इज़्ज़त किसकी – डॉ ऋतु अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

 “तू निकल यहाँ से! हमारे पास नहीं है तुझे खिलाने के लिए फालतू पैसे! काम का न काज का दुश्मन अनाज का। तेरी पढ़ाई-लिखाई पर इतना खर्चा किया। सोचा कि पढ़ाई पूरी होने के बाद तू नौकरी करेगा तो कुछ घर में सहारा लगेगा पर नहीं जी, इन्हें तो दिवास्वप्न देखने से ही फ़ुर्सत नहीं है। यह फुटबॉल खेलने से रोटी नहीं मिलती। अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल खिलाड़ी बनेंगे यह!” बड़े भाई ने तनुज को लगभग घर से बाहर धकियाते हुए कहा।

           “भैया! मेरी बात तो सुनिए!” तनुज ने भाई को समझने के प्रयास में अंदर आते हुए कहा।

          “यह रहे तुम्हारे कपड़े! उठाओ इस बैग को और निकलो।” तनुज के कपड़े एक बैग में भरकर उसके सामने फेंकती हुई उसकी भाभी आशिमा ने हिकारत भरी नज़रों से देखा।

            “सोमिल! यह तू क्या कर रहा है? तेरा छोटा भाई है, इस घर पर इसका भी पूरा हक़ है।” विमला जी ने लगभग अपने बड़े बेटे को डाँटते हुए कहा।

          “मैं कब मना कर रहा हूँ? पर केवल हक़ ही पता हैं आपको इसके या इसे कर्तव्य भी बताएँगी आप? घर के खर्चे में भागीदारी निभाये अपनी और आराम से रहे।” सोमिल ने बेशर्मी से कहा।

           “कर्तव्य तो तू मत बता मुझे! तेरे पिताजी ने तुझे ऊँची शिक्षा दिलाने के लिए बड़े शहर भेजा और तनुज को यहीं कस्बे में ही पढ़ाया। तू बड़ी नौकरी वाला हो गया तो तुझे बड़े बोल कहने आ गए। तेरा जिस विषय को पढ़ने का मन था, हमने तुझे पढ़ाया, तनुज फुटबॉल में कैरियर बनाना चाहता है तो तुझे क्या दिक्कत है?” विमला जी ने कहा।

          ” माँ! मैंने पढ़ाई की और बड़ी नौकरी हासिल करके अपनी कमाई से पूरे घर के खर्च उठा रहा हूँ तो क्या तनुज का कुछ फ़र्ज़ नहीं है? इस फुटबॉल से कुछ नहीं होने वाला। तनुज को भी घर खर्चे में अपना हिस्सा देना होगा।” सोमिल ने कहा।

           इससे पहले विमला जी कुछ और कहतीं, तनुज ने उन्हें चुप रहने का इशारा किया और बैग उठाकर चुपचाप वहाँ से चला गया। तनुज का स्टेट लेवल फुटबॉल टीम में चयन हो गया था और यही खुशखबरी वह घर में बताना चाहता था पर इससे पहले ही यह सारा बवाल हो गया।

          तनुज ने अपने कोच को जब यह सारा वृत्तांत सुनाया तो उन्होंने तनुज की हॉस्टल में रहने की व्यवस्था कर दी। अपनी लगन और मेहनत की बदौलत तनुज अब राष्ट्रीय स्तर की टीम का कैप्टन है और साथ ही हरियाणा रेजीमेंट में सूबेदार भी। तनुज को उसकी उत्कृष्ट सेवाओं के लिए पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया।

       आज 5 वर्षों के पश्चात तनुज अपने घर के दरवाजे पर खड़ा है। उसे देखते ही भाई-भाभी उसका आतिथ्य-सत्कार करने लगते हैं।

          “तनुज! मेरे भाई मुझे तुझ पर बहुत गर्व है। तूने हमारा नाम रोशन कर दिया। अब तू घर वापस आ जा। तेरी भाभी ने अपनी छोटी बहन से तेरी शादी की बात चलाई है।” सोमिल वाणी में मिठास घोलते हुए बोला।

        “माफ़ कीजिएगा भैया! न तो मैं यहाँ रहने आया हूँ और न ही किसी से रिश्ते जोड़ने। मैं तो सिर्फ यहाँ अपनी माँ को लेने आया हूँ और हाँ, इस मकान में आधा हिस्सा मेरा भी है क्योंकि यह घर मेरे माँ-पापा ने बनाया है तो आप जल्द से जल्द इस घर के दो हिस्से करवा लीजिएगा।” तनुज ने खड़े होते हुए कहा।

         “यह तू क्या कह रहा है? तुझे घर के टुकड़े करने की बात कहते हुए शर्म नहीं आती।” सोमिल हड़बड़ा गया।

         “नहीं! क्योंकि आपने ही मुझे सिखाया है कि इज़्ज़त इंसान की नहीं पैसे की होती है। चलो माँ।” कहकर तनुज, विमला जी का हाथ थामे वहाँ से चला गया।

         सोमिल और आशिमा स्तब्ध खड़े रह गए।

 स्वरचित 

डॉ ऋतु अग्रवाल

मेरठ, उत्तर प्रदेश 

#इज्जत इंसान की नहीं… पैसों की होती है।”

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