Moral stories in hindi: नया शहर, नया घर.. व्यवस्थित करते कब महीना भर बीत गया, पता नहीं चला। रसोई में काम करते अचानक निगाहें उन बर्तनो पर चली गई, जिनमें पड़ोसी आंटी… अभी तक नाम भी नहीं पता, खाना दे गई थी। सोचा बच्चों की फरमाइश पर इडली बना रही हूँ तो थोड़ा ज्यादा बना कर उन्हें भी शाम को दे आऊंगी। अब घर सेट हो गया तो पड़ोसियों से जान -पहचान बनाने का समय मिल गया।
पड़ोसी आंटी का शांत -सौम्य चेहरा उस दिन भी बहुत आकर्षित किया था पर समयाभाव के कारण उनके बारे में जानकारी ना ले पाई। अभी सोच रही थी की मोबाइल बज उठा। देखा कल बच्चों को स्कूल बस पकड़वाने जब सोसाइटी के गेट पर गई थी तो ऊपर रहने वाली कनक से परिचय हुआ था। फोन नम्बर का अदान -प्रदान भी हुआ मोबाइल पर उसी का फोन आ रहा।
उठाते ही उधर से चहकती आवाज आई “हाय नेहा,काम खत्म हो गया हो तो आ जा चाय पीते है “।”ओके आती हूँ “कह मैंने फोन रख दिया। काम तो मेरा समाप्त हो चुका था, बच्चों के आने में दो घंटे बाकी थे सो गप्पे ही मार आती हूँ, सोच मै कनक के घर चली गई। कनक भी मुझे देख बहुत खुश हुई। चाय के साथ कब घंटा भर बीत गया पता नहीं चला।
“कनक अब मै चलती हूँ, बच्चे भी आने वाले होंगे थोड़ा खाने की तैयारी कर लूँ, वैसे भी शाम को बगल वाली आंटी के बर्तन लौटने है”।
“बगल वाली लता आंटी, यानि वो खड़ूस बुढ़िया “कनक बोली तो नेहा को अच्छा नहीं लगा।
“ऐसे मत कहो, कितनी ग्रेसफुल लगती है आंटी “नेहा ने कहा तो कनक जोर से हँस पड़ी “ग्रेसफुल और वो खड़ूस आंटी…..अरे तू अभी उनके बारे में जानती नहीं है, पता है इस उम्र में पति को तलाक दे यहाँ अलग रह रही ”
“क्या आंटी तलाकशुदा है “नेहा हैरानी से बोली, उसकी आँखों के सामने आंटी के माथे की बड़ी गोल बिंदी और मांग का सिंदूर झलक गया।
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“हाँ , कुछ ऐब इन्ही में रहा होगा, वरना एक ऑफिसर की बीवी होकर कोई इस उम्र में अकेले रहना चाहेगा “कनक ने कहा। अब मेरा लेखक मन सारी कहानी जान लेने को व्यग्र हो गया,पर बच्चे आते होंगे, समय की नजाकत देख मै कनक से विदा ले घर लौट आई। शाम को आंटी के घर जाना ही है तो उन्ही से पूछ लुंगी।
सांभर सुबह ही बना लिया था जल्दी -जल्दी इडली बना, लता आंटी के बर्तन में पैक कर अलग रख दिया, बच्चों को खाना खिला, सुला कर मै बाहर से ताला बंद कर आंटी के घर पहुँच गई। डोर बेल बजाते ही आंटी ने दरवाजा खोला, मुझे देख मुस्कुराई, अंदर आने का इशारा कर दरवाजे से हट गई। साफ सुथरा, ड्राइंग रूम, उनकी सुरुचि को दर्शा रहा था।आंटी को टिफ़िन पकड़ा मैंने चारों तरफ नजर दौडाई,…चार केन की कुर्सियां,गद्दीयों पर चढ़े कवर खूबसूरत कवर, कोने में पाम का पौधा, साइड में दो छोटे बोनसाईं के पौधे उनके प्रकृति प्रेमी होने की गवाही दे रहा था, कुछ किताबें और हल्के नीले रंग के पर्दे, आँखों को बहुत भा रहे थे।लता आंटी पानी का गिलास ले आई,”अरे पगली इडली की क्या जरूरत थी, वैसे भी मै शाम को कुछ नहीं खाती हूँ “। आंटी ने कहा तो नेहा बोली “कोई बात नहीं आंटी इडली हल्की होती है, आज खा लीजियेगा “।
बातचीत के दौरान मै अपने लेखक मन की उत्सुकता दबा नहीं पाई,” आंटी आप अकेली ही रहती है, मतलब आपका परिवार… पति और बच्चे… कहाँ है।”मेरे प्रश्न पूछते ही लता आंटी के चेहरे का रंग बदल गया, अब तक की शांत -सौम्य आंटी मेरे प्रश्न से विचलित हो गई।
“तू मेरी तृषा जैसी दिखती है, इसलिये सब बताती हूँ तुझे, कभी मेरी भी एक सुखद गृहस्थी थी, प्यार करने वाला पति, दो प्यारे बच्चे, धन -दौलत, गाड़ी, बंगला मतलब एक औरत को जो चाहिए,वो सब कुछ मेरे पास था।
अपनी गृहस्थी को मैंने बड़ी मेहनत से संवारा था। बच्चे बड़े होने लगे थे, मेरा ज्यादा समय अब उनकी पढ़ाई, और गतिविधियों में बीतने लगा।
पति की समझदारी पर मुझे बहुत नाज था, पर कहते है ना खुशियाँ ज्यादा देर तक कहीं नहीं टिकती। एक दिन मै बेटी को कोचिंग पहुंचा पास के मॉल में शॉपिंग करने पहुँच गई।
हमारी शादी की सालगिरह आने वाली थी, सोचा पति के लिए एक अच्छा सा उपहार ले कर उन्हें सरप्राइज दूंगी। घड़ी पसंद कर ही रही थी, मुझे एक जानी -पहचानी आवाज सुनाई दी,” ये नहीं दूसरा लो, ये महँगा भी है, और सुन्दर भी “मन हर्ष से इतरा उठा, अच्छा ये भी मुझे सरप्राइज देने के लिए उपहार ख़रीद रहे, मन ही मन इनको डिस्टर्ब ना कर, सुहाने सपने देखती जब मै काउंटर पर पहुंची, पति पैमेंट करके किसी नाजुक सी कलाई में वो खूबसूरत रिस्ट वॉच पहना रहे थे।
मेरे होठों की मुस्कुराहट थम गई, पति की दृष्टि मुझ पर पड़ते ही उनका चेहरा स्याह हो गया था “तुम…”उनके अस्पष्ट स्वर सुन उस नाजुक कलाई वाली ने सर ऊपर उठाया। उसका चेहरा देख मेरा मन विस्तृष्णा से भर गया। अपनी इसी दीन -हीन सहेली की छोटी बहन को पति के ऑफिस में जॉब दिलवाने के लिये मैंने कितनी लड़ाई लड़ी थी।
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तलाकशुदा सहेली की बहन नीमा को मै अपनी बहन समझ एक बार फिर खुशियाँ देने की मेरी कोशिश ने,… मेरीअपनी ही खुशियों पर तुषारापात कर दिया। घड़ी काउंटर पर छोड़ मै वहाँ से निकल आई। मेरे लिए दुनिया अँधेरी हो गई थी।
जब विश्वास टूटता है तो सब कुछ खत्म हो जाता है और उस दिन मेरी जिंदगी हमेशा के लिए बदल गई…..। देर रात जब ये घर आये मैंने एक शब्द भी इनसे नहीं कहा ना उलाहना का, ना क्षमा का, ना आरोपों का…।
तुम्हारे पास, मेरे लिए समय भी कहाँ है, कितनी बड़ी दिखती हो तुम…, तुम में अब पहली वाली बात नहीं रह गई आदि कह वे अपनी सफाई देते रहे, मेरा बिखरा रूप -रंग तो उन्हें दिखा, पर मेरा प्यार और रिश्ते के प्रति समर्पण नहीं दिखा, एक स्त्री अपना घर -परिवार बनाने के लिये अपनी ख्वाहिशे, अपना वजूद सब समर्पित कर देती है, पत्नी और माँ के किरदार में…।
मुझे तो बस निर्णय लेना था। बहुत सोच -विचार कर मैंने निर्णय लिया, जब तक बच्चे अपने पैरों पर नहीं खड़े हो जाते मै यही रहूंगी। हाँ मैंने उसी दिन अपना बैडरूम छोड़ दिया, जहाँ विश्वास नहीं धोखा विराजमान था।
बच्चे बड़े होकर नौकरी करने लगे तब मैंने अलग होने का निर्णय लिया तो बेटा बोला -माँ, ये इतनी बड़ी बात नहीं है कि आप घर छोड़ो, मै पिता का साथ दूंगा। मेरे प्यार और ममता के आगे पिता की दौलत जीत गई थी।जिन बच्चों के भविष्य की खातिर मैंने अपने आत्मसम्मान को भी कुचल दिया था वही बच्चे पिता की ओर हो गये थे।
बेटी बाहर चली गई थी। एक दिन मैंने हिम्मत कर वो घर छोड़ दिया। यहाँ कुछ लोग मुझे जानते है, सबको लगता मेरा ही चरित्र खराब है, इसलिये मै अपनी बसी बसाई दुनिया छोड़ आई थी।
मुझे आश्चर्य तब होता जब एक स्त्री ही दूसरी स्त्री की व्यथा ना समझ उसका मजाक उड़ाती है।क्या उम्र सिर्फ स्त्री की ही बढ़ती है पुरुष की नहीं….।कितनी आसानी से पति कह गये थे… तुम में अब वो बात नहीं है…., पर क्या उनमें वो पहली वाली बात थी, ये मै नहीं कह पाई थी, मेरे संस्कार ने इजाजत नहीं दी थी मुझे…।
लोगों की नजरों में, मेरा इस उम्र में उठाया कदम भले गलत हो सकता है, लेकिन मेरी नजरों में गलत नहीं है, अकेले ही सही पर मै आत्मसम्मान के साथ जी तो रही हूँ। बहुत मुश्किल होता है धोखे के साथ जीना ।
शादी से पहले मै भी उसी ऑफिस में काम करती थी,बच्चों की परवरिश के लिये छोड़ दिया थी। उस समय की बचत आज मेरे जीवन यापन का साधन है।
लता आंटी की कहानी सुन मेरा मन भर आया, सच एक स्त्री अपना घर संवारने के लिए क्या -क्या जतन नहीं करती, सब कुछ समर्पित करने के बाद भी बदले में उसे क्या मिलता…।
लता आंटी आपमें जो बात है वो किसी में नहीं, कह हौंसला बंधा, मै वापस आ गई। पर मन में सैकड़ो प्रश्न…। एक स्त्री कितना गरल पीती है। सही होते हुये भी स्त्री हमेशा गलत हो जाती है…आखिर क्यों….?
दोस्तों लता आंटी ने इस उम्र में अलग रहने का निर्णय ले सही किया या गलत… आप के क्या विचार है, जरूर बताये…।
—-संगीता त्रिपाठी
#समर्पण
Bilkul sahi kia, lekin ye itna aasan kaha hota h? Apna ghar chodna m bahut dukh hota h.
Sahi hai .bahut himmat chahiye.mai to nokari karti hu.par himmat nahi hai mujh me