बेटा पापा को फोन किया था तुमने हाल चाल लेते रहना मुझसे तो बात ही नहीं करते हैं जाने इस उमर में कौन सी क्लास ज्वाइन किए है ….शिमली दोपहर से बहुत उद्विग्न थी।
मां पापा एकदम मजे में है रिनी के घर में । जीजाजी बहुत ख्याल कर रहे हैं उनका आप क्यों चिंता करती रहती है करने दीजिए क्लास कोई ट्रेनिंग ले रहे है रिनी बता रही थी सुमित ने हंसकर आश्वस्त किया था लेकिन शिमली की बेचैनी ज्यादा बढ़ गई थी।
कई दिन हो गए मुकुंद जी से बात ही नहीं हो पा रही है।पता नहीं ठीक से बात ही नहीं करते फोन पर केवल हां हूं ठीक हूं कह कर हंस देते हैं। रिनी और जमाई जी से पूछो तो वे भी पापा अच्छे हैं अभी उनकी क्लास चल रही है इसलिए आपसे बात नहीं कर पाते हैं उनका यहां मन लग रहा है बोल कर हंस देते हैं बस।
इतना क्या अच्छा लग रहा है इन्हें रिनी के घर में!! आखिर बेटी दामाद का घर है दोनों जॉब पर चले जाते होंगे…और ये पहली बार गए हैं.. इतने दिनों तक वहां रुकना सही नहीं लगता कहीं इनकी तबियत तो खराब नहीं हो गई….अस्पताल में एडमिट तो नहीं हैं जिसे ये लोग मुझे बहलाने को ट्रेनिंग का नाम दे रहे हैं! कोई कुछ बताता ही नहीं शिमली की व्यग्रता आज बहुत बढ़ गई थी।देखते ही देखते एक पूरा महीना बीत गया था जबकि मुकुंद जी ने आठ दस दिन बाद आने की बात कही थी।
शिमली दुखी हो रही थी मेरे बिना एक दिन गुजारा नहीं हो पाता था और अभी एक महीना खत्म होने को आ गया लेकिन मेरी याद तक नहीं आई इन्हें।पछताती भी थी कि मैने उस दिन साथ जाने से मना कर दिया था इसी वजह से नाराज हो गए हैं मुझसे। इसीलिए बात भी ठीक से नहीं करते।अपने दिल की पीड़ा किससे कहे ।कैसे चली जाती अपनी यहां की जिम्मेदारियां छोड़ कर ।बिचारी बहू तो कह रही थी मां आप पापा के साथ चली जाइए रिनी दीदी भी अकेले पापा के सब काम कैसे कर पाएंगी!यहां सब हो जाएगा आप चिंता मत करिए।
लेकिन उनका भी तो फर्ज बनता है आखिर उनके बच्चों का रिजल्ट बढ़िया आएगा तो क्या उनके लिए गर्व की बात नहीं होगी।कितना महत्वपूर्ण है बोर्ड का रिजल्ट और कितनी कठिन है पढ़ाई क्या मुकुंद जी नहीं समझते।बिचारी बहू दिन रात इतनी मेहनत कर रही है मानो खुद उसकी परीक्षा हो।ऐसे कठिन समय में यहां से अपने मजे करने के लिए जाना उनके लिए असंभव था।लेकिन एक भी दिन ऐसा नहीं गया जब सुबह की चाय पीते समय या खाना खाते समय उन्हें मुकुंद जी की याद ना आई हो।
आज दोनों पोते पोतियों के बोर्ड एग्जाम का आखिरी पर्चा था।अब तो बहू भी फुर्सत हो गई और शिमली को भी फुर्सत मिल गई।
आज सुबह से बहू रंजना ने उन्हें एक भी काम छूने ही नहीं दिया था।
रोज की तरह कल रात भी आदत के अनुसार शिमली अलार्म लगा कर ही सोई थी लेकिन जाने क्यों अलार्म बजा ही नहीं।जब उसकी नींद खुली दिन काफी चढ़ आया था।हड़बड़ाते हुए वह जैसे ही किचेन में आने लगी रंजना ने मुस्कुरा के गुड मॉर्निंग मां कहते हुए गरम चाय का मग उन्हें किचेन के बाहर ही पकड़ा दिया।
मां लीजिए आपकी तुलसी वाली चाय।
अरे बेटा पता नहीं आज आंख ही नहीं खुली ये निगोड़े अलार्म को भी जाने क्या हो गया आज बजा ही नहीं शिमली की आवाज में अपराध बोध था।
आपके निगोड़े अलार्म को मैंने चुपके से बंद कर दिया था दादी अब तो परीक्षा खत्म.. राजुल ने उनके गले में लाड से बांहे डाल कर कहा।
क्यों बंद कर दिया था तूने शिमली ने नाराज होकर पूछा।
वो मम्मी ने कहा था राजुल ने डर कर असली बात बता दी।
ठीक तो किया मां अब परीक्षा खत्म ..इतने दिनों से आप रोज सुबह सबेरे से उठ कर हम सबकी तीमारदारी में जुट जाती थीं।अब आज से ….रंजना कह ही रही थी कि बेटा सुमित आ गया… हां आज से आपसे सारा चार्ज वापिस लिया जाता है और आपकी अकुशल बहू को हस्तांतरित किया जाता है हंसकर सुमित ने कहा तो रंजना नाराज हो गई अच्छा अकुशल बहू!!! अब देखो तुम्हे चाय कैसे मिलती है आज!!
अरे ना रे सुमित मेरी बहू तो सबसे कुशल है मृदुल भाव से शिमली ने कहा तो रंजना हंसने लगी नहीं मां आपसे कुशल कोई नहीं है।कितनी फुर्ती और ख्याल से आप इस उम्र में भी घर में सभी का ध्यान रख लेती है।इतने आने जाने वालों सबसे बात करना भी बहुत बड़ा काम रहता है मां। तभी तो मैं निश्चिंत होकर बिना किसी बढ़ा के बच्चों की पढ़ाई की तरफ ध्यान दे पाई। सबकी जरूरत और पसंद का खाना नाश्ता भी बना देती हैं और वो भी कितने दुलार से बिना कोई शिकवा किए रंजना ने बहुत स्नेह से कहा तो शिमली इस दिली स्नेह को महसूस कर भीग गई।
बुढ़ापे में घरवालों का बस इत्ता सा ही सम्मान स्नेह और इत्तू सा महत्व देना ही संजीवनी हो जाता है।कितनी भागों वाली हूं मैं जो इतनी लायक बहू मिली है मुझे।इतना ख्याल करने वाला बेटा पोता सब हैं।कौन कहता है बुढ़ापा कष्टकारी होता है और आजकल की संतानें वृद्ध मां बाप को खून के आंसू रुलाते हैं।मेरे बेटा बहू तो लाखों में एक हैं।इन्हें किसी की नजर ना लगे भगवान….
दादी पर आप के हाथ की कचौरी मुझे बहुत अच्छी लगती है मम्मी उतनी अच्छी नहीं बना पाती हैं राजुल ने रंजना को चिढ़ाते हुए कहा तो शिमली विचारों के भंवर से भागी।
कचौड़ी तो तेरे पापा को भी बनानी आती है मुस्कुरा कर शिमली ने आहिस्ता से कहा तो रंजना चौंक ही गई।
सुमित को कचौड़ी बनानी आती है!! क्या कह रही हैं मां आप आश्चर्यचकित हो मीनल ने सुमित की तरफ देख कर कहा तो सुमित झेंप गया मानो कोई गलत काम करता पकड़ा गया हो।
अरे मां तुम भी कैसी बात कर रही हो मैं और कचौड़ी..!!असहज हो गया था सुमित।
दादी क्या सच में मेरे पापा को आपके समान कचौड़ी बनानी आती है राजुल आँखें बड़ी बड़ी करके पूछ रहा था।
हां राजुल मैं सच कह रही हूं शिमली के बोलते ही सुमित नाराज होकर वहां से बाहर ही चला गया।
अब क्या बताऊं बेटा तेरे दादाजी ने कभी किचेन में काम नहीं किया क्योंकि उनकी मां ने उनसे चौके चूल्हे का काम तो स्त्रियों को ही शोभा देता है कहते कभी नहीं करवाया था। तो पिता को देख देख कर सुमित के मन में भी किचेन का काम लड़कियों महिलाओं का ही होता है पुरुषों का नहीं होता ऐसे पूर्वाग्रह पैठ गए।इसके पिता हमेशा किचेन में आने से नफरत करते रहे ।मुझे भी अपनी सासू मां के कारण इनसे किचेन काम करवाना कभी अच्छा नहीं लगता था।लेकिन सुमित की आदत ऐसी ना हो इसीलिए मैंने सुमित के बड़े होते ही किचेन के काम सिखाने और अपने साथ करवाने भी शुरू कर दिए थे।मैं रिनी और सुमित दोनों से बराबरी से घर और बाहर दोनों के ही काम करवाया करती थी।दोनों सीख भी गए थे और खुशी खुशी बिना हिचक के करने भी लगे थे।गर्मी की छुट्टियों में एक एक कठिन डिश सीखने के क्रम में मैने दोनों को कचौड़ी बनाना भी सिखा दिया था।
एक दिन शाम को मै रिनी और सुमित तीनों मिलकर किचेन में कचौड़ी बना रहे थे तभी सुमित के पिता अपने दो मित्रों के साथ घर आए।पिता को आया देख सुमित उत्साह से कचौड़ी प्लेट में रख कर पिता के पास ले आया था।पिता जी देखिए मैंने अपने हाथ से कचौड़ी बनाई है लीजिए ना खा कर बताइए कैसी बनी है..!
शाबाश मुकुंदी अपने लड़के को मेहरा बना रहे हो क्या अब यही काम बचा है इसके लिए कचौड़ी बनाने का … हलवाई की दुकान खुलवाओगे क्या.. एक मित्र ने व्यंग्य पूर्ण हंसी से कहा तो इन्हें क्रोध आ गया ।
सामने प्लेट लेकर खड़े सुमित के हाथ से प्लेट छीनकर पटक दी और चीख कर डांटा खबरदार जो आज के बाद मेहरा गिरी किया ..किचेन में घुसा तो टांग तोड़ दूंगा तेरी..! पिता की अप्रत्याशित फटकार से किशोर वय सुमित सहम गया था फूट फूट कर रोने लगा था।
उस दिन के बाद से मैंने सुमित से किचेन का कोई भी काम नहीं करवाया।मैं घर का वातावरण नहीं खराब करना चाहती थी।लेकिन सुमित की देखा देखी फिर रिनी ने भी किचेन का काम करना कम कर दिया इसीलिए तो आज भी रिनी किचेन के काम मन लगा कर नहीं कर पाती है।
ओहो दादी आप लोग भी क्यों इत्ता काम करते हो अरे नौकर लगवा लो हर काम के लिए नन्ही शुभी बोल पड़ी।
ठीक बोलती है तू भी तेरे दादाजी भी यही कहते थे ।हर काम के नौकर लगवा लो उन्हें करने दो तुम आराम से बैठा करो … परन्तु मुझे लगता था जब अपने हाथ पांव चलते हैं तो क्यों नौकर लगवाएं जाएं।वैसे भी मुझे खाना बनाना घरेलू कार्य करना पसंद था ।मुझे लगता था तेरे दादाजी ऑफिस जाते है इतनी जिम्मेदारियां हैं इन पर तो ये घरेलू कार्य मेरी ही जिम्मेदारियां हैं।मुझे ही करना चाहिए।पर अब लगता है तेरे दादाजी का कहा मानकर नौकर लगवा लेना था तो शायद इनके साथ ज्यादा समय बिता सकती थी अफसोस था शिमली के स्वर में और एक अनकही टीस भी थी कि शायद इसी वजह से मुकुंद जी को उनकी याद ही नहीं आ रही है।
दादी दादाजी कब आएंगे अब तो मेरे एग्जाम खत्म हो गए हैं और दद्दू भी रिटायर हो गए है ।अब हम लोग अब चेस और कैरम की बाजी लगाया करेंगे राजुल के भाई अभि ने उत्साह से कहा तो शिमली फिर से अपनी व्यथा में डूब गई।
लो भाई कॉल द डेविल एंड डेविल इस हीयर कहते मुकुंद जी हंसते हुए घर में दाखिल हो गए…. उन्हें देख कर राजुल और अभि दोनों खुशी के मारे चिल्लाने ही लगे। दादाजी दादाजी हम लोग सच में आपको बहुत याद कर रहे थे।
शिमली तो चकित सी खड़ी हो गई।आप अचानक… बस इतना ही कह पाईं।
अरे भाई अचानक कहां आज तो आना ही था मेरी तो सुमित और बहू से बात हो चुकी थी कि बच्चों के एग्जाम खत्म होते ही आ जाऊंगा तभी तो सुमित मुझे लेने स्टेशन गया था तुम्हे सरप्राइस देना था….मुकुंद जी गहरी आत्मीयता से अपनी पत्नी की तरफ देख कर मुस्कुराए।उस दृष्टि में गहरा लगाव अपनत्व और इतने दिनों के बिछोह के बाद आज मिलने का सुख सब कुछ शिमली ने पढ़ लिया था।
सबके सामने दिल के उमड़ते भावों को रोकना उसके लिए कठिन हो गया था मुकुंद जी का अचानक आ जाना और स्वस्थ प्रसन्न दिखना उसे किसी वरदान से कम नहीं लग रहा था।
आपने तो मुझे सच में सरप्राइज़ कर दिया …मै अभी आपके लिए दालचीनी वाली चाय बनकर लाती हूं और तुरंत आंखों में छलकते आंसुओं को छिपाती किचेन की शरण में जाने लगी।
अरे आप कहां चल दीं आप यहीं बैठिए मुकुंद जी ने अपना हैंड बैग मेज पर रखते हुए कहा और एक डिब्बा निकाल कर शिमली के सामने कर दिया ।लीजिए श्रीमती जी आप तो बस ये खाइए और बताइए कैसी बनी है तब तक हम आते हैं।
कचौड़ियां..!! डिब्बा खुलते ही शिमली जोर से बोल पड़ी।
राजुल और अभि दौड़कर आ गए हमें भी कचौड़ी खाना है।
रिनी ने बनाई है इतनी बढ़िया… शिमली ने एक कचौड़ी तोड़ कर आधी बहू की तरफ बढ़ाते हुए खुद खाया।
सुमित तुम भी खाओ बहुत स्वादिष्ट बनी हैं ये तो… एक उसकी तरफ बढ़ाते हुए शिमली ने कहा।
सच में मां ये तो आपके हाथ की कचौड़ी से भी ज्यादा स्वादिष्ट बनी हैं वाह रिनी ने तो कमाल कर दिया मै अभी रिनी को फोन लगाता हूं सुमित ने कचौड़ी खाते खाते रिनी को वीडियो कॉल लगा दिया।
वाह मेरी बेटी तूने बहुत स्वादिष्ट कचौड़ी बनाई है शिमली ने रिनी को देखते हुए कहा तो रिनी जोर से हंसने लगी।
मैंने नहीं पापा ने बनाई है मां रिनी ने कहा।
पापा ने ..!!सुमित घोर आश्चर्य से बोल उठा।
शिमली हंसने लगी मजाक मत कर बेटा।
लो अब जब मैने ही बनाई है तो मजाक लग रहा है सबको…क्यों क्या मैं आपसे अच्छी कचौड़ी नहीं बना सकता हूं….कहते मुकुंद जी ने कायदे से केतली में चाय भी लाकर रख दी।
चाय आपने बनाई..!! शिमली जोरो से बोल पड़ी।सुमित नाराजगी से अपनी पत्नी की तरफ देखने लगा।
जी हां सौ प्रतिशत मैने ही बनाई है और आपसे भी ज्यादा बढ़िया बनाई है लीजिए पीकर देख लीजिए हाथ कंगन को आरसी क्या..कप में चाय उड़ेलकर शिमली की तरफ बढ़ाते हुए मुकुंद जी ने बड़े अंदाज से कहा तो शिमली अपने पति के इस बदले हुए रूप को देखती ही रह गई और वीडियो कॉल पर रिनी जोर से हंस पड़ी।
मां आपको सरप्राइस देना चाहते थे पापा …यही क्लास चल रही थी पापा की पूरे मनोयोग से आपके पसंद की सारी चीजें बनाना सीख गए हैं पापा और घर के बाकी काम भी यहां पर भी करते थे रिनी के कहते ही सबके चेहरे अचरज से खुले रह गए।
हां और अब यहां पर भी करता रहूंगा मुकुंद जी ने ठगी सी शिमली का चाय का कप उसके मुंह तक ले जाते हुए आत्मीयता से कहा ।
नहीं नहीं अब हम नौकर लगवा लेंगे आप ये सब काम नहीं करेंगे अचानक शिमली बोल पड़ी।
शिमली ये सब काम!! ये सब घर के ही तो काम हैं अभी तक तुम या बहू अकेले करते रहते थे अब से सब मिलकर करेंगे घर के हों या बाहर के सभी काम सबको करना चाहिए इसका बोध अभी ही तो हो पाया है मुझे।
नौकर भी लगवा लेंगे अगर जरूरत पड़ी फिलहाल तो मुझे ही नौकरी पर रख लो शिमली हाथ जोड़ कर विनीत मुद्रा में खड़े मुकुंद जी को देख सब हंसने लगे।
मुझे भी दादी .. तभी राजुल ने आगे बढ़ दादाजी के बगल में खड़े होते हुए कहा।
मुझे भी दादी अभि भी लपक कर दोनों के बगल में खड़ा हो गया।
और.. मुझे भी मां.. कहता सुमित भी उसी पंक्ति में शामिल हो गया ऐसा दृश्य देख कर शिमली को हंसी आ गई ..।
सबके ठहाकों के बीच देखते ही देखते डिब्बा भर कचौड़ियां स्वादिष्ट चाय के साथ पल भर में चट हो गईं थीं….!!!
लेखिका : लतिका श्रीवास्तव