इज्जत कमाओ – भगवती सक्सेना गौड़

रीना सर्विस से रिटायर हुई, आजकल बड़े शांत भाव से आराम फरमाती थी। कई दिनों से अपनी बड़ी दीदी सीता की बहुत याद आ रही थी। बेटे से कहा, सुनो अगर हो सके तो ट्रेन का ही रिजर्वेशन करा दो, दीदी की बहुत याद आ रही, व्यस्तता के कारण कुछ वर्षों से मिलना नही हुआ।

बेटे ने दूसरे ही दिन सब तैयारी करवा दी, और वह निकल पड़ी।

अपनी बहन सीता के घर बनारस पहुँच गयी।  दोनो बहने गले मिली। सीता का पूरा परिवार आस पास बैठा था, रीना मौसी की रट लगाए बहू बेटा भी बहुत खुश लग रहे थे, छोटा सा पिंकू भी गोदी में आ गया था। तभी सीता ने बहू से कहा, “सिर्फ गप्पे ही करोगी, या चाय भी बनेगी।” और बहू चाय बनाने निकल पड़ी।

एक दो दिन में ही रीना ने गौर किया, आज भी सीता पहले की तरह कुछ ज्यादा ही बोलती  रहती थी, कभी मेड, कभी बहुरानी, कभी पतिदेव, कभी पोते को ज्ञान देती ही रहती थी, हर बात को चिल्ला कर बोलना,  गुस्सा करना उसकी उम्र के साथ बढ़ता जा रहा था । दिन भर घर मे कलह रहती थी । एक दिन रीना से बोली, “देख रही हो, दीदी, चालीस साल से ये घर संभाल रही हूं, कोई आज भी मेरी इज्जत नही करता, बात नही मानता, मैं बोलती रहती हूं, ये लोग करते अपने मन की है।”

“देखो सीता बुरा मत मानना, आज ही तुम मेड के ऊपर बहुत गुस्सा कर रही थी, कितना गंदा बर्तन धोती हो, ये दोबारा करो। बहू को भी इतनी बुरी तरह डांटती हो। आज के समय मे कोई नही सुनता, भाग्यवान हो जो लोग बर्दाश्त करते हैं, वरना आज की बहुएं किसी का नही सुनती।”

“क्या रीना तुम मेरी बहन हो, तुम भी उन सबके तरफ हो गयी।”




“एक बात बोलू, मानोगी, जैसे ही उम्र के कठघरे में वरिष्ठ शब्द आने लगे, अपने आप से बाते ज्यादा करो, खामोशी से सबको समझने की कोशिश करो, दिन का अधिकतर समय अपने लिए जिओ, बहुत कर लिया परिवार के लिए , हर बदलाव को स्वीकारो,  फिर देखो कितना सुकून मिलेगा, घर की बागडोर बहू के हाथ सौप दो, और खुश

 रहो, इज्जत कमानी पड़ती है, खुद ब खुद नही मिलती।”

“ये बात तो बिल्कुल ठीक रही, कल से सुबह शाम घूमने जाऊंगी, अपने पसंद की किताबें पढूंगी।”

स्वरचित

भगवती सक्सेना गौड़

बैंगलोर

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!