परेशानी है ?” अक्षय की आवाज से मेधा पलटी। अक्षय हाथ में थैला पकड़े खड़ा था।उसकी आवाज में अजीब सा तीखापन था।

“नहीं ले जाऊँ तो क्या इन्हें यहाँ मरने के लिए छोड़ दूँ?”मेधा ने पहली बार अक्षय से चिल्लाकर कहा। मेधा को इतने गुस्से में देख कर अक्षय सकपका गया।  अक्षय के पीछे पीछे सपना भी आ गई थी।



“शादी के बाद पत्नी के अलावा हर रिश्ते को ताक पर रख दिया है  तुमने ,भूल गये कि मम्मी पापा ने कैसी परिस्थितियों में हमें किसी लायक बनाया। मेधा गुस्से से थरथर काँप रही थी जरा ठहर कर फिर बोली, “बुढ़ापा तो सबको आता है अक्षय ? तुम्हारे भी तो बच्चे हैं यह सब देख कर क्या सीखेंगे? इन पाँच  सालों में मैंने इसलिए कुछ नहीं कहा कि मुझे लगा तुम समय के साथ अपनी जिम्मेदारियाँ समझ जाओगे। पर नहीं , आज जो देखा उससे नहीं लगता कि तुम मम्मी पापा वही बेटे हो और मेरे वही भाई, जिसकी सब तारीफ करते  थे।”अक्षय नेअपना  सिर झुका लिया।

दी !सपना ने बीच मे टोका”मेरी तो सुनते नहीं हैं। ‘

“तुम तो चुप ही रहो सपना “मेधा  गुस्से से बेकाबू हो गई थी ” तुमने कभी इस घर को कभी अपना घर समझा ही नहीं। जो कुछ हो रहा है यदि तुम्हारे मम्मी पापा के साथ हो तो क्या तब भी तुम यही कहोगी ?”

सपना को कुछ भी बोलते नहीं बना।

“दी सुनो” अक्षय ने कुछ कहना चाहा। उसे अपनी गलती महसूस होने लगी थी। साथ ही अक्षय को यह लगा कि मम्मी पापा दी के घर रहेंगेे तो लोग क्या कहेंगे?

“अब कुछ सुनने को नहीं है मैं मम्मी पापा को ले जा रही हूँ। उन्हें इतना कमजोर मत समझो ,वह चाहें तो तुम्हें घर से बाहर कर सकते है क्योंकि यह सब कुछ सिर्फ और सिर्फ उनका है। पर वह ऎसा नहीं करेंगे।और  वह शायद तुम्हें माफ भी कर देंगे पर मैं तुम्हें कभी माफ नहीं करूँगी। चलो मम्मी कुछ कपड़े रख लो। “मम्मी की तरफ देख मेधा बोली।

“दादी,दादी कहाँ जा रहीं हैं। मत जाओ मुझे आपके बिना नींद नहीं आती।’ मम्मी की साड़ी पकड़ कर अंश रोने लगा था। मम्मी अंश को सीने से लगा कर फफक पड़ीं।

“एक बार माफ कर दीजिए पापा” सपनाऔरअक्षय पापा के पैरों से लिपट गए ।

“जब पापा को धक्का दिया था तब नहीं सोचा था।” मेधा ने दोनों को हटाते हुए कहा । “डरो मत !मैं तुम्हारा हक नहीं छीनूँगी।”  वह तीखे स्वर में बोली ।

“दीदी मैं बहुत शर्मिन्दा हूँ। एक बार,बस एक बार माफ कर दीजिए “अक्षय ने मेधा का हाथ पकड़ लिया। “मैं कौन होती हूँ माफ करने वाली? जिनका दिल दुखाया है उसने माफी माँगो। । “मेधा का स्वर अभी भी कसैला था पर अंदर से वह कमजोर पड़ रही थी ,छोटे भाई के आँसू उसका मन झकझोर रहे थे,उसने मुँह फेर लिया।  अक्षय फिर पापा के पैरों पर गिर गया। पापा ने उसे उठाकर गले लगा लिया। मेधा ने देखा पापा के गुस्से की बर्फ पिघलने लगी थी। उनका अक्षय को उठाकर सीने से लगाना यह बता रहा था कि उन्होंने अक्षय को माफ कर दिया था और  मम्मी भी अंश को सीने से चिपटाकर सुबक रहीं थीं। वहीं एक ओर खड़े हो यह सब देख कर मेधा सोच रही थी कि शायद यही जीवन है। अभी कुछ देर पहले जीवन का कितना दुखद पहलू उसके सामने था और अब कितना सुखद।मेधा  ईश्वर से प्रार्थना करने लगी कि जीवन का यही रूप सदा उसके मम्मी पापा के साथ रहे। 

श्रीमती मणि शर्मा

 

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