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जब अच्छा वक्त गुजर गया तो बुरा वक्त भी बीत जाएगा..! – निधि शर्मा 

भैया रिश्ते कैसे भी हो अपनों के साथ और सहारे वक्त कट ही जाता है अगर उन रिश्तों को संभाल के रखा जाए पर तुम तो सब भूल गए। क्या मां ने रिश्ते नहीं संभाले या हमें नहीं संभाला जो आज तुम कोई रिश्ता नहीं संभाल पाते हो! कल तक जिस मां की आवाज से हमारा घर आंगन गूंजता था आज वो अपने मुंह पर ताला लगाए बैठी हैं, आखिर ऐसा क्या हो गया घर में जो मां अब किसी से बात नहीं करना चाहती है।” नेहा अपने भाई नवीन से कहती है।

नवीन बोला “क्या कमी है मां को हर चीज तो उसे मिल जाती है पर उसका ध्यान अपनी बेटी में लगा रहता है तो बहु से कहां खुश होगी। ये देखो मां तो यहीं बैठी हुई है क्यों मां क्या तुम्हें हमारे घर में कोई तकलीफ है..? होती है तो खुल कर कहो बेटी के पास शिकायत करने से क्या हो जाएगा? आखिरकार मैं ही काम आऊंगा इतना याद रखना।”

नेहा बोली ” भैया इस तरह से मां से बात करोगे तो अपने मन की तकलीफ आपसे कैसे बांटेगी। मैं समझती हूं घर बाहर संभालना बहुत मुश्किल हो जाता है पर भाई ऐसा क्या हो गया कि हमारे बचपन के रिश्ते यू खराब हो गए..! तुम्हारी कड़वी बातों के कारण तुम्हारा हर किसी के साथ रिश्ता खराब हो गया है!”

नेहा की मां बूढ़ी हो गई थी भाई के साथ ही रहती है। बेटी के पास जाती थी जब तक चलने फिरने लायक थीं, अब वो कहीं जाने लायक नहीं है और जाना भी नहीं चाहती है। अब भाई को उनके लिए वक्त निकालना पड़ता है जो उसे बोझ लगता है।

कई लोग अंदर से इतने बुरे नहीं होते हैं पर उनकी बोली इतनी खराब होती है कि हर रिश्ता टूट जाता है या कहें कि बिखर के रह जाता है। नेहा का भाई सब करता था पर उसकी बातें उसकी मां सुनीला जी को बहुत चुभती थी।

नेहा की भाभी रेनू का स्वभाव भी मिलनसार नहीं था। वो अपने बच्चों को भी कहीं आने जाने से मना करती थी, तो वे भी वैसे ही बने एक ही घर में सब अपने अपने कमरे में रहते थे। ऐसे में बेचारी सुनीलाल जी अकेले कमरे में छत को निहारती थी!

नवीन आता तो हालचाल पूछता और चला जाता था मां के पास बात करने का एक ही जरिया था वो था उसका फोन.. फोन भी कोई ऑन करके देता या आवाज बढ़ाकर देता तभी वो बात कर पाती थीं अन्यथा तो वो सुन भी नहीं पाती थी।

सुनीला जी की उम्र करीब 70 वर्ष की होगी उनके पति किशोर बाबू की उम्र उनसे 2 साल ज्यादा थी, उन्हीं के सहारे वो थोड़ा बहुत इधर उधर चलती फिरती थीं। दोनों दंपत्ति एक दूसरे का हाथ पकड़ कर घर में ही टहल रहे थे।

अचानक किशोर बाबू की लकड़ी से फूलदान टकराया और गिर गया जिसके कारण रेनू ने घर में बहुत हंगामा खड़ा किया। किशोर बाबू बोले “बहु फूलदान ही तो था वो तो दूसरा मिल जाएगा पर तुम जितने अपमानजनक शब्द हमें कह रही हो क्या वो सम्मान वापस मिल पाएगा।”



रेनू बोली “अपने समय में तो अपनी जिंदगी जी ली आप लोगों ने पर हमारा जीना हराम कर के रखा है। अरे जब चलने फिरने में दिक्कत होती है तो क्यों घर में घूमते फिरते हैं एक जगह रहिए। कुछ न कुछ आप लोग तोड़ते फोड़ते रहते हैं, आने दीजिए आपके बेटे को कहूंगी आपको घुमाकर लाए कम से कम घर का सामान तो नहीं टूटेगा।” इतना कहकर रेनू चली गई।

सुनीला जी बोलीं “सुनिए मुझे नहीं घूमना मुझे एक जगह बैठा दीजिए मेरी वजह से आपको भी चार बातें सुनने को मिलती है।”

किशोर बाबू बोले “एक समय था इस घर में तुम्हारे मायके के लोग आते-जाते रहते थे तो कितना चहल-पहल होता था, अब तो तुम्हारे बेटे बहू के व्यवहार के कारण कोई नहीं आता है।” दोनों उदास अपने कमरे में बैठे रहे कि बेटा आएगा तो दो बातें करेगा।

नेहा की मां का मायका पास में था जिससे उन्हें बहुत लगाव था। पर वहां से भी कोई आता तो नवीन बड़ी कटुता से बात करता या उसकी पत्नी कभी उन्हें एक चाय के लिए भी पूछती नहीं तो लोग कम ही आते थे, रिश्ते तो जोड़ने से बनते हैं ना कि कड़वी बातों से!

भाई और भाभी की इन्हीं कड़वी बातों के कारण नेहा भी कम आती थी, क्योंकि वो तो बर्दाश्त कर भी लें पर उनके पति या बच्चे कैसे करेंगे हर किसी को अपना आत्मसम्मान प्यारा होता है।

नवीन घर आया तो रेनू ने कहा “अब बस बहुत हो गया आज आपको फैसला करना होगा कि आपको आपके माता-पिता चाहिए या पत्नी और बच्चे..? या तो आप इनके रहने की व्यवस्था कहीं और कर दो या फिर हम कहीं और चले जाते हैं।”

नवीन बोला “आखिर हुआ क्या..?” रेनू बोली “पूरे दिन घर में घूमते रहते और कुछ न कुछ तोड़ते फोड़ते रहते हैं, घर का काम कम होता है जो मेरा और काम बढ़ाते हैं।” नवीन बोला “तुम ही बताओ मैं क्या करूं क्या तुम्हारे पास कोई सुझाव है?”

रेनू बोली “मैंने कई वृद्ध आश्रम के बारे में सुना है जहां कुछ पैसे देकर लोग अपने मां-बाप को छोड़ देते हैं और उनकी अच्छी सेवा वहां होती है। पैसे तो हम भी यहां खर्च कर ही रहे हैं, कम से कम वहां पैसे खर्च करके अगर चैन की नींद सो सकते हैं तो इन्हें वहां छोड़ आओ क्योंकि अब मुझसे बर्दाश्त नहीं होता।”

सुनीला जी ने बेटे बहू की बात सुनी उस बात ने उन्हें अंदर तक तोड़ दिया। उन्होंने ये सारी बात अपने पति को बताई तो वो बोले “इतना अपमान तो वहां भी नहीं होगा। सुनीला अच्छा है अगर यहां से चले जाएंगे तो कम से कम अपनों के हाथों को अपमानित नहीं होंगे।” इतना कहकर दोनों उदास मन से बिना खाए पिए सो गए।

एक रोज बेटी से बात हुई तो मां ने जो बात कही उससे बेटी को अंदर तक दर्द हुआ। बेटी को समझाते हुए सुनीला जी बोलीं “बेटा तुम्हारा भाई कहता है वो और उसकी पत्नी थक गए हैं हमारी सेवा करके। इसी कारण से अब मैं पानी भी कम पीती हूं ताकि मुझे बाथरूम कम जाना पड़े।”

नेहा मां की बातें सुनकर हैरान थी और सोचने पर मजबूर थी क्या बच्चे ऐसा भी कर सकते हैं! नेहा बोली “मां आप लोग मेरे पास क्यों नहीं आ जाते, क्योंकि मैं यहां सबको छोड़कर तो नहीं आ सकती पर आपदोनों तो मेरे पास रह सकते हो?”



मां बोली “नहीं बेटा अगर मुझे वहां कुछ हो गया तो तुम अपने भाई को जानती हो, वो तुम्हें बहुत सुनाएगा जो मैं नहीं चाहती! शायद ईश्वर ने हमारे लिए कुछ और सोच रखा है, कहीं न कहीं तो हमारे रहने की व्यवस्था हो रही होगी जहां हम सम्मान से मर सकेंगे, तुम हमारी चिंता मत करो।”

मां की बातों में कितना दर्द था नेहा महसूस कर सकती थी। नेहा की मां का स्वभाव इतना अच्छा था कि हर कोई उन्हें प्यार करता था क्योंकि वो हर किसी के साथ बनाकर रखती थी। पर बेटे की कड़वी बातें और उसके स्वभाव के कारण उससे मिलने भी कम ही लोग आते थे।

एक रोज अपनी बातों से नेहा मां को खुश करने की कोशिश कर रही थी तो भाई ने पीछे से बोला “मीठी बातों से पेट नहीं भरता है दूर से सब आसान लगता है करके देखो तब पता चलेगा!”

नेहा बोली “भाई मेरी भी सास है जो मेरे साथ ही रहती है और उनसे कैसे बात करनी चाहिए, रिश्तों को कैसे जोड़ना होता है ये मां ने ही मुझे सिखाया था। पर तुम भूल गए क्योंकि कड़वी बातों से रिश्ते बनते नहीं टूट जरूर जाते हैं!”

एक शाम नवीन ने माता-पिता को बोला “बहुत दिनों से आप दोनों घर से निकले नहीं है। बगल के शहर में एक बहुत सुंदर मंदिर है जहां कई वृद्ध लोग अपने स्वस्थ शरीर की कामना के लिए जाते हैं तो मैंने आप लोगों का टिकट ले लिया है, ऑफिस में भी 2 दिन की छुट्टी है चलिए वहां आपको घुमाकर लाता हूं।”

मां ये सुनकर बहुत खुश हुई वहीं पिता को आश्चर्य हुआ कि जो बेटा पिछले 5 साल से हाथ पकड़ कर बाहर नहीं ले गया वो दूसरे शहर ले जा रहा है! फिर भी उम्मीद पर दुनिया टिकी रहती है कुछ अच्छा होने की उम्मीद सोच कर दोनों उसके साथ हो लिए।

सुनीला जी बोलीं “क्या बहू और बच्चे नहीं जाएंगे..?” नवीन बोला “मां अब आप दोनों को संभालूंगा या बीवी और बच्चों को संभालूंगा। दोनों में से किसी एक को ही चुनना होगा तो देखिए मैंने आपको चुना है अब देर मत कीजिए चलिए।” इतना कहकर दोनों को गाड़ी में बिठाया और निकल गया।

करीब 4 घंटे बाद नवीन अपनी मंजिल पर पहुंचा कागजी कार्यवाही की और दोनों को एक कमरे में बैठाया और बोला “ये आपका सारा सामान है और कुछ पैसे हैं जब भी कुछ जरूरत हो आप इन लोगों को कहिएगा।”

सुनीला जी बोलीं “बेटा क्या तुम हमारे साथ या नहीं रुकोगे..!” नवीन हड़बड़ा कर बोला “मैं रात के खाने की व्यवस्था करके आता हूं।” करीब 1 घंटे हो गए जब नवीन नहीं आया तो सुनीला जी को उसकी चिंता होने लगी।



कैलाश बाबू बोले “तुम चिंता मत करो मैं नीचे मैनेजर से पूछ कर आता हूं।” जब वो मैनेजर से पूछने गए तो उसने कहा “किसने कहा आपको कि आप मंदिर के धर्मशाला में आए हैं..! ये तो एक वृद्ध आश्रम है जहां आपका बेटा आपको छोड़कर गया है और ये देखिए उन्होंने अपना पता भी नहीं लिखा है। अगर कल को आपको कुछ हो जाए तो हम उन्हें बुला भी नहीं सकेंगे,न जाने आजकल के बच्चों को क्या हो गया है अपनी परेशानी यहां छोड़ जाते हैं।”

मैनेजर की बातें सुनकर उन्हें ज्यादा आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि शंका उन्हें पहले से थी वो कमरे में आए सुनीला जी को पूरी बात बताई तो वो फूट-फूट कर रोई। कैलाश बाबू बोले “सुनीला जब तुम्हारे साथ अच्छा वक्त भी कट गया तो ये बुरा वक्त भी कट ही जाएगा।” उन्होंने समय के साथ समझौता करना ही सही समझा और वहीं रहने लगे।

2 दिन बाद उन्होंने बेटी को फोन करके सारी बात बताई। नेहा मां की बातों को बस सुन रही थी मां बोली “एक बात मानोगी!” नेहा बोली “हां मां हर बात मानूंगी बोल कर तो देखो” मां बोली “मेरे जाने के बाद अपने भाई और भाभी को माफ कर देना और रिश्ता बनाए रखना मैं नहीं चाहती मेरे जाने के बाद तेरा भाई अकेला रह जाए!”

सही कहा है किसी ने मां मरते-मरते भी बच्चों के लिए सोचती है। जिस मां ने बच्चे को शहद चटाया वो मां के लिए कड़वी बातें कैसे बोलते हैं और अपनी जननी का दिल कैसे दुख आते हैं..? नेहा ने बहुत कोशिश की कि माता-पिता को अपने साथ ले जाए परंतु उन्होंने अब कहीं भी जाने से इंकार कर दिया तो नेहा वापस लौट आई।

नेहा रोज बात मां से बातें करती और भगवान से मां के लिए दुआ मांगती। जब तक मां थी ये सिलसिला यूं ही चलता रहा..। कुछ साल बाद मां चल बसी पिता ने अपनी सारी संपत्ति बेटी के नाम कर दी और बेटे से सारे रिश्ते तोड़ कर उसी वृद्ध आश्रम में रहने लगे।

जब कोई उनसे उनके दुख का कारण पूछता तो वो बस इतना ही कहते “दुख इस बात का नहीं कि बेटे ने हमारी सेवा नहीं की, तकलीफ तो इस बात की है कि उसने हमें छल से यहां भेजा।”

समय बीता बेटी कभी कभी मिलने आती एक दिन पिता ने नेहा को भी वहां आने से मना किया ये कहते हुए की “आखिरी समय में मैं मोह माया से दूर रहना चाहता हूं। मैं नहीं चाहता कि मेरे आखिरी वक्त में मेरी ऐसी हालत देखकर तुम्हें तकलीफ हो और तुम्हारा दुखी चेहरा मैं अपनी आंखों में लेकर जाऊं। बेटा जब अच्छा वक्त नहीं चाहता तो बुरा वक्त भी नहीं चाहता ये भी कट ही जाएगा।”

नेहा दुखी मन से वहां से चली गई अब बस वो फोन करके अपने पिता का हाल-चाल लेती पर भाई से कोई रिश्ता नहीं रखती। क्यों किसी ने सोचा होगा कि एक हंसते खेलते परिवार का ये हर्ष होगा। बेटे बहू के लोभ ने एक बेटी से उसके माता-पिता को छीन लिया, एक पति को अपनी पत्नी के दर्द को देखने पर मजबूर किया क्या इसे ही कलयुग कहते हैं..?

आपको ये कहानी कैसी लगी अपने अनुभव और विचार कमेंट द्वारा मेरे साथ साझा करें। कहानी को सीख समझकर समझकर पढ़े और ज्यादा से ज्यादा शेयर करें ताकि लोगों की मानसिकता बदले बहुत-बहुत धन्यवाद

#वक्त 

निधि शर्मा 

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