हमें और जीने की चाहत ना होती अगर तुम ……. – मीनाक्षी सिंह

समीरा जी – बहू ,अब तो तुम्हारे ब्याह को 6 वर्ष हो गए अब तो एक नन्हा मुन्ना दे दो हमें जो घर आंगन में घूमे और हमें दादा दादी बोले ! बहुत मन होता हैँ अपने पोते ,पोती को खिलाने का ! समीरा जी चहकती  हुई बोली !

शालू (समीरा जी की बहू ) – मम्मी जी ,आपसे कितनी बार कहा हैँ ,सुबह सुबह मेरा मूड स्पोईल मत किया कीजिये ,आज मेरे ऑफिस में प्रोग्राम हैँ ! उसकी तैयारी की इतनी टेंशन हैँ ,और आपका ये रोज रोज का ड्रामा ! उफ़ ,आने दीजिये ,दीपक को (शालू का पति ) ,अब इस घर में आपके साथ नहीं रहेंगे हम ! रोज रोज आपकी ये बातें तो नहीं सुननी पड़ेगी ! एक फुलटाइम मेड रख लूँगी !

समीरा जी(सुबकते हुए ) – बेटा ,मुझे माफ कर दो ! ये तुम्हारा निजी फैसला हैँ ! मैं अब से कुछ नहीं कहूँगी ! बस ऐसे ही मन में आया तो कह दिया ! तुम लोगों को कहीं जाने की ज़रूरत नहीं ! दीपू से कुछ मत कहना  ! बेचारा वो बहुत थक जाता हैँ ,उसे टेंशन मत दो मेरे कारण ! मस्त रहो ,स्वस्थ रहो तुम लोग !

शालू – क्या मम्मी जी ,आपके कहने का मतलब क्या हैँ ,एक आप ही ख्याल रखती हैँ दीपक का ,मैं बस उसे टेंशन देती हूँ ! घर के काम तो ठीक से होते नहीं आप पर ,दूसरों को सिखाती हैँ ! जब लौटकर आती हूँ ऑफिस से ,सारी किचेन फैली होती हैँ ,बस उल्टा सीधा खाना बनाकर रख देती हैँ ! बच्चा हो गया तो उसकी देखभाल क्या आप करेंगी ??? बोलिये !

समीरा जी – क्यूँ नहीं ,तीन बच्चें मैने ही पाले हैँ बेटा ,यहाँ तक कि मेरो छोटी सी बहन कम उम्र में विधवा हो गयी ,उसके दोनों बच्चें भी मैने ही पाले ! तो क्या पोता पोती नहीं पलेंगे मुझ पर ! मेरे हिसाब से तो मैं रसोईघर का सारा काम ठीक करती हूँ ! तुझे नहीं सही लगता ! अब ये आधुनिक किचेन की कुछ चीजें मुझे समझ नहीं आती तो उन्हे हाथ से ही कर लेती हूँ तो थोड़ा फैलाव हो जाता है !

शालू – मम्मी जी मुझसे बहस मत कीजिये ! अब मैं जाऊँ या नहीं ,सारे कपड़े मशीन में हैँ ,सुखाकर डाल दिजियेगा ,बाकी तो आप जानती ही हैँ क्या क्या  काम करने हैँ !

समीरा जी -ठीक हैँ  बेटा तू जा ,मैं सब कर लूँगी !

पता नहीं सास बहू की बातें कब से दरवाजें के पीछे खड़े विभूति जी (समीरा जी के पति ) खड़े सुन रहे थे !

समीरा जी उनसे आँख चुराते हुए अपने कमरे में आ गयी ! विभूति जी भी मूँछे तानते हुए ,आँखों में रोष लिए समीरा जी के सामने आकर खड़े हो गए ! समीरा जी बिस्तर सही करने का दिखावा करने लगी !




विभूति जी – देखो मेरी तरफ ,तुम तो कहती थी बहू मुझसे किसी काम की नहीं कहती वो तो मैं ही अपने मन से कर देती हूँ ! बुढ़ापे में हाथ पैर चलते रहने चाहिए !! रोज पैर दर्द की दवाई खाती हो  ! बी पी बढ़ जाता हैँ तुम्हारा ,इतनी जल्दी काम करती हो कि बहू के आने से पहले सब काम हो जायें ! अब समझ आया मुझे , मेरी समीरा बहू से डरती हैँ ! मुझसे झूठ बोलती रही कि बहू तो बच्चा चाहती है लेकिन बहू को अभी बच्चा ना करने की मैने ही हिदायत दी हैँ ,जल्दी बच्चा हो जायेगा तो बेचारी मेरी तरह घर ग्रहस्थी में फंस जायेगी और जीवन में कुछ नहीं कर पायेगी ! मुझे कुछ ना पता चले इसलिये तुम मुझसे हर बात छुपाती रही ! मैने कितनी बार कहा चलो कहीं घुमा लाता हूँ तुम्हे उस पर तुम्हारा एक और झूठ मैं चली जाऊंगी तो मेरी बहू बेचारी कैसे संभालेंगी सब ,मेरे बिना तो एक पल उसे अच्छा नहीं लगता घर में ! आते ही मुझे ढूँढ़ती हैँ मम्मी जी कहाँ हैँ !! क्यूँ ढूंढती है आज समझ गया मैं अच्छी तरह से की तुम्हे वो फटकार लगा सके कि तुमने क्या क्या  काम गलत किया और क्या काम रह गया !! बोलती क्यूँ नहीं कुछ सही बोल रहा हूँ ना ?????

समीरा जी खुद को रोक ना पायी और उनके आंसू उनकी आँखों से होते हुए कब विभूति जी के हाथों में आ टपके ,पता ही नहीं चला ! दीपू के पापा मैं बस रिश्ते बिगड़ते नहीं देखना चाहती थी ,हर घर में लड़ाई झगड़ा देखकर मैं हमेशा सोचती थी अपने घर में ऐसी नौबत कभी नहीं आने दूंगी ! पर मैं हार गयी ! सालों से बहू को समझा लिया ,झुककर देख लिया ! आजकल के बच्चें माँ बाप की इज्जत ही नहीं करते ,क्या बोलना हैँ किस से बोलना हैँ ,कुछ नहीं समझते ! मैं बस अपने दीपू  के लिए इतना सहती रही ,की शाम को थका हारा आता है तो उसके सर पर हाथ फेरकर कलेजे को ठंड़क मिल जाती हैँ ! अगर मैं भी बहू की तरह झगड़ने बैठ जाती तो कबका मेरा दीपू मुझसे दूर हो जाता !मैं तो जीते जी मर जाती ! कितनी मन्नतों से दो बेटियों के बाद दीपू  आया था हमारे घर में ! आप तो जानते ही हो मेरी जान हैँ वो ! आपको तो इसलिये नहीं बताया कि आप भी मुझे यहाँ नहीं रहने देते ! जानती हूँ आपके स्वभाव को !

विभूति जी ने समीरा जी को सीने से लगा लिया ! अब कुछ मत बोल तू ! बहुत अपमान और दुख सह लिए तूने पर अब नहीं ! मैने फैसला कर लिया हैँ !

अगली सुबह शालू मम्मी जी , मम्मी जी को पूरे घर में चिल्ला रही थी ! समीरा जी कांजीवरम की नीले रंग की तरीने से साड़ी पहने हुई थी ,बड़ा सा जूड़ा ज़िसमे गुलाब के फूल लगे हुए थे ,बड़ी सी नीली बिन्दी कुल मिलाकर कयामत ढा रही थी आज समीरा जी !

शालू – मम्मी जी इस उम्र में आपको क्या हो गया हैँ ,इतना सजधज के कहाँ जा रही हैँ ,ना ही कोई घर का काम किया ! मुझे लेट हो रहा हैँ ऑफिस के लिए ,जल्दी से नाश्ता बना दिजिये !




नाश्ता ,खाना घर के सारे काम आज से तुम करो य़ा नौकरानी पर करवाओं ,मुझे मतलब नहीं ,पर समीरा आज से कोई काम नहीं करेगी ! पीछे से विभूति जी दहाड़ती हुई आवाज में बोले !

शालू झेंप गयी !

और हाँ ,मैं और समीरा एक महीने के टूर पर जा रहे हैँ ! आने के बाद खबरदार समीरा पर ओर्डर चलाया तो ,उसका अपमान किया तो ,नहीं तो अपने लिए नए घर का इंतजाम कर लेना ! ये घर भले ही तुम लोगों से पूछकर आज की सुविधा के अनुसार बनवाया गया हैँ ,पर इस पर नाम मेरा और समीरा का ही रहेगा !

पीछे से दीपक भी चहकता हुआ आया ,और विभूति जी और समीरा जी के पैर छूये ! माफी मांगी – माँ पापा ,माफ कर दो ,मुझे नहीं पता इस घर में क्या चल रहा हैँ ! मैने कभी ध्यान ही नहीं दिया ! आप मम्मी को घुमा लाईये और हाँ उनकी फेवरेट जगह केरला ज़रूर ले जाइयेगा उन्हे ! समीरा जी ने अपने दीपू को गले लगा लिया !

शालू भी आज किसी से आँख नहीं मिला पा रही थी !

केरला की हसीं वादियों में विभूति जी और समीरा जी एक दूसरे क हाथों में हाथ डाले ये गाना गुनगुना रहे थे –

हमें और जीने की चाहत ना होती ,,अगर तुम ना होते ………..

स्वरचित

मौलिक ,अप्रकाशित

मीनाक्षी सिंह

आगरा

 

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