Moral Stories in Hindi : ये और ऋजु दोनों साथ में नाश्ता कर रहे थे। मैं इस उधेड़बुन में थी कि घर के सारे काम आज कैसे करूँगी! कहीं काम करने के चक्कर में टाँके खुल गए तो! फिर तो बहुत नाराज होंगे सब मुझसे। कोई नहीं धीरे-धीरे आराम करके निबटा लूँगी।
“तुम यही सोच रही हो न कि घर के काम करने हैं, कैसे होंगे?” ये मेरे पीछे आकर बोले।”
“नहीं, नहीं ऐसा कुछ नहीं है। मैंने झेंपते हुए कहा।”
“देखो, तुम पूरे दिन आराम करना, ऋजु के साथ खेलना पर कोई काम मत करना।”
‘‘अच्छा? तो घर ऐसे ही रहने दूँ क्या? सो गई तो कैसे काम चलेगा? बिना सफाई किए, बिना बरतन, कपड़े धोए काम चलेगा क्या?’’
‘‘क्यों नहीं चलेगा? तुम सचमुच कुछ मत करना नहीं तो तुमको दर्द होगा और परसों की तरह सिर दर्द से जकड़ जाएगा। जरूरत ही नहीं है कुछ करने की। मैं शाम को आऊँगा तो सब कर दूँगा।
‘‘कैसे हो आप? इतना आसान होता है क्या सब काम छोड़-छाड़ के सो जाना?’’
अरे, बहुत आसान होता है। देखो अभी 8.30 हो रहा है, नाश्ता-खाना बन चुका है। ऋजु की मालिश, नहलाना सब हो चुका है, मैं भी कॉलेज जा रहा हूं। मैं आऊँगा सीधे शाम को ६ बजे। तुम और ऋजु ही हो पूरा दिन। घर साफ ही है। ये अभी चलती तो है नहीं जो घर गंदा करेगी। अभी के सारे बर्तन तुम धुल ही चुकी हो। रही बात कपड़ों की तो कपड़े भी मशीन में डाल देना, शाम को मशीन चला दूँगा। बस, आराम करो, खुश रहो, टीवी देखो दोनों माँ-बेटी। इस के लिए क्या सुबहसुबह चिन्ता करना।’’
मैं इनका शांत, सौम्य चेहरा देखती रह गई। 15 सालों का साथ है हमारा। आज भी मुझे इन पर, इन की सोच पर पहले दिन की ही तरह प्यार आता है।
मैं इन्हें जिस तरह से देख रही थी, यह देख ये हँस पड़े। बोले, ‘‘क्या सोचने लगी?’’
मेरे मुँह से अकस्मात निकला, ‘‘आपको पता है, मुझे जलन होती है आपसे।”
जोर का ठहाका लगा कर हंस पड़े ये, ‘‘सच? पर क्यों?’’
मैं भी हँस दी। ये बोले, ‘‘बताओ तो?’’
मैं ने “न” में सिर हिला दिया।
फिर इन्होंने घड़ी देखते हुए कहा, ‘‘अब चलता हूँ, आज कॉलेज में भी इस बात पर हँसी आएगी कि मेरी पत्नी ही जलती है मुझ से। भई, वाह क्या बात कही। लोग सुनेंगे तो हँसेंगे। शाम को आऊँगा तो बताना।’’
ये कॉलेज चले गए। मैंने घर में इधर-उधर घूम कर देखा। हाँ, ठीक ही तो कह रहे थे ये। घर साफ ही है पर मैं भी आदत से मजबूर हूँ। रसोई में एक भी जूठे बरतन नहीं देख सकती न। सोचा झाड़ू लगा लूँगी, पोछा छोड़ दूँगी। दोनों बालकनी भी किसी और दिन धुल दूँगी। बस ऋजु को सुला के अपना नाश्ता लेकर बैठी और चाय पीते-पीते सोचने लगी।
दरअसल अभी ४ दिन पहले ही मेरी पित्त की थैली का आपरेशन हुआ है। उस दिन से लेकर कल रात तक ये सब काम करते रहे। मेरा, अपना, बेटी का नाश्ता-खाना, घर संभालना, मेरी दवा सब इनके जिम्मे था। बेटी का तो जुड़ाव कहिए या झुकाव इनकी तरफ ज्यादा है तो वो तो बस पापा की दीवानी है। उसको हर समय पापा ही चाहिए। बाकी दिनों में तो ठीक था पर इस समय इन पर काम का बोझ ज्यादा पड़ गया था। बिस्तर पर लेटे-लेटे मैं देखती कि ये ऋजु को नहला कर खुद नहाने जाते तो उसको वॉकर में साथ लिए होते थे। मुझे दवा देते और पानी लेने जाते तब तक वो सूसू कर देती। इधर इसकी नैपी बदलते तब तक उधर कुकर की सीटी बज जाती। उसको खाना खिला के खुद खाने बैठते तब तक वो सोने के लिए रोने लगती थी। उसको जब तक सुलाते तब तक इनकी रोटी बिल्कुल ठंडी हो जाती थी। मुझे समय-समय पर दवा देना, मेरे टाँकों पर मेडिसिन लगाना, सब काम ये बखूबी कर रहे थे और वो भी हँसते-मुस्कुराते। घर को भी बिल्कुल वैसे ही व्यवस्थित रख रहे थे जैसे मैं रखती आयी हूँ। इनको ये सब करते देखकर मैं कभी उदास हो जाती तो कहते “अरे ये सब तो मेरे बाएं हाथ का खेल है”।
यही नहीं इसके ८ महीने पहले जब आपरेशन से ऋजु का जन्म हुआ था तब भी सब इन्होंने ही संभाला था। उन दिनों मेरे लिए सबसे कठिन काम था ऋजु की मालिश और नहलाना और इनके लिए सबसे आसान काम था ये। मैं डरती थी कि कहीं नन्हीं-सी जान मेरे हाथ से फिसल न जाए पर ये अपनी बाहों में उसको मजबूती से पकड़े होते थे।
हाँ, यह सच है कभी-कभी इनके सौम्य, केयरफ्री, मस्तमौला स्वभाव से जलन सी होने लगती है मुझे। ये हैं ही ऐसे। कई बार इन्हें कह चुकी हूँ आपका नाम ही ऋषि नहीं है बल्कि आप अंदर से भी ऋषि-मुनि हो। वरना तो क्या यह संभव है कि इंसान किसी भी विपरीत परिस्थिति में विचलित न हो? ऐसा भी नहीं कि कभी इन्होंने कोई परेशानी या समस्या न देखी हो पर हर विपरीत परिस्थिति से यूँ निकल आते हैं जैसे कुछ हुआ ही न हो। जब भी कभी मूड खराब होता है बस कुछ पल चुपचाप बैठते हैं और फिर स्वयं को सामान्य कर वही मेरा मजाक उड़ाना शुरू कर देते हैं। कई बार इन्हें छेड़ चुकी हूं कि ऋषि महोदय कोई मंत्र वन्त्र पढ़ लेते हैं क्या मन में?
रात में सोने के समय अगर हम दोनों को कोई बात परेशान कर रही हो तो जहाँ मैं रात भर करवटें बदलती रहती हूँ, वहीं ये लेटते ही चैन की नींद सो जाते हैं।
इनकी सोने की आदत से कभी-कभी मन में आता है कि काश, मैं भी इनकी तरह होती तो कितनी आसान सी जिंदगी जी लेती! पर नहीं, मुझे तो अगर कोई बात परेशान कर रही है तो जब तक उस का हल न निकल आए मैं तनाव में रहती हूँ। और पतिदेव फिर अपना टेबल टेनिस रैकेट लिए खेलने जाने के लिए तैयार। जूते की लेस बाँधते जाएंगे और मुझे छेड़ते रहेंगे।
बात अगर टशन मारने की हो तो मेरे पति बहुत सीधे हैं। जो कपड़े ला दूँ शौक से पहनते हैं, जो क्रीम तेल रख दूँ वो मन से लगाते हैं। अपने छोटे भाई को ही देखा है मैंने, बहुत चूजी है वो। हर चीज अपनी पसंद का यहाँ तक कि मोजे-रुमाल भी। और बाल तो वो पूरे १५ मिनट सेट करता है। एक ये हैं कि बाल संवारने में १ मिनट भी नहीं लगाते।
मेरी बहन तो अकसर कहती है, ‘‘दी, जलन होती है आपसे। कितना अच्छा पति मिला है कोई नखरा नहीं। जो कपड़े, जो भी लाती हो सब बड़े मन से पहनते हैं। वैसे आपकी पसंद भी अच्छी है और जीजाजी की पर्सनालिटी भी इतनी अच्छी है कि सब कुछ उन पर जँच जाता है।’’
हाँ, तो आज मैं यही तो सोच रही हूँ कि जलन होती है इनसे, जो खाना प्लेट में हो, इतने शौक से खाएंगे कि क्या कहा जाए! सिर्फ मूँग की खिचड़ी भी इतना रस ले कर खाएंगे कि मैं उन का मुँह देखती रह जाती हूँ कि क्या सचमुच उन्हें इतना मजा आ रहा होगा खाने में! हाँ, बस नमक कम हो तो मजाक बना देते हैं।
आप सोचिए हम न्यूटन मूवी देखने गए। बाहर निकलकर मैं इनको चिढ़ा रही थी, मूवी की आलोचना कर रही थी। मेरे पति कहने लगे अच्छी तो नहीं थी पर अब क्या मूड खराब करना! टाइमपास करने गए थे न, कर आए। वैसे भी ऑस्कर नॉमिनेटेड थी तो टिकट बुक कर लिया। मुस्कुराती रही मैं इनकी सकारात्मक सोच पर।
हद तो तब थी जब हमारे एक घनिष्ठ रिश्तेदार ने मेरे साथ दुर्व्यवहार किया। मैं कई दिनों तक दुख में डूबी रही, वहीं थोड़ी देर चुप बैठने के बाद उन्होंने मुझे प्यार भरे गंभीर स्वर में कुछ यों समझाया, ‘‘पूजा, बस भूल जाओ उन्हें। उन्होंने जो किया वो बहुत गलत किया। मुझे बस खुशी इस बात की है कि तुमने उनको कोई अपशब्द नहीं कहा। वैसे भी तुमको तो खुश होना चाहिए कि व्यर्थ के झूठे रिश्ते से मुक्ति मिली, ऐसे अपने किस काम के जो मन को अकारण आहत करते रहें। अब तुम उनसे दूर ही रहना, बात भी मत करना।’’
इनके बारे में ही सोचते-सोचते मैं ने अपने सारे काम निबटा लिए थे। ऋजु सो के उठ चुकी थी और टीवी में हम दोनों उसकी पसंदीदा देव एंड एवा की कविताएं देख रहे थे। आज अपनी ही कही बात में मेरा ध्यान था। ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं जब मुझे लगता है काश, मैं इनकी तरह होती! हर बात को इनकी तरह सोच लेती। हाँ, इनके जीने के मस्तमौला अंदाज से जलन होती है मुझे, पर इस जलन में असीमित प्रेम है मेरा, सम्मान है, गर्व है, खुशी है। इनकी इन्हीं बातों पर तो दिल हार बैठी थी। इनकी सोच ने मुझे जीवन में कई बार मेरे भावुक मन को निराशाओं से उबारा है। विशेषकर तब जब माँ गयी थीं। कई बार किसी समस्या का ऐसा समाधान बताते हैं कि लगता है माँ ही बता रही हैं। सच कहूँ तो ये मुझे मेरी माँ ही लगने लगते हैं, मानो ईश्वर ने माँ के एवज में इनको दिया हो।
शाम को जब ये कॉलेज से लौटे तो हँस पड़े, ‘‘मैं जानता था तुम मानोगी नहीं। सारे काम कर लिए। क्यों किया ये सब?’’
‘‘जब जानते हो मानूँगी नहीं तो यह भी पता होगा कि पूरा दिन गंदा घर मुझे अच्छा नहीं लगता।’’
‘‘अच्छा, ठीक है तबीयत तो ठीक है न?’’
‘‘हां,’’ ये जब तक फ्रैश हो कर आए, मैं ने चाय बना ली थी और साथ में भेल-नमकीन भी।
चाय पीते-पीते मुसकराए, ‘‘चलो, बताओ क्यों जलती हो मुझ से? सोचा था, कॉलेज से फोन पर पूछूँगा, पर काम बहुत था। अब बताओ।’’
‘‘यह जो हर स्थिति में तालमेल स्थापित कर लेते हो न आप, इस से जलती हूँ मैं। बहुत हो गया, आज गुरुमंत्र दे ही दो नहीं तो आपके जीने के अंदाज पर रोज ऐसे ही जलती रहूँगी मैं,’’ कह कर मैं हँस पड़ी।
इन्होंने मुझे गहरी निगाहों से देखते हुए कहा, ‘‘जीवन में जो हमारी इच्छानुसार न हो, उसे चुपचाप स्वीकार कर लो। जीवन जीने का यही एकमात्र उपाय है, ‘टेक लाइफ एज इट कम्स’। तुम कहती हो न “जाहि विधि राखें राम, ताहि विधि रहिये। बिल्कुल वैसे ही।”
मैं इन्हें अपलक देख रही थी। सादे से शब्द कितने गहरे थे। ये पंक्तियाँ तो मैं कहती हूँ पर इन्होंने तो आत्मसात किया हुआ है।
अचानक उन्होंने शरारत भरे स्वर में पूछा, ‘‘जानती हो तुम्हारी जलन का क्या परिणाम हुआ है!!आज रोटियां भी जल गई थीं।
मैं जोर से हँस पड़ी। ये भी हँस रहे थे और पता नहीं क्या समझ के ऋजु भी हमारे साथ हँस रही थी।
#जलन
पूजा गीत
Very nice 👍