गमों के बीच झांकती खुशियां – तृप्ति शर्मा

विधि का मन आज खुशी और गम के बीच झूल रहा था , खिड़की के बाहर नवरात्र के पंडाल में सजे धजे लोग माता के रूप को निहार ,उनकी बलईयां लेते नहीं थक रहे थे ,हर जगह मां के जयकारों की गूंज थी।

विधि के अशांत मन को यह गूंज भी शांत न कर पाई, छः साल पहले के नवरात्रे उसकी आंखों के सामने घूमने लगे ,जब रोहित ने ऐसे ही एक पंडाल में मां के चरणों का सिंदूर उसकी मांग में भर दिया था । एक अनाथ को सहारा दिया था उसने।  मां के कदमों से सिंदूर लेकर उसने माता रानी को विधि की मां भी बना दिया जिनपर विधि को विश्वास नही था साथ ही अपना परिवार भी जिसमे उसके मां बाबूजी थे । विधि, एक परिवार व रोहित का प्यार पाकर बहुत खुश थी ,पर उसे नहीं पता था कि मां बाबा का प्यार अब भी उसके आंचल में नहीं है । रोहित के मां बाबा ने अनाथ विधि को नही अपनाया। दो मंजिल के मकान का अनचाहा बटवारा हो गया था, न ग्रह प्रवेश हुआ न मंगल गीत बजे ,हुआ था बस बर्तनों और रिश्तो का बंटवारा ।

ऊपरी मंजिल ,जहां रोहित का प्यार पाकर खुशी से झूम उठी थी विधि ,वहीं दूसरी तरफ निचली मंजिल पर मां बाबा को ,रोहित से ,अपनी वजह से नाराज देख दुखी और गमगीन हो जाती थी  पर कभी मां बाबूजी के आदर में कमी न रखी उसने, उनके न चाहते हुए भी रोज पैर छूने जाती ,बीमारी में सेवा करती पर मां बाबूजी का प्यार आशिर्वाद बन कभी उस पर न बरसा। दिन बीते पर मां बाबूजी का गुस्सा नही बदला। एक मनहूस शाम ,विधि के इस गम को रोहित के एकसीडेंट ने और गमगीन बना दिया।

जिस रोहित में उसकी खुशियां ,जिंदगी बसी थी वो हमेशा के लिए उसे छोड़कर चला गया था इस दुनिया से। उसके ऊपर तो जैसे पहाड़ टूट पड़ा हो। मां बाबूजी ने यह कहकर विधि को अपने से अलग कर दिया कि यह अशुभ हैं। हमारे रोहित को भी खा गयी। एक बार फिर अनाथ हो गईं थी विधि।

आज छः साल बाद नवीन ने सब जानते हुए एक बार  फिर  खुशियां उसकी झोली में डालनी चाही पर विधि का मन बार बार रोहित और उसके मां बाबूजी को याद कर रहा था। उन्ही को उसने अपने मां बाबूजी की जगह दी थी उनके द्वारा अस्वीकार होने के बाद भी वो उन्हें ही अपना समझती थी ।नवीन ने कहा,




” तुम्हे उनका इतना खयाल आ रहा है तो एक बार उनसे मिल लो,मेरा भी तो कोई नहीं है,मुझे भी मां बाबूजी मिल जाएंगे।

विधि बोली -“क्या मुझे वहा जाना चाहिए ,वो मुझे इजाजत देंगे कि मैं उनका आशीर्वाद ले सकूँ ?

नवीन के ढांढस बंधाने के बाद विधि घबराते हुए एक दिन रोहित के घर की दहलीज पर कदम रखती है । पीछे-पीछे नवीन भी आता है जो अब उसकी खुशियों का रखवाला है और साए की तरह उसके सुख दुख में साथ है और जिसने कसम खाई है उसे गमों से दूर रखने की। सामने ही बाबूजी बैठे थे । विधि ने जाकर पैर छुए तो उन्होंने चौंककर विधि को पहचानने की कोशिश की। विधि ने देखा ,बाबूजी बहुत बूढ़े लग रहे थे और बीमार भी। उन्होंने मां को आवाज लगाई। मां को देखकर विधि रो ही पड़ी। ऐसा लग रहा था वो इंसान नहीं हड्डियों का बस एक ढांचा भर हो। कोई था भी तो नहीं उनकी देखभाल करने के लिए। रोहित के जाने के बाद वैसे ही टूट चुके थे दोनों। विधि लपककर मां के गले लग गयी। मां ने विधि को पुचकारते हुए कहा,

“हमें माफ कर देना बेटी, तुम हमारे इकलौते बेटे की अमानत थीं, हम तुम्हें सम्भाल नहीं पाए,अपने झूठे दंभ में आकर हमने तुम्हारे साथ बहुत बुरा किया है बिटिया,हमने तुम्हें बहुत ढूंढा, पर तुम्हारा कहीं पता नहीं चला।

विधि के सामने मां बाबूजी हाथ जोड़कर खड़े थे। विधि ने मां बाबूजी के पैर छुए,उसे ऐसा लगा जैसे कई सालों बाद मायके आई हो। सारे गिले शिकवे दूर हो चुके थे।

मां पूजा की थाली हाथ मे लेकर आई ,कुछ देर विधि को देखने के बाद नवीन से बोली ,

“लो बेटा ,ये सिंदूर भर दो इसकी मांग में “

विधि की आंखों से झर झर आंसू बह रहे थे, वो मां से लिपटकर बिलख बिलखकर रोने लगी । मां के पीछे विधि को रोहित खड़ा हुआ दिखाई दिया, जैसे कह रहा हो ,

“मिल गए न आज मां बाबूजी तुम्हें”

पर तुम नही हो ,विधि बुदबुदाई । तभी नवीन जो कि पीछे खड़ा बहुत देर से ये सब देख रहा था , मुस्कुराकर बोला,

” अरे मैं भी हूँ भयी” विधि,मां और बाबूजी के मुरझाए चेहरों पर सुकून भरी मुस्कुराहट तैर गयी ,उस सूने घर में एक बार फिर खुशियां चहकने लगी थी।

 

तृप्ति शर्मा।

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