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हर समय आप जिठानी जी की ही तारीफों के पुल क्यों बांधते हैं….. – सीमा रस्तोगी 

“जिठानी जी को क्या उनके तो अपने मजे हैं! जहां कोई ज्यादा काम की जरूरत पड़ती है, झट से दोस्तों को फोन कर देतीं हैं और उनके दोस्त फट से आ जाते हैं, सारा काम आसानी से निपट जाता है, यहां तो अकेले ही खटो रसोई में! कविता मुंह बिचकाकर बोली…

कविता और उसकी जिठानी मिताली, एक ही घर में आमने सामने रहतीं हैं, दोनों की रसोई अलग-अलग है, उसकी जिठानी जहां काफी मिलनसार,वहीं कविता अपने में ही मगन रहने वाली… आज मिताली के बच्चे हॉस्टल वापस जा रहे थे और उनके बांधने के लिए नाश्ता बनाना था, बस मिताली ने सोचा कि लगे हाथ घर के लिए भी नाश्ता बना लेतीं हूं और अपने खास दो दोस्तों को फोन कर दिया और उन लोगों ने आकर फटाफट सारा काम निपटवा लिया और वो रूम में बैठी, अपने दोस्तों के साथ चुस्कियां ले रही थी…

मिताली की यही खुशमिजाजी देखकर, तभी कविता ये बात अपने पति उमेश से बोली, (जो कि आज संडे के कारण घर पर ही था)….कि भाभी के तो मजे हैं…

 

 

“कविता! कभी ताली एक हाथ से नहीं बजती, भाभी भी उन लोगों के एक बुलावे पर उनकी मदद के लिए तैयार खड़ी रहतीं हैं और उनकी ही क्या, हरेक की मदद के लिए वो तैयार खड़ी रहतीं हैं, मैंनै ये गुण उनके अंदर बहुत अच्छा देखा, लेकिन तुम तो अपने ही काम से जी चुराती हो, तो किसी और की क्या मदद करोगी, भाभी ने तो तुमसे एक-दो बार कहा भी उनकी मदद करवाने के लिए, लेकिन तुमने कोई ना कोई बहाना बना दिया, कभी सिरदर्द का कभी पेटदर्द का, वो तो तुम्हारी मदद के लिए हमेशा खड़ी रहतीं थीं, लेकिन जब उन्होंने तुम्हारा उपेक्षित व्यवहार देखा, तो उन्होंने भी हाथ खींच लिया! उमेश कविता को आईना दिखाते हुए बोला



“तुमको तो बस हर समय अपनी भाभी की तारीफों के पुल बांधने को दे दो और मुझको उल्टी-सीधी सुनाने को! कविता एकदम से तुनककर बोली

“कविता! इसमें भाभी की प्रशंसा और तुमको उल्टी-सीधी सुनाने की कोई बात नहीं, लेकिन भाभी को देखो, सबसे व्यवहार बनाकर चलतीं हैं, चाहें कोई भी हो, लेकिन तुम तो किसी से भी सीधे मुंह बात करना भी पसंद नहीं करतीं, यहां तक कि भाभी से भी नहीं, मैंने कहा ना कि ताली एक हाथ से नहीं बजती, भाभी ने हमेशा तुमको अपनी छोटी बहन माना, लेकिन तुमने बदले में क्या किया, एक घर में ही दो चूल्हे करवा दिए और यहां पर भी तुम्हारा जी नहीं माना, तो मुझको भी उनसे बात ना करने के लिए भड़काने लगीं, लेकिन मैंने तो हमेशा उनको एक मां की ही दृष्टि से देखा, क्योंकि मां तो बचपन में ही छोड़कर चली गई थी, भाभी के आने के बाद ही ममत्व की छाया मिली, लेकिन तुम्हारा उपेक्षित व्यवहार देखकर उन्होंने भी हाथ पीछे खींच लिए, काश! तुमने भी उनके अंदर एक मां का रूप देखा होता, इसीलिए मैं तो हमेशा ही तुमसे कहता हूं कि कुछ सीखो भाभी से, कि कैसे सबको अपना बनाया जाता है! उमेश अफसोस भरे शब्दों में बोले

 

 



“मुझको हर किसी ऐरे-गैरे से कभी भी व्यवहार बनाना पसंद ही नहीं रहा! कविता हार मानने को तैयार ही नहीं थी…

“तुम मानो या ना मानो, ये तो तुम्हारी मर्जी है, तो फिर भाभी की किस्मत से क्यों रश्क करती हो, व्यक्ति जैसा बोएगा वैसा ही काटेगा और इस मामले में तो तुम चाहें जितना भी चिढ़ो, लेकिन मैं भाभी की प्रशंसा हमेशा ही करूंगां! उमेश शांत होकर बोला…. क्योंकि वो जानता था कि उसके इतना समझाने से भी कोई फायदा नहीं, क्योंकि कविता जैसी है वैसी ही रहेगी, अंधे के रोवो अपने नैना खोवो… वही वाली कहावत है….. आखिरकार उमेश ने हार मान ली, लेकिन कविता अपनी ही बात पर दृढ़ रही…. और ना वो सुधरी ना ही सुधरना चाहती थी….

 

ये कहानी स्वरचित है

मौलिक है

दोस्तों कुछ लोग जीवन में कभी भी बदलना नहीं चाहते, जैसे कि कविता, लेकिन ऐसे लोग बहुत स्वार्थी होते हैं, अपना उल्लू तो सीधा करना जानते हैं, लेकिन दूसरों को ठेंगा दिखाने से बाज नहीं आते…।

मेरी ये कहानी आपको कैसी लगी, लाइक और कमेंट्स के द्वारा अवश्य अवगत करवाइएगा और प्लीज मुझको फॉलो भी कीजिएगा।

धन्यवाद आपका🙏😀

आपकी सखी

सीमा रस्तोगी 

 

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