निशा बाजार गई थी। वह अपना फोन घर पर ही भूल गई थी। फोन की रिंग बजी तो उसकी भाभी दिव्या ने फोन उठा लिया। फोन रिंग पर किसी लड़की का नाम लिखा था।
जब फोन उठाया तो कोई लड़का बोला। उसने निशा को पुकारा तो दिव्या ने बताया कि निशा तो बाजार गई है। मैं उसकी भाभी बोल रही हूं।
तुम कौन हो? लड़के ने बोला कि मैं निशा का दोस्त हूं। जब निशा आए तो मेरी उससे बात करवा देना। इतना कहकर उसने फोन रख दिया।
लड़के का दोस्त होना बुरी बात नहीं है पर घर में सबको दोस्त का पता होना चाहिए।भाभी डर गई थी क्योंकि निशा यह बात घर वालों से छुपा रही थी
कि वह किसी लड़के से बात करती है। उसने फोन में नाम तो किसी लड़की का लिख रखा है पर असल में वह नम्बर एक लड़के का था।
निशा अपनी भाभी के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करती थी। घर पर किसी के भी न होने के कारण उसकी भाभी ने फोन उठा लिया था।
नहीं तो पता तक नहीं चलता कि निशा किस से बात करती है। उसने निशा से या घर वालों से बात करने से पहले अपने पति से बात करना उचित समझा।
जब उसका पति घर आया तो उसने निशा के फोन के बारे में बताया लेकिन साथ ही यह भी समझा दिया कि निशा से प्यार से बात करना।
नहीं तो निशा उसके लिए ओर बुरा सोचने लग जाएगी। पति का पता ही नहीं चला कि उसने निशा से कब बात की? पर निशा ने इस बात के लिए भाभी से गाल फुला लिए।
अब इसमें गाल फुलाने वाली क्या बात थी? दिव्या तो निशा का भला ही चाहती थी। वह यदि निशा का बुरा चाहती होती तो यह बात पति से न करके
आस-पड़ोस के लोगों से करती और उसे बदनाम कर देती। पर उस ने ऐसा कुछ नहीं किया। फिर भी निशा ने अपनी भाभी को यह सुनाया कि तुम बहुत अच्छी बनती हो।
क्या सोचती हो कि भईया मुझ पर गुस्सा करेगा। वह मेरा भाई है। उसे मुझ पर पूरा विश्वास है। खैर बुरे बनकर भी दिव्या ने किसी अनहोनी को होने से रोक दिया था।
उसे इस बात की खुशी थी। उसने सोचा चल नेकी कर और दरिया में डाल।
डॉ हरदीप कौर (दीप)