सुनो रवि…
देखो तो पापा अपनी चारपाई पर दिख नहीं रहे ….
इतनी रात कहां गए होंगे…??
कोई आहट भी नहीं हुई….
रवि को उठाते हुए उसकी पत्नी रागिनी बोली….
सकपका कर जल्दी से रवि उठा …
और वह बाहर आया ….
उसने पापा को चारपाई पर न पाकर आसपास ढूंढा…
कहां गए रागिनी …
दिख नहीं रहे पापा…
इसीलिए हम दोनों ने पापा की चारपाई अपने पास रखी थी…कि मां के जाने के बाद उन्हें अकेलापन महसूस ना हो…
बहुत ही अकेले हो गए हैं वो…
चलो बाहर देखकर आते हैं…
रवि और रागिनी दोनों ही बाहर आ गए…
वहां भी पापा दिखाई नहीं पड़े….
तभी उन दोनों को कहीं हल्की सी हलचल सुनाई दी….
वह ऊपर की ओर गए छत वाले स्टोर रूम से ही आ रही थी….
रागिनी शायद वहां होंगे…
अरे नहीं नहीं…
उसका तो लॉक लगा है…
उसकी चाबी भी नहीं पता पापा को कहां पर रहती है….
वहां नहीं होंगे….
हो सकता है कोई चूहा वगैरह हो….
नहीं रागिनी ये चूहे की आहट नहीं है….
दोनों लोग धीरे-धीरे करके गए….
वह कमरा थोड़ा सा खुला हुआ था….
बाहर से ही रवि ने रागिनी को चुप रहने का इशारा किया….
और वह दोनों देख रहे थे…
कि उनके पिताजी (रागिनी के ससुर )हाथ में छोटी सी टॉर्च लिए जमीन पर बैठे कुछ पढ़ने में लगे थे…..
खुद से कुछ बतिया भी रहे थे…..
रवि,,,पापा यह क्या कर रहे हैं….
वही मुझे भी समझ में नहीं आ रहा रागिनी …
फिर भी समझने की कोशिश करता हूं ….
लेकिन अभी हम अंदर नहीं जाएंगे…
पहले थोड़ा समझने दो…
उन्होंने देखा कि एक छोटा सा बक्सा पापा के पास रखा हुआ है…..
उनमें से न जाने कितने ही कागज जमीन पर फैले हुए हैं….
एक कागज को उन्होंने हाथ में ले रखा है….
और उसे पढ़ रहे हैं….
शायद उनकी आंखों में आंसू भी आ रहे हैं….
उसे पोंछ लेते हैं धीरे से….
रागिनी और रवि अंदर जाकर के गेहूं के ड्रम के पीछे जाकर खड़े हो गए…
यह क्या पिता जी तो बहुत ही जोर-जोर से रो रहे हैं….
कहां चली गई विमला तू मुझे छोड़कर ….
एक-एक पल तेरे बिना कैसे कट रहा है ….
मैं तो हर पल ईश्वर से यही प्रार्थना करता था …
कि मुझे तेरे से पहले उठा ले….
तेरे बिना कैसे रहूंगा ….
तुझे गए हुए अभी 20 दिन ही हुए हैं ….
ऐसा लग रहा है सालों बीत गए …
विमला अब तेरी जुदाई बर्दाश्त नहीं होती ….
ऐसा नहीं है कि बच्चे ख्याल नहीं रखते …
लेकिन जो तेरा सूनापन है…
जो तेरे साथ हंसी ठिठोली करता था…
तेरे साथ बिताया हुआ समय ,,दुख का समय,,,हंसी खुशी का समय,,भुलाये नहीं भूलता री ….
मन नहीं माना तो चुपचाप यहां चला आया हूं…
रवि और रागिनी की आंखों से आंसू आ चुके थे ….
वह ससुर जी के पास आए ….
पापा …
आप रात में यहां क्या कर रहे हैं…??
तभी राकेश जी (पिता जी) ने जल्दी से सारी की सारी चिठ्ठियां उठाकर उन्हें समेटकर बक्से में बंद कर उसका ताला लगा दिया…..
तुम लोग यहां क्या कर रहे हो ….
रोष भरी आवाज में बोले राकेश जी…..
आपको चारपाई पर ना पाकर हम लोग घबरा गए….
कि आप कहां चले गए….
मर नहीं गया हूं ….
मर जाऊंगा उस दिन चिंता करना ….
अब आप नाराज क्यों हो रहे हैं ….
हम तो बस पूछ रहे हैं….
फिर भी रवि का मन नहीं माना ….
उसने पापा का हाथ उठाकर चाबी से वह बक्सा खोल ही लिया…
उसने चिठ्ठियां निकाली …
अच्छा तो ये मां की लिखी हुई चिठ्ठियां है …
शायद मेरे जन्म से पहले ही आप दोनों एक दूसरे के लिए लिखते थे ….
मां बताया करती थी मुझे….
लेकिन मुझे पढ़ने के लिए कभी भी उन्होंने एक भी चिट्ठी नहीं दी….
पापा….क्या मैं पढ़ सकता हूं ….
रागिनी बोली ….
क्या पापा मैं भी …
पत्थर दिल राकेश जी एकदम से मोम बन गए….
अब क्या करोगे पढ़कर…
जिसने इतने मन से इनको लिखा था…
उसके हाथों की लिखावट , ,उसकी खुशबू अभी भी इन चिट्ठियों में बरकरार है…
देख बहू …
तुझे भी खुशबू आ रही है ना…
चिट्ठी को रागिनी की तरफ आगे बढ़ते हुए राकेश जी बोले…
हां यह तो मोगरे की खुशबू है पापा ….
हां तेरी सास जानती थी…
कि मुझे मोगरे की खुशबू बहुत पसंद है …
तो हर चिट्ठी में उसकी इत्र डाल देती थी …
देख आज तक वह बरकरार है ….
इन्ही के सहारे जीवन जी लूंगा …
हे मुरली मनोहर …
मुझे भी जल्द ही उठा ले….
अब पता चला है..
कि पति पत्नी का रिश्ता जवानी से ज्यादा बुढ़ापे में जरूरी होता है….
कैसे रह लेते हैं लोग अपने जीवनसाथी के जाने के बाद….
एक-एक पल उसकी याद आती है …
चाय पीता हूं तो लगता है सामने बैठी हुई है….
सोता हूं तो लगता है कि मुझे आवाज दे रही है….
ए जी खांसी क्यों आई …
उठकर तुरंत पानी ला कर देती थी ….
ऐसा नहीं है तुम मेरा ख्याल नहीं रखते …
लेकिन एक जीवनसाथी की कमी शायद कोई पूरी नहीं कर सकता ….
यह बोल राकेश जी वहीं पर निठाल होकर बैठ गए…
पापा आप घबराइए नहीं…
हम है ना आपके साथ …
समझ सकते हैं आपकी व्यथा ….
ठीक है हम यह चिठ्ठियां नहीं पढ़ेंगे नहीं तो इनकी खुशबू चली जाएगी ….
ये आपकी और मां के बीच के प्यार भरे पल हैं ….
इनमें हम दखलअंदाजी नहीं करेंगे …
आप आ जाया करो यहां पर…
लेकिन ऐसे रात में इस तरह से …
नहीं नहीं…
ऐसा करता हूं कि सारी चिठ्ठिय़ां आपके एक छोटे से बैग में रख देता हूं ….
आप वहीं पर अपने कमरे में ही इन्हें रख लीजिएगा….
जब मन करे….
पढ़ लीजिएगा…
आप ऐसे अकेले रात में आए …
और कहीं गिर गए तो बस चोट लग जाएगी..
ठीक है चल अब नीचे …
ऑफिस जाना है तुम दोनों को सुबह…
तुम लोगों को भी परेशान कर दिया रात में…
पापा रागिनी कल से ऑफिस नहीं जाएगी…
उसने आज इस्तीफा दे दिया है ….
रवि बोला …
अरे नहीं बहू…
मेरे लिए इस्तीफा देने की जरूरत नहीं थी …
मैं कितने दिन का मेहमान हूं…
तू अपने पैरों पर खड़ी रह….
नहीं नहीं पापा जी….
इस समय आपको और बच्चों को मेरी ज्यादा जरूरत है….
मैंने यह फैसला ले लिया है …
रागिनी बोली…
राकेश जी ने रागिनी के सर पर हाथ फेर दिया….
सदा खुश रह….
राकेश जी को उठाकर रवि और रागिनी धीरे-धीरे नीचे कमरे में ले गये ….
अब उन्होंने उनकी चारपाई थोड़ा और अपने कमरे के पास कर ली थी …
कि उन्हें पापा के चलने का पता चलता रहे …
अब तो रात में न जाने कितनी बार रवि और रागिनी उठते …
और पापा को देखते कि वह है तो अपनी खाट पर ही है ….
सच बात है एक जीवन साथी की कमी कोई पूरी नहीं कर सकता…
उसका दुख वही जानता है जो उसके गुजर रहा होता है ….
मीनाक्षी सिंह की कलम से
आगरा