आई. सी. यू.   l ICU – श्वेत कुमार सिन्हा

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रात के तकरीबन ग्यारह बजे थे जब अस्पताल में उद्घोषणा हुई और मुझे आई सी यू में बुलाया गया।

दरअसल पिताजी के सांस लेने में काफी तकलीफ होने की वजह से डॉक्टर ने उन्हें आई सी यू में भर्ती किया था जहां अभी वह वेंटीलेटर पर थे। मैं अस्पताल के ही पहले तल्ले पर बने रेस्ट रूम में ठहरा था।

उदघोषणा सुनकर बिना समय गंवाए मैं चल पड़ा। हालांकि इतनी रात गए और आई सी यू से बुलावा आना। मन में ढेर सारी आशंकाएं पनपने लगी थी और दिल भी घबरा रहा था। खैर मैं आई सी यू पहुंचा।

“सर, दादू ने आपसे मिलना चाहते थे। इशारे से उन्होने मुझे आपको बुलाने के लिए कहा।” आई सी यू में मौजुद नर्स ने बताया।

मैं पिताजी के बेड के करीब पहुंचा। देखा तो वह जागे हुए थे और मेरी तरफ टकटकी लगाकर देख रहे थे। चूंकि वह वेंटीलेटर पर थे, इस वजह से कुछ भी बोलने में असमर्थ थे। पर उनकी आंखें और चेहरे के भाव उनके मन के हालात बयां कर रही थी।  उनकी पलकें भींगी थी। देखकर मन बड़ा भारी हो गया।

बड़ी मुश्किल से अपनी भावनाओं को संभाल उनके सिराहने पहुंचा और प्यार से उनके सिर पर हाथ फेरने लगा। उनके चेहरे पर जो अनुभूति थी उसने मुझे बचपन के उन दोनों का एहसास दिला दिया जब प्यार से वो मेरे सिर पर हाथ फेरकर मुझे मनाते थे। वहीं पास ही अपने काम में व्यस्त खड़ी नर्स हम बाप–बेटे के बीच का मार्मिक दृश्य देखकर भी ना देखने का अभिनय कर रही थी।


“क्या हुआ, पापा? नींद नहीं आ रही? कोई बात नहीं! आप आंखें मूंद लीजिए। मैं यहीं खड़ा हूं। देखना….फटाक से नींद आ जाएगी।”– शब्दों में बचपन की मिठास घोले मैने पिताजी से कहा तो वह आंखें मूंद कर सोने का प्रयत्न करने लगे। कुछ देर बाद जब उनकी पलकें स्थिर दिखी तो मैने उनके सिर से हाथ हटाया। पर शायद अभी वह कच्ची नींद में थे और उनकी आंखें खुल गई।

“पापा, अब आप सो जाइए। मैं जाता हूं। नीचे ही रेस्ट रूम में हूँ। मिलने का जी करे तो नर्स को इशारा दे दिजिएगा! मै तुरंत आ जाऊंगा।” कहकर मैने उनसे जाने की अनुमति मांगी। पर किसी बच्चे की भांति उन्होंने ना में सिर हिला दिया। मेरी आंखों के सामने वे दिन तैरने लगे जब मेरा हाथ थामकर पिताजी मुझे स्कूल पहुंचाया करते थे और वापसी में मैं उनका हाथ बड़ी मुश्किल से छोड़ा करता था।

“अच्छा ठीक है! मैं कहीं नहीं जाऊंगा। देखिए मैं यहीं आपके बगल में बैठ रहा हूँ!” बेड पर लेटे पिताजी से मैने कहा फिर नर्स की तरफ देखा तो उसने एक टेबल मेरी तरफ खिसका दिया जिसपर बैठ मैं काफी देर तक पिताजी के सिर सहलाकर उन्हे सुलाने की कोशिश करता रहा।

“पापा, आप बिल्कुल चिंता न करें! डॉक्टर ने बताया है कि आपकी हालत में अब धीरे धीरे सुधार होने लगा है। बस….कुछ ही दिनों की बात है और आपको जल्दी ही यहां से छुट्टी मिल जाएगी। पता है, मैं सोच रहा हूं जब आप वापस घर जाएंगे तो मैं एक महीने की छुट्टी ले लुंगा फिर सब मिलकर साथ ही रहेंगे। वैसे भी पेट की खातिर सालों हो गए अपनों से दूर हुए! सब मिलकर फिर खूब मस्ती करेंगे! है न!!….” पिताजी के पास ही बैठ मैं काफी देर तक बोलता रहा और न जाने कब उनकी आंखें लग गई। उनके बंद पलकों से अमृत समान आंसू के दो बूंद लुढ़के और मैं जीते-जी मानो हजार मौत मरा।

“सर, दादू अब सो गए हैं। आप भी जाइए और जाकर आराम करिये।”- नर्स ने धीमे स्वर में कहा।

पिताजी के शांत और निश्चल चेहरे पर नज़रें टिकाए मैं आई.सी.यू. से बाहर आ गया। पर मन तो वहीं पिताजी के सिराहने छोड़ आया था।

श्वेत कुमार सिन्हा

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