हम लोग – देवेन्द्र कुमार

जय बड़ी बड़ी सीलबंद बोतलें टेम्पो से उतार रहा था। वह होटलों और घरों में बोतलबंद पानी पहुंचाने की नौकरी करता है।लोग समझते हैं कि नगर निगम द्वारा साफ़ पानी की सप्लाई नहीं होती, इसीलिए वे बाज़ार में बिकने वाले बोतलबंद पानी पर ज्यादा भरोसा करते हैं।तीन दुकानों में पानी की बोतलें पहुँचाने के बाद वह ड्राईवर की सीट की तरफ बढ़ा ही था कि एक आवाज़ सुनाई दी-‘तुम्हारे पास बाल्टी है?’

जय ने पलट कर देखा तो एक लड़की नज़र आयी,उम्र होगी कोई सात-आठ साल,फटेहाल और नंगे पैर। उसने कहा-‘बिटिया, मेरे पास बाल्टी तो नहीं है। मैं तो पानी की बोतलें सप्लाई करता हूँ। पर तुम्हें बाल्टी क्यों चाहिए?’

‘वो लड़का मेरी बाल्टी उठा कर भाग गया।मैं पानी की लाइन में खड़ी थी। अब मैं पानी कैसे ले जाऊंगी, माँ डाटेंगी मुझे।’ लड़की ने कहा।

जय को अभी और कई जगह पानी की सप्लाई करनी थी, लेकिन उसे लगा कि लड़की की मदद करनी चाहिए। वह लड़की के साथ वहां गया जहाँ वह पानी की लाइन में खड़ी थी। जय ने देखा कि पानी के टैंकर के आगे काफी भीड़ थी। पानी भरने के लिए लोग आपस में धक्का मुक्की कर रहे थे। वह समझ गया, उस लड़की के लिए पानी भरना संभव नहीं था। वह अपने छोटे हाथों से भरी बाल्टी कभी न उठा पाती। जय ने पूछा कि उसकी बाल्टी कौन ले गया था? पर लड़की कुछ बता न सकी। जय ने कुछ सोचा और पानी की एक बड़ी बोतल लेकर लड़की के साथ उसके घर जा पहुंचा।कमरे के अंदर एक औरत चारपाई पर लेटी खांस रही थी।लड़की को देखते ही वह चिल्लाई-‘इतनी देर कहाँ लगाई रमा। और ये कौन है?’

रमा कुछ कहती इससे पहले ही जय ने पूरी घटना के बारे में बता दिया। अपना परिचय भी दिया। बोला-‘आपने रचना को भीड़ के बीच पानी लेने क्यों भेज दिया। आपको तो पता ही होगा कि यह् नन्ही बच्ची कभी पानी नहीं ला सकेगी।’

‘मैं कई दिनों से बीमार हूँ। घर में बिलकुल पानी नहीं है,मैं जा नहीं सकती इसलिए इसे भेजना पड़ा।’ रचना की माँ जूही ने कहा और हांफने लगी। फिर बोली-‘और तुम जो पानी लेकर आये हो,वह तो पैसों से मिलता है लेकिन …’

1

जय ने कहा-‘हाँ, यह बोतलबंद पानी पैसों से मिलता है। पर इस समय मैं इसके दाम नहीं मांग रहा हूँ। इस बोतल को रख लो। पैसे बाद में दे देना।’ इतनी देर में जय समझ चुका था कि उस घर में बेहद गरीबी है। तभी रमा ने कहा-‘माँ ने सुबह से कुछ भी नहीं खाया है। हमारे घर में मिटटी का तेल भी नहीं है। खाना बना ही नहीं।‘

‘ खाना कैसे बने। बीमरी के कारण मैं काम पर नहीं जा पा रही हूँ। काम नहीं तो पगार भी नहीं।‘ रचना की माँ जूही बोली।

‘और शायद तुमने दवा भी नहीं ली है। लाओ दवा का परचा मुझे दो।’-जय बोला -‘एक बात कहूँ –तुम्हारी सूरत मेरी बहन से हूबहू मिलती है। वह दूर गाँव में रहती है। मैं बहुत समय से उससे नहीं मिल पाया हूँ। तुम मेरी बहन भले ही नहीं, पर उस जैसी जरूर दिखती हो।क्या मैं तुम्हें बहन कह सकता हूँ?’ इतनी ही देर में जय ने यह बात अच्छी तरह समझ ली थी कि गरीब जूही के स्वाभिमान को चोट नहीं लगनी चाहिए। इसीलिए झट अपनी गाँव वाली बहन की झूठी कहानी गढ़ डाली थी। यह सुन कर जूही धीरे से मुस्करा दी,फिर दवा का परचा उसे थमाते हुए कहा-‘ पर देने के लिए आज पैसे नहीं हैं मेरे पास।‘

‘जब तुम पूरी तरह से स्वस्थ होकर काम पर जाओगी और पगार मिलेगी तो मेरा उधार चुका देना।‘ जय ने हँसते हुए कहा और जूही के लिए दवा लेने चला गया। पहले उसने पानी की सप्लाई का काम पूरा किया, उस के बाद इतना भोजन ले लिया जो दो तीन बार के लिए काफी हो जाये। फिर किरोसिन लेकर जूही के घर जा पहुंचा।

जूही ने कहा-‘भैया,खाने का इतना सामान क्यों ले आये। मैं कैसे अदा करूंगी तुम्हारा उधार…’

‘उधार है तो चुकाना ही पड़ेगा।’-जय ने हंस कर कहा। ’लेकिन अभी उसकी चिंता मत करो, पहले नियम से दवा लो, भोजन करो और शीघ्र चंगी होकर काम पर जाना शुरू करो।‘ कह कर जय चला आया।

2

घर तक के सारे रास्ते वह जूही और रचना के बारे में सोचता रहा। घर पहुँच कर उसने पत्नी लता को इस बारे में बताया। लता ने कहा –‘ तुमने जो किया अच्छा किया। हमें उनकी आगे भी मदद करनी चाहिए। एक दिन मैं भी चलूंगी तुम्हारे साथ उन्हें देखने।‘ लता का बेटा स्कूल जाता था , और वह घर पर बच्चों को पढाया करती थी| ये वे बच्चे थे जो सडकों पर मेहनत मजूरी करते थे और वहीँ रहते भी थे। पढाने के साथ लता कभी कभी उन बच्चों को घर पर भोजन भी खिलाती थी। इसलिए दूसरों की मदद करना उसके लिए कोई नई बात नहीं थी।

एक शाम काम से घर लौटने के बाद जय लता के साथ जूही के घर गया। साथ में उनका बेटा रतन भी था। दरवाजे में घुसने से पहले ही जूही के खांसने की आवाज सुनाई दी।वह स्टोव के सामने बैठी थी।स्टोव से धुआं निकल रहा था। पूरे कमरे में किरोसिन की गंध फैली थी। लता ने तुरंत स्टोव बंद कर दिया। जय ने जूही का हाथ पकड कर उसे चारपाई पर लिटा दिया। लता ने जूही को अपने और रतन के बारे में बताया। जूही ने कहा-‘मैं खाना बनाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन स्टोव…’ और जोर जोर से खांसने लगी।

इस बीच जय बाहर निकल गया था। कुछ देर में लौटा तो उसके हाथ में एक थैली में खाने की सामग्री और एक थर्मस में चाय थी। जूही से बोला-‘चाय के साथ कुछ खाकर दवा ले लो। मुझे चाय वाले का थर्मस लौटाना है।‘

‘तुम फिर…’ जूही अपनी बात पूरी करती, इससे पहले ही जय ने हंस कर कहा-‘ तुम मेरा उधार नहीं चुकाना चाहती, इसीलिए स्वस्थ नहीं होना चाहती।‘

जूही मुस्करा दी, पर कुछ बोल न सकी। लता ने कहा-‘ तुम भाई-बहन बाद में लड़ना, पहले मेरी बात सुनो-अब इस घर में स्टोव नहीं जलेगा,क्योकि यह खराब है।‘ फिर जय से बोली-‘ तुम कहीं से छोटा गैस सिलेंडर और एक बर्नर वाले चूल्हे का इंतजाम करो ताकि खाना आसानी से बन सके।‘

जय ने कहा-‘ भई, इसमें तो काफी पैसे खर्च होंगे और जूही पर मेरा और उधार चढ़ जायेगा, और गैस का इंतजाम होने में कुछ समय भी तो लगेगा।’ वह हंस रहा था।

‘ तब तक का प्रबंध मैंने सोच लिया है।’-लता जय से बोली-‘ जब तक गैस चूल्हे का प्रबंध नहीं हो जाता मैं सुबह डिब्बे में एक की जगह तीन जनों का खाना पैक कर दिया करूंगी।‘

‘बन गई बात,’—जय बोला। जूही ने कुछ कहना चाहा पर जय और लता ने उसे बोलने का मौका ही नहीं दिया। कुछ इस तरह जैसे यह जूही का नहीं उनका घर हो। अगली सुबह जय चाय और नाश्ता लेकर जूही के पास पहुँच गया। तीनों ने साथ चाय पी और खाने का डिब्बा जूही को देते हुए कहा- ‘दोपहर का भोजन हम साथ -साथ करेंगे। अब तक तो मैं कहीं भी बैठ कर खा लेता हूँ, पर अब घर में खाऊंगा।‘

3

जूही ने कहा-‘और कितने अहसान करोगे मुझ पर।‘

‘यह मैंने नहीं लता ने किया है। अगर अहसान नहीं लेना है तो जल्दी स्वस्थ होकर काम पर जाने लगो। फिर तुम्हें किसी की जरूरत नहीं पड़ेगी।‘-कह कर जय बाहर चला गया।

समय पर दवा और भोजन लेने से जूही की तबियत में सुधार हो गया। उसने काम पर जाने की सोची।उसने जय को बता दिया कि वह कल से काम पर जायेगी। सुबह काम पर जाने लगी तो जय और लता भी वहां मौजूद थे। जय ने पूछा-‘ जब तुम काम पर जाती हो तो रचना कहाँ रहती है?’

‘यह भी मेरे साथ रहती है,इससे मेरी मदद हो जाती है।‘-जूही ने कहा।

‘ अब से यह तुम्हारे साथ नहीं जाएगी।’-जय ने कहा।’लता दूसरे बच्चों के साथ इसे भी पढाएगी।‘

‘मुझे पढना अच्छा लगता है।’-रचना ने खुश होकर कहा।

लता ने कहा-‘ बचपन खेल और पढाई के लिए होता है।इसे वही करने दो। रचना दिन में मेरे पास रहकर दूसरे बच्चों के साथ पढेगी। शाम को जब तुम काम से लौटो तो इसे अपने साथ ले आना।‘

जूही और रचना के जीवन में परिवर्तन हो गया। जूही अब स्वस्थ थी और रचना बहुत खुश। दोनों परिवारों के बीच एक नया रिश्ता बन गया था,जिसका आरम्भ एक खोई हुई बाल्टी से हुआ था।

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