हम दोनों मिलकर सम्भाल लेंगे – किरन विश्वकर्मा

अमन ऑफिस से आकर जैसे ही आभा के बगल में बैठा तो आभा से तबीयत के बारे में पूछने लगा…….इधर दो दिन से आभा की तबियत ठीक नही थी तो वह स्कूल में पढ़ाने नही गयी थी घर पर ही थी। अमन एक प्राइवेट कंपनी में सुपरवाइजर था और आभा एक मामूली से स्कूल में पढ़ाती थी। आभा ने अमन को बताया कि उसने सुबह प्रेगनेंसी टेस्ट किया था तो दो गुलाबी लाइन देखते ही वह समझ गयी कि वह मां बनने वाली है।

यह सुनते ही अमन का चेहरा उतर गया और वह बोला अभी हमारी शादी को कुछ महीने ही हुए हैं फिर मुझे मामूली सी सैलरी मिलती है और तुम्हें भी…….हम दोनों की तनख्वाह को मिलाकर ही घर का गुजारा चल रहा है…..कैसे क्या होगा !! ऊपर से यह छोटा सा किराए का घर जिसमें हम लोग ही मुश्किल से रह पा रहे हैं!!! मैं तो सोच रहा था जब हमारा अपना मकान होगा और मेरी सैलरी बढ़ जायेगी तब इस बारे में सोचेंगे तुमने तो यह खबर सुनाकर मुझे चिंता में डाल दिया। आभा सोच रही थी कि अमित बच्चे के बारे में सुनेंगे  तो खुश हो जायेंगे पर अमित तो इस खबर को सुनकर और परेशान हो गये हैं……..ऐसा करो मैं दवाई ला देता हूं तुम दवाई खा लो……अभी मैं इस जिम्मेदारी को उठाने के काबिल नहीं हूं…… प्रेग्नेंट होने के बाद तुम्हें आए दिन डॉक्टर के पास जाना होगा फिर मुझे छुट्टी लेनी होगी जो कि मेरा मालिक बिल्कुल भी नहीं देगा…….अमन ने कहा।

यह सुनते ही आभा मायूस हो गई वह बोली……बस कुछ महीने की तक तो दिक्कत रहेगी और फिर जब बच्चा बड़ा हो जाएगा तब मैं फिर से पढ़ाने लगूंगी…..अपने घर आई हुई खुशियों से मुहॅ कैसे मोड़ लूं…..आभा ने अमन से कहा।

अमन की यह बातें सुनकर आभा उदास हो गई वह मन ही मन सोच रही थी कि मैंने तो सोचा था कि यह खबर इन्हें  सुनाऊंगी तो यह खुश हो जाएंगे पर यह तो उल्टा उदास ही हो गए। फिर आभा ने रात में अपनी मां करुणा से यह सब बातें बताई तो करुणा जी ने कहा…….तुम चिंता ना करो हम दोनों समधन मिलकर कुछ ना कुछ हल निकाल लेंगे। दूसरे दिन अमन के पास उनकी मां विभा जी का फोन आया वह बोली…….यह मैं क्या सुन रही हूं!!! तेरी सासू मां ने मुझे यह सब बात बताई……तू चिंता मत कर हम दोनों लोग मिलकर संभाल लेंगे और यह तू किराए के मकान की क्या बात कर रहा है क्या किराए के मकान में जो इंसान रहते है तो क्या खुशियां नहीं मनाते। ये बेसिर पैर की बात मत कर…..आज किराये का घर है तो कल अपना भी होगा।आज परेशानियों का अँधेरा है तो कल खुशियों का उजाला होगा। मैं भी तो तुम सभी बच्चों के साथ दो कमरे के मकान में दस साल तक रही हूं और तब तो हम लोगों के साथ में तेरे चाचा और बुआ भी रहते थे। तब लोग ज्यादा थे और मकान छोटा था लेकिन तब भी हम लोग खुश थे……अब मकान बड़ा है और रहने के लिए लोग नहीं हैं तुम दोनों भाई तो अपनी- अपनी नौकरी के सिलसिले में अलग-अलग शहर में चले गए और  तेरी दोनों बहन ने अपने- अपने ससुराल अब हम बुड्ढा- बुढ़िया बस तुम लोगों के आने की बाट जोहते रहते हैं….सब वक्त वक्त की बात है अगर तेरे घर में खुशी आ रही है तो उसका स्वागत हंसकर कर मायूस होकर मत कर…….परेशानियां आई है तो उसका हल भी निकलेगा। ज्यादातर इंसान छोटे से ही बड़े होते हैं……..रही बात पैसे की तो मैंने नीचे का घर किराए पर उठा दिया है। उससे जो भी पैसा मिलेगा मैं तेरी मदद कर दिया करूंगी और फिर जमा पूंजी किस दिन काम आयेगी। हम तुम्हे सहारा देंगे कुछ भी ऐसा- वैसा मत करना कि खुशियाँ रूठकर वापस चली जाएं और फिर तब तू जीवन पर्यन्त इंतजार करेगा पर अफसोस करने के सिवाय कुछ हांसिल नही होगा। सात महीने तक तो आभा ने सब कुछ संभाल लिया। सांतवा महीना लगते ही सासू मां आ गयी फ़िर जब सासु मां जाती तो मां आ जाती। इस तरह दोनों लोगों ने संभाल लिया।

इस तरह वह दिन भी आ गया जब आभा ने एक सुंदर सी बिटिया को जन्म दिया। हॉस्पिटल से वापस आते समय जब बिल पे करने की बारी आई तो अमन के पास कुछ पैसे कम पड़ गए और अमन मायूस होकर काउंटर के पास खड़ा था तभी विभा जी और करुणा जी उसके पास आयी और उससे पैसे और बिल लेकर उसे आभा के पास जाने को कहा फिर दोनों ने मिलकर बिल पे कर दिया……वापस आकर दोनों अमन को सुनाते हुए उस नन्ही- मुन्नी गुड़िया से बोली………देखा गुड़िया रानी हम दोनों मां ने मिलकर तेरी मां को संभाल लिया………..आखिर रिश्ते होते किस लिए हैं…. जरूरत पड़ने पर एक-दूजे को सहारा देने के लिए….. क्यों समधन जी सही कह रही हूँ मैं न…… विभा जी करुणा जी से बोली….. हाँ बिल्कुल सही कह रही हैं आप…. करुणा जी मुस्कराते हुए बोली।

#सहारा

किरन विश्वकर्मा

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