ऐसा बेटा होने से अच्छा बेटा ना हो 

गोपी की बहु वंदना की शादी बेटे सुकेत से हुए अभी कुछ ही दिन बीते थे की अचानक गोपी के पति धीरेंद्र को दिल का दौरा पड़ने से उसकी मौत हो जाती है. पति की मौत के बाद गोपी बहू वंदना और बेटी संकेत के साथ घर में ही रह रही थी लेकिन कुछ दिन बीत जाने के बाद ही वंदना ने अपना असली रंग दिखाने शुरू कर दिए. वह अपनी सास को कुछ भी बुरा भला कह देती थी और क्योंकि धीरेंद्र अपनी सारी जायदाद अपने बेटे सुकेत के नाम कर दी थी तो अब गोपी के पास उसका खुद का कुछ नहीं बचा था. क्योंकि धीरेंद्र को यह विश्वास था कि उसके जाने के बाद उसका बेटा सुकेत मां गोपी का खयाल रखेगा. लेकिन यहां तो उलटी गंगा बह रही थी. अब जैसे जैसे समय बीत रहा था वंदना की बुरी हरकतें और बढ़ रही थी. और इसमें सुकेत भी उसका पूरा साथ दे रहा था. समय बीतता गया और पति के मौत के कुछ दिन बाद जब एक दिन गोपी अपने पति धीरेन की फोटो हाथ में लिए रो रही थी तब बहू वंदना वहाँ आती है,

“अरे क्या माजी आप भी… अभी भी ससुर जी को लेकर रो  रही है! अब वह आप के रोने से वापस थोड़ी ना आएंगे! बेकार में अपनी तबीयत खराब कर लेती है… और फिर आपको घर का काम ना करने का बहाना मिल जाता है! चले जाइए रसोई में जूठे बर्तन पड़े है, उसको साफ कीजिए… मुझे बाजार जाना है कुछ काम है”

वंदना अपनी सास के साथ एक नौकरानी जैसा ही बर्ताव करती और इसमें गोपी का बेटा और वंदना का पति सुकेत भी कुछ नहीं कहता. एक दिन वंदना और सुकेत छुट्टियों के दिन घूमने जा रहे थे तो सुकेत अपनी मां से कहता है,

“मां मैं वंदना को लेकर तीन दिन के लिए छुट्टियों में घूमने जा रहा हूं तब तक आप घर में आराम से रहिएगा…”

“अरे बेटा तीन दिन के लिए जा रहे हो और मैं इतने बड़े घर में अकेले कैसे रहूंगी… और कुछ पैसे तो हाथ में देते जाओ”

“पैसों की क्या जरूरत है… घर पर दाल चावल सब पड़ा है अपना देख लेना…”



“लेकिन बेटा उसकी बात नहीं है मुझे दवाई लानी है मेरी तबीयत ठीक नहीं है…”

“अरे माँ जी आपकी तबीयत तो साल के 12 महीने ही ठीक नहीं होती… ऐसा वैसा कुछ नहीं है! और तीन दिन के लिए बिना दवाई लिया आप मर नही जायेगी!”

यह कहकर बहू और बेटा दोनों ही घूमने चले जाते है. उधर गोपी दवाई ना लेने की वजह से और बीमार हो जाती है कि उसकी उठने की भी हिम्मत नहीं रहती. पर जैसे तैसे वह अपना खाना बनाकर तीन दिन के लिए गुजारा करती है. ऐसे  में जब तीन दिन बाद वंदना घर लौटी तो दो दिन के इकट्ठे पड़े झूठे बर्तन उनको देखकर उसके गुस्से का ठिकाना नहीं रहता. वह तुरंत अपने सास के कमरे में जाकर लेटे हुए सास को कहती है,

“अरे ऐसा भी क्या आपके पैर में कांटा चुभ हुआ था की आपने अपना खाना बनाकर खा तो लिया लेकिन जूठे  बर्तन मेरे लिए छोड़ दिए…”

“अरे बहु मैंने दो दिन से दवाई नहीं ली… और इसमें मेरी तबीयत और बिगड़ गई है, मुझसे उठा भी नहीं जा रहा तुम्हें तो पता है ना कि मुझे ब्लड प्रेशर है.”

“बस बस यह सब आपका बहाना है…”

यह कहकर वंदना झूठे बर्तन साफ करने में लग जाती है और एक के बाद एक अपनी सास को ताने देती है. सास कुछ नहीं बोलती और ना ही बेटा सुकेत अपनी पत्नी को कुछ कहता है. समय गुजरता जाता है. और एक दिन जब गोपी टूटा हुआ अपना चश्मा लेकर अपने बेटे के पास जाती है ताकि वह नया  चश्मा बना कर दे तो बेटा कहता है,

“क्या मां इस महीने कितना खर्चा हो गया! अब आप नया खर्चा ला रही है, बिना चश्मे के भी आप घर पर रह सकती है आपको बाहर का काम तो करना नहीं है, तो घर पर चश्मे की क्या जरूरत!”

बेटा सुकेत यह कहकर अपनी मां को एक नया चश्मा लाकर देने से इंकार कर देता है. और बहू वंदना भी अपनी सास के साथ एक नौकरानी जैसा व्यवहार जारी रखती है. एक दिन जब गोपी घर के आंगन में झाड़ू लगा रही थी तो इतने में एक चमचमाती हुई सफेद कार उसके घर के आंगन के सामने आकर खड़ी रहती है. और गाड़ी से एक सूट कोट में नौजवान उतरता है गोपी को देखकर कहता है,



“अरे मां आपने यह खुद की क्या हालत बना रखी है… और घर के बाकी लोग कहां है? घर में नौकर नहीं है क्या? और पिता जी कहां है आप आंगन में झाड़ू क्यों लगा रही है?”

“मां…! माफ करना बेटा मैंने तुम्हें पहचाना नहीं..”

“मैं आपका बेटा हूं राघव!”

“अरे राघव तू आ गया बेटा… तेरे पिताजी नही रहे… इतने दिनों बाद मां की और घर की याद आई!”

“मां मैं कल ही विदेश से लौटा हूं लेकिन पिताजी… ये सब कैसे हो गया मां और मुझे किसी ने कुछ नही बताया…”

फिर गोपी राघव को अंदर ले जा कर सारी बात बताती है, और अपने साथ बेटे और बहू ने मिल कर किए हुए बुरे व्यवहार को भी बताती है. इतने में सुकेत  और पत्नी वंदना शॉपिंग करके घर आते है तो राघव सुकेत को कहता है,

“भाई आपको शर्म नहीं आती अपनी मां से ऐसा व्यवहार करते हुए…”

“तुम मुझे यह कहने वाले कौन होते हो? भूलना मत कि तुम एक अनाथ हो, जिसको मेरे माता-पिता ने ही पढ़ा लिखा कर बड़ा किया है. लेकिन तुम्हारा खून का रिश्ता नहीं है इसके नाते तुम मुझे कुछ नहीं कह सकते…”

“आपकी बात सही है लेकिन मैं एक अनाथ हूं इस लिए जानता हूं की माता पिता क्या होते है… और गोपी मां तो मेरी मां है, मैं उनके साथ ऐसा बुरा व्यवहार होते हुए नहीं देख सकता… मैं उन्हें अपने साथ ले जा रहा हूं!”

राघव गोपी मां को अपने साथ ले जाता है. और उन्हें घर मुखिया का दर्जा देता है. उधर राघव की पत्नी शीतल जो विदेश में ही पढ़ी लिखी थी फिर भी वह अपनी सास गोपी को बहुत ही आदर सत्कार से रखती है. उन्हें घर का एक काम भी नहीं करने देती. और मां की तरह ही उनकी हर एक बात का ध्यान रखती है. यह देखकर गोपी को बहुत दुख होता है कि जब अपने खुद के खून ने पति के जाने के बाद उसे एक नौकरानी बना कर रखा, वही एक अनाथ बेटा आज उसे एक मां की तरह ही आदर सम्मान से रख रहा है.

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