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एफआईआर – जयसिंह भारद्वाज

थाने की बैरक के एक कोने में बैठा हुआ रामू सोच रहा था कि कल होली का त्योहार है और घर में पत्नी बच्चे बेहाल होंगे। यह सोच कर उसके नेत्रों से गर्म आँसुओं की धारा बह चली जो उसके गालों को भिगोती हुई उसके कॉलर के अगले हिस्से को गीला करने लगी।

अपनी ड्यूटी समाप्त करके रात्रि दस बजे थानेदार सुरेंद्र शर्मा थाना परिसर में बने अपने आवास के लिए निकले तो एक उचटती दृष्टि बैरक की तरफ डाली। रामू को छत की तरफ एकटक देखते और अविरल रोता हुआ पाया तो वे ठिठक गए। फिर वापस अपनी कुर्सी पर बैठकर एक सिपाही से कुछ खाने के लिए मंगाया और तब रामू को अपने पास बुलाया। सामने पड़ी कुर्सी में बैठने को कहा तो झिझकते हुए रामू बैठ गया। थानेदार ने मेज पर सामने रखा भोजन उसकी तरफ बढाते हुए खाने को कहा। रामू ने आश्चर्य से उन्हें देखा तो उन्होंने आँखें झपका कर उसे आश्वस्त किया  और भोजन करने का संकेत किया।

सुरेंद्र शर्मा ने भोजन करने के बाद सामने बैठे हुए रामू से कहा, “रामू, तुम्हारी भतीजी बहुत अधिक तेजतर्रार है। उस समय मैं तुम्हारी बात नहीं सुन सका था। अब तुम अपनी पूरी बात बताओ।”

शर्मा जी की आँखों में झाँक कर आश्वस्त हुआ रामू एक लंबी साँस लेकर बोला – “सर, हम दो भाई थे। चार साल बड़े भैया श्यामू और मैं। जब मैं चौदह साल का था तब श्यामू भैया की शादी निर्मला भाभी से हुई थी…..

छोटे से परिवार में हम सब हँसीखुशी से रह रहे थे। शादी के दूसरे ही वर्ष भाभी ने खुशखबरी सुनाई तो घर में हर्ष का सागर उमड़ पड़ा।

गर्मियों के दिन थे। भाभी चार माह की गर्भवती थीं। एक शाम श्यामू भैया बाहर गए तो लौटकर नहीं आये। सुबह उनका शव गाँव के तालाब में उतराता हुआ मिला।

इस घटना के बाद घर में सब उथलपुथल होने लगा। आपसी झगड़े होने लगे। भाभी के मायके से एक दो लोग हमारे साथ ही रहने लगे और उन्हीं की शह से भाभी प्रायः नई-नई व्यवस्थाएं बताती और फिर अगले दिन इन्हीं व्यवस्थाओं को स्वयं ही फिजूल साबित कर देतीं।

नियत समय पर भाभी ने एक बेटी को जन्म दिया। मैं और मेरे मातापिता भाभी व उनकी नवजात बेटी की खूब मन से देखभाल कर रहे थे किंतु न तो भाभी का टेढ़ा मुँह सीधा हुआ और न ही उनके मायके के लोगों की तिरछी नज़रें।




एकदिन वह भी आया जब भाभी ने सड़क किनारे का बड़ा पुस्तैनी मकान और उससे ही लगी कीमती जमीन को अपने लिए चुन लिया। जबकि मुझे व पिताजी को दूर नदी किनारे की ज़मीन व जानवरों के बाड़े को रहने के लिए छोड़ा। हमने विरोध किया तो वे थाने में शिकायती प्रार्थनापत्र दे आयीं। फलस्वरूप थाने में बुलाकर हमें समझाया गया कि जैसा भाभी कह रही हों वैसा ही हम कर लें नहीं तो भाभी से प्राप्त प्रार्थनापत्र के अनुसार अनावश्यक गम्भीर धाराओं में चालान हो जाएगा।

हम झगड़ा नहीं करना चाहते थे फलतः हमें मानना पड़ा। दिन गुजरते रहे।

कुछ ही दिनों के बाद भाभी कभी खेती किसानी को लेकर तो कभी बिटिया रानी के स्कूल आदि पर मुझसे परामर्श लेने लगीं। वाचाल होने के कारण आये दिन किसी न किसी से उनका झगड़ा झंझट होता रहता। ऐसे में वे मुझे बुला लेतीं और तब मुझे या तो उनका पक्ष लेना पड़ता या फिर बीच बचाव करना पड़ता।

भतीजी रानी जब सयानी हुई तो वह हमारे घर भी आने जाने लगी और मैं व मेरी पत्नी बच्चे उसे प्यार देने लगे। इसबीच मेरे माता पिता दोनों ही स्वर्गवासी हो चुके थे। भाभी ने रानी की शादी के लिए मुझसे उचित वर खोजने को कहा तो पत्नी की सलाह पर मैंने सभी पुरानी कड़वी बातों को भुलाकर पूरी जिम्मेदारी से अपनी पत्नी की रिश्तेदारी के एक खुशहाल परिवार में भाभी की सहमति से सम्बन्ध तय कर दिया। विवाह के समय भाभी बहुत खुश थीं।

ससुराल पहुँचने के तीसरे दिन से ही गालीबाज व मुँहफट रानी ने अपनी ससुराल में ताण्डव मचाना शुरू कर दिया तो मेरे पास शिकायत आयी। मैंने भाभी से कहा तो वे उल्टे मुझपर ही आरोप लगा कर साजिशन बेटी को गलत जगह ब्याहने की बात करने लगीं। उन्होंने थाने में मेरे विरुद्ध एफआईआर लिखाने की धमकी भी दे दी।

खैर, साल न बीतने पाया और रानी ससुराल से लड़ झगड़ कर कीमती सामान समेटकर अपनी मम्मी के पास वापस आ गयी और मेरी पत्नी व मुझपर आरोपों की झड़ी लगा दी। यद्यपि हमदोनों ने न केवल बहुत सफाई दी बल्कि उसकी ससुराल के लोगों को बुलाकर सामना भी कराया। किन्तु माँबेटी दोनों अपनी बात के अलावा हमारी सुनने को तैयार ही नहीं हुई। अंततः हमने क्षमा भी माँग ली किन्तु वे आये दिन मेरे विरुद्ध कभी सीधे थाने में प्रताड़ना की झूठी एफआईआर देने लगीं तो कभी मुख्यमंत्री पोर्टल में दहेज माँगने की झूठी शिकायतें दर्ज करने लगीं।

खेती किसानी छोड़कर मैं आये दिन कोर्ट कचेहरी व थाने के चक्कर काटने लगा। उनके विरुद्ध ही रही ताबड़तोड़ एफआईआर के कारण मेरी पत्नी के मायके वालों से मेरी गहरी अनबन हो गयी। मेरी मानसिक, आर्थिक, सामाजिक व शारीरिक गिरावट बड़ी तेजी से होने लगी। मैं भाभी व भतीजी के पैरों में गिरकर अभयदान माँगने लगा तो उन्होंने पाँच लाख रुपये या फिर तीन बीघे खेत रजिस्ट्री करने को कहने लगीं। महोदय, न तो रुपये हैं मेरे पास और स्वयं के परिवार के भरणपोषण को देखते हुए न ही खेत देने की स्थिति है मेरी। मैंने मना कर दिया तो कल रानी ने मुझ पर बलात्कार व मारपीट की झूठी एफआईआर कर दिया और आज आपने मुझे लॉकअप में बंद कर दिया। मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि आखिर मुझसे गलती किस स्थान पर हो गयी जो भाभी व रानी मुझसे ऐसा व्यवहार कर रही हैं। मैंने तो हर बार इन्हें मेरे बड़े भाई का परिवार समझ कर इनकी शुद्ध हृदय से सहायता ही की थी।” कह कर रामू सिसकने लगा।




“ठीक है। कल मुझे अच्छी तरह से तहकीकात कर लेने दो फिर मैं कुछ करता हूँ।” थानेदार शर्मा जी ने कहा और फिर वे सिपाही को रामू को लॉकअप में बंद करने का संकेत करते हुए थाने से बाहर निकल गए।

अगले दिन का सूरज रामू के लिए अच्छा सन्देश लाने वाला था। सुबह से रामू की दृष्टि थानेदार जी की कुर्सी पर टिकी थी। पहले दोपहर आकर चली गई और फिर शाम आ गयी किन्तु शर्मा जी कुर्सी पर नहीं विराजे। उसने एक बार एक सिपाही से शर्माजी के विषय में जानकारी चाही तो उसने कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दिया।

बत्तियाँ जल गयीं थीं किन्तु कुर्सी अभी भी थानेदार के स्पर्श की प्रतीक्षा कर रही थी। जब दीवाल घड़ी ने रात दस बजे के घण्टे बजाए तब रामू निराश मन से कम्बल बिछाकर सोने का प्रयत्न करने लगा। आज होली के पर्व पर वह अपने भूखे बच्चे व पत्नी के विषय में सोच कर भावुक हो गया और सुबकने लगा।

तभी थाने में कुछ हलचल हुई तो वह उठकर खड़ा हो गया और बैरक का जालीदार दरवाजा पकड़ कर देखने लगा। थानेदार शर्माजी उसी की तरफ आ रहे थे। दरवाजा छोड़कर वह सहमकर पीछे हट गया। शर्माजी ने अपने हाथों से बैरक का ताला खोला और दरवाजा खोलते हुए कहा, “रामू, आओ बाहर निकलो।”

भयभीत रामू बाहर आ गया तो शर्माजी ने उसकी बाँह पकड़कर अपने सामने पड़ी कुर्सी में बिठाया और स्वयं जाकर दूसरी तरफ़ सामने बैठ गए। कातर दृष्टि से देख रहे रामू की तरफ देखकर उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा,”रामू, देखो कौन आया है!”




रामू ने दृष्टि घुमाकर देखा तो बरामदे में भाभी, पत्नी व बेटे को खड़ा हुआ पाया। वह वापस शर्माजी को अचरज से देखने लगा। उसे लगा कि भाभी ने पत्नी के विरुद्ध भी कुछ कहा होगा। वह निराश हो गया।

तभी शर्मा जी ने कहा, “रामू, मैं सुबह ही गाँव के प्रधान व अन्य बहुत से खास-ओ-आम लोगों से मिला और तुम्हारे इस प्रकरण के विषय में जानकारी ली। सभी ने मुक्तकण्ठ से तुम्हें निर्दोष और भाभी-भतीजी को दुष्ट और झूठी बताया। गाँव के बहुत से लोग इनकी ज्यादतियों के शिकार बने हैं। तफसीस के साथ ही मैंने तुम्हारी पत्नी से जानकारी लेकर रानी के पति व ससुर को भी बुला लिया और उनसे भी जानकारी ली। बेचारे सीधे सादे परिवार को इस दुर्बुद्धि रानी ने बेहाल कर रखा था। अंत में मैं रानी के पास गया और उसे उसके दिए गए प्रार्थनापत्र के अनुसार बलात्कार के लिए मेडिकल कराने को जिला अस्पताल चलने को कहा। मेरी बात सुनकर उसका चेहरा फक्क पड़ गया तो झूठ सामने आ गया। फिर आपकी भाभी सामने आकर मेडिकल न कराने की मिन्नतें करके रिश्वत की पेशकश करने लगीं। बस, इनका सारा खेल उल्टा पड़ गया। इस पर मैंने इन्हें कस कर लताड़ लगायी। फिर मैंने कठोर चेतावनी देते हुए रानी को गाँव के सम्मानित व्यक्तियों की उपस्थिति में उससे एक करार लिखा कर उसके पति व ससुर के साथ ससुराल भेज दिया और जब थाने आने लगा तो तुम्हारी भाभी यहाँ चली आयीं। शायद कुछ कहना चाहती हैं ये तुमसे।”

रामू ने भाभी की तरफ देखा तो वे उठ कर समीप आयीं और हाथ जोड़कर क्षमा माँगने लगीं। रामू ने भीगी आँखों से अपने परिवार को देखते हुए कहा, “भाभी, आपको माफी तो है किंतु मेरा और आपका अब कोई पारिवारिक अथवा सामाजिक सम्बन्ध नहीं रहेगा भविष्य में। आप अपने घर में खुश और मैं अपने घर में।”

“ठीक है रामू, जाओ अपने परिवार से मिलो और इन्हें साथ लेकर अपने घर जाओ। जाकर खुशी खुशी त्योहार मनाओ। थोड़ी सी फॉर्मेलिटी के लिए कल सुबह दस बजे आ जाना।” थानेदार जी ने रामू से कहा और फिर निर्मला से कहा, “आप भी अभी जाइये और कल सुबह दस बजे यहाँ आ जाइये। उसी समय प्रधानजी व कुछ अन्य गणमान्य नागरिकों की उपस्थिति में तुम्हारा सुलहनामा तैयार करना है ताकि सभी लम्बित मामले निस्तारित किये जा सकें। भविष्य के लिए ध्यान में रखना अन्यथा तुम्हारे व तुम्हारी बेटी के विरुद्ध कठोरतम कार्यवाही करूँगा।”

भाभी जी ने हाथ जोड़कर “जी साहब” कहा और थाने के गेट से सपरिवार बाहर जा रहे रामू की तरफ बढ़ गयी।

                       //इति//

 ©जयसिंह भारद्वाज, फतेहपुर (उ.प्र.)

स्वरचित एवं अप्रकाशित

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