हर बार जो दिखता है वही सच नहीं होता 

वह बड़े ही हिम्मत से अपने लाठी के सहारे अपने रूम से बाहर निकले तो उन्हें बेटे बहू के रूम से, बहू की तेज आवाज़ सुनाई दी . बहू बेटे के कमरे का दरवाजा पूरी तरह बंद नहीं था ना. और इस लिए ससुर ना चाहते हुए भी उनका ध्यान अपनी बहु की आवाज पर गया. बहू कंचन बोल रही थी,

“हां तो क्या हुआ कार्तिक  वह तुम्हारे पिताजी है ना, मैं तो फिर भी पराई हूं मैं क्यों सोचू वो तो तुम्हें सोचना चाहिए ना कार्तिक…”

ससुर गोपीनाथ को यह सुन कर तेज झटका लगा. मन उनका विचलित हो उठा वह सोचने लगे,

“इसका मतलब मेरा अंदाजा सही था कि बहु कंचन को मेरा यहां आना पसंद नहीं… अब इतना स्वाभिमान तो मुझ में है ही कि बेटे बहू के घर इज्जत ना होने पर भी मैं यही उनके ऊपर बोझ बन कर रहूं!”

तब बहु कंचन ऑफिस के लिए तैयार हो रही थी. और ससुरजी हॉल में में पेपर पढ़ रहे थे. पर उनका पूरा ध्यान अपनी बहू कंचन की बात पर ही था.

बहू कंचन शहर की थी. वह बेटे विनोद के ऑफिस में उस से भी बड़े पोस्ट पर काम करती थी. और बेटे की नौकरी उसके जूनियर के पद पर थी. गोरी चिट्ठी और कंधो तक कटे हुए बाल. लंबा कद कंचन एक आधुनिक बहु थी. कोर्ट सूट डाल कर वह तो ऑफिस के लिया निकल पड़ी.  

कंचन बेटे कार्तिक की पसंद थी. तब गोपीचंद और पत्नी कावेरी को भी इस प्रेम विवाह में कोई आपत्ति करने का कारण नहीं मिला था. क्यों की वह बेटे के लिए योग्य ही थी. और क्यों की बेटा खुद समझदार था तो लगा वह थोड़ी ना ऐसे ही किसी लड़की को पसंद कर लेता. वैसे सास और ससुर ने तो कंचन को अपना लिया था पर दिल से एक दूरी सी महसूस होती थी. वह खुद तो हरियाणा  के गांव में रहने वाले थे. और जब गोपीचंद की पत्नी गुजर गई तो वह गांव में अकेले रहते थे. और बेटे कार्तिक की नौकरी मुंबई में थी. उसने गोपीचंद अपने पिता को जब भी साथ रहने के लिए कहा तो,




“वह गांव में सब है बेटा… और तू पैसे तो भेजता है काम चाल जाता है और अभी हाथ पांव भी तो काम करते है, और वहां भी तो पूरा दिन तुमलोग घर नहीं रहोगे, मेरा मान नही लगेगा यहां तुनहरी मां की यादें बड़ी है” कह कर टाल दिया करते थे. 

लेकिन फिर गोपीचंद ये भी कहते की अगर कुछ जरूरत हुई तो वह खुद उनके पास चले आयेंगे क्यों की वहां था ही कौन जो उनकी मुश्किल समय में सेवा करता.

दोनो ही दिनभर ऑफिस रहते घर पर भी लैपटॉप या फोन पर व्यस्त रहते. एक साथ बैठकर बातें करने का भी समय दोनों के पास नहीं था. और अगर बहु कंचन एक बार अगर मायके चली जाती तो उन्हें घर का ख्याल भी नहीं रहता.

ऐसे में नया साल आने वाला था इस बार भी बहु का फोन आया, क्यों की बहु ज्यादा बाते शुरू  से ही नही किया करती थी. कम बोलती और जरूरत होने पर ही हाल चाल पूछ लिया करती,

“पिताजी आप यहां आ जाइए, नया साल आ रहा है..  और गांव की सर्दी  से भी बच जायेंगे… और फिर यहां आपका बेटा बहू है, हम आपका ही तो परिवार है”

कंचन बहु के ऐसे कभी कभी फोन करने पर तो लगता था कि शायद उनका बेटा ही उन्हें जबरदस्ती मुंबई बुला लेता है. पर बहु कंचन को शायद उनका आना पसंद ना हो! और आज बहु की ऐसी बात कमरे से सुन गोपीचंद की सोच स्पष्ट हो चुकी थी.

ऐसे में दोनो ही नौकरीपेशा थे तो घर का काम भी दोनों ही संभाल लिया करते थे,

“देखो यार कार्तिक आज मैं बहुत थकी हुई हूं खाना तुम ही लगा दो प्लीज… पहले पिताजी को दे  आना!”

गोपीचंद ने मन में सोचा वाह क्या जमाना आ गया है,

“आधुनिक है समझ आता है पर अजीब मुंहफट लड़की है, आत्मनिर्भरता तो ठीक है पर इसका तो दिमाग सर चढ़कर बोल रहा है. फिर तो बेटे कार्तिक ने ही बिना कुछ कहे सबका खाना टेबल पर लगाया. सबने खाया और सो गए. और अगली सुबह उठते ही बहु ने कह दिया,




“कार्तिक यार आज पूरा दिन ही मेरा ना रेस्ट का मूड है… कमला के हाथ के खाने का मन नहीं है आज तुम नाश्ता बाहर से ले आओ…”

“पर पिताजी का क्या उन्हे बाहर का खाना नही जमेगा!”

“ठीक है फिर कमला को बुला लो वो ही कुछ बना देगी…”

हमेशा की तरह बहु ने इतने संक्षिप्त से उत्तर दिया. अब पिताजी सोचने लगे कि इस लड़की के बहु बन कर आए हुए तीन साल हो गए लेकिन कभी घर में ज्यादा बात चीत करते नही देखा ना ही अपने पति से हमसे तो छोड़ ही दो. 

नया साल आने वाला था तो कंचन और बेटे कार्तिक के कुछ ऑफिस से उनके कुछ दोस्तों को घर पर बुलाकर पार्टी करने बुलाया था. क्यों की नए साल में कंचन बस पार्टी के मूड में थी. बेटे कार्तिक भी उतना ही उत्साहित था. उस बीच ससुर भी कुछ नही बोले.  पर शाम को अचानक सीढ़ियों  से गोपीचंद का पैर फिसला तो जोर से आवाज़ आई. बहू बेटे दोनो ही भाग कर अपने ससुर के पास आए. अत्याधिक दर्द में ससुरजी के तो आंसू ही निकल गए. उन्हें फौरन हॉस्पिटल ले जाया गया वहां पता चला की पैर में फैक्चर हो गया था.

पैर में प्लास्टर चढ़ा दिया गया. अब पत्नी भी नही थी, और अब बेटे बहु के ऊपर पहले से ही बोझ ऊपर से आज ये कांड होने से उनकी ये बेबसी… बस आंखो मे आंसू आ गए रोना आ रहा था. अस्पताल से घर आकर भी ससुर को दो-तीन दिन से नींद ही नहीं आई. मन में बड़ी बेचैनी थी. बेटे बहु ने घर पर ही डॉक्टर को बुलाया. कहा की उनका ब्लड प्रेशर हाई था इस लिए पूरा आराम और दवा के लिए निर्देश दे डॉक्टर चले गए. कार्तिक उन्हें आराम करने के लिए कह कर खुद व्यस्त हो गया. इस तकलीफ में एक जगह पड़े रहने की आदत तो नही थी, पर अब ढलने  में कुछ दिन तो लगता. क्यों की पैर हाथ ठीक था तो आसपास खुद से घूम लिया करते पास के मंदिर हो आते तो मन लगा रहता.

अब तो अकेलापन और बढ़ता ही गया. एक संडे को वह चुपचाप अपने रूम में लेटे  थे तो अचानक उनका मन हुआ कि अपनी लाठी की सहायता से ड्राइंग रूम तक जाकर देखें की बाहर का क्या हाल चाल है. तभी उनको अपनी बहु की वो बात सुनाई दी.

“हां तो क्या हुआ का कार्तिक वह तुम्हारे पिताजी है ना, मैं तो फिर भी पराई हूं मैं क्यों सोचू वो तो तुम्हें सोचना चाहिए ना कार्तिक…”

और तभी तो अपनी बहू और बेटे की बात सुनकर वह समझ गए थे कि अब यहां रहना ठीक नहीं. वह स्वाभिमानी  तो थे ही. और उन्हों फैसला कर लिया की अब वह यहां नहीं रहेंगे. वह जल्दी ही गांव वापस चले जाएंगे. अकेले रह लेंगे या कोई नौकर को रखेंगे लेकिन बेटे बहू के घर नहीं रहेंगे. एक तो बेटे पहले से ही उनके आने से परेशान थे. और बहु भी पता नही क्यों इतनी गंभीर रहती, उनकी आंखों से तब मजबूरी और अपमान के आंसू बहने लगे.




वह बिना कुछ कहे चुपचाप अपने रूम में आकर लेट गए. थोड़ी देर बाद बहु कंचन उनके लिए शाम की चाय लेकर आई तो ससुर ने बहू की तरफ देखा भी नहीं और कंचन बोली,

“पिताजी चाय लाई हूं…”

“ठीक है बहु रख दो मैं ले लूंगा…” कंचन चाय रख कर चली गई. उनका दिल भर आया कोई पूछने वाला भी नहीं था कि वह क्यों उदास और दुखी थे. थोड़ी देर में ससुर ने ठंडी चाय पी ली. और फिर अपने बेटे को आवाज दी,

बेटे कार्तिक कमरे में आकर गंभीर अवस्था में पिता के पास बैठ गया और पिता बोले,

“मेरा ये प्लास्टर उतरते ही बेटा मेरा टिकट कटवा देना…”

बेटा कार्तिक चौक गया,

“पर क्या हुआ पिताजी?”

“कुछ नही बेटा बस अब यहां मन नही लग रहा… जाने का मन कर रहा है?”

“ठीक हो जाइए फिर चले जाना अभी तो आपको टाइम लगेगा!” कह कर बेटा तो चला गया.

लेकिन फिर थोड़ी देर बाद घर के नए साल के ऊपर भी अत्यधिक शांति देख ससुर ने फिर बेटे को बुला कर पूछ लिया,

“बेटा तुम्हारी पार्टी का क्या हुआ?”

“कंचन ने कैंसिल कर दी है…”

“पर क्यूं तुम लोग इतने खुश थे!”

“बस पिताजी वो कंचन ने मना कर दिया अब आप उस से ही बात कीजिए”

“हां क्यों की सब आएंगे और आपको डिस्टर्ब होगा… आपको आराम की जरूरत है!” कंचन ने अंदर आ कर जवाब दिया.

“अरे नहीं मुझे तो अच्छा लगेगा बहु घर में रौनक रहेगी, मैं तो वैसे भी इतनी शांति से बहुत ऊब चुका हूं… तुम लोग आराम से नए साल का स्वागत करो!”

“लेकिन हां अब पार्टी के खतम होते ही नए साल में मेरा जाने का टिकट भी करवा लेना बहू…”




बहू ने ने कहा,

“अरे पिताजी नहीं अभी तो आपकी फिजियो थेरेपी भी शुरू होगी, तो आप ऐसे कैसे जा सकते है!”

बहू तो उतना कह कर पार्टी की तैयारी में लग गई. उधर ससुर का मन और बेचैन रहने लगा. वह खुद में अपमानित महसूस कर रहे थे. उनको तो बस अब गांव ही जाना था. उधर घर में कंचन ने खुद से खाने की कुछ चीजें बना ली थी और कुछ आर्डर कर दिया था. दोपहर तक सारी तैयारी लगभग हो चुकी थी. बहू काम कर के थक चुकी थी और वहां शाम हो चुकी थी. तो ससुर ने देखा की बेटे बहु तो सो गए है क्यों की सुबह से पार्टी की तैयार में थक चुकी होगी. फिर क्या था ससुर खुद से ही चाय बनाने लगे तो बहु चाय ससुर के कमरे में ही ले आई. और अपने रूम में जा कर अपने पति से ऊंची आवाज में बात करने लगी. ससुर का मन ऊंची आवाज सुन विचलित हो गया

सोचने लगे की कही उनको लेकर दोनों में झगड़ा तो नहीं हो रहा है… अरे रात को तो पार्टी है..  और अभी यह झगड़ा!”

लेकिन थोड़ा आगे बढ़े तो बहु कंचन की आवाज बहुत ही स्पष्ट आ रही थी,

“तुम कैसे पिताजी को वापस भेजने के लिए तैयार हो गए? आखिर उनका गांव में है ही कौन! उनको शायद यहां अकेलापन महसूस होता होगा और मैंने वैसे भी ऑफिस में बात कर ली है जब तक उनका प्लास्टर नहीं उतरता, मैं वर्क फ्रॉम होम ही कर लूंगी… और बहुत ही जरूरत होगा किसी दिन तब चली जाऊंगी! और तुम उनके बेटे हो कर भी उन्हें भेजने की बात कैसे मान जाते हो!”

अब बहु की ये बात सुन ससुर चुपचाप आकर वह अपने बेड पर स्तब्ध होकर लेट गए. वह क्या सोच रहे थे और सच क्या ही था. वह कितना गलत सोच रहे थे. बस बहु की आधुनिकता और आत्मनिर्भता पर कैसे उन्होंने उसको परख लिया की बहु ससुर को बोझ मानती है.

“बहू बोली पिताजी तुम्हारे तुम्हें सोचना चाहिए… अरे सच ही तो कह रही थी बहू और मैंने ना जाने क्या सोच लिया!” गोपीचंद मन में सोचने लगे. कई बार आंखे जो देखती है और कान जो सुनता है वह सच नहीं होता.

अपने कमरे में पति से बात कर कंचन अपने ससुर के कमरे में आई और ससुर को कुछ समझ नहीं आया उन्होंने कंचन को अपने पास बुलाया और उसके सर पर हाथ फेर कर कहा,

“नए साल की बहुत बहुत शुभकामनाएं बहु सदा सुहागन रहो और दोनों खुश रहो…”

कंचन अपने ससुर से लिपट पड़ी और बोली,

“आपने आज मुझे मेरे पिता की याद दिला दी… वो भी हर साल नए साल आने से पहले ही मुझे ऐसे ही विश करते!”

ससुर के मन की अब सारी शंका दूर हो चुकी थी.

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