ऐसा जीवनसाथी सबको मिले! – मीनू झा 

जिंदगी मौके कम अफसोस ज्यादा देती है ऐसे ही नहीं कहा गया है बहू….तब कितना कहा था मैंने छह महीने साल भर की तो बात है रख लो ना सुरभि को,कुछ बन जाएगी तो जीवन भर नाम लेगी…बेचारी बिन बच्ची की मां…पर नहीं पता नहीं क्या चलाती रही दिमाग में–मीना अपनी बहू सरिता से कह रही थी।

मम्मीजी मैं ऐसे ही बहुत परेशान हूं और फालतू बातें कह सुनाकर मुझे और परेशान मत कीजिए..अब जो हो गया वो सुधारा तो नहीं जा सकता ना,अभी जो समस्या है उसपर ध्यान देना तो जरूरी है।

देख अब उतना सोच विचार मत कर एक बार सुरभि को काॅल कर ले…मेरा दिल कहता है कुछ न कुछ अच्छा ही होगा…तू एक बार कोशिश तो कर..!

मां किस मुंह से फोन करेगी…पूरे छह महीने तक उसके काॅल आते रहे थे इसने बात करना तो दूर उठाया तक नहीं था उसका फोन…अब ये करेगी तो वो क्यों उठाएगी??–दीपक बोल पड़ा।

दरअसल सुरभि सरिता की स्वर्गीय जेठानी की बेटी थी…जेठानी के अकस्मात चल बसने के बाद जेठ ने शादी कर ली…जैसा की होता है सौतेली मां सुरभि को देखना नहीं चाहती थी…उसके खुद के दोनों बच्चे कुछ खास नहीं थे पढ़ाई लिखाई में, बहुत अच्छी तो सुरभि भी नहीं थी,पर सुरभि के अंदर कुछ बनने का जुनून था तो वो चौबीसों घंटे पढ़ाई करती रहती,…बैंक की प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कर रही सुरभि को परेशान करने के लिए उसकी सौतेली मां उसपर बार बार घर के काम करने का बोझ डालती थी यही नहीं हर बार ऐन परीक्षा के वक्त उसे इतने ऊब देती कि वो सफल नहीं हो पाती ….तो हमेशा अच्छे से बात करने और पेश आने वाली अपनी चाची सरिता से उसने अनुरोध किया था–

चाची…एक रिक्वेस्ट थी मुझे कुछ महीने आप अपने पास रख लो..दो बार फेल हो चुकी हूं इस बार मैं पूरे तन मन धन से परीक्षा देना चाहती हूं,सफलता मिली तो ठीक वरना जो होगा अपना नसीब समझकर स्वीकार कर लूंगी

सुरभि…देख मुझे तुझसे हमदर्दी है..पर तू तो जानती है ना हमारा छोटा सा घर है इसमें दादा दादी पहले से रहते हैं,दो दो बच्चे हैं और तेरे चाचाजी की ऐसी भागदौड़ वाली नौकरी… मैं ऐसे ही सब मैनेज करते करते परेशान रहती हूं…दो चार दस दिन की बात होती तो मैं एडजस्ट कर लेती पर छह महीने साल भर थोड़ा मुश्किल है—सरिता ने सास ससुर को हमेशा अपने पास रखने का भी भड़ास निकाल ही लिया उस निरीह पर।

खैर उसके बाद भी कई बार सुरभि ने फोन किया पर सरिता ने उसका नंबर ही ब्लाॅक कर दिया…दादा दादी और चाचा के फोन पर वो कभी कभी बात कर लिया करती।



और उसी बार उस परीक्षा में सुरभि पास हो गई और उसकी दक्षिण भारत के एक बैंक में नौकरी लग गई….सुनकर सरिता को थोड़ा अफसोस तो हुआ कि वो भी सुरभि की इस सफलता की भागीदार बन सकती थी..पर कोई नहीं।

सरिता के बेटे रोहन का संयोग से इंजीनियरिंग में उसी शहर के काॅलेज में सलेक्शन हुआ जहां सुरभि रहती थी…पर अपने मन में ही अपराधबोध पाले सरिता ने ना सुरभि से बात की ना कुछ बताया.. हालांकि दीपक और दादी से तो सुरभि की बात होती ही थी और सारे समाचार मिल ही जाते थे।

अब परेशानी ये आई थी कि रोहन का एक्सीडेंट हो गया था दाहिने पैर में फ्रैक्चर था और मुंह पर और हाथ में भी चोटें आई थी..उसे अभी आराम और किसी अपने की सेवा की जरूरत थी…बौखलाई हुई सरिता ने सारे ट्रेन और फ्लाइट में चेक कर लिया पर छुट्टियों की वजह से कहीं टिकट नहीं था..अब तो सरिता का हाल बुरा था..वहीं सास और पति उसे कह रहे थे कि

एक बार सुरभि से बात कर लो शायद उसका दिल पसीज जाए और वो रोहन को अपने घर पर फिलहाल रख लें और हम फिर दो तीन दिन में तो वहां पहुंच ही जाएंगे, तत्काल वगैरह में टिकट लेकर…।बात तो मैं भी कर सकता हूं पर तुम करो तो ज्यादा सही होगा…।

फूल सा स्मार्टफोन सरिता को क्विंटल भर का लग रहा था..पर बात बेटे की वो भी स्वास्थ्य की थी तो मन को मनाना पड़ा कि क्या फर्क पड़ता है जैसे उसने उस दिन उसे दो टुक सुना दिया था वो भी सुना देगी…पर एक प्रयास तो बनता है…

सुरभि…चाची बोली रही हूं सरिता चाची

अरे चाची…इतने दिनों बाद मेरी याद आई ना…कितना फोन किया आपको.. चाचाजी,दादी दादाजी सबको कहा आपसे बात करवाने पर किसी ने नहीं करवाई…कैसे हो चाची—सुरभि ने इतनी आत्मीयता से कहा कि सरिता के आंसू निकल आए और सब्र का बांध टूट गया

सुरभि…मुझे माफ़ कर दे बेटा…तेरी मुश्किलों का अंदाजा मुझे आज तब हो रहा है जब मुझ पर मुसीबतें आई है



 ््

क्या हो गया चाची…सब ठीक तो है ??

रोहन…

क्या हुआ रोहन को परसों तो हमारी बात हुई है!!

क्या… बात हुई है??रोहन का कल एक्सीडेंट हो गया है सुरभि… हमें कहीं टिकट भी नहीं मिल रहा…हम क्या करें?

एक्सीडेंट हो गया…उस गधे ने मुझे अभी तक फोन नहीं किया, चाचाजी या दादी को तो बताना चाहिए था ना..आप अस्पताल का नाम बताओ मैं पहुंचती हूं और हां आपलोग बिल्कुल फ़िक्र मत करो मैं जब उसे डिस्चार्ज मिलेगा अपने पास ले आऊंगी और यही रहेगा वो.. आप लोग जब आराम से टिकट मिले आ जाना..

सुरभि… मैं बहुत शर्मिंदा हूं बच्चे…

क्यों चाची…जीवन में धूप ना हो तो छांव का महत्व कहां समझ आता है,जितने सुख जरूरी है ना उतना ही महत्व दुखों का भी है, हमारे दुख हमें परिस्थितियों को बदलने वाले सुख की तरफ ढकेलते हैं…आपसे बहुत उम्मीदें थीं मेरी पर जब आपने मना कर दिया तो मेरी क्षमता सौ गुना बढ़ गई और मुझे लगा कि चाहे कुछ भी हो जाए इस बार तो मुझे सलेक्ट होना ही है….और चाचाजी की मदद ने तो मुझे फिर पीछे मुड़कर नहीं देखने दिया… मैं तो आना भी चाहती थी आपसे मिलने मिठाई लेकर पर चाचाजी ने मना कर दिया और फिर तो यहीं आ गई….चाची…रोहन का फोन आ रहा है मैं रखती हूं उससे मिलने के बाद आपको फोन करूंगी



फोन रखने के बाद एक राहत थी सरिता के चेहरे पर…

मैंने तुम्हें बताया नहीं था सरिता… मैं जब रोहन का एडमिशन करवाने गया था तो सुरभि के पास ही ठहरा था.. दोनों भाई बहनों में खुब अच्छी दोस्ती भी हो गई…सुरभि तो कह रही थी उसे अपने घर पर ही रहने पर मैंने ही हाॅस्टल दिलवा दिया पर दोनों मिलते और बातें करते रहते हैं।

और वो क्या कह रही थी सुरभि.. चाचाजी ने मदद की??

तुमने जब मना कर दिया…फिर मैं उससे मिला और भाई साहब से रिक्वेस्ट कर एक साल के लिए उसे कोचिंग और हाॅस्टल में दाखिला करवा दिया..आधा खर्चा मैं दे रहा था… मुझे पता था कि जीवन मौके कम अफसोस ज्यादा देती है..तो जब तुम्हें अपनी ग़लती का एहसास हो तो ज्यादा अफसोस ना हो इसलिए मैं सुरभि के लिए हमेशा खड़ा रहा,वैसे भी उस बिन मां की बच्ची से मेरा शुरू से एक अलग लगाव था..पहली बार चाचा तो उसी ने बनाया था पर तुम्हारे अधिकार क्षेत्र में भी नहीं घुस सकता था ना..

बहुत अच्छा किया जी…सच है जिंदगी अच्छे कामों का जरिया बनने के मौके बहुत कम देती है हमें उन्हें चूकना नहीं चाहिए…सच कहा सुरभि ने धूप ना हो तो छांव का महत्व कहां समझ में आता है..जैसा आज मेरे साथ हुआ!!

बहू…ये भी तो कहो भगवान गलतियों को सुधारने वाला ऐसा जीवनसाथी भी सबको दे..और हां कल के तत्काल का टिकट भी करवा लाया है दीपक–दादी बोल पड़ी

आप अपने बेटे की तारीफ का एक भी मौका नहीं छोड़ने वालीं है ना मम्मी जी —आंसू से भरे चेहरे से दीपक की तरफ देख मुस्कुरा पड़ी…सरिता पर उसका भी मन कह रहा था ईश्वर ऐसा जीवनसाथी सबको दे।

मीनू झा 

#कभी_धूप_कभी_छाँव 

 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!