” अरे ओ…..महारानी, मेरी झांसी की रानी, जरा तनिक भर के लिए अपने पैर जमीन पर रख लें जब देखो हवा से बातें करती फिरे हैं “…….।
दादीजी का बडबडाना निरंतर जारी रहता था, लेकिन शर्मीला हैं कुछ सुनती ही नहीं थी, शर्मीला इस घर के लाड़ले व छोटे पौत्र शुभम की पत्नी हैं, वह अपने नाम के विपरीत बिलकुल शर्मीली नहीं थी, बिंदास स्वभाव व खुशमिजाजी उसके व्यवहार का हिस्सा था जिससे वो सबको अपना बना लेती थी, शर्मीला के संयुक्त परिवार वाले ससुराल में उसकी दादीसास विमला देवी सास-ससुर, जेठ-जेठानी ,पति व जेठ का शैतान बेटा नन्हा सा चिन्टू था।
खुशमिजाज शर्मीला बच्चों की तरह चिन्टू के साथ खेलती रहती थी, कभी अपने चुटकुलो से सारे घर का मनोरंजन करती थी कुल मिलाकर घर का हर सदस्य उससे बेहद प्यार करता था ।
वैसे तो दादी जी विमला देवी भी शर्मीला के गुणों पर फूली नहीं समाती थी, पर कभी-कभी अपनी चन्द दकियानूसी सहेलियों की बातों में आकर शर्मीला को संजीदा बनने का कहती रहती थी।
” मर्यादा में रहना तो जैसे यह लड़की जानती ही नहीं हैं, कभी अपने ससुर जी को चुटकुले सुनाकर हंसाती हैं, जेठ से ऐसे व्यवहार करती हैं जैसे वो इसका बड़ा भाई हैं, सास और जेठानी जैसे इसकी सहेलियां हैं और बच्चे के साथ खेलने में अपनी बहू वाली मर्यादा तक भूल जाती हैं,बहू तुमने अपनी बहुओं को ससुराल की मर्यादा सिखाई कहाँ है ?” विमला देवी का सीधा वार अपनी बहू और शर्मीला की सास पर होता था।
” मांजी!! माना की शर्मीला स्वभाव से चंचल हैं और बहू वाली मर्यादा नहीं निभाती हैं पर उसकी हंसी से घर में चारों और रौनक रहती हैं, आज आधुनिक युग में भी अपनी जेठानी के साथ सामन्जस्य बिठाकर चलती हैं, सभी घरवालों को दिल से अपना मानती हैं और फिर जमाने के अनुसार बहुओं वाली मर्यादा भी बदल गयी हैं”
शर्मीला की सास विमला देवी से बोली।
” बहू हमेशा मर्यादा में ही अच्छी लगती हैं, मेरी सभी सखियां आज मन्दिर में शर्मीला की बुराई कर रही थी जो मुझे पसंद नहीं आयी,बाकी मेरा क्या हैं तुम्हें अपनी बहुओं के साथ निभाना हैं ” विमला देवी नाराज होकर बोली।
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तो यह आग दादीजी के ह्रदय में उनकी सहेलियों ने लगाई हैं ना जाने क्यों जमाना किसी की खुशियां व अच्छाइया नहीं देखता? शर्मीला ने सोचा।
” दादीजी!! आप माँ से कुछ ना कहें मैं आपके सर की मालिश करती हूँ और आप मुझे बहू वाली मर्यादा सिखाएं ” शर्मीला विमला देवी से बोली।
” अच्छी बहू को अपने ससुर व जेठ से हंसी ठिठोली नहीं करनी चाहिए, वक्त बेवक्त खाना, पीना और सोना नहीं चाहिए, जेठ व ननद के छोटे बच्चो को भी नाम के आगे जी का संबोधन देना चाहिए, पति को सबके सामने नाम से नहीं पुकारना चाहिए ” दादीजी का ज्ञान शुरू हुआ।
शर्मीला सर की मालिश के साथ-साथ उनकी बातें भी सुन रही थी और दादीजी खुश हो रही थी की अब तो शर्मीला बहू वाली मर्यादा सीख जाएगी।
पर कुछ दिनों की मर्यादा पालन के बाद शर्मीला पुनः पहले जैसी हो जाती, विमला देवी की सहेलिया फिर आग लगाती और विमला देवी नाराज होकर शर्मीला को बहू की मर्यादा सिखाती।
पर शर्मीला भी अपनी शहद भरी बातों से दादीसास को चुटकी में मना लेती थी, विमला देवी यह मानती थी कि शोख व अल्हड़ स्वभाव वाली लड़की अपनी जिम्मेदारी के प्रति गंभीर नहीं होती हैं वह सिर्फ अपना ध्यान रखना जानती हैं, मुसीबत के समय परिवार के काम नहीं आती।
” झांसी की रानी ” नामकरण भी दादी जी की सहेलियों ने रखा था शायद ही कभी दादी जी ने शर्मीला को उसके असली नाम से बुलाया होगा,खैर दादीजी व शर्मिला की नोक -झोंक में दिन गुजर रहे थे।
तभी एक घटना ऐसी घटी जिसने विमला देवी को अपने विचार शर्मीला के प्रति बदलने पर मजबूर कर दिया।
वो दिन बरसात का था चिन्टू व शर्मिला खेल रहें थे,विमला देवी हमेशा की तरह शर्मीला को समझा रही थी शर्मीला का ध्यान चिन्टू की और लगा था जो बाहर भागने को आतुर था शर्मीला की नजर बचाकर और लाख मना करने के बाद भी चिन्टू बगीचे में भीगने चला गया वहां से वापिस आते समय फिसल कर गिर पड़ा और उसके माथे से खून बहनें लगा, चोट बहुत गहरी थी घर में कोई पुरूष मौजूद नहीं था,विमला देवी का रो-रोकर बुरा हाल था, मम्मी व भाभी भी परेशान थे,घर में कोई वाहन भी मौजूद नहीं था।
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नजदीकी अस्पताल दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित था,हमारी झांसी की रानी शर्मीला ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए चिन्टू के माथे को कसकर बांध दिया व उसे गोद में उठाकर अस्पताल की और दौड़ पड़ी,तेज बारिश के कारण नेटवर्क व फोन भी ठप्प पड़े थे तो शर्मीला किसी को बता नहीं पायी, उसने चिन्टू को एक बरसाती में लपेट लिया था।
वह स्वयं भीगती हुई तेज चाल के साथ अस्पताल की और चली जा रही थी, आखिर अस्पताल आ गया, डाक्टर ने चिन्टू का प्राथमिक उपचार कर दिया पर खून बहुत बह गया था उसे खून चढ़ाने की आवश्यकता होने लगी, शर्मीला ने तुरंत अपना ब्लड ग्रुप जाँच करवाया संयोगवश उसका ब्लड ग्रुप मेल खा गया उसकी समझदारी से चिन्टू की जान बच गयी।
तभी विमला देवी पुरे परिवार के साथ अस्पताल पहुँच गयी सारी बात बिना समझे वह शर्मीला पर चिल्लाने लगी, वह उसके घर से इस तरह निकल जाने पर बहुत नाराज थी, शर्मीला कुछ बोल पाती इससे पहले डाक्टर साहब बोले ।
” शर्मीला !! अगर आज तुम चिन्टू को समय पर नहीं लाती तो उसे बचाना अंसभव हो जाता था, आज तुमने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई जैसा साहस दिखाया हैं।”
इतना सुनते ही सभी परिवार वाले हंसने लगे।
” मुझे माफ कर दो मेरी झांसी की रानी मैं तुम्हें गलत समझती रही, तुम मेरी सबसे जिम्मेदार बहू हो जो विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी सुझबूझ से हल निकालना जानती हैं, आज मुझे मर्यादा का असली अर्थ समझ में आया ” विमला देवी को शर्मीला पर पहली बार गर्व हुआ।
शर्मीला भी आज पहली बार अपने नाम के अनुसार शर्मा रही थी, उसका पति शुभम शरारत से उसके कान में बोला ” अरे वाह !! मेरी झांसी की रानी तुमने तो कमाल कर दिया।”
अब दादी जी शर्मीला की बहादुरी का किस्सा अपनी सहेलियों को सुनाती हैं और इतराती हैं, अब चाहकर भी सहेलियां आग नहीं लगा पाती हैं शर्मीला और चिन्टू आज भी मस्ती करतें रहते हैं अब विमला देवी भी अपनी मर्यादा भूलकर उनके खेलों में शामिल होती हैं, शर्मीला ने सबके दिल में अपनी और अच्छी छवि बना ली हैं जो आधुनिक युग की बहू वाली असली मर्यादा हैं।
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#मर्यादा
पायल माहेश्वरी
यह रचना स्वरचित और मौलिक हैं।
धन्यवाद।