इतना तो बनता ही है – करुणा मलिक : Moral Stories in Hindi

माँ, आप कल बच्चों के साथ  क्यों सोई  थी ? 

क्यों… क्या मैं बच्चों के साथ नहीं सो सकती? 

सो सकती हैं पर वो बाबूजी रात में अकेले रहे । मैं तो केवल ये कह रही थी कि अंश को बाबूजी के पास भेज देती या  आप दोनों पोतों के साथ रहना चाहती थी तो अपने बेटे को कह देती , ये बाबूजी के साथ सो जाते । 

अरे क्या हो गया वैशाली, अभी इतने भी बूढ़े नहीं हुए तुम्हारे बाबूजी । बाहर के मुल्कों में देखो … कैसे अस्सी- पिचासी साल के लोग भागे फिरते हैं, पति- पत्नी एक-दूसरे का ख़्याल रखते हैं और यहाँ साठ के हुए नहीं कि सौ साल के बुजुर्ग बनकर आराम फ़रमाने लगते हैं । 

यस दादी , आई स्ट्रोगंली एग्री विद यू । मम्मी! आप क्यूँ मेरे यंग दादा-दादी को बूढ़ा बनाना चाहती है । 

अरे नहीं-नहीं बेटा , मेरा वे मतलब नहीं था । भगवान करे , तुम्हारे दादा-दादी यूँ ही सेहतमंद और खुश रहें । 

पर वैशाली ने अगले दिन फिर देखा कि माँ रात में अपने कमरे में ना सोकर बच्चों के कमरे में ही सोई । दो दिन तो दोनों बेटे बड़े खुश थे कि दादी उनके पास सोई पर तीसरे दिन दादी का पक्ष लेने वाला अंश वैशाली के पास आकर बोला —-

मॉम , आज तो मुझे अपना प्रोजेक्ट करने के लिए देर तक जागना पड़ेगा । पिछले दो दिन तो मैंने दादी के हिसाब से बत्ती बुझा दी थी और यह सोचकर काम पूरा नहीं किया कि चलो एक दिन बाद कर लूँगा पर कल तो प्रोजेक्ट जमा करने की अंतिम तिथि है । होप सो कि आज दादी अपने कमरे में ही सोएँगी । 

पर जब आनंदी जी पोतों के कमरे में आकर बेड पर बैठ गई तो अंश ने कहा——

दादी, प्लीज़ आज जल्दी लाइट ऑफ करने के लिए मत कहना क्योंकि आज तो हर हालत में मुझे अपना प्रोजेक्ट पूरा करना है। 

अच्छा….. चल । मेरी नींद तो उचट जाएगी  पर चादर से मुँह ढककर सो जाऊँगी । 

रसोई में दूध बनाती वैशाली के कानों में भी सास की बातें पड़ी और वह मन ही मन सोचने लगी कि आख़िर ऐसी क्या बात है कि आराम से अपने कमरे में सोने की बजाय, माँ बच्चों के हिसाब से समझौते करने में लगी है ।  लेकिन उसने  उस समय कुछ भी कहना मुनासिब नहीं समझा । 

अगले दिन वैशाली ने रोज़ की तरह नाश्ते के लिए सास- ससुर और पति को बुलाया । वैशाली ने गौर किया कि जब भी बाबूजी माँ को कुछ पकड़ाने के लिए कहते या कुछ बात कहते तो माँ बाबूजी को अनदेखा और अनसुना कर रही थी । उसकी समझ में कुछ नहीं आया कि आख़िर क्या हुआ क्योंकि दोनों के बीच के प्रेम के तो सभी क़ायल थे । वैशाली ने सोचा कि पति राकेश से कहना बेकार है क्योंकि वह तो हमेशा की तरह वैशाली को ही यह कहकर चुप करवा देगा कि क्या ऊटपटाँग सोचती रहती हो ? 

उसी दिन दोपहर के बाद खाने इत्यादि से निपटकर वैशाली ने बड़ी ननद सीमा को फ़ोन करके पिछले तीन/ चार दिन की बात बताई । सीमा हँसते हुए बोली—-

वैशाली, तुम चिंता मत करो । ये तो माँ- बाबूजी के बीच की पुरानी बात है । बस देखती जाओ कि इस बार  इन दोनों में से कौन अपना ध्यान खींच रहा है? 

क्या दीदी, मैं समझी नहीं । इस उम्र में ध्यान खींचना ? यह कैसा बचपना है? 

अरे पगली , बचपना नहीं है । हमारी माँ अपने पति- पत्नी के रिश्ते को जीवंत रखना जानती है । 

दीदी , खुलकर पूरी बात बताइए ना प्लीज़ ।

अरे नहीं वैशाली, फिर तो तेरा मज़ा ही किरकिरा हो जाएगा । सब्र रख और देखती जा ।

दीदी ने तो फ़ोन रख दिया पर वैशाली उधेड़बुन में फँस गई कि आख़िर क्या पहेली है, ख़ैर वह चुपचाप अपने काम करती रही । आज माँ को अपने कमरे से बाहर निकले पाँचवाँ दिन था । वैशाली ने रोज़ की तरह नाश्ता बनाया और राकेश से माँ- बाबूजी को बुलाकर नाश्ता करने के लिए कहा । पर माँ नाश्ते के लिए नहीं आई । 

वैशाली, आज तुम्हारी सास नाश्ता नहीं करेगी क्या ?

बाबूजी, माँ के सिर में तेज दर्द है । उन्होंने तो आज चाय भी नहीं पी । माँ को देखने गई थी पर शायद उनकी आँख लग गई है, आवाज़ लगाने पर बोली नहीं । 

माँ को माइग्रेन हो जाता है ना , विशु ! मैं तो ऑफिस जा रहा हूँ तो माँ को देखती रहना और जागने पर कुछ खिला- पिलाकर दवाई दे देना । 

जी , आप बेफ़िक्र रहिए , मैं देख लूँगी । 

पर वैशाली के बहुत कहने पर भी माँ ने कुछ नहीं खाया- पिया । हाँ उल्टे ख़ाली पेट बार- बार उनका जी मिचला रहा था । 

वैशाली ने बार-बार कहा कि माँ एक- दो बिस्कुट के साथ चाय पीकर देख लो । पर माँ की ना , हाँ में नहीं बदली । 

वैशाली ने देखा कि बाबूजी अंदर- बाहर कर रहे थे । और वैशाली से बार-बार कह रहे थे—-

बहू , आनंदी को कई बार देख आया । बेटा , आज तो शायद सचमुच इसकी तबीयत ख़राब हो गई । 

आज तो ? मतलब बाबूजी, क्या किसी की तबीयत झूठ भी ख़राब होती है ? 

तभी माँ के कराहने की आवाज़ सुनकर वैशाली और बाबूजी कमरे में अंदर गए । 

वैशाली, राकेश आया कि नहीं, आज ना बचूँगी । सिर फट गया मेरा तो… 

माँ , बाम लगा दूँ, चादर तो हटाइए । 

ना मुझे ना लगवानी किसी से बाम वाम ।

इतने में बाबूजी चाय का कप और प्लेट में कुछ बिस्कुट लेकर कमरे में आए —-

आनंदी, लो अपनी पसंद की चाय पीयो । वैशाली, मुझे बाम दो बेटा , मैं माथे पर मल देता हूँ । 

ससुर के हाथ में चाय का कप देखकर वैशाली अपराधिनी सी हो गई और बोली—

बाबूजी, मेरे होते हुए आप चाय बनाकर लाएँ । सॉरी बाबूजी, मैंने तो माँ से कई बार पूछा । आप क्यों लगाएँगे, मैं माँ के माथे पर अभी बाम मलती हूँ । 

नहीं बेटा , ये बाम मुझे ही लगाने दे । राकेश आता ही होगा, तुम चाय पानी बना लो । 

थोड़ी ही देर में वैशाली देखती है कि माँ को लेकर बाबूजी अपने कमरे में जा रहे हैं । 

रात में सबके साथ माँ ने आराम से खाना खाया और  सोने का टाइम होने पर जब अपने कमरे में जाने लगी तो वंश बोला—

दादी, आज हमारे पास नहीं सोओगी क्या ? 

ना बेटा, तुम दोनों भाई आराम से सो जाओ । दूसरे के कमरे में मुझे ठीक से नींद नहीं आती । 

वैशाली बच्चों की तरफ़ और बच्चे वैशाली की तरफ़ देखने लगे। 

सोने से पहले वैशाली ने सोचा कि सीमा दीदी को आज की ताज़ा ख़बर दी जाए । माँ के अपने कमरे में जाने की खबर सुनकर सीमा पहले तो हँसी, फिर बोली कि चलो वीडियो कॉल पर छोटी बहन रीमा को भी लेते हैं । दोनों ननदों ने वैशाली को बताया कि 

वे जब छठी/ सातवीं में थी तभी से देखती आ रही थी कि साल में एक बार माँ को माइग्रेन का ऐसा दौरा पड़ता है, जो बाबूजी के हाथ की बनी चाय और उनके हाथ से बाम लगवाकर ही ठीक होता है । या बाबूजी को ऐसा बुख़ार होता था जो हम बच्चों के बग़ैर सिनेमा देखने पर ही ठीक होता था । 

पर दीदी, मेरी शादी को भी सोलह साल हो चुके, इससे पहले तो मैंने ऐसा नहीं देखा…

अरी मेरी भोली भाभी , हो सकता है कि इस बार बाबूजी ने माँ को बड़ी उम्र का हवाला दे दिया हो या अब बाबूजी को बहू के सामने इस तरह पत्नी के लिए चाय बनाना या माथे पर बाम मलना अटपटा लगा हो और उन्होंने माँ की कोई फ़रमाइश अनसुनी कर दी हो और दोनों ने कमरे में ही अपनी- अपनी बीमारी का इलाज कर लिया हो ।

वैसे भाभी , एक बात तो है कि अक्सर बहू- बेटे और पोते- पोतियों के कारण बड़ी उम्र में पति- पत्नी में एक दूरी आ जाती है पर हमें अपनी माँ से सीख लेनी चाहिए कि पति से अपनी छोटी- छोटी माँग पूरी करवाने के लिए और सेवा करवाने के लिए बीमारी का झूठा नाटक करने में कोई बुराई नहीं है ।

सीमा दीदी, कोई ऐसी बीमारी तो बताइए जिसमें एक चाय या बाम से नहीं बल्कि जलवायु परिवर्तन के लिए किसी पर्वतीय क्षेत्र की सैर करके ही राहत मिलती हो । 

भई ! वैवाहिक जीवन  को बोरियत से बचाने के लिए इतना तो बनता ही है ।

लेखिका : करुणा मलिक 

#कभी-कभी सेवा करवाने के लिए दिखावा करना पड़ता है

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