हृदय परिवर्तन – संजय मृदुल 

कल अस्पताल में दादी को जैसे ही होश आया उन्होंने अनुज को सामने बैठे देखा। उन्होंने धीरे से आवाज दी उसे। अनुज के हाथ अपने हाथों में लेकर दादी ने कहा- सुन, तेरे दोस्त को बुला।

अनुज ने हल्के से मुस्कुरा कर  कहा पहले घर चलो वहीं मिल लेना उससे।

दादी को यहां आए कुछ महीने हुए हैं, दादाजी के जाने के बाद बिल्कुल अकेली हो गयी थी वो। छोटा सा कस्बा जहां आज भी दुनिया बहुत ज्यादा नहीं बदली थी। दादाजी की दुकान थी पूजा सामान की। उस कस्बे में जहां लोग आज भी रिश्ते दिल से निभाते हैं, जहां आज भी सब्जी, अचार, शक्कर की कटोरी एक दूसरे के घर घूमती रहती हैं। जहां आज भी किसी एक की छत पर मोहल्ले भर की पापड़ बड़ी बनती है। पर जहां आज भी कुछ दीवारें समय के साथ न गिरी न छोटी हुई, वो थी अमीरी- गरीबी की नहीं ऊँच-नीच की, जात-पात की। जहां आज भी पुरखों की खींची हुई लकीरों का पालन यथासम्भव पालन किया जाता है। 

दादी ने भी जो अपनी सास से सीखा आज तक निभाते आ रही थीं। दादाजी की दुकान के हो या घर के काम के लिए। ठोक-बजाकर काम पर रखे जाते नौकर। थोड़े बर्तन अलग रखे जाते, जिसे दादी हाथ न लगाती। 

ऐसे जगह में जीवन गुजारने के बाद दादी को यहां सब बड़ा अजीब सा लगता। बड़ी सी कॉलोनी में जहां हर जाति धर्म के लोग एक साथ रहते हैं, सबका एक दूसरे के घर आना जाना बेझिझक होता है। एक दूसरे के पर्व त्योहार में शामिल होते हैं। 

ये सब दादी को बिल्कुल न सुहाता। जहां कॉलोनी से कोई मम्मी पापा से मिलने आता, उनके जाने के बाद दादी उनकी कुंडली खंगालने बैठ जाती। फिर शुरू हो जाता उनका बड़बड़ाना।




एक छुट्टी के दिन अनुज खाना खा रहा था कि उसका दोस्त फ्लोरेंस आ गया। उसने  दादी को देखा नही और सीधे आकर अनुज की थाली में साथ खाने लगा। जब तक अनुज कुछ कहता, मम्मी रोक पाती वो शुरू हो चुका था। उसे मम्मी के हाथ का स्वाद बहुत पसन्द था और ऐसा वो अक्सर करता था। पर घर मे आये बदलाव का उसे अनुभव न था। न ही दादी के नियमों का। दोनो ने खाना खाया और कमरे में चले गए। दादी उस दिन दोपहर सोने नहीं गयी। वो इंतज़ार करती रही कि फ्लोरेंस बाहर आये तो बात करें उससे। 

वो पल भी आ गया। जैसे ही दोनो बाहर आये उन्होंने आवाज दी – अनुज! मिलाओगे नही अपने दोस्त से? अनुज जिस बात से डर रहा था वही होने वाली थी। दादी ने उसका इतिहास भूगोल जाना और फिर भूकम्प आ गया उसके जाने के बाद।

वो सब बर्तन बाहर निकालो किचन से। तुम कमरे में कैसे ले जाते हो उसे यहां मन्दिर भी है वो छुआ गया तो? जरा भी धर्म कर्म पर विश्वास नही तुम लोगो को। कोई भी चला आता है मुंह उठाये। उन्होंने मम्मी को कहा सब चादर सोफे के कवर धोने डालो। दादी का गुस्सा उस दिन सातवे आसमान पर रहा। उसके बाद जब भी कोई घर आता कोशिश रहती वो हॉल में बैठकर चला जाये। मम्मी की सहेलियां भी समझने लगी थीं दादी का व्यवहार तो वो भी कम ही आती। दादी के आने से माहौल बदलने लगा था घर का।

एक शाम जब पापा मम्मी बाजार गए थे और अनुज कोचिंग। दादी अकेली थीं, दोपहर का खाना भी नहीं खाया था उन्होंने उस दिन। ब्लड प्रेशर कम हुआ अचानक और वो बेहोश हो गयी। तभी अनुज और फ्लोरेंस कोचिंग से वापस आये, उन्होंने दादी की हालत देखी तो ग्लूकोज़ घोल कर उन्हें पिलाया, फ्लोरेंस दादी के तलवे घिसता रहा, दादी को होश आया तो उन्होंने उसे अपने पैरों को पकड़े देखा। फ्लोरेंस ने कहा अनुज तू कार निकाल मैं दादी को लेकर आता हूँ। अस्पताल लेकर चलते हैं, और अंकल जी को काल करके बता वहीं आ जाएं।

दादी को फूल की तरह गोद में उठाकर फ्लोरेंस लिफ्ट से नीचे आया, दादी अधखुली आंखों से देख रही थी पर कुछ बोलने करने की स्थिति में नहीं थी।

अस्पताल में उनकी जांच हुई, कोई चिंता की बात नहीं थी। बस कमजोरी की वजह से बेहोश हो गयी थी दादी। कुछ घण्टो में वो सामान्य हो गयी। 

दादी फ्लोरेंस का हाथ पकड़े बैठी हैं। उनकी आंखें झर रही हैं। बिना बोले उन्होंने बहुत कुछ कह दिया। अनुज मम्मी को बोलो इसे मिठाई खिलाये। इस मुये का तो नाम भी नही लिया जाता मुझसे। दादी ने कहा तो सब हंस पड़े। ये हृदय परिवर्तन सभी के लिए बहुत सुखद है।

#संस्कार 

संजय मृदुल 

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