
एकलौता बेटा – डॉ उर्मिला शर्मा
- Betiyan Team
- 2
- on Jun 14, 2022
“अरे ! केवल जरूरत भर का सामान रख लो। बेटे के पास जा रही हो। कोई रिश्तेदारी में नहीं। अब से हमारी सारी जिम्मेदारी बेटा लेने वाला है।” – सुरेंद्र सिंह ने गर्व से कहा।
उनका बेटा पवन सिंह लगभग पन्द्रह साल पूर्व दिल्ली में एक छोटी फैक्टरी लगा रखा रखा था। सुरेंद्र सिंह का गांव में अच्छा-खासा जमीन- जायजाद था। पिछले छह महीने से पवन मां- बाबूजी को शहर बुला रहा था।
उसका कहना था कि बुढ़ापे में कहां अकेले गांव में पड़े रहेंगे। इसलिए सारी संपत्ति बेचकर उसके पास दिल्ली आ जाएं। बहुत जिद करने के बाद आखिर सुरेंद्र सिंह को मानना ही पड़ा। प्रोपर्टी बेच अच्छी- खासी रकम मिली जिसे बेटे के एकाउंट में ट्रांसफर कर दिया और फिर दोनों पति- पत्नी दिल्ली चले आये।
कुछ दिन तो ठीक रहा। उसके बाद सुरेन्द सिंह की बहू का बर्ताव बदलने लगा। ऐसा प्रतीत होता था कि उसे ये लोग अवांछित व्यक्ति लगते थे। सास को दिनभर काम में लगाये रखती, मानो मुफ्त की बाई मिल गयी हो। सुरेंद्र सिंह को शुगर के मरीज होने की वजह से भूख जल्दी लगती थी। किन्तु बहु खूब देर करके नाश्ता देती। इधर भूख से वो अकुलाते रहते।
बेटा पवन भी माता- पिता में कोई दिलचस्पी न रखता और न ही घड़ी भर को इनके पास बैठता। सुरेंद्र सिंह के जेब में एक फूटी कौड़ी भी न होती थी। जीने भर खाने के अलावा उनकी किसी भी जरूरत का ध्यान न रख जाता था। एक बार उनकी पत्नी का कटहल की सब्जी काटते समय उंगली कट गई और बहुत खून बहने लगा। तो पास की दुकान से बैंड एड लाने के लिये छटपटा के रह गए
क्योंकि पास में पैसा न था। एक रोज बड़े साहस करके बेटे से सौ रूपये मांगे -“बाबू सौ रुपये देते , पास में रखता किसी इमर्जेंसी में काम आता।” बड़ी रुखाई से पवन ने कहा -” खाना मिलता है, घर में रहते हैं। क्या करेंगे पैसे ?”
इस घटना ने उन्हें झकझोर के रख दिया था। वो और उनकी पत्नी मन ही मन पछताने लगे थे। अभी साल भर भी न बिता था, न जाने आगे जिन्दगी कैसी गुजरेगी। वापस गांव भी न जा सकते थे। बेटे के बहकावे में सब बेच- बांच कर उसके पास चले आये थे। बेहद तनावग्रस्त रहने लगे सुरेंद्र सिंह। पत्नी की सेहत भी दिन ब दिन गिरने लगी।
एक रोज सुबह जब पवन की मां जगीं तब देखा बिस्तर पर उनके पति हमेशा की तरह सोए न दिखें। सोचा जल्दी जग कर घर ही में होंगे कहीं। इधर – उधर ढूंढा। फिर बहु को बताया। “आ जाएंगे आसपास कहीं गए होंगे। सुबह- सुबह भी चैन से नहीं रहने देतीं।”- लापरवाही से कहा।
पूरा दिन निकल गया। लेकिन सुरेंद्र सिंह का कहीं अता-पता नहीं। उनकी पत्नी का रो- रोकर बुरा हाल। मुहल्ले में खबर हो गयी कि पवन सिंह के पिताजी घर छोड़कर कहीं चले गए। पन्द्रह- बीस दिन बाद पवन सिंह के किसी परिचित ने शहर में एक चाय की दुकान के पास दयनीय हालत में दिखें। बढ़ी हुई दाढ़ी के साथ शरीर कृशकाय हो चला था।
उस व्यक्ति ने उन्हें नजदीकी हॉस्पिटल में भर्ती करा दिया। नाम, पता पूछा। पर उन्होंने कुछ भी नहीं बताया। अंततः उस व्यक्ति ने उनकी एक फोटो खींची और पुलिस स्टेशन में भी इत्तला कर दिया। साथ ही उसने सोसल मीडिया में भी उनकी फोटो डाल दी।
पवन सिंह को भी खबर दी। लेकिन उन्होंने कोई ध्यान न दिया। अगले दिन थाने से भी पुलिस ने कॉल कर पवन सिंह को थाने बुलाया। पवन सिंह को पुलिस हॉस्पिटल ले गयी लेकिन वहां उन्होंने पिता को पहचानने से इंकार कर दिया।
सुरेंद्र सिंह सूनी आंखों से केवल देखते रहे। पुलिस पूछती रही-“बाबा बोलो ! ये आपका बेटा है ?” कुछ भी न कहा। क्या सचमुच वो भी न पहचान पाए एकलौते बेटे को या उनका रिश्तों से मोहभंग हो गया था।
—डॉ उर्मिला शर्मा
YE AAJ KI SACCHAI HAI KI BACCHO SE KOI UMMID MAT RAKHO APNE LIYE BHI KUCH BACHAO
Aise beta Bahu ko dojakh me bhi jagah na milegi.