सीताराम एक छोटी सी कंपनी में नौकरी करते थे। उनकी थोडी सी तनख्वाह से ही उनके तीन बच्चों पत्नी और माँ का पालन पोषण होता था। उनकी भी ख्वाहिश थी कि एक अपना घर हो लेकिन वह एक सपना ही बनकर रह गया था। वे सब एक हजार रुपए देकर किराए के मकान में रहते थे।
कहने के लिए तीन कमरे थे परंतु उसमें से एक कमरा रसोई के लिए उपयोग में लाते थे। दूसरे कमरे में दो पलंग ही डाल सकते थे वैसा एक सोने के लिए कमरा है। अंत में जो एक कमरा हैं जिसे बैठक के रूप में चार कुर्सियाँ ही डाल कर बैठक स्टडी रूम तथा माँ के सोने के लिए उपयोग में लाते थे । उस बिल्डिंग में चार पोर्शन थे । उन चारों पोर्शनें के लिए एक ही बाथरूम और दो टॉयलेट थे।
सीताराम की तन्ख्वाह बढ़ी थी यह बात वे घर आकर पत्नी से कह रहे थे कि नहीं उसी समय मकान मालिक ने आकर कहा कि सीताराम जी इस महीने से आप पच्चीस रुपए बढ़ाकर किराया दीजिए। उन्होंने सोचा कि इन्हें कैसे पता चला कि मेरी तनख्वाह बढ़ गई है।
सीताराम ऩे फिर से नया किराए का मकान ढूँढऩे में लग गए थे। एक खुशी की बात यह थी कि मकान कितना भी छोटा ही क्यों ना हो बच्चे अच्छे से पढ़ लिख गए थे। वे सब किराए के नए मकान में आ गए थे। उन्होंने किराए के मकान में ही अपऩी बेटी सुप्रिया की शादी की थी। वहीं उस किराए के मकान में ही माँ की मृत्यु हो गई थी । उनके दोनों बेटे भी नौकरी पर लग गए थे। बडा बेटा बैंगलोर में रहता था। छोटा बेटा पूने में नौकरी करता था।
बडे बेटे आदित्य ने अपने ऑफिस में साथ काम करने वाली सौम्या से शादी करने का फैसला किया था। सीताराम और उनकी पत्नी सुलोचना ने कोई आपत्ति नहीं जताई और उनकी शादी करा दी थी। पिछले साल ही दूसरे बेटे विक्रम ने अपने भाई के पदचिन्हों पर चलते हुए अपनी ही सह उद्योगी रम्या से शादी करनी चाही। सीताराम ने उनकी भी शादी करा दी और अपनी जिम्मेदारियों को पूरा कर लिया था।
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अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करते हुए उनके रिटायर होने का समय गया था । वे दोऩों ही रहने वाले थे इसलिए फिर से एक छोटे से किराए का मकान ढूँढऩे लगे थे। उनके अपने खुद के घर की इच्छा अभी भी उनके मन को कुरेद रही थी । उसी समय उन्हें एक घर के पास बोर्ड दिखाई दिया था कि
मकान बिकाऊ है। उन्होंने घर का दरवाजा खटखटाया। छोटा सा इंडिपेंडेंट घर था सामने गेट से चलकर अंदर गए तो एक रसोई और दो रूम थे। घर के पिछवाडे में कुँआ और छोटा सा आँगन था। उनका अपना एक बाथरूम और एक टॉयलेट भी था जिसके लिए वे लोग तरस गए थे । सीताराम ने मालिक से बात की तो उन्होंने जो पैसा बताया उसे सुनकर वे खुश हो गए थे कि रिटायर होने के बाद आए हुए पैसों से ही यह घर मिल रहा था। उन्होंने मालिक से बात किया और खुशी खुशी घर पहुँचकर सुलोचना को बताया और दूसरे ही दिन जाकर उन्होंने घर खरीद लिया था।
अपना घर यह सोच कर ही एक सुखद अहसास हो रहा था । उऩके घर के आसपास के पेडों से ठंडी हवा आती थी। सीताराम और सुलोचना ने पिछवाडे में थोडी सही सब्जियों को बो लिया था। अब दोनों पति पत्नी इतने सालों बाद आराम की जिंदगी जी रहे थे।
उसी समय छोटे बेटे का पत्र आया कि आप लोग हमारे घर आकर रहिए आपका पोता आपको बहुत मिस कर रहा है। मेरी पत्नी की इच्छा थी वहाँ जाने की इसलिए हम दोनों निकल पड़े.। मुझे तो कोई तकलीफ नहीं थी परंतु बिचारी सुलोचना घर का काम करते हुए थक जाती थी। बहू को तो आराम मिल गया था
क्योंकि उसे कोई काम करना नहीं पड़ता था क्योंकि उसके बच्चे और घर को सुलोचना ने संभाल लिया था। मुझसे तो सुलोचना की हालत देखी नहीं जा रही थी । इसलिए मैं एक महीने में ही उसे वापस घर ले आया।
अब हम फिर से अपने घर में आकर आराम से रहने लगे थे। लेकिन बच्चों को या फिर ईश्वर को हमारी खुशी रास नहीं आई थी शायद इसीलिए बडे बेटे का पत्र आ गया था कि माँ प्लीज आप लोग हमारे यहाँ आकर रहिए ना आपकी बहू दूसरी बार माँ बनने वाली है आप दोनों यहाँ थोडे दिनों के लिए आ जाएँ तो उसकी मदद हो जाएगी।
माँ तो माँ ही होती है तो सुलोचना फिर मुझे सताने लगी थी कि प्लीज चलिए ना हम लोग चलते हैं। उसे मैं नाराज नहीं करना चाहता था इसलिए अब बडे बेटे के घर पहुँच गए थे।
यहाँ कुछ नया नहीं हुआ था। वही काम का बोझ और जिम्मेदारियाँ जिन्होंने सुलोचना का पीछा नहीं छोड़ा था। यहाँ भी मैं कुछ समय तक चुप रहा और जैसे ही बच्चे की छुट्टियाँ शुरू हुई तो मैंने बेटे से यह कहते हुए कि घर पर ताला लगा हुआ है । हमें यहाँ आए हुए भी बहुत दिन हो गए हैं । हमें घर वापस चलना चाहिए इसलिए मैंने टिकट खरीद लिया है हम कल ही निकल रहे हैं।
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हम दोऩों वहाँ से निकलकर बडी मुश्किल फिर घर वापस आ गए थे। हम अपने नंदऩ वन में बहुत खुश थे।
एक दिन खाना खाकर हम बैठकर बातें कर रहे थे कि बिटिया का फोन आया था कि वह माँ बनने वाली है। यह खबर सुनकर बहुत खुशी हुई थी क्योंकि वह शादी के बहुत सालों बाद माँ बन रही थी। हमारी भी यही इच्छा रही थी कि वह भी माँ बन जाए तो अच्छा है।
उसने कहा कि माँ डॉक्टर ने मुझे बेड रेस्ट करने के लिए कहा है आप यहाँ आ जाएँगी तो मुझे अच्छा लगेगा । उसकी बातों को सुनकर मुझे बुरा लग रहा था कि बेटों ने तो आप दोनों आइए कहा था लेकिन बिटिया माँ तुम आ जाओ कह रही थी।
सुलोचना ने कहा कि ये बच्चे हमें एक साथ खुश क्यों नहीं रहने देते हैं। सीताराम ने सोचते हुए कहा कि सुलोचना बेटों ने तो हम दोनों को बुलाया था पर बेटी ने तो सिर्फ तुम्हें ही बुलाया है। सुलोचना को तब याद आया था कि हाँ उसने तो सिर्फ मुझे बुलाया है। उसने फोन पर बेटी से कहा कि तुम ही यहाँ आ जाओ सुप्रिय़ा क्योंकि यहाँ हम तुम्हारी अच्छे से देखभाल कर सकते हैं। मैं आ जाऊँगी तो तुम्हारे पापा को तकलीफ होगी। इस उम्र में उन्हें अकेला छोड़ना अच्छा नहीं है।
उसने कहा कि माँ मैं आ जाऊँगी तो मेरे पति को खाने के लिए दिक्कत हो जाएगी। हाँ अगर आप पापा के लिए फिक्र कर रहीं हैं तो उन्हें भी ला लीजिए पर माँ टिकट आप लोग ही खरीदें।
पेंशन से किसी तरह अपना गुजारा करने वाले दोनों ने सिर्फ सुलोचना को भेजने का निर्णय लिया था।
सुलोचना बेटी के पास पहुँच गई। उसने अपनी बेटी का वहाँ बहुत ख्याल रखा। एक दिन सुलोचना ने कहा कि तुम्हें मैं डिलवरी के लिए अपने साथ ले जाऊँगी तू चलना बेटा मुझे यहाँ आए हुए काफी दिन हो गए हैं। अपने पति से बात करके दूसरे दिन बिटिया ने आकर कहा माँ आपके दामाद कह रहे हैं
कि हमारे यहाँ अच्छे अस्पताल हैं आपके यहाँ के अस्पतालों में अच्छी सहूलियत नहीं होती है। इसलिए मुझे यहीं डिलीवरी करवाना चाहिए। एक बात और माँ यह रिवाज है ना कि मेरी पहली डिलिवरी आपको ही करवानी चाहिए। अगर आप ना कहेंगी तो मेरे ससुराल में मेरी इज्जत क्या रह जाएगी। इसलिए यहाँ अस्पताल का जो भी खर्च होगा उसे आपको ही भरना पडेगा।
सुलोचना ने सीताराम को फोन करके सारी बातें बताईं जिन्हें सुनकर उन्होंने कहा कि देख सुलोचना बेटियाँ भी अपने मातापिता के बारे में नहीं सोच रही है। उसे तो मालूम ही है कि हम थोडे से पेंशन से गुजारा कर रहे हैं। फिर भी वह कैसी बातें कर रही है।
सीताराम ने इस बारे में बहुत सोच विचार किया तो उनके सामने घर बेचने के अलावा कोई रास्ता नहीं था। उन्होंने सुलोचना को फोन करके यही बात बताई थी। दो दिन एक सुलोचना का कोई फोन नहीं आया था। वे उस दिन आँगन में बैठकर चाय पी रही थे कि सामने के गेट के खुलने की आवाज सुनाई दी।
वे उठकर देखने के लिए जाने ही वाले थे कि सामने से सुलोचना को आते हुए देखा जो आते ही मुझसे लिपटकर कहने लगी थी कि मैं अपने घर वापस आ गई हूँ। मुझे किसी के पास नहीं जाना है यह हमारा अपना घर है। मैं इसे बिकने नहीं देना चाहती थी इसलिए उससे यह कहकर कि हमारे पास पैसे नहीं है हम तुम्हारी मदद नहीं कर सकती हैं कहकर मैं वापस घर आ गई हूँ मैंने कुछ गलत कहा है?
सीताराम ने कहा नहीं तुमने कुछ गलत नहीं कहा है। मैं तुम्हारे साथ हूँ कहते हुए सुलोचना से कहा कि तुम फ्रेश हो जाओ मैं तुम्हारे लिए चाय बनाता हूँ।
दोस्तों सुलोचना की घर वापसी सही है या नहीं आपकी क्या राय है जरूर बताइए।
क़े कामेश्वरी