हैपी रिटायरमेंट – नीरजा कृष्णा

आज सुदर्शन बाबू का रिटायरमेंट हो रहा है। उनके स्पेशल डे पर उनके दोनों बच्चे सरप्राइज देने सपरिवार पहुंच गए थे।

वो सुबह से ही सजधज में लगे थे। जो जीवन में कभी पार्लर नहीं गए थे पर आज सुबह ही पूरा मेकअप करा कर आए थे।

आशा जी उनको देख कर लोटपोट हुई जा रही थीं, तो कृत्रिम क्रोध दिखाते हुए बोले थे,

“देखिए बेगमसाहिबा, आपको बहुत हँसी आ रही है।आप क्या जानें…इस रिटायरमेंट का सुख। आज सबको दिखा देना है …।”

“क्या दिखा देना है…यही ना कि सुदर्शन बाबू वाकई कितने सुदर्शन हैं। अरे जीवनभर तो फक्कड़ बने रहे। आज ये दिखावा क्यों ?”

वो उसी तरह मस्ती में आईने के आगे खड़े गुनगुनाते रहे ‘जिंदगी का सफ़र, है ये कैसा सफ़र। कोई समझा नहीं ,कोई जाना नहीं’

तभी रामू ने ड्राइवर के आने की सूचना दी थी। वो बॉय बॉय करते निकल लिए थे। आज ऑफिस में फेयरवेल जो था।

शाम को खूब खुशी से घर आए….सामने सब कुछ बदला बदला सा था। मज़ाक में ड्राइवर से पूछा भी,

“तुम भी सठिया गए हो क्या? किसी गलत जगह पर ले आए हो।”

“नहीं मालिक, आपका ही घर है। शिशिर भैया और नीलम दीदी सपरिवार आए हुए हैं।”

वो चौंके थे,”ये अचानक सब क्यों आए हैं? कोई विशेष बात है क्या?”

तभी सब दलबल के साथ शोर मचाते निकले और उन्हें घेर कर चिल्लाए,

“हैपी रिटायरमेंट पापा।”

उनकी आँखों में आँसू आ गए थे जो उन्होने बहुत होशियारी से पोंछ लिए थे। बेटी नीलम ने नई स्कूटी की चाबी गिफ्ट में दी। सब हैरानी से देख रहे थे। वो सस्नेह बोली,


“पापा को स्कूटर चलाना कितना पसंद है। ऊँची सरकारी नौकरी ने इसकी इजाजत ही नहीं दी। अब पापा जी पूरे ठाठ से पीछे माताश्री को बैठा कर पार्क की सैर कराएँगें।”

चारों बच्चे हिपहिपहुर्रे कर रहे थे। तभी शिशिर ने आकर पैर छुए और एक लिफ़ाफ़ा उनके हाथ पर रख दिया। प्रश्नवाचक निगाहों का उत्तर पोते राम ने दिया,

“दादू, ये स्विट्जरलैंड के लिए हवाई टिकट हैं। आप और दादी हनीमून मनाने जा रहे हैं।”

आशा जी शरमा गई और पोते के कान ऐंठने दौड़ी। नीलम बीच में उनको पकड़ कर बोल पड़ी,

“ये तो भैया भाभी ने बहुत ही अच्छा किया। आप हमलोगों की अच्छी परवरिश करने में इतने व्यस्त रहे…कभी अपने लिए सोचा ही नहीं। अब घूमफिर कर आइए।”

तब तक आसपड़ोस के लोग भी इकट्ठे हो गए थे। खूब खाने पीने का दौर चला। रात में सब निश्चिंत होकर बैठे ही थे..तभी उनकी नतिनी शालू पूछने लगी,

“नानी, सबने नानू के रिटायरमेंट पर कुछ कुछ गिफ्ट्स दिए। आपने तो अभी तक कुछ नहीं दिया। दिखाइए अपना गिफ्ट।”

वो शरमा कर अगल बगल झाँकने लगी पर बहू ममता एक पैकेट निकाल कर ले आई।

“ये मम्मी जी का गिफ्ट वहाँ छुपा रखा है”

हर्षोल्लास के साथ सबने उस स्पेशल गिफ्ट पर झपट्टा मारा था। बेचारी मम्मी तो शरम से सिर गड़ाए बैठी थीं। पापा जी को ही पैकेट खोलने को दिया गया। उसमें एक फोल्डिंग छड़ी थी। सब हँसने लगे,

“क्या मम्मा, रिटायरमेंट के साथ ही पापा को बूढ़ा बना दिया। अभी तो पापा के स्कूटर चलाने के दिन आए हैं और आपको हनीमून पर जाना है। ये छड़ी किसलिए?”

वो नई नवेली दुल्हन की तरह लजा कर अंदर भाग गईं। पापा ने आवाज़ देकर उन्हें बुलाया और एक पैकेट उनके हाथ पर रख दिया।

उसके अंदर खूब सुंदर आवरण में ‘रामचरितमानस’ सजी थी। आशा जी ने सजल नेत्रों से उसे माथे से लगा लिया। वहाँ उपस्थित सभी की आँखें गीली हो गई थीं।

नीरजा कृष्णा

पटना

 

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