शुक्रवार का दिन था। शाम का समय था।अगले दिन खुशी ने दूसरे शहर में नौकरी शुरू करने के लिए जाना था। उसके पास जाने के लिए एक रुपया तक नहीं था पर उसके पास पांच- पांच के सिक्कों से भरी हुई एक मिट्टी की गुल्लक थी। जो उसने बुरे से बुरे समय में भी बचाकर रखी थी।आज उसके पास ओर कोई साधन नहीं था।
उसे गुल्लक को तोड़ना पड़ा। गुल्लक तोड़कर उसने पांच-पांच के सिक्कों की गिनती की और उसमें से अपने खर्चे लायक सिक्के निकाल लिए। बाकी सिक्के मां को पकड़ाते हुए कहा कि ये सिक्के आप घर पर रख लीजिए। पीछे से पैसों की जरूरत पड़ी तो इस्तेमाल कर लीजिएगा।
जैसे ही वह सिक्कों को रुपए में बदलने के लिए दुकान की ओर जाने लगी तो मां ने कहा सारे सिक्के ही रुपए में बदलवा लो और सारे रुपए साथ लेकर जाना। इनकी तुम्हें हमसे अधिक जरूरत पड़ेगी।
खुशी को पांच- पांच के सिक्के बहुत अच्छे लगते थे। अब तो इन सिक्कों की कीमत उसकी नजर में ओर भी अधिक बढ़ गई थी क्योंकि इन सिक्कों ने उसकी ढाल बनकर उसे आगे ले जाना था। उसने सारे सिक्के उठाए और दुकान पर चली गई। दुकानदार ने
सिक्के देखकर कहा कि बेटा इतने सिक्के कहां से लाए हो? खुशी ने बताया कि उसे जरूरत है इसलिए उसने अपनी गुल्लक तोड़ी है।दुकानदार ने कहा कि बेटा आपको जितने पैसे चाहिए, आप मेरे से ले जाओ।बाद में वापस कर देना पर अपने सिक्के संभाल कर रखो तो खुशी ने कहा
कि वह अपने जीवन की पहली नौकरी करने जा रही है। वह अपने दम पर जाना चाहती है। आपसे पैसे लेने में कोई आपत्ति नहीं है पर मैं किसी कर्ज के साथ आगे नहीं बढ़ना चाहती।आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आपने हमारे लिए इतना सोचा। दुकानदार ने खुशी को सिक्के रखकर उसके रुपए दे दिए।
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अगले दिन खुशी नौकरी पर चली गई। उसने दूसरे शहर जाना था। इसलिए अब वह हर रोज घर पर नहीं आ सकती थी। पर उसकी यह नौकरी स्थाई नहीं थी इसलिए उसे कुछ महीनों के बाद यदि दोबारा उसी जगह पर नौकरी न मिली तो वापिस अपने घर आना था। वह चाहती थी कि उसे उसके शहर में ही नौकरी मिल जाए और उसकी घर वापसी हो जाए।
पर अस्थाई नौकरी करते हुए उसे दूसरे शहर में स्थाई तौर पर नियुक्त कर लिया गया।अब उसे पहली नौकरी को बीच में छोड़कर ही दूसरे शहर जाना पड़ा। यह तो तय हो चुका था कि अब वह कुछ महीनों के बाद भी अपने घर वापिस नहीं जा पाएगी। अब तो जहां नौकरी करेगी वहीं उसका घर होगा।
एक वर्ष की नौकरी के बाद ही उसका विवाह तय हो गया। प्रोबेशन के समय में ही उसका विवाह हो गया और विवाह के ग्यारह महीने बाद वह अपनी नौकरी छोड़कर अपने पति के साथ उस शहर चली गई जहां उसका पति नौकरी करता था।
कभी-कभी वह सोचती है कि एक बार उसने घर क्या छोड़ा?फिर उसकी उस घर में कभी वापसी ही नहीं हुई। वैसे तो उसका घर उस से तब छूटा था, जब उसका विवाह हुआ था। पर असल में तो उसका घर तब ही छूट चुका था, जब वह घर से नौकरी के लिए दूसरे शहर गयी थी और अब तो उसके घर वापसी का वह सोच भी नहीं सकती थी क्योंकि उसने अपना नया घर बसाना था।
यह फर्क नहीं पड़ता कि औरत किराए के मकान में रहती हैं या स्वयं के। उसके लिए प्रत्येक मकान उसका घर बन जाता है क्योंकि एक घर में औरत जितना सहज अनुभव करती है उतना मकान में नहीं किया जा सकता। मकान सिर्फ बाहरी वस्तुओं से बनता है और घर आंतरिक रिश्तों से।
डॉ हरदीप कौर (दीप)