घाटी की कहानी  – कृष्णा विवेक

अमावस्या की रात थी विपुल अपनी ही कार से हिमाचल किसी बिजनेस के सिलसिले में गया था। घाटी की यातायात संसाधन से तो सभी वाकिफ हैं कौन जाने कब क्या हो जाए,  ऊपर से समय पर वाहन मिलना भी मुश्किल है इसी के चलते विपुल ने अपनी अपनी कार मैं जाना सेफ समझा । 

 

कहा जाता है घाटियों की रात कुछ जल्दी शुरू होती है जिसे इस तरह भी देखा जा सकता है कि लोगों की चहल पहल जल्दी ही ठप हो जाती है ।

 

आज भी रास्ता कुछ सुनसान सा लग रहा है विपुल को दूर-दूर तक कोई इंसान तो क्या परिंदा भी पर मारता नजर नहीं आ रहा।

रात के सन्नाटे में अगर कुछ आवाज है तो वहां आसपास के जंगल में रहने वाले पंछियों व जानवरों की है , जो थोड़ी थोड़ी देर में विपुल को बेशक भय का अनुभव करवा रही है।

 

विपुल ने अपना डर कम करने के लिए गाड़ी का रेडियो ऑन किया।  रेडियो में कुछ मेलोडी सॉन्ग का सिलसिला जारी था इसी बीच विपुल ने कुछ दूर सड़क के किनारे एक औरत को खड़े देखा अंधेरे में ज्यादा कुछ देख नहीं पाया पर हां दूर से परछाई किसी औरत की ही लग रही थी जो शायद किसी वाहन का इंतजार कर रही हो इतनी रात को ऐसी जगहों में यातायात में असुविधा तो होती ही है, विपुल ने सोचा क्यों ना वह उसकी मदद करें।

 

 

विपुल के यह सोचते ही रेडियो का सिग्नल अचानक से मिस होने लगता है और उसी क्षण एक भयानक आवाज उसके हाथों को उसके कानों पर रखने पर मजबूर कर देती है, वही कार का तापमान एसी ऑन होने के बाद भी बढ़ता चला जाता है। गर्मी के मारे विपुल के पसीने छूटने लगते है।




 

रेडियो से आती आवाज विपुल को कहती है “तुम आ गए मुझे पता था तुम जरूर आओगे मैं तुम्हारा इंतजार कर रही हूं , मुझे भी ले चलो अपने साथ तुम नहीं जानते तुम्हारे सहयोग के बिना मैंने क्या क्या नहीं सहा” इतना कहते ही वह आवाज अचानक से ही बंद हो जाती है और रेडियो सामान्य गानों की धुन पुनः शुरु करता है।

 

विपुल डर के मारे गाड़ी का ब्रेक मारकर बीच रास्ते में गाड़ी को रोक देता है जैसे ही उसकी नजर सामने जाती है•••• वहां पर खड़ी औरत अब कहीं नजर नहीं आ रही होती है।

 

यह सब विपुल के साथ क्या हो रहा था उसे समझ नहीं आया, उसने कुछ देर गहरी सांस लेकर फिर से कार का एक्सीलेटर देते हुए तेज रफ्तार में उस जगह से गाड़ी भगाने की कोशिश में सफल हुआ।

 

होटल पहुंचकर चेक-इन करके विपुल अपने कमरे में जाता है रिसेप्शन पर कॉल करके डिनर ऑर्डर करता है। अभी तक वह उस हादसे को भूल नहीं पा रहा सोने की कोशिश करता है पर नींद कहीं दूर दूर तक नजर नहीं आ रही, उसी वक्त विपुल थोड़ा टहलने का सोचकर होटल के अंदर बने गार्डन में चला जाता है ।

 

वॉकिंग करते वक्त होटल का गार्ड विपुल को इस तरह देखकर समझ जाता है । उसके साथ क्या हुआ होगा वह विपुल से जाकर बात करता है और पूछता है क्या हुआ साहब आप कुछ अनकंफरटेबल से लग रहे हो?? अगर चाहो तो मुझसे शेयर कर सकते हो।

 

गार्ड की यह बातें सुनकर विपुल को जैसे अपना दिल का हाल बताने के लिए कोई साथी मिल गया हो, उसने रास्ते में बीती घटना का सविस्तार वर्णन गार्ड को कह सुनाया।

 

गार्ड ने कहा साहब यह घटना कहाँ हुई थी क्या आप मुझे एग्जैक्ट लोकेशन बता सकते हैं!!! 

 

विपुल ने याद करते हुए कहा अंधेरा था,  ज्यादा कुछ दिखा नहीं पर हां जहां वह औरत खड़ी थी••• उसी के पीछे एक पेड़ था शायद पिपल या बरगद का पेड़ होगा और हां उसी के आसपास एक बड़ा सा पत्थर भी पड़ा था।

 




गार्ड बोला साहब वह औरत कोई और नहीं इसी गांव की कजरी थी जिसकी कुछ सालों पहले बस एक्सीडेंट में मौत हो गई,  पेट से थी बेचारी पति का इंतजार करते करते हैं बस में बैठ घर के लिए अकेले रवाना हुई। 

 

रास्ते में जो पत्थर आपने देखा उसी पत्थर से बस टकराकर पास की खाई में गिर गई।  एक्सीडेंट के बाद कजरी वहां आज भी अपने पति का इंतजार करती है।

 

आपने आज उसी को देखा और जो आपने रेडियो में सुना वह भी कजरी की ही आवाज थी बेचारी को ना तो जीते जी खुशियां मिली और ना ही मरने के बाद••••••साहब ऐसी घटनाएं पहाड़ों में आम बातें हैं ,यहां पर रहने वाले लोग इन सबके आदि है हां बाहर से आने वाले कभी कबार कुछ ज्यादा ही डर जाते है।

 

विपुल यह सब सुनकर हक्का बक्का रह गया क्या सच में आज के जमाने में यह सब होता है और नहीं होता तो जो आज उसके साथ उस सुनसान रास्ते पर हुआ वह क्या था!!!!!

लोगों की कही सुनी बातों पर यकीन करें या फिर अपने साथ बीती उस घटना पर।

 

 

विपुल यही सब सोचते हुए अपने कमरे में गया और सो गया।

 

विपुल ने अपना काम सुबह खत्म किया और अपने शहर को पुनः लौट आया।  

 

 

इतने सालों बाद भी उसे आज तक यह विश्वास नहीं हुआ जो हुआ उसके साथ वह सच था या फिर नजरों का धोखा।

 

 

 कभी कभी हमारे साथ भिन्न-भिन्न तरह के मज़ाक करता हैं।  हम समझ ही नहीं पाते क्या सच और क्या नजरों का धोखा •••

 मेरी कहानी काल्पनिक है पर मैं आपके विचार जानने के लिए उत्सुक हूँ आप क्या सोचते हैं अवश्य बताएं।

 

-कृष्णा विवेक

 

स्वरचित एवं मौलिक 

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