आज खुशी के मारे कुन्ती के पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे,मन ही मन अपनी बहू सुलभा को ढेरों आशीर्वाद दे डाले ,हे प्रभु ऐसी मन को समझने वाली बहू सबको मिले। टॉकीज की टिकट लाइन में कुन्ती पिक्चर की टिकट लेने खड़ी थी,तभी उसे अपने नाम की आबाज सुनाई दी ।अरे कुन्ती तू यहां क्या कर रही है।?
तुझे तो पिक्चर बगैरह देखना पसंद ही नहीं था।फिर आज ये चमत्कार कैसे होगया।तूऔर पिक्चर देखे ये तो बिलकुल उलटी गंगा बहाने जैसा है। तुझे तो घर से और विशेष कर रसोईघर से बहुत प्यार था।
ये आबाज कुन्ती की पक्की सहेली सरला की थी।
जाहिर सी बात है मैं यहां कोई भटूरे तलने के तो नही खड़ी होंगी। पिक्चर देखने आई हूं इनके साथ।मेरी बहू ने भेजा है जबरदस्ती करके।
क्या तेरी सुलभा अभी से तेरे उपर हुक्म चलाने लगी अभी उसके व्याह को सिर्फ तीन महीने ही तो हुए हैं और उसने तेरी मालकिन होने का हक छीन लिया।
नहीं रे सरला ऐसा कुछ नही है,मेरी सुलभा तो लाखों में एक है,उसकी सोचपहले तो मुझे भी ऐसे ही लगती थी कि कहीं यह मेरे घर पर अपना अधिकार तो नही जमा रहीं। देख जमाना बहुत बदल गया है।अगर बहू हमें समझ रही है तो हमें भी तो उसकी सोच का सम्मान करना चाहिए।
अब वो जमाना नहीं रह गया कि सास घर की जिम्मेदारी उठाती रहें,और बहुऐ घूमती फिरती रहें।जब सुलभा ने मुझसे पिक्चर देख आने को कहा तो मैंने ना नुकर की तो वह कहने लगी मुझे आपके बेटे सुरेश ने सब बताया है कि कैसे आप हमेशा घर के काम-काज में ही लगी रही,जब कभी आपने पापाजी से घूमने जाने की फरमाइश की तो उन्होंने यह कहकर टाल दिया कि पहले अम्मा से परमीशन लेलो उनकी बिना इच्छा के इस घर में पत्ता भी नहीं हिलता। अम्माजी से परमीशन लेने का मतलब था पूरा लैक्चर सुनना।सो मैं हमेशा अपना मन मार घर ही जीती रही हमेशा।फिर चाहे पिक्चर देखने की इच्छा हो या मनपसंद साड़ी खरीदने की इच्छा।बस सब कुछ अम्माजी के हुक्म से ही होता था।
मुझे लगता है कि आपके ँघूमने जाने के अरमान कहीं नीचे दब कर रह गये।लेकिन अब से ऐसा बिल्कुल नहीं होगा।
जमाना बहुत बदल गया है।घर का काम अपनी जगह है और घूमना फिरना अपनी जगह है।जानती हैं न ममीजी जब हम कही घूम कर घर बापिस आते हैं तो काम करने के लिए नई उर्जा मिल जाती है । माइंड फ्रेश होता है घूमने से।अब वो पहले बाला जमाना नहीं है जमाना बहुत बदल गया है।आप ये सोचना छोड़ दीजिए कि कोई कहेगा कि न जाने कैसा जमाना आ गया है। अभी तो आपके लिए कईसारे सरप्राइज बाकी हैे
मैने तो आपके व पापाजी के लिए बहुत कुछ प्लान करके रखा है ,ये तो अभी सिर्फ शुरुआत है।इसके बाद आपको पापाजी के साथ तीर्थ यात्रा पर भेजना है और फिर मई जून में आपलोगो को शिमला जाना है ।दस दिनों के लिए,आपके सैंकिड हनीमून के लिए।
क्या कह रही है तू कुन्ती ,ये सब कहा तेरी बहू ने ।बैसे कहना तो उसका ठीक भी है बदलते समय के साथ हमें भी अपनी सोच में बदलाव लाना चाहिए।सारा खेल सोच का ही तो है सरला।बदलते जमाने के साथ क्यों न हम भी अपनी सोच बदलें।
घुट घुट कर जीना भी कोई जीना है बहुत जी लिए घर परिवार के लिए अब सिर्फ अपनी खुशी के लिए जीना है।बैसे कहती तो सुलभा ठीक ही है,उसने मुझे समझाया कि मम्मी जी अभी तो आप व पापाजी फिजिकली बिल्कुल स्वस्थ हैं फिर पापाजी रिटायर भी हो चुके हैं।आप लोग अपनी घर की जिम्मेदारियों से भी मुक्ति पाचुके हो,तो क्यों न शेष लाइफ घूम फिर कर लाइफ एन्जॉय करके बितायी जाय।
तेरी बातों ने तो मेरी आंखें खोल दी, अच्छा बता क्या हम लोग भी चल सकते हैं तेरे सैकिड हनीमून पर कम्पनी देने के लिए,तू डिस्टर्ब तो नही होगी,?हम कही कबाव में हड्डी तो नहीं बनेंगे ,?चल हट चुहलबाज़ी करने की तेरी आदत गई नही अभी तक।फिर दोनो सहेलियां इतना खिलखिलाकर कर हंसी कि आसपास के लोग देखने लगे।
अब समझी न बदलते समय था करिश्मा।
भई मैं तो अपनी सुलभा बहू की मुरीद हो चुकी हूं।उसका कहना है ,जियो और जीने दो।पहले तो मैं भी डर गईं थी उसकी बातें सुन कर परंतु अब मुझे उसकी सोच एकदम सही लगती है कि यह सोच बदलो कि न जाने कैसा ज़माना आगया है।खुल कर जिन्दगी जीने का अपना ही आनंद है तभी तो देख आज इतने सालों के बाद मैं टॉकीज में पिक्चर देखने आपाई हूं। थैंक्यू सुलभा बेटी।
स्वरचित व मौलिक
माधुरी गुप्ता