जब तक जियो स्वाभिमान के साथ जियो –   संगीता अग्ग्र्वाल

क्या बात है स्मिता जी आप आजकल पार्क नहीं आ रहीं ?” नंदिता ने अपनी पार्क में मिलने वाली मित्र के घर आकर पूछा। ” बस नंदिता जी थोड़ा तबियत नासाज चल रही आजकल !” स्मिता ने बुझे स्वर में कहा। ” हाँ थोड़ा मौसम और थोड़ा उम्र का तकाजा भी तो है मेरी तबियत का भी कोई भरोसा नहीं रहता !” नंदिता बोली। ” मांजी जरा इधर आना !” स्मिता कुछ बोलती उससे पहले दरवाजे पर आई उनकी बहु नताशा ने आवाज़ दी। ” अभी आई मैं !” स्मिता नंदिता से ये बोल उठके चली गई नंदिता ने महसूस किया स्मिता घबराई सी है ! “ये क्या है मांजी मेरा घर धर्मशाला नहीं जो आपकी कोई भी सहेली यहाँ चली आती है मैं कहे देती हूँ ये सहेलीपना बाहर तक सीमित रखिये आपको झेल रहे हैं इतना काफी नहीं है क्या !” नताशा सास से रूखे स्वर में बोली। ” माफ़ करना बहु मैं उसे बोल दूंगी !” स्मिता जी सिर झुका कर बोलीं क्योंकि वो जानती थीं बहु ने जो कुछ कहा है इतनी जोर से बोला है कि जरूर नंदिता ने सुन लिया होगा। वो सिर झुकाये अपने कमरे में आईं उन्हें देख नंदिता मुस्कुरा दी। ” चलिए स्मिता जी थोड़ा घूम आते हैं आपको अच्छा लगेगा !”

नंदिता जी मुस्कुराते हुए बोलीं। स्मिता जी बिना कुछ बोले चल दीं वो सोच रही थीं अब पार्क में सबको पता चल जायेगा मेरी बहु मेरे साथ कैसा व्यवहार करती है क्योंकि अभी तक तो सब एक दूसरे को पार्क के जरिये ही जानती हैं किसी का किसी के घर नही आती थी आज भी नंदिता जी स्मिता जी के कई दिन से पार्क ना आने के कारण खोजती हुई उन्हें आई थीं ।

स्मिता की बहु ने जिन सहेलियों की बात की वो पड़ोसन थीं सारी। पार्क में सब एक दूसरे को ऐसा ही दिखाती थीं जैसे वो लोग अपने परिवार के साथ खुशी ओर सम्मान के साथ अपने जीवन की संध्या बेला काट रहे हैं। ” वो…नंदिता जी आज जो कुछ भी हुआ …!” आखिरकार स्मिता नंदिता जी से कुछ बोलने को हुई तो उन्होंने चुप करा दिया। ” बेफिक्र रहिये स्मिता जी मैं पार्क में किसी से कुछ नही कहूँगी पर आप बताइये आप ये सब कब तक सहेंगी क्या आपकी अपनी इज़्ज़त नहीं है क्या हम बूढ़े इतने लाचार हो जाते हैं कि बेटा बहुओ की सुनते हैं।” नंदिता जी प्यार से बोलीं। ” माफ़ कीजियेगा नंदिता जी जाके पैर ना फटे बिवाई वो क्या जाने पीर पराई…पति के ना रहने से एक औरत वैसे ही बोझ हो जाती है फिर जब अपना बुढ़ापा इन्हीं बेटे बहु साथ काटना तो सुनना भी पड़ेगा ना …खैर आप क्या समझें ये आप तो अपने बेटे बहु साथ एक बेहतर जिंदगी जी रहीं ।” स्मिता जी दुखी स्वर में बोलीं। ” हां मैं एक बेहतर जिंदगी जी रही हूँ इसमें कोई शक नहीं पर किसने कहा कि अपने बेटे बहु साथ जी रही !” नंदिता जी मुस्कुराते हुए बोलीं। ” मतलब …! जब आपके पति नहीं हैं तो आप बुढ़ापा बेटे बहु के सहारे ही काटोगी ना !” स्मिता जी हैरानी से बोलीं। ” चलिए जब मुझे आपके जीवन की एक सच्चाई आज पता लगी तो आपको भी अपने जीवन की सच्चाई बताती हूँ आप पार्क ना चलकर मेरे घर चलिए !” नंदिता बोली और अपनी दिशा बदल दी । साथ-साथ स्मिता जी भी चलने लगीं। नंदिता जी ने रिक्शा ले लिया। ” ये क्या है नंदिता जी …?” नंदिता जी के घर के बाहर रिक्शा रुका तो स्मिता हैरानी से बोल उठीं। ” आप अंदर तो चलिए …!” रिक्शा वाले को पैसे दे नंदिता जी उनका हाथ पकड़ अंदर चल दी।




” ये सब क्या है नंदिता जी कुछ बताइये तो ?” स्मिता अंदर आकर बोली। “आपने कहा था जाके पैर ना फटे बिवाई वो क्या जाने पीर पराई …पर सच तो ये है स्मिता जी इन पैरों में बिवाई ही नहीं फटी थी ये तो बेटे बहु के दुर्व्यवहार से छलनी छलनी हो चुका था पर मैने बजाय उनकी सुनते हुए जिंदगी किसी तरह घसीटने की जगह स्वाभिमान से जीने की ठानी !” नंदिनी जी ने स्मिता जी के सामने मानो बम फोड़ा। ” ओह्ह ….पर ये सब कैसे किया आपने ?” स्मिता आस पास नज़र दौड़ाते हुए बोलीं। ” मैने अपने दोनों बेटों को अपनी जायदाद से बेदखल कर दिया क्योंकि जो बेटे अपने माँ बाप के नहीं होते उनकी जायदाद में भी ऐसे बेटों या बेटियों का हक नहीं होता …बेटे बहु के जाने के बाद बहुत दिनों तक अकेले रोती रही पर फिर खुद को मजबूत किया और ये सिलाई केंद्र शुरु किया और अपने जैसी दूसरी औरतों को जोड़ा जो अपने बेटे बहु के हाथों मजबूर थीं। जिनके पास अपना घर बार था

उन्हें प्रेरित किया खुद के लिए स्टैंड लेने को जिनके पास कुछ नहीं था उनकी यहीं रहने की व्यवस्था की। शुरु में सब आसान नहीं था पर हौसलों के बल पर सब होता चला गया अब तो हमने अपने साथ कुछ बुजुर्ग पुरुषों को भी जोड़ लिया है जो दूसरे कमरे मे पैकिंग का काम करते हैं …और ये जो तुम छोटी उम्र की औरतें देख रही हो ये अपने पतियों की सताई हैं हमें भी कुछ ऐसी औरतों की जरूरत थी तो मैंने इन्हें रख लिया। इस काम में सात साल की मेहनत लगी है पर अब तो यहाँ का सिला कपड़ा विदेशों में भी जाता है !” नंदिता जी गर्व से बोलीं। ” नंदिता जी आप तो इस उम्र में भी सबकी प्रेरणा हैं, जिस उम्र में लोग थक कर बैठ जाते हैं …अपने हालातों से समझौता कर लेते हैं आपने ना केवल खुद के लिए स्वाभिमान की राह चुनी बल्कि कितने लोगों को सम्मान की राह दिखाई सच में आपको श्रद्धा से नमन करने को जी चाहता है । पर आपने कभी पार्क में इस बात का जिक्र नहीं किया ?” स्मिता जी ने पूछा। ” स्मिता जी मैं उस पार्क मे इसलिए जाती थी क्योंकि वहाँ कभी अपने पति के साथ जाया करती थी तो उनकी यादें जुड़ी हैं उससे साथ ही वहाँ जाने का मकसद आप जैसी औरतों को ढूंढना और उन्हें स्वाभिमान से जीना सिखाना भी है …स्मिता जी हम माँ बाप जब औलाद को जन्म दे सकते उसे पाल पोस बड़ा कर सकते तो ताउम्र सम्मान से जी भी सकते हैं !” नंदिता जी उनके कंधे पर हाथ रख बोलीं।




” सही कहा आपने पर जो महिला या पुरुष अशक्त हो जाते हैं बिल्कुल उनका क्या …?” स्मिता ने फिर पूछा। “उनकी देखभाल ताउम्र ये संस्था करती है हमारे साथ बहुत से संगठन भी जुड़े है अब जो हमारी सहायता करते हैं !” नंदिता ने बताया । ” ठीक है नंदिता जी अब मैं चलती हूँ !” स्मिता बोली। ” पर कहाँ …आपको ये संस्था नहीं ज्वाइन करनी ?” नंदिता हैरानी से बोली। ” करनी है ना कल से आउंगी पर अभी एक जरूरी कदम भी तो उठाना है …अपने स्वाभिमान के लिए !” स्मिता जी आत्मविश्वास के साथ बोलीं और बाहर निकल गई बाहर आ उन्होंने वहाँ लगे बोर्ड को नमन किया जिसपर लिखा था ” स्वाभिमान की जिंदगी चाहिए तो हमारे पास आइये ” घर आकर स्मिता जी ने अपने बेटे बहु को बुलाया और साफ बोल दिया कि आज बल्कि अभी से तुम ऊपर शिफ्ट हो जाओ जब तक मैं जिंदा हूँ अकेले रहूंगी नीचे और तभी तक तुम भी रह सकते हो यहाँ। पर हां किराया देकर।

उसके बाद ये घर एक संस्था के पास चला जायेगा जो इसे बेच मेरे जैसी औरतों के कल्याण में पैसा लगाएगी। स्मिता जी के बेटे बहु अवाक् रह गये और कई तरह से स्मिता जी को समझाने का प्रयास किया रिश्तों की दुहाई दी पोते पोती का वास्ता दिया और आखिर में धमकाया भी। पर स्मिता जी टस से मस ना हुईं उन्होंने पुलिस की सहायता लेने की बात तक कर दी क्योंकि आज उन्होंने स्वाभिमान से जीने का पाठ जो पढ़ लिया था। आखिरकार मन मसोस कर उनके बेटा बहु ऊपर की मंजिल पर चले गये वरना बात पुलिस तक जाती तो इससे भी हाथ धोना पड़ता साथ ही ये उम्मीद थी कि शायद थोड़े समय बाद माँ का मन बदल जाये।।

और स्मिता जी गुनगुनाती हुई अपने लिए चाय बनाने चल दी आज बहुत दिनों बाद अपनी पसंद की चाय स्वाभिमान से पिएंगी वो। दोस्तों ऐसा बहुत से परिवारों में होता है कि अपने बड़े बूढ़ों को आवांछित सा समझ लिया जाता है ऐसे बच्चे भूल जाते हैं कि उन्हे काबिल इन्हीं माँ बाप ने बनाया है । साथ ही हर माँ बाप को अपने जीतेजी अपनी संपत्ति कभी भी अपने बच्चों को नही देनी चाहिए क्योंकि वो सम्पति ही आपको स्वाभिमान से जीना सिखा सकती है अगर संपत्ति नहीं भी है तो भी खुद की ताकत पहचानिये खुद का कोई हुनर हो या कुछ भी हो उसको विकसित कीजिये । जीवन की संध्या बेला में कुछ भी कीजिये पर अपनी औलादों के हाथों अपना अपमान मत करवाइये।

आपकी दोस्त

संगीता

# स्वाभिमान

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